बिहार बोर्ड कक्षा 12 भौतिक विज्ञान अध्याय 6 वैद्धुत चुम्बकीय प्रेरण लघु उत्तरीय प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. विद्युत-चुम्बकीय प्रेरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर: विद्यत-चम्बकीय प्रेरण – फैराडे द्वारा 1831 ई. में जाना गया कि जब किसी बंद कुंडली के सापेक्ष किसी चुम्बक में गति उत्पन्न की जाती है तो बंद कुण्डली में लगे गैलवेनोमापी में विक्षेप होता है, जो उस समय तक रहता है जबतक कि चुम्बक एवं कुण्डली के बीच सापेक्षिक गति वर्तमान होती है। इसके फलस्वरूप कुण्डली में विद्युत वाहक बल तथा विद्युत धारा प्रेरित होती है। अतः किसी बंद कुण्डली और चुम्बक के बीच सापेक्षिक गति के कारण कुण्डली में वि. वा. बल के प्रेरित होने की घटना को विद्युत्-चुम्बकीय प्रेरण कहा जाता है। कुण्डली में उत्पन्न वि. वा. बल को प्रेरित वि. वा. बल तथा उत्पन्न धारा को प्रेरित धारा कहा जाता है।
2. फैराडे के विद्युत-चुम्बकीय प्रेरण के नियमों को लिखें।
उत्तर: फैराडे के विद्युत – चुम्बकीय प्रेरण के नियम – फैराडे के विद्युत चम्बकीय प्रेरण के निम्नलिखित तीन नियम हैं
प्रथम नियम – किसी कुण्डली या परिपथ से संबद्ध चुम्बकीय फ्लक्स में जब भी परिवर्तन होता है तो कुण्डली या परिपथ में प्रेरित वि. वा. बल उत्पन्न होता है जो कुण्डली या परिपथ में उतने ही समय तक रहता है जितने समय तक चुम्बकीय पलक्स में परिवर्तन होता रहता है।
द्वितीय नियम – किसी कुण्डली या परिपथ में उत्पन्न प्रेरित वि. वा. बल कुण्डली या परिपथ से संबद्ध चुम्बकीय फ्लक्स के परिवर्तन की दर से समानुपाती होती है।
तृतीय नियम – किसी कुण्डली या परिपथ से संबद्ध चुम्बकीय फ्लक्स के बढ़ जाने से सीधी धारा प्रेरित होती है।
3. लेंज के नियम से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर: लेंज का नियम – विद्यत चम्बकीय प्रेरण में सभी अवस्थाओं में किसी परिपथ में प्रेरित धारा की दिशा इस प्रकार की होती है कि वह उस कारण का विरोध करती है जिसके कारण वह स्वयं उत्पन्न होती है। इस प्रकार विद्युत् चुम्बकीय प्रेरण की घटना में प्रेरित विद्युत वाहक बल तथा प्रेरित धारा की दिशा लेन्ज के नियम से ज्ञात की जाती है।
4. किस प्रकार लेन्ज के नियम ऊर्जा-संरक्षण सिद्धान्त का पोषण करता है ?
उत्तर: विद्युत्-चुम्बकीय प्रेरण में ऊर्जा संरक्षण सिद्धान्त का पोषण – विद्युत्-चुम्बकीय प्रेरण की घटना में लेन्ज के नियम से प्रेरित धारा की दिशा जानी जाती है तथा यह जाना जाता है कि प्रेरित विद्युत-ऊर्जा का स्रोत क्या है ? लेन्ज के नियमानुसार प्रेरित धारा के कारण कुण्डली के किनारे पर जो चुम्बकीय ध्रुव बनता है वह चम्बक के ध्रव पर चम्बक की गति की विपरीत दिशा में बल उत्पन्न करता है। अन्ततः प्रेरित धारा के उत्पादन के लिए जब चुम्बक को गतिमान किया जाता है तब बल के विरुद्ध कार्य होता है। इस प्रकार यांत्रिक ऊर्जा खर्च करने पर विद्युत ऊर्जा प्राप्त की जाती है। अतः ऊर्जा स्वयं उत्पन्न नहीं होकर केवल इसका एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तन होता है। इस प्रकार लेंज के नियम से ऊर्जा संरक्षण के सिद्धान्त का पोषण होता है।
5. प्रेरित विद्युत वाहक बल की गणना करें।
उत्तर: प्रेरित विद्युत वाहक बल – माना कि एक अल्प समयान्तराल dt में परिपथ से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में dθ परिवर्तन होता है तो फैराडे के विद्युत-चुम्बकीय प्रेरण के द्वितीय नियम से परिपथ में प्रेरित वि. वा. बल,
e = ∝ ddt (चुम्बकीय फ्लक्स-परिवर्तन की समय-दर)
या, e = Kddt जहाँ K एक नियतांक है।
विद्युत चुम्बकीय मात्रक में K का मान एकांक है। अतः e =ddt
चुम्बकीय फ्लक्स के मान को घटाने पर dφ का मान ऋणात्मक होता है तथा परिपथ में सरल वि. वा. बल प्रेरित होता है, जिसका चिह्न धनात्मक लिया जाता है। अतः जब परिपथ में चुम्बकीय फ्लक्स के घटने पर प्रेरित विद्युत वाहक बल
- e =ddt
या e =-ddt है।
चुम्बकीय फ्लक्स के मान घटने पर dφ धनात्मक होता है तथा परिपथ में प्रतिलोमी वि. वा. बल प्रेरित होता है, जिसका चिह्न ऋणात्मक लिया जाता है।
अतः जब परिपथ से चुम्बकीय फ्लक्स के बढ़ने पर प्रेरित विद्युत् वाहक बल
- e =ddt
या e =- ddt होता है ।
इस प्रकार हम पाते हैं कि परिपथ का चुम्बकीय फ्लक्स घटे या बढ़े, प्रेरित वि. वा. बल का मान चुम्बकीय फ्लक्स के परिवर्तन के समय दर के समानपाती होता है और चिह्न (दिशा) में फ्लक्स परिवर्तन के चिह्न के विपरीत होता है।
6. स्वप्रेरकत्व या स्वप्रेरित गुणांक क्या है ? समझाएँ ।
उत्तर: स्वप्रेरकत्व या स्वप्रेरित गुणांक – माना कि किसी क्षण एक कुण्डली में 1 धारा प्रवाहित है तो चुम्बकीय फ्लक्स φ प्रवाहित धारा के सीधा समानुपाती होती है अर्थात् φ ∝ I
या, φ = LI,
जहाँ L को कुण्डली का स्वप्रेरकत्व या स्वप्रेरण गुणांक कहा जाता है। यह कुण्डली के लपेटों की संख्या, अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल तथा क्रोड के पदार्थ की चुम्बकशीलता पर निर्भर करती है, जिस पर कि कुण्डली लिपटी होती है।
जब I = I, φ = L x I या, L = φ
इस प्रकार कुण्डली का स्वप्रेरकत्व कुण्डली से सम्बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स के बराबर होती है जबकि उससे इकाई धारा प्रवाहित होती हो। चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन के कारण प्रेरित वि. वा. बल जो कि कुण्डली में उत्पन्न होती है,
e =-nddt = - dLIdt
e = -L dIdt
जहाँ dIdt कुण्डली में धारा परिवर्तन की दर है। ऋणात्मक चिह्न प्रेरित वि. वा. बल के विपरीत प्रकृति को प्रदर्शित करता है। केवल परिमाण में e = L dIdt
होता है।
जब e = -n dIdt = –dIdt(LI)
या, e = -L dIdt,
अतः कुण्डली की स्वप्रेरकत्व, कुण्डली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत् वाहक बल के बराबर होता है जबकि
कुण्डली में धारा के परिवर्तन की दर इकाई है। स्वप्रेकत्व का S.I मात्रक हेनरी है तथा विमा सूत्र
[ML3I-2T-2] है।
7. स्वप्रेरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
स्वप्रेरण – किसी कुण्डली या परिपथ में प्रवाहित धारा की प्रबलता के बदलने से उसके भीतर का चुम्बकीय क्षेत्र भी बदलता है जिससे कुण्डली में एक अतिरिक्त विद्युत वाहक बल प्रेरित होता है, जिसे स्वप्रेरण कहा जाता है । दूसरे शब्दों में, अपने ही धारा के कारण कुण्डली में वि. वा. बल का उत्पन्न होना स्वप्रेरण कहलाता है।
माना कि एक कुण्डली एक बैटरी तथा एक टेपिंग कुन्जी K से जुड़ी है। कन्जी K को दबाने पर धारा कण्डली द्वारा प्रवाहित होना शुरू होती है तथा उसमें चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है । लपेटों में, जो कुण्डली में प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न करते हैं, की दिशा परिपथ में धारा की वृद्धि के विपरीत होती है। दूसरी तरफ जब कुन्जी को छोड़ने पर परिपथ में धारा का अपक्षय होना शुरू हो जाता है तथा घटते हुए चुम्बकीय क्षेत्र कुण्डली में उत्पन्न हो जाता है तथा उत्पन्न वि. वा. बल परिपथ में धारा के अपक्षय का विरोध करती है। इस प्रकार धारा की वृद्धि तथा अपक्षय, दोनों समय कुण्डली में हैं। स्वप्रेरण को विद्युत चुम्बकीय जड़त्व भी कहा जाता है।
8. अन्योन्य प्रेरण गुणांक या अन्योन्य प्रेरकत्व क्या है ? समझाएँ।
उत्तर:
अन्योन्य प्रेरण गणांक या अन्योन्य प्रेरकत्व – माना कि प्राथमिक P तथा द्वितीयक S दो कुण्डलियाँ हैं। किसी क्षण प्राथमिक कुण्डली से I धारा प्रवाहित होता है तो द्वितीयक कुण्डली S से सम्बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स उस समय प्राथमिक कुण्डली से प्रवाहित धारा के सीधा समानुपाती होता है।
अर्थात् ∝ I
या, = MI, जहाँ M को अन्योन्य प्रेरण गुणांक या अन्योन्य प्रेरकत्व कहते हैं।
जब I = 1 तो = M x I या, M = e
इस प्रकार, पड़ोसी कुण्डली में इकाई धारा के प्रवाहित होने से दो कुण्डलियों के अन्योन्य प्रेरकत्व पहली कुण्डली से सम्बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स के बराबर होता है। चुम्बकीय फ्लक्स के परिवर्तन के कारण कुण्डली में उत्पन्न प्रेरित वि. वा. बल,
e = - ddt = - ddtMI
या e = -M dIdt ,
जहाँ dIdt = प्राथमिक कुण्डली में धारा के परिवर्तन की दर तथा e = द्वितीयक कुण्डली में अन्योन्य प्रेरण के कारण उत्पन्न प्रेरित वि. वा. बल है। ऋणात्मक चिह्न प्रेरित विद्युत वाहक बल के विरोधी प्रकृति को प्रदर्शित करता है।
e = M dIdt ,
जब dIdt= 1 तो e =MI
या M = e
अतः दूसरे कुण्डली में धारा के परिवर्तन की दर के इकाई होने पर दो कुण्डलियों के अन्योन्य प्रेरकत्व पहले कुण्डली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत् वाहक बल के बराबर होता है। S. I में अन्योन्य प्रेरकत्व का भी मात्रक हेनरी ही है तथा विमा सूत्र [ML2I-2T-2] है।
9. चित्र (a) से (c) में वर्णित स्थितियों के लिए प्रेरित धारा की दिशा की प्रागुक्ति कीजिए।
उत्तर: (a) लेंज के नियम के अनुसार कुंडली का सिरा q चुम्बक के S- ध्रुव प्रेरित होता है। इसलिए कुंडली में धारा की दिशा चुम्बक की ओर से देखने पर घड़ी की दिशा में होते हैं। अतः धारा q से b की ओर घड़ी की दिशा में।
(b) लेंज के नियम के अनुसार, दोनों कुंडली का सिरा जो चुम्बक के समीप है, पर S-ध्रुव प्रेरित में होता है। अतः बायीं कुंडली में धारा की दिशा q से p और दायीं कुंडली में धारा x और y की की ओर घड़ी की दिशा में बहती है।
(c) धारा प्रेरित नहीं होता है क्योंकि लूप के तल में चुम्बकीय बल रेखाएँ होती है।
10.धारामापी के क्रोड में भंवर मारा के प्रभाव को किस प्रकार कम किया जा सकता है ?
उत्तर: धारामापी में ताँबे की फ्रेम पर तार को लपेटकर कुण्डली बनायी जाती है। जिससे चुम्बकीय क्षेत्र में घूर्णन करने से इसमें मैंवर धाराएँ उत्पन्न होती हैं जो विद्युत चुम्बकीय अवमंदन के कारण कुण्डली को शीघ्र साम्यावस्था में ले जाती है।
11. एक धातु और दूसरा अधातु का सिक्का एक ही ऊंचाई से पृथ्वी तल के समीप गिराए जाते हैं। कौन-सा पहले पृथ्वी पर पहुँचेगा और क्यों ?
उत्तर: अधातु का सिक्का पृथ्वी तल पर पहले पहुँचेगा क्योंकि धातु के सिक्के में भू-चुम्बकत्व के कारण भैवर धाराएँ उत्पन्न हो जाती हैं। जो इसकी गति का विरोध करती हैं।
12. स्वप्रेरण को विद्युत का जड़त्व क्यों कहते हैं ?
उत्तर: स्वप्रेरण विद्युत परिपथ में धारा की वृद्धि या कमी का विरोध करता है और परिपथ को मूल स्थिति में लाने का प्रयास करता है। अतः इसे विद्युत का जड़त्व कहते हैं।
13. किसी परिनालिका का स्वप्रेरण गुणांक किन कारणों पर व किस प्रकार निर्भर करता है ?
उत्तर: किसी परिनालिका का स्वप्रेरण गुणांक परिनालिका के भीतर भरे माध्यम (क्रोड) की आपेक्षिक चुम्बकशीलता r फेरों की संख्या N, परिनालिका की लम्बाई l तथा अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल A पर निर्भर करता है |
14. उच्च वोल्टता पर धारा ले जाने वाले तार में धारा प्रारम्भ करते ही तार पर बैठी चिड़ियाँ उड़ जाती हैं, क्यों ?
उत्तर: तार में उच्च वोल्टता की धारा प्रवाहित होने पर तार पर बैठी चिड़ियाँ के शरीर में प्रेरित धारा प्रवाहित होती हैं जिनके चिड़ियाँ के दोनों पंख परस्पर विपरीत धाराओं के कारण प्रतिकर्षित होकर फैल जाते हैं। अत: चिड़ियाँ उड़ जाती हैं।
15. एक समान चुम्बकीय क्षेत्र में रखी धातु की लेट को क्षेत्र से बाहर खींचने या क्षेत्र में प्रवेश कराने पर हमें विरोधी बल का अनुभव क्यों होता है ?
उत्तर: एक समान चुम्बकीय क्षेत्र में रखी धातु की प्लेट को क्षेत्र से बाहर खींचने या क्षेत्र में प्रवेश कराने पर उसमें प्रेरित वि. वा. बल उत्पन्न होता है जिसके कारण धातु की प्लेट में भंवर धाराएँ उत्पन्न होती हैं। किन्तु लेंज के नियम के अनुसार धातु की प्लैट में उत्पन्न प्रेरित धाराएँ स्थानान्तरण का विरोध करती हैं। इसी कारण हमें विरोधी बल का अनुभव होता है।
16. दो कुण्डलियों के मध्य अन्योन्य प्रेरकत्व किन-किन कारकों पर निर्भर करता हैं ?
उत्तर: दो कुण्डलियों के मध्य अन्योन्य प्रेरकत्व निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है-
1.कुण्डलियों में फेरों की संख्या पर
2.कुण्डलियों के अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल पर
3.कुण्डलियों के मध्य उपस्थित क्रोड के माध्यम की चुम्बकीय पारगम्यता पर
4.कुण्डली की लम्बाई पर।
17. किसी कुण्डली स्वप्रेरकत्व 1H है। इससे आप क्या समझते हैं?
उत्तर: किसी कुण्ढ़ल से सम्बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स का मान 1 वेबर परिवर्तित होने पर कुण्डली में । ऐम्पियर की धारा प्रेरित हो तो कुण्डली का स्वप्रेरकत्व 1 हेनरी होता है।
18. स्वप्रेरण एवं अन्योन्य प्रेरण में अंतर बताइए |
उत्तर: - स्वप्रेरण एवं अन्योन्य प्रेरण में अंतर: -
जब किसी कुंडली में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है। तो कुंडली के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र स्थापित हो जाता है।
अर्थात जब किसी कुंडली में प्रवाहित विद्युत धारा के मान में परिवर्तन किया जाता है। तब कुंडली में प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है। इस घटना को स्वप्रेरण कहते हैं। स्वप्रेरण का उदाहरण चौक कुंडली है।
जबकि किन्ही दो कुंडलियों को पास पास रख कर उनमें से किसी एक कुंडली में प्रवाहित विद्युत धारा के मान में परिवर्तन किया जाता है। तब पास में रखी दूसरी कुंडली में प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है। इस घटना को अन्योन्य प्रेरण कहते हैं। अन्योन्य प्रेरण का उदाहरण ट्रांसफार्मर है।
19.यदि किसी प्रेरकत्व में धारा का मान दुगुना कर दिया जाए तो संग्रहीत ऊर्जा कितने गुना हो जाएगी ?
उत्तर: किसी कुण्डली में संग्रहीत चुम्बकीय ऊर्जा
U = 12 LI2
यदि धारा का मान दुगुना कर दिया जाए तो
U’ =12 L2I2 = 4 12 LI2
U’ =4U
अतः संग्रहीत ऊर्जा का मान चार गुना होगा।
20. एक कुण्डली को चुम्बकीय क्षेत्र में
(i) तीव्र गति से
(ii) धीमी गति से हटाया जाता है तो किस स्थिति में प्रेरित वि. वा. बल तथा किया गया कार्य अधिक होगा।
उत्तर:
कुण्डली को चुम्बकीय क्षेत्र में तीव्र गति से हटाने पर प्रेरित वि. वा. बल का मान अधिक होगा क्योंकि तीव्र गति से हटाने पर समयांतराल dt का मान अल्प होगा। जिससे फ्लक्स परिवर्तन की दर ddt का मान अधिक बढ़ जायेगा।
अर्थात्
उत्पन्न प्रेरित वि. वा. बल ε = ddt का मान अधिक होगा।
21.क्या कारण है कि-
1.प्रतिरोध बॉक्स के अन्दर तार की कुण्डलियों को दोहरा मोड़ा जाता है।
2.व्हीटस्टोन सेतु में पहले सेल कुंजी तथा बाद में धारामापी कुंजी दवाई जाती है।
उत्तर:
प्रतिरोध बॉक्स के भीतर तार की अनेक कुण्डलियाँ होती हैं जिनके भिन्न-भिन्न प्रतिरोध होते हैं। इन कुण्डलियों को दोहरे तार को लकड़ी के वेलनों पर लपेटकर बनाते हैं। इससे कुण्डलियों में प्रत्येक स्थान पर वैद्युत दो विपरीत दिशाओं में बहती है। अत: कुण्डली में बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स का मान शून्य ही रहता है। इससे कुण्डली में स्वप्रेरण का प्रभाव नगण्य हो जाता है।
व्हीटस्टोन सेतु में पहले सैल कुंजी तथा बाद में धारामापी कुंजी दबाते हैं। यदि धारामापी कुंजी को पहले दवाते हैं तो स्वप्रेरण के कारण उत्पन्न प्रेरित धारा मुख्य धारा को नष्ट कर सकती हैं और पात्यांक में त्रुटि होने की आशंका रहती है।
22.प्रत्यावर्ती धारा जनित्र का सिद्धांत बताइए |
उत्तर:
प्रत्यावर्ती धारा जनित्र का सिद्धांत :- प्रत्यावर्ती धारा जनित्र में मूलतः तार का एक पाश (लूप) होता है। जो चुंबकीय क्षेत्र में घूर्णन करता है। जब इस पाश को चुंबकीय क्षेत्र में तेजी से घुमाया जाता है। तो पाश में से होकर गुजरने वाली चुंबकीय फ्लक्स रेखाओं की संख्या में परिवर्तन होता रहता है। जिसके फलस्वरूप पाश में एक विद्युत धारा प्रेरित हो जाती है। अतः पाश को घुमाने में किया गया कार्य अथवा व्यय यांत्रिक ऊर्जा, पाश में विद्युत ऊर्जा के रूप में प्राप्त होती है। यह प्रत्यावर्ती धारा जनित्र का सिद्धांत है।
23..प्रत्यावर्ती धारा जनित्र या डायनेमो क्या है?
उत्तर: प्रत्यावर्ती धारा जनित्र या डायनेमो :- एक ऐसी युक्ति है जो यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करती है। उसे प्रत्यावर्ती धारा जनित्र या डायनेमो कहते हैं। इसका कार्य सिद्धांत फैराडे के विद्युत चुंबकीय प्रेरण के नियम के अनुसार होता है।
प्रत्यावर्ती धारा जनित्र या डायनेमो के चार मुख्य भाग होते हैं।
1. आर्मेचर
2. क्षेत्र चुंबक
3. सर्पी वलय
4. ब्रुश
24. 1000 फेरों वाली एक कुण्डली में 2.5 ऐम्पियर की दिष्ट धारा प्रवाहित करने पर कुण्डली से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स 1.4 x 10-4 वेबर है। कुण्डली का प्रेरकत्व क्या है?
हल : - L = Ni = 1.410-42.5 हेनरी ∵ N = 1.4 10-4
L = 5.6105 हेनरी
25. एक कुण्डली से बढ़ चुम्बकीय फ्लक्स 0.1 सेकण्ड में 10 वेबर से 1 वेबर कर दिया जाता है। कुण्डली में प्रेरित विद्युत वाहक बल का मान बताइए।
हल : -
कुण्डली में प्रेरित विद्युत वाहक बल e = -t
e = -1-100.1
e = 90.1 = 90 वोल्ट