बिहार बोर्ड कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 15 जैव विविधता व संरक्षण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 - आपत्तिग्रस्त पादप जातियों का क्या अर्थ है? पौधों को आपत्तिग्रस्त होने से बचाने के लिए क्या प्रयास सम्भव हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-आपत्तिग्रस्त पादप जातियाँ:
पादप जातियाँ, जो आज के वातावरण में अपने आप को अनुकूलित नहीं कर पा रही हैं, की संख्या कम हो जा रही है तथा इनके नष्टीकरण की प्रक्रियायें आज भी सक्रिय है इसलिए इनका विलुप्त होना अनिवार्य है। ऐसे जातियाँ आपत्तिग्रस्त कहलाती हैं। विलुप्तता की ओर जाने वाली पादप जातियों के संरक्षण का कार्य करने से पूर्व इन जातियों को पहचान आवश्यक है। प्रकृति तथा प्राकृतिक संसाधनों के लिए अन्तर्राष्ट्रीय संघ (IUCN = International Union for Conservation of Nature and Natural Resources) द्वारा विलुप्त होने वाली अथवा इस दायरे को और अ
जातियों की पहचान के लिए निम्नलिखित आधार सुझाये गये हैं-
1. जाति का जैवीय तथा विभवीय मूल्य ।
2. उस जाति का पूर्वकाल तथा वर्तमान में वितरण— तुलनात्मक अध्ययन।
3. जाति में पादपों की संख्या में कमी (दर)।
4. प्राकृतिक आवास की उपलब्धता तथा उसके गुण।
उपर्युक्त पहचान के आधार पर पौधों के संरक्षण की आवश्यकता की जाँच कर इनकी एक लाल सूची (red
list) बनाई गई है।
प्रश्न 2 -जन्तुओं के संरक्षण के विभिन्न उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- जन्तुओं के संरक्षण के लिए विभिन्न कदम उठाये गये हैं जो कि निम्नलिखित है, इनका विस्तारीकरण जन्तुओं के संरक्षण के उपाय आवश्यक है-
1. जन्तुओं के प्राकृतिक आवास, वनों का संरक्षण-जन्तुओं के प्राकृतिक आवासों का विकास करना आवश्यक है। इसलिए वनों और जंगलों को सुरक्षित करना चाहिए। नये वन लगाने चाहिए।
2. कानून द्वारा संरक्षण -जन्तुओं की जो जातियाँ विलुप्त होने के कगार पर खड़ी हैं, उनके शिकार पर त उन्हें किसी भी प्रकार से नष्ट करने पर वैधानिक प्रतिबन्ध लगाना चाहिए। भारत सरकार द्वारा इन प्राणियों के संरक्षण के लिए वन्य जीव संरक्षण कानून, 1887 ई० में लागू किया गया। 1912 ई० में इस कानून में संशोधन किया गया। 1972 ई० में नया वन्य जीव संरक्षण कानून बनाया गया। अभी इसमे अधिक कड़ाई लाने की आवश्यकता है।
3. वन्य प्राणियों पर शोध कार्य-वन्य जीवों के संरक्षण के लिए शोध कार्य किये जाने चाहिए ताकि जिन कारणों से उनका विलुप्तीकरण होता है, उन्हें जाना जा सके।
4. जन्तु शरणस्थल एवं पार्क की स्थापना-जन्तुओं को जाति की सुरक्षा के लिए विभिन्न स्थानों पर जन्तु शरणस्थल या सैक्चुअरी बनानी चाहिए। वहाँ पर जन्तुओं की सुविधाओं का ध्यान रखा जाना चाहिए। भारत में लगभग 200 राष्ट्रीय सैक्चुअरी व पार्क बनाये गये है। अभी इनके विस्तार तथा भली-भाँति देखभाल की आवश्यकता है।
5. जन्तुओं के चिकित्सालय-पक्षियों, खरगोश, हिरन, बाघ आदि सभी जन्तुओं को चिकित्सा के लिए अस्पताल खोले जाने चाहिए। इनकी चिकित्सा की व्यवस्था होनी चाहिए।
प्रश्न 3 - संकटग्रस्त प्राणियों से आप क्या समझते हैं? इनके संरक्षण के क्या उपाय हैं?
उत्तर-संकटग्रस्त जन्तु जातियाँ: सामान्यतः अनेक प्राकृतिक कारणों से जब कई जन्तु जातियाँ अपने पर्यावरण के साथ अनुकूलन नहीं कर हैं तो वे धीरे-धीरे विलोपन की ओर चल पड़ती हैं। मानव द्वारा सम्पन्न विभिन्न प्रकार की प्रक्रियाओं द्वारा प्राकृतिक कारकों की सक्रियताओं को अनेक गुना बढ़ाकर कुछ जन्तु जातियों के लिए ऐसी दशा उपकर हैं कि इन जातियों की संख्या अत्यधिक कम रह गयी है और वे अति शीघ्र विलुप्त हो जायेगी। विलोपन को प्रक्रि आज भी उसी प्रकार सक्रिय हैं और इन जातियों का बच पाना सम्भव नहीं दिखायी देता। जन्तुओं की वे जातियों ऐसी विलोपन की प्रक्रिया के अन्तर्गत आ गयी है, संकटग्रस्त जातियाँ जाता है।
संकटग्रस्त जन्तु जातियों के संरक्षण के निम्नलिखित दो उपाय है-
1. संकटग्रस्त जन्तु जातियों के शिकार पर पूर्णतया रोक लगायी जानी चाहिए।
2. संकटग्रस्त जन्तु जातियों के आश्रय स्थलों को सुरक्षित रखकर उन्हें संरक्षण दिया जाना चाहिए।
प्रश्न 4 -जन्तु संरक्षण से क्या तात्पर्य है? 'आँकड़ों की लाल किताब' क्या है?
उत्तर- जन्तु संरक्षण वन्य प्राणियों का संरक्षण अति आवश्यक है। मनुष्य जंगली जानवरों के शिकार का आरम्भ से ही शौकीन रहा है; अतः उसने इतनी अधिक संख्या में जानवरों का शिकार कर डाला है कि उनकी जातियाँ तक विलुप्त हो गयी हैं अथवा संकटग्रस्त अवस्था में पहुँच गयी है। उदाहरण के लिए-मगरमच्छ की खाल के लिए इनका बहुत शिकार किया गया जिससे बड़ी मछलियों की संख्या बढ़ गयी और वे मानवोपयोगी छोटी मछलियों को अधिक मात्रा में खाने लगी। इसी प्रकार सर्पों को उनकी खाल के लिए अथवा अपना दुश्मन समझकर अत्यधिक संख्या में मार दिया गया और उनकी जातियों तथा संख्या अत्यधिक कम हो गयी। इसके परिणामस्वरूप चूहों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि से खेतों तथा अनाज के भण्डार गृहों में बहुत अधिक हानि होने लगी। इसीलिए वन्य जन्तुओं का शिकार वर्जित होना चाहिए।
प्रश्न 5 - अग्नि वनों की सबसे बड़ी शत्रु है, कैसे?
उत्तर- अग्नि वनों की सबसे बड़ी शत्रु है-वन के पारिस्थितिक तन्त्र में असन्तुलन प्रकृ वनस्पति के विनाश अथवा अन्य प्राणियों के नष्ट होने अथवा पलायन करने के होता है। इसका मुख्य कारण प्रायः वनों में लगने वाली अग्नि है।
तड़ित (lightning) अथवा वृक्षो की शाखाओं के परस्पर लगातार घर्षण के कारण वन में प्रायः अग्नि मड़क जाती है, जो वन की वनस्पति को जलाकर राख कर देती है। इसका परिणाम यह होता है कि वन्य जीव-जन्तु या तो
हो जाते हैं या फिर बन से पलायन कर जाते हैं। अग्नि से प्रभावित वन के पर्यावरण में अनेक परिवर्तन आ जाते
हैं तथा वन पारितन्त्र में असन्तुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। प्राकृतिक कारणों के अतिरिक्त मनुष्य भी अनेकबारइनमें अग्नि लगने का कारण बनता है; जैसे-
(i) वनों के आस-पास रहने वाले परिवार जो भोजन पकाने अथवा अन्य कारणों से आग जलाते हैं।
(ii) धूम्रपान करने वाले व्यक्ति वनों के आस-पास या वनों में बीड़ी या सिगरेट का बचा हुआ जलता टुकड़ा अथक माचिस की तीली फेंक देते हैं।
(iii) खेती योग्य अथवा आवास निर्माण योग्य भूमि प्राप्त करने के स्वार्थ के वशीभूत होकर वनों में आग
लगायी जाती है। किन्तु आग तो आग है। वह एक बार भड़की तो कब रुक पायेगी, इससे अनजान स्वार्थी व्यक्ति
दूर-दूर तक जंगलों को नष्ट कर देता है।
प्रश्न 6 - पादप जातियों अथवा प्राणियों की विलुप्तता के कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-पादप जातियों की विलुप्तता के कारण:
पादप जातियों की विलुप्तता के अनेक कारण तो प्राकृतिक होते हैं किन्तु अनेक कारण मानव के से अधिक तीव्रता से बड़े हैं। इस सम्बन्ध में यह कहना अत्यन्त आवश्यक है कि पर्यावरण को अपने अनुसार बदल नगरीकरण तथा अधिक सभ्य दिखायी पड़ने की होड़ ने पर्यावरण को पूर्णतः बिगाड़ दिया है। विपदाओं की अधिकता सामने आयी है। इसके निम्नलिखित कारण स्पष्ट है-
1. भूकम्प, सूखा, बाढ़ आदि प्राकृतिक आपदायें।
2. तेज उगने वाली विदेशी जातियों का देशी जातियों में आकर तेजी से उगना।
3. परागण करने वाले साधनों, कारकों या कर्मकों (agents) की कमी होना।
4. किन्हीं भी कारणों से एक जाति के पौधों की संख्या में कमी आना।
5. रोगों का फैलना।
6. पौधों का अत्यधिक उपयोग करना; विशेषकर एक ही जाति के पौधों का उपयोग शिक्षा, उद्योग आदि के लिए करते रहना।
7. अतिचारण द्वारा पौधों की संख्या में अत्यधिक कमी आना।
8. कृषि क्षेत्र का बढ़ना, खेतों को बदलना तथा कृषि में उपयोग के लिए केवल कुछ हो जातियों का चुना जाना और शेष जातियों की उपेक्षा करना।
9. वनों की कटाई, वन उन्मूलन, प्राकृतिक आवासों में परिवर्तन अथवा विनष्टीकरण आदि के द्वाराब पारिस्थितिक तन्त्रों के सन्तुलन की उपेक्षा करना।
10. औद्योगिकरण, नगरीकरण, एक ही जाति की संख्या बढ़ाकर जिसमें मनुष्य भी सम्मिलित है (जनसंख्या वृद्धि) आदि के द्वारा प्रदूषण फैलाना तथा पारिस्थितिक तन्त्र को अन्य जीव-जातियों के आवास के अयोग्य बनाना।
प्रश्न 7 - पादप जातियों की विलुप्तता रोकने के उपाय बताइये।
उत्तर-विलुप्तता रोकने के उपाय विलुप्तता की ओर अग्रसर पौधों का संरक्षण आवश्यक है।
पादप संरक्षण के निम्नलिखित उपाय किये जाने:
1. वृक्षारोपण — जिस क्षेत्र से जितने वृक्ष काटे जायें, उनकी क्षतिपूर्ति के लिए उतने ही संख्या में पौधे उस पर लगाने चाहिए तथा उनकी देखभाल करनी चाहिए।
2. बायोगैस को प्रोत्साहन - बायोगैस का उत्पादन अधिक करना चाहिए। इससे लकड़ी के ईधन को माँग पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण आदि से पौधों के पर्यावरण को बचाना चाहिए।
4. प्राकृतिक आपदा से सुरक्षा-वनों में लगने वाली आग की रोकथाम के साधन विकसित करने चाहिए। उपग्रह से वनों में लगने वाली आग का पता लगाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त बाढ़, सूखा आदि से भी वनों को बचाना चाहिए।
5. रोगों से सुरक्षा—जंगली पौधों को रोगमुक्त करने की तकनीक को विकसित करना चाहिए। जन-साधारण में वृक्षारोपण व पौधों की सुरक्षा की भावना को जाग्रत करना आवश्यक है। नहरों के किनारे खेत की मेड़ों, विद्यालय, फैक्ट्रियों, कार्यालयों व सार्वजनिक रिक्त भूमि पर वृक्षारोपण करना चाहिए।
प्रश्न 8-आई० पू० सी० एन० की लाल सूची किस प्रकार महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर-- आई० पू० सी० एन०. की लाल सूची के महत्त्व
(1) जैव विविधता के सम्भावित ह्रास की लिखित सूचना प्राप्त होती है। जिससे उसे रोका जा सकता है।
(i) संकटग्रस्त जातियों की पहचान होने से उनको विलोपन से बचाया जा सकता है।
(iii) स्थानीय स्तर पर स्थानिक जातियों को परिभाषित कर प्राथमिकता के आधार पर संरक्षण कार्य किये जा सकते हैं।
(iv) जैव विविधता की हो चुकी क्षति के साथ सम्भावित क्षति को रोकने तथा जैव विविधता के महत्त्व के प्रति गरुकता उत्पन्न करना लाल सूची का मुख्य उद्देश्य भी है और महत्त्व भी।
प्रश्न 9. वनोन्मूलन या वनों के बड़ी मात्रा में काटने से पड़ने वाले कुप्रभाव लिखिए।
उत्तर- वनोन्मूलन या पेड़-पौधों को काटने से होने वाली हानियाँ पेड़-पौधे हमारे जीवन-रक्षक है। जंगलों में ही अनेक जन्तु जातियों निवास करती है। इनके काटने से
लिखित हानियां होती है-
1. पर्यावरण में ऑक्सीजन की कमी तथा कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता हो जायेगी, वायु प्रदूषित हो येगी तथा प्राकृतिक सन्तुलन बिगड़ जायेगा।
2. मृदा का अपरदन होगा, वर्षा अनियमित होगी, कम वर्षा से सूखा पड़ेगा तथा अधिक वर्षा से बाद आयेगी और मिट्टी का अधिक कटाव होगा।
3. पेड़-पौधों से प्राप्त होने वाले सभी लाभों से हम वंचित रह जायेंगे।
4. अनेक वन्य जन्तु जातियाँ, उनके आवास समाप्त हो जाने के कारण विलुप्त हो जायेगी।