बिहार बोर्ड कक्षा 12 भौतिक विज्ञान अध्याय 9 किरण प्रकाशिकी तथा प्रकाशिक यन्त्र लघु उत्तरीय प्रश्न
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बिहार बोर्ड कक्षा 12 भौतिक विज्ञान अध्याय 9 किरण प्रकाशिकी तथा प्रकाशिक यन्त्र लघु उत्तरीय प्रश्न

BSEB > Class 12 > Important Questions > भौतिक विज्ञान अध्याय 9 किरण प्रकाशिकी तथा प्रकाशिक यन्त्र

लघु उत्तरीय प्रश्न 

1. लेन्स की शक्ति से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर :- लेन्स की शक्ति-  किसी लेन्स की शक्ति उसकी उस योग्यता की माप है जो प्रकाश की समानान्तर किरणों का अभिसरण या अपसरण करती है। अधिक फोकस दूरी के लेन्स किरणों के अभिसरण या अपसरण पर कम प्रभाव डालते हैं जबकि कम फोकस दूरी के लेन्स अधिक प्रभावकारी होते हैं।

किसी लेन्स की शक्ति उसकी फोकस दूरी के व्युत्क्रम से मापी जाती है।

माना कि लेन्स की शक्ति P तथा उसकी फोकस दूरी f है, तो P = 1/F फोकस दूरी के मीटर में व्यक्त होने पर लेन्स की क्षमता का मात्रक डायोप्टर है। अतः

                                                   P (डायोप्टर) = 1/f मीटर।

चिह्न परिपाटी के अनुसार उत्तल लेन्स की क्षमता धनात्मक तथा अवतल लेन्स की क्षमता ऋणात्मक होती है जो कि क्रमशः फोकस दूरी भी होती है।

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2. समतुल्य लेन्स क्या है ?

उत्तर :-   समतुल्य लेन्स – जब दो या दो से अधिक समाक्षीय लेन्सों के युग्म के बदले एक ऐसा लेन्स लिया जाता है जिसे लेन्स-युग्म के अक्ष पर उपयुक्त स्थान पर रखने से किसी वस्तु का प्रतिबिम्ब उसी स्थान पर उतने ही आवर्धन का बने जैसा कि लेन्स-युग्म द्वारा बनता है, तो उस लेन्स को लेन्स-युग्म का समतुल्य लेन्स कहा जाता है।

3. सौर ऊर्जा जमा करने के लिए कौन और क्यों अधिक उपयुक्त है-एक खूब पालिशदार अवतल दर्पण या अभिसारी लेन्स ?

उत्तर :-   सौर-ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए अभिसारी लेन्स की अपेक्षा पालिशदार अवतल दर्पण अधिक अच्छा होता है।

सौर ऊर्जा में ऊष्मा ऊर्जा के साथ प्रकाश ऊर्जा भी होती है। जब ये किसी द्रव्यात्मक माध्यम से होकर गुजरती है तो उसका कुछ भाग माध्यम द्वारा अवशोषित हो जाता है। इसलिए सौर ऊर्जा को जमा करने के लिए अभिसारी लेंस का उपयोग करने पर माध्य (लेन्स) द्वारा दर्पण के व्यवहार से ऊर्जा का बहुत कम भाग (नगण्य) ही दर्पण के पदार्थ द्वारा अवशोषित होता है, क्योंकि दर्पण की सतह के काफी चमकीला होने से ऊर्जा का अधिकांश भाग इसके द्वारा परावर्तित हो जाता है।

4. क्रान्तिक कोण से आप क्या समझते हैं ? इसका अपवर्तनांक से सम्बन्ध स्थापित करें।

उत्तर :-  क्रान्तिक कोण – जब प्रकाश किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाती है तो वह अभिलम्ब से दूर हट जाती है। सघन में यह आपतन कोण जिसके लिए किरण का विरल माध्यम में अपवर्तन कोण 90° है, क्रान्तिक कोण कहलाता है। इसे ic  द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। अतः यदि i = ic (सघन माध्यम में) तो r = 90° (विरल माध्यम में)।

इसलिए सघन माध्यम के सापेक्ष विरल माध्यम का अपवर्तनांक

                             dr = sin icsin 90° = sin ic

                        ∵        dr  = 1ed

                ∴                  rd = 1sin ic    

5. पूर्ण आन्तरिक परावर्तन से क्या अभिप्राय है ? इसके लिए क्या-क्या प्रतिबन्ध आवश्यक है ?

उत्तर :- पूर्ण आन्तरिक परावर्तन – यदि प्रकाश किरण सघन माध्यम से क्रान्तिक कोण से अधिक आपतन कोण पर आकर विरल माध्यम के सीमा-पृष्ठ पर टकराती है तो वह परावर्तन के नियमों का पालन करती हुई सघन माध्यम में ही पूर्ण परावर्तित हो जाती है। इस क्रिया को पूर्ण आन्तरिक परावर्तन कहते हैं।

प्रतिबन्ध :-  इसके निम्नलिखित प्रतिबन्ध हैं –

1. प्रकाश किरण को सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाना चाहिए।

2. आपतन कोण का मान क्रान्तिक कोण से अधिक होना चाहिए।

6. मरीचिका किसे कहते हैं ? इसका कारण समझाएँ।

उत्तर :-   गर्मियों की दोपहर में रेगिस्तान में किसी स्थान पर पानी न होने पर भी कभी-कभी यात्री को पानी होने का आभास होता है। इसे मरीचिका कहते हैं।

गर्मियों में जमीन के निकट की वायु तो गरम होकर विरल हो जाती है, जबकि ऊपरी परतों की वायु अपेक्षाकृत ठण्डी रहती है। अतः जमीन से ऊपर जाने पर वायु क्रमशः सघन होती जाती है। जब किसी वृक्ष की चोटी से आन वाली प्रकाश किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करती है तो यह अभिलम्ब से दूर हटती है। इस प्रकार किसी परत तक आते-आते आपतित प्रकाश का आपतन कोण, क्रान्तिक कोण से अधिक हो जाता है, जिससे इसका पूर्ण आन्तरिक परिवर्तन हो जाता है और प्रकाश किरण परावर्तित होकर यात्री की आँख में प्रवेश करती है, जिससे यात्री को वृक्ष का उल्टा प्रतिबिम्ब दिखाई देता है और वहाँ जलाशय होने का आभास होता है।

                         मरीचिका किसे कहते हैं

7. स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी से आप क्या समझाते हैं ? उम्र के साथ स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी बढ़ जाती है, क्यों ?

उत्तर :- स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी – अधिक से अधिक आवर्धित दिखने के लिए वस्तु को नेत्र के निकट-से-निकट लाया जाए ताकि नेत्र पर उसका दर्शन कोण बड़ा बने। किन्तु, स्पष्ट दृष्टि के लिए बिम्ब को आँख के समीप रखने की एक खास सीमा होती है। इस सीमा के अंदर वस्त स्पष्ट नहीं दिखता है। इस विशेष दूरी को आँख के लिए स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी कहा जाता है। इसे D अक्षर से सूचित किया जाता है और सामान्य क्षेत्र के लिए इसका मान 25 से. मी. है।

उम्र के साथ आँख के लेंस की लोच कम हो जाती है और सिलियरी मांसपेशियों समंजन क्षमता भी घटती जाती है। आँख के लेंस की फोकस दूरी बढ़ने के कारण स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी बढ़ जाती है।

8. आँख की समंजन क्षमता से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर :-   आँख की समंजन क्षमता – आँख के लेस की फोकस दूरी की स्वयं समायोजनकारी क्रिया को आँख की समंजन-क्षमता कहते हैं। सिलियरी मांसपेशियों की संकुचन-क्रिया से लिम्बक स्नायुओं द्वारा आँख के लेंस पर दाब पड़ता है। इस दाब से लेंस की वक्रता घटती है और त्रिज्या बढ़ती है। जब सिलियरी मांसपेशियाँ पूरी तरह तनाव-मुक्त रहती हैं तब आँख के लेंस की मोटाई सबसे कम रहती है। तब नेत्र-लेंस का फोकस रेटिना पर पड़ता है। दूरी से आती समांतर किरणें फोकस पर अभिसरित होती हैं। अतः आँख दूरस्थ वस्तु को देख पाती है।

समीप की वस्तु देखते समय सिलियरी मांसपेशियाँ सिकुड़कर आँख के लेंस के बाहरी तलों को अधिक वक्र बना देती है जिससे लेंस की फोकस टी कम हो जाती है और तब बहुत का प्रतिबिंब पुनः रेटिना पर बनता है। नेत्र-लेंस की इस स्वयं-समायोजनकारी क्रिया को आँख की समंजन क्षमता कहते हैं। आँख की समंजन-क्षमता की एक सीमा होती है। सामान्य नेत्र के लिए निकट-बिन्दु 25 सेमी. तथा दूर बिन्दु अनंत पर होते हैं।

9. एकल आँख की तुलना में जोड़े आँख के लाभ की व्याख्या करें।

उत्तर :-  जब हम किसी वस्तु को देखते हैं तो हमारी आँखें वस्तु को तो कोणों से देखती हैं । एक आँख बिंब के दाएँ भाग को अधिक देखती हैं और दूसरी आँख उसी वस्तु के बाएँ भाग को अधिक देखती हैं। इसका परिणाम यह होता है कि हमें वस्तु के त्रिविम रूप का आभास प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त देखने की क्रिया में हमारी दोनों आँखों के दृष्टि-अक्ष वस्त पर अभिसरित होते हैं जिससे हमें वस्तु को देखने में काफी राहत मिलती है। अत: दो आँखों के होने के कारण ही हम आसानी से वस्तुओं को ठोस रूप में देख पाते हैं।

10. कोणीय वर्ण-विक्षेपण तथा विक्षेपण क्षमता क्या है ?

उत्तर :-  कोणीय वर्ण-विक्षेपण – प्रिज्म द्वारा विक्षेपित सफेद प्रकाश की किरणें के लाल तथा बैंगनी अवयवों के बीच के कोण को प्रिज्म का वर्ण-विक्षेपण कहा जाता है। वर्ण-विक्षेपित प्रकाश के किन्हीं दो वर्णों की किरणों के बीच का कोण उन किरणों का कोणीय वर्ण-विक्षेपण या केवल विक्षेपण कहा जाता है।

वर्ण-विक्षेपण क्षमता – प्रिज्म के लाल तथा बैंगनी किरणों के बीच का माध्यम निर्गत किरण के लिए न्यूनतम विचलन की स्थिति में होने पर किसी अपवर्तक माध्यम की वर्ण-विक्षेपण क्षमता उस माध्यम के पतले प्रिज्म द्वारा उत्पन्न औसत विचलन का अनुपात होता है। पीले किरण का न्यूनतम विचलन कोण प्रिज्म द्वारा उत्पन्न किरणों का माध्य विचलन होता है।

                                   वर्ण-विक्षेपण क्षमता

 

 

11. विभेदन-क्षमता से आप क्या समझते हैं ? सूक्ष्मदर्शी की विभेदन-क्षमता कैसे बढ़ायी जाती है ?

उत्तर :-  विभेदन-क्षमता – किसी प्रकाशिक यंत्र की दो समीपवर्ती वस्तुओं के प्रतिबिम्बों को अलग-अलग करने की क्षमता को विभेदन क्षमता कहते है। किसी प्रकाशीय यंत्र की विभेदन सीमा जितनी कम होती है, उसकी विभेदन क्षमता उतनी ही अधिक मानी जाती है।

सूक्ष्मदर्शी की विभेदन सीमा कम करने के लिए शंकुकोण को बढ़ाया जाता है जिसके लिए वस्तु लेन्स की द्वारक (अभिमुख) को बढ़ाना होता है। अतः विभेदन सीमा कम करने के लिए कम-से-कम तरंग-लम्बाई (λ) का प्रकाश, जैसे नीला या बैगनी प्रकाश व्यवहार किया जाता है । इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी में शंकुकोण का मान भी कम होता है। अतः इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी, साधारण सूक्ष्मदर्शी की तुलना में 5000 गुना विभेदन कर सकता है। इसमें प्रकाश की तरंग-लम्बाई λ का मान, 5000 गुना कम है।

12. रंगीन काँच के चूर्ण को महीन पाउडर बना देने पर वह सफेद दिखता है, क्यों?

उत्तर :-  जब श्वेत प्रकाश की किरणें रंगीन काँच की महीन पाउडर पर आपतित होती हैं तो सभी आपतित किरणें असंख्य छोटे कणों के पीछे परावर्तित हो जाता है तथा प्रकाश का अवशोषण काँच के पाउडर द्वारा नहीं हो पाता है। इसीलिए महीन पाउडर सफेद् दिखता है।

13. सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय आसमान का रंग लाल दिखता है, क्यों ?

उत्तर :-   दोपहर को सूर्य हमलोगों से निकटस्थ रहता है, किन्तु सर्योदय एवं सूर्यास्त के समय क्षैतिज के ऊपर होता है तथा सूर्य की किरणें तिरछी होती हैं, जिससे उसे वायुमंडल का अधिक भाग तय करना पड़ता है। परिणामतः प्रकाश अधिकाधिक प्रकीर्णक कणों को पार कर हम सब के पास आता है। इसमें नीले अवयव काफी मात्रा में प्रकीर्ण हो जाते हैं और लाल अवयव का प्रकीर्णन बहुत कम होता है। सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय लाल-अवयव के अधिक मात्रा में प्राप्त होने के कारण ही सूर्य के साथ-साथ आकाश का यह भाग लाल दिखता है।

14. आकाश आसमानी रंग का दिखता है, क्यों ?

उत्तर :-  हम जानते हैं कि प्रकाश का प्रकीर्णन सभी दिशाओं में होता है और प्रकीर्ण प्रकाश का परिणाम तरंग-लम्बाई के चौथे घात का व्युत्क्रमानुपाती होता है। सूर्य के प्रकाश के आसमानी अवयव की तरंग लम्बाई लाल अवयव का लगभग 5/9 गुणा होता है, अतः आसमानी अवयव लाल अवयव की तुलना में लगभग 10 गुना अधिक प्रकीर्ण होता है, और इस प्रकीर्ण प्रकाश में आकाश आसमानी रंग का दिखता है। इसी प्रकार, गहरा स्वच्छ जल प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण ही हरा तथा नीला दिखता है।

15. काँच का टुकड़ा आसमानी दिखता है, क्यों ?

उत्तर :-   सफेद काँच सात वर्णों के संयोग से बना होता है। जब प्रकाश की किरणें काँच से गुजरती हैं तो आसमानी को छोड़कर सभी वर्गों को अवशोषित कर लेती हैं। अतः निर्गत किरणें वर्गों में आसमानी होती हैं तथा काँच का टुकड़ा आसमानी दिखता है।

16. आवर्धन एवं आवर्धन क्षमता में अंतर स्पष्ट करें।

उत्तर :-   आवर्धन एवं आवर्धन क्षमता में अंतर निम्नलिखित हैं –

S.L

आवर्धन

आवर्धन क्षमता

1.

एक रेखीय आवर्धन जो h2/ h1के बराबर होता है।

यह कोणीय आवर्धन है जो ∠β /∠α के बराबर होता है।

2.

इसका मान V के बढ़ने से बढ़ता है।

इसका मान V के बढ़ने पर घटता है।

3.

इसका मान -∞ और +∞ बीच हो सकता है।

इसका माना D/f तथा 1+ D/f के बीच हो सकता है।

4.

निश्चित शर्त के अधीन यह आवर्धन क्षमता के बराबर होता है।

यह आवर्धन की एक विशेष शर्त है जब Ve = D हो।

17. हरे प्रकाश में लाल कपड़ा काला क्यों दिखता है ?

उत्तर :-  हरे प्रकाश में लाल कपड़ा काला दिखता है, क्योंकि लाल रंग हरे प्रकाश को अवशोषित करता है किन्तु परावर्तित नहीं करता है।

                                  = t1 - 1

लाल वर्ण के लिए आभासी शीष्ट  अधिकतम तथा बैंगनी वर्ण के लिए न्यूनतम है। इसलिए लाल रंगों का अक्षर अत्यधिक लाल दिखता है।

18. पूर्ण सूर्यग्रहण के समय और विकिरण में किस तरह का स्पेक्ट्रम प्राप्त होता है ?

उत्तर :-   सूर्यग्रहण के समय, वस्तुतः सूर्य के केन्द्रीय भाग अर्थात् फोटोस्फेयर से प्रकाश पृथ्वी पर नहीं पहुँचता है। हमलोग केवल क्रोमोस्फेयर से प्रकाश पाते हैं, जिसमें उत्सर्जित वाष्पीय अवस्था में बहुत-से तत्त्व होते हैं। इसलिए स्पेक्ट्रम में अंधकारमय क्षेत्र में प्रकाशित उत्सर्जित रेखाएँ होती हैं, जो प्रकाशित रेखाएँ और स्पेक्ट्रम में बहुधा फ्रॉनहॉफर रेखाएँ दिखती हैं।

19. प्रकाशित तन्तु क्या है ? इसकी कार्यविधि सिद्धान्त सहित समझाएँ।

उत्तर :-   प्रकाशिक तन्तु क्वार्टज (μ = 1.7) के लगभग 10-4 सेमी मोटे तथा लम्बे हजारों रेशों से मिलकर बने तन्तु को प्रकाशिक तन्तु कहते हैं। इसके चारों ओर अपेक्षाकृत कम अपवर्तनांक (μ = 1.5) के पदार्थ की तह लगा दी जाती है।

प्रकाशित तन्तु का कार्य सिद्धान्त पूर्ण आन्तरिक परावर्तन पर आधारित है। चित्रानुसार जब प्रकाश किरण इस तन्तु के एक सिरे पर अल्प कोण बनाती हुई आपतित होती है तो यह इसके अन्दर अपवर्तित हो जाती है। तन्तु के अन्दर यह किरण तन्तु तह के सीमापृष्ठ पर बार-बार पूर्ण आन्तरिक परावर्तित होती हुई तन्तु के दूसरे सिरे पर पहुँच जाता है क्योंकि इस सीमापृष्ठ पर किरण का आपतन कोण, क्रान्ति कोण से बड़ा होता है। तन्तु के दूसरे किनारे पर किरण वायु में आवर्तित होकर अभिलम्ब से दूर हटती हुई निर्गत होती है।

                            प्रकाशित तन्तु क्या है

20. ब्रूस्टर के नियम को लिखें तथा प्रमाणित करें।

उत्तर :-  ब्रूस्टर के नियम – ब्रूस्टर का नियम कहता है कि जब प्रकाश ध्रुवण कोण पर आपतित होती है, तो परावर्तित तथा अपवर्तित किरणें एक-दूसरे से अभिलम्बवत् होती हैं।

प्रमाण – माना कि साधारण या अध्रुवित प्रकाश AB के प्रति हवा से अपवर्तनांक (μ) के माध्यम को अलग करने वाली सतह पर आपतित होती है। जब प्रकाश ध्रुवण कोण P पर आपतित होती है, तो परावर्तित प्रकाश के प्रति BC पथ में पूर्णतः समतल ध्रुवित प्रकाश में कागज के तल के अभिलम्बवत् कंपन होता है। अध्रुवित प्रकाश अपवर्तित प्रकाश के BD पथ के प्रति चलता है। परावर्तित प्रकाश आपतन के समतल में पूर्णतः ध्रुवित हो जाता है। ध्रुवण की कोटि आपतन कोण के बढ़ने से बढ़ती है। परावर्तित किरणें BC तथा अपवर्तित किरणें BD एक-दूसरे के अभिलम्बवत् है, अर्थात् ∠CBD = 90°

 

                  ब्रूस्टर के नियम

इस प्रकार, पारदर्शी माध्यम के अपवर्तनांक ध्रुवण कोण के स्पर्शज्या के बराबर होता है।

21. उत्तल लेंस के प्रधान अक्ष पर रखे बिन्दु का लेन्स से बने प्रतिबिम्ब को दिखाने के लिए किरण आरेख खींचे, यदि वस्तु फोकस दूरी से तीन गुनी दूरी पर हो।

उत्तर :-  

                     यदि वस्तु फोकस दूरी से तीन गुनी दूरी पर हो

22. दृश्य किरणों की अपेक्षा पराबैंगनी किरणों की ऊर्जा अधिक होती है। क्यों ?

उत्तर :-   विद्युत चुम्बकीय तरंगों का विस्तार सूक्ष्म तरंगदैर्ध्य को गामा किरणों से लेकर रेडियोतरंगों के बीच होती है। Max Planck के अनुसार प्रकाश का संचरण कणिका के रूप में होता है जिसकी ऊर्जा विकिरण की आवृत्ति के समानुपाती होती है।

                                               E = h - hc

चूँकि दृश्य प्रकाश के सभी घटकों की अपेक्षा पराबैंगनी किरणों का तरंगदैर्ध्य अत्यधिक छोटा होता है, अतः पराबैंगनी किरणों की ऊर्जा   

                                                        E = hc

का मान दृश्य प्रकाश की अपेक्षा अधिक होगी।

23. लेजर किरणों की दो प्रमुख विशेषताएँ लिखें।

उत्तर :-   लेजर किरणों के विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

(i) लेजर किरण पुंज पूर्णतः कला संबंद्ध होता है इसकी तरंगें एक-दूसरे के साथ एक ही कला में होती है।

(ii) लेजर किरण पुंज का प्रकाश लगभग पूर्णतः एकवर्णी होता है।

24. इन्द्रधनुष क्या है ?

उत्तर :-   वर्षा के समाप्त होने पर या झीसीं पड़ते समय जो संकेन्द्री वृत्तों के रंगीन चाप आकाश में दिखाई पड़ते हैं, उसे इन्द्रधनुष कहते हैं। सूर्य की तरफ पीठ करके खड़ा होने पर प्रायः दो इन्द्रधनुष दिखते हैं। जिसमें एक को प्राथमिक तथा दूसरे को द्वितीयक इन्द्रधनुष कहा जाता है। अन्दर के इन्द्रधनुष प्राथमिक तथा बाहर के इन्द्रधनुष द्वितीयक होता है। प्राथमिक इन्द्रधनुष को स्पेक्ट्रम का बैंगनी रंग अन्दर के किनारे पर एवं लाल रंग बाहर के किनारे पर तथा द्वितीयक इन्द्रधनुष में स्पेक्ट्रम का लाल रंग अन्दर के किनारे पर एवं बैंगनी रंग बाहर के किनारे पर होता है। दोनों इन्द्रधनुष में सौर–स्पेक्ट्रम के सभी रंग होते हैं।

पृथ्वी पर वर्षा की गिरती हुई बूंदों के ऊपरी भाग पर सूर्य के प्रकाश की किरणों के आपतित होने से बूंदों के भीतर क्रमशः अपवर्तन, वर्ण-विक्षेपण तथा आन्तरिक परावर्तन की क्रियाएँ होने से प्राथमिक इन्द्रधनुष की उत्पत्ति होती है एवं बूंदों के निचले भाग पर आपतित होने से बूंदों के भी वैसी क्रियाएँ होने से द्वितीयक इन्द्रधनुषों की उत्पत्ति होती है।

25. तारे क्यों टिमटिमाते हैं ? 

उत्तर :-   तारे (S) से आने वाली तिरछी प्रकाश की किरणें वायुमंडल से गुजरती हुई जब प्रेक्षक तक पहुँचती है, तो वह नीचे की ओर मुड़ जाती है। अब वह S’ से आती हुई प्रतीत होती है, इसलिए S’, S का आभासी स्थिति है एवं S अपने वास्तविक ऊँचाई से अधिक ऊँचा प्रतीत होता है। साथ-ही-साथ प्रकाश की किरणें वायुमंडलीय परिवर्तन के कारण अपने रास्ते को परावर्तित करती रहती है जिस कारण तारे टिमटिमाते होते हैं।

                                       तारे क्यों टिमटिमाते हैं