बिहार बोर्ड कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 3 मानव जनन लघु उत्तरीय प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. पुरुष जनन तंत्र का आरेख निर्मित कीजिए।
उत्तर: पुरुष जनन तंत्र का आरेख:
प्रश्न 2. अंडाशय के कोई दो कार्य बताए।
उत्तर: अंडाशय के दो कार्य:
1. एस्ट्रोजन हार्मोन का उत्पादन करना अर्थात अंतरस्त्रवि ग्रन्थि की तरह काम करना।
2. अंडणुओ का उत्पादन करना व उनके परिवर्धन मे सहायता करना।
प्रश्न 3. शुक्राणुजन्न को परिभाषित कीजिए।
उत्तर: प्राणि के वृषणों में विशेष कोशिकाओं से आस्तरित शुक्रजनन नलिकायें होती हैं। इन कोशिकाओं की पर्त जनन उपकला कहलाती है। जनन उपकला की कोशिकाओं से विशेष प्रक्रम द्वारा शुक्राणुओं के निर्माण की क्रिया शुक्रजनन कहलाती है।
प्रश्न 4. नर सहायक ग्रंथियों के कार्यों का वर्णन करे।
उत्तर: सहायक जनन ग्रन्थियों प्रोस्टेट, काउपर ग्रन्थियों तथा शुक्राशय से आने वाले स्रावों से शुक्राणुओं को गति के लिए माध्यम प्राप्त होता है। इसमें पोषक पदार्थों जैसे फ्रक्टोस, कैल्सियम की उपस्थिति के कारण पोषण आदि होता है। काउपर ग्रन्थियों का स्त्राव क्षारीय तथा श्लेष्मल होता है; अतः यह वीर्य के साथ मिलकर योनि मार्ग को चिकना बनाता है, उसमें अम्लीयता को नष्ट करता है तथा सम्भोग को सुगम बनाता है।
प्रश्न 5. अंडजन्न की संक्षिप्त मे बताए।
उत्तर: मादा जन्तुओं के अण्डाशय में जनन एपिथीलियम की जनन कोशिकाओं से अण्डाणु बनने की क्रिया अंडजन्न कहलाती है। क्रिया में अर्द्धसूत्री विभाजन के द्वारा एक जनन कोशिका इसे प्राय: एक ही अण्ड तथा दो या तीन पोलर बॉडी का निर्माण होता है। इस प्रकार, एक द्विगुणित जनन कोशिका से एक अगुणितअण्ड का निर्माण अण्डजनन है।
प्रश्न 6. पीट पिण्डक व अगपिण्डक के कार्य बताए।
उत्तर: पीतपिण्ड – यह मुख्यत: प्रोजेस्ट्रॉन हॉर्मोन सत्रवित करता है। निषेचन के बाद यह हॉर्मोन मासिक धर्म को रोकने में सहायता करता है। निषेचन न होने की स्थिति में यह स्वयं नष्ट हो जाते है। कॉर्पस एल्बीकैन्स के रूप में शेष रह जाते है।
अग्रपिण्डक - यह स्पर्म लाइसिन नामक एन्जाइम समूह का स्त्रावण करता है। इसमें हाइएल्यूरोनिडेज तथा प्रोटियेज नामक एन्जाइम होते हैं, जो सम्पर्क स्थल पर अण्डाणु की झिल्लियों को घोलकर अण्डे की सतह तक पहुँचने में सहायता करते हैं।
प्रश्न 7. आतर्व चक्र क्या है परिभाषित करे?
उत्तर: स्त्रियों में अण्डजनन अण्डाशयों तथा गर्भाशय ( की भित्ति में विभिन्न परिवर्तनों की एक चक्रीय जनन श्रृंखला से सम्बन्धित होता है। ये परिवर्तन महीने में एक बार दोहराये जाते हैं। अतः इसे माहवारी चक्र या रजोधर्म चक्र या आर्तव चक्र (मासिक स्राव या ऋतु चक्र) कहते हैं। माहवारी चक्र का समापन योनि द्वारा रुधिर प्रवाह से होता है। इस रुधिर प्रवाह को ही माहवारी या ऋतु स्राव या मासिक स्त्राव कहा जाता है। सामान्यतः इस चक्र की अवधि 28 दिन होती है।
प्रश्न 8. प्रसव की क्रिया मे कौन से हार्मोन मदद करते है?
उत्तर: पश्च पिट्यूटरी से स्रावित ऑक्सीटोसिन हॉर्मोन प्रसव के समय गर्भाशयी पेशियों में संकुचन को प्रेरित करता है तथा कॉर्पस ल्यूटियम से स्रावित रिलैक्सिन हॉर्मोन प्रसव के समय सर्विक्स एवं आसपास के क्षेत्र को शिथिल कर देता है जिससे प्रसव के समय शिशु जन्म आसानी से हो जाता है।
प्रश्न 9. अंडोतसर्ग की क्रिया को बताए।
उत्तर: अण्डोत्सर्ग एक स्वतः क्रिया है तथा कुछ हॉर्मोन्स की उपस्थिति में ग्रफिअन पुटिकाओं के फटने से होता है। मनुष्यों में यह क्रिया मैथुन क्रिया के कारण तन्त्रिका तन्त्र के प्रभावित होने से भी होती है। तन्त्रिका तन्त्र पीयूष ग्रन्थि को उत्तेजित करता है जिससे दो हॉर्मोन्स-पुटिका उत्तेजक हॉर्मोन (FSH) तथा ल्यूटिनाइजिंग हॉर्मोन (LH) का स्रावण होता है। इसके फलस्वरूप अण्डाशय में पुटिकाओं की शीघ्र वृद्धि तथा परिपक्व ग्रफिअन पुटिकाओं के फटने से अण्डक बाहर निकलने की क्रिया अर्थात् अण्डोत्सर्ग हो जाता है। अण्डोत्सर्ग को सम्पूर्ण क्रिया में लगभग एक दिन का समय लगता है।
प्रश्न 10. दुग्ध निष्कासन की क्रिया को बताए।
उत्तर: मादा स्तनियों में दुग्ध स्रवण, प्रसव के बाद होने वाली एक क्रिया है जो उत्पन्न शिशु के पोषण के के लिए आवश्यक है। प्रसव के पूर्व ही अपरा, अण्डाशय तथा पीयूष ग्रन्थि से उत्पन्न हॉर्मोन्स स्तन ग्रन्थियों को दुग्ध बनाने तथा स्तरावित करने के लिए प्रेरित करते हैं। इस प्रकार दुग्ध स्रवण प्रसव से पूर्व ही प्रारम्भ हो जाता है। नवजात शिशुओं को स्तनपान कराते समय यही दूध पिलाया जाता है। स्त्री में शिशु पोषण के लिए एक जोड़ी चूचुक या स्तनाग्र होते हैं जिनके पीछे अनेक दुग्ध ग्रन्थियाँ स्तनों के अंदर की ओर होती है।
प्रश्न 11. अपरा किसे कहते है?
उत्तर: अपरा एक संयुक्त ऊतक है जो स्तनपोषियों में, मादा के गर्भ में, भ्रूण का गर्भाशय भित्ति के साथ सरचनात्मक तथा क्रियात्मक सम्बन्ध स्थापित करता है। निषेचन के बाद निषेचित अण्डाणु, विदलन करता हुआ एक परिवर्द्धनशील भ्रूण में परिवर्तित होकर जब गर्भाशय में पहुँचता है तो व उसमे रोपित हो जात है यह क्रिया रोपण है। इस समय तक कॉर्पस ल्यूटियम द्वारा स्रावित हॉर्मोन प्रोजेस्टेरॉन के प्रभाव से गर्भाशय भित्ति में अनेक परिवर्तन होते हैं। गर्भाशय भित्ति से चिपके हुए भ्रूण की विशिष्ट कलाएँ तथा गर्भाशय भित्ति मिलकर अपरा का निर्माण करते हैं। इस सम्पूर्ण क्रिया को गर्भाधान कहते हैं।
प्रश्न 12. वृषण कोश का कार्य बताए?
उत्तर: वृषणकोष ताप नियामक का कार्य करता है। वृषणों का उदरगुहा के बाहर वृषणकोषों में स्थित होना इसलिए आवश्यक होता है कि शरीर का ताप अधिक होने के कारण, वृषणों के शुक्राणु उदरगुहा में परिपक्व नहीं हो सकते। वृषणकोषों में ताप शरीर के ताप से 3°C कम रहता है। इसलिए वृषण उदरगुहा के बाहर वृषण कोष में लटके होते है।
प्रश्न 13. मनुष्य मे जनन की करयिकी के मुख्य पद कौन कौंन से है?
उत्तर: 3.मनुष्यों में जनन की कार्यिकी अत्यधिक जटिल होती है। कुछ प्रमुख प्रक्रिया सम्मिलित होती हैं-
1. युग्मकजनन
2. मैथुन या सम्भोग
3. निषेचन एवं गर्भाधान
4. भ्रूणीय विकास
5. प्रसव
प्रश्न 14. शुक्राणु की संरचना का निर्माण करे?
उत्तर शुक्राणु की संरचना:
:
प्रश्न 15. दुग्ध सत्रवन में कौन कौन से हॉर्मोन सहायता करते है?
उत्तर: प्रसव के पूर्व ही अपरा, अण्डाशय तथा पीयूष ग्रन्थि से उत्पन्न प्रोजेस्ट्रॉन एवं एस्ट्रोजन हॉर्मोन्स दुग्ध ग्रन्थियों अथवा स्तन ग्रन्थियों की वृद्धि को तथा दुग्ध बनाने तथा स्त्रावित करने के लिए प्रेरित करते हैं; अत: स्त्री के स्तन बड़े आकार के हो जाते हैं। प्रोलैक्टिन के प्रभाव से शिशु जन्म के बाद ही अधिकतम 24 घण्टे के भीतर स्तनों से शिशु पोषण हेतु दुग्ध स्त्रावण प्रारम्भ हो जाता है।
प्रश्न 16. रोपण किसे कहते है?
उत्तर: अपरा एक संयुक्त ऊतक है जो स्तनपोषियों में, मादा के गर्भ में, भ्रूण का गर्भाशय भित्ति के साथ संरचनात्मक तथा क्रियात्मक सम्बन्ध स्थापित करता है। निषेचन के बाद निषेचित अण्डाणु, विदलन करता हुआ एक परिवर्द्धशील भ्रूण में परिवर्तित होकर जब गर्भाशय में पहुँचता है तो गर्भाशय भित्ति के चिपचिपा हो जाने के कारण उसी से चिपक जाता है। यह क्रिया रोपण कहलाती है।
प्रश्न 17. कोरियॉनक विली किसे कहते है परिभाषित करे?
उत्तर: कॉरिऑन में वृद्धि तीव्र गति से जब होती है। तो कॉरिऑन जरायुज का निर्माण करती है। एम्निऑन तथा कॉरिऑन के बीच की गुहा को कॉरिऑनिक गुहा कहते हैं। कॉरिऑन की एक्टोडर्म या ट्रोफोब्लास्ट की बाह्य सतह पर अंकुर उत्पन्न होते हैं जिन्हें कॉरिऑनिक अंकुर कहते हैं। ये अंकुर गर्भाशय की भित्ति में धँस जाते हैं। ये रसांकुर भ्रूण के पोषण, श्वसन तथा उत्सर्जन में सहायक हैं। कॉरिऑन से एक हॉर्मोन, कॉरिओनिक गोनैडोट्रॉपिन का स्रावण होता है।
प्रश्न 18. ब्लास्टोसिस्ट को परिभाषित करे।
उत्तर: मॉरुला के गर्भाशय में जाने के बाद गर्भाशय गुहा का ग्लाइकोजनयुक्त पोषक तरल मॉरुला (भ्रूण) में प्रवेश कर जाने लगता है, जिससे मॉरुला के अन्दर पोषक तरल से भरी हुई एक गुहा-सी बन जाती है। इस गुहा को ब्लास्टोसील कहते हैं। भ्रूण की इस प्रावस्था को ब्लास्टोसिस्ट कहते हैं।
प्रश्न 19. मनुष्य मे भ्रूणीय विकास के चरण लिखिए।
उत्तर: मनुष्य मे भ्रूणीय विकास के चरण :
1. जायगोट का विदलन व मोरूल का निर्माण
2. ब्लास्टोसिस्ट का निर्माण
3. भ्रूण का रोपण
4. भ्रूण की बाह्य कलाओ का निर्माण
5. गैसतरुलाभवन
6. अंगों का विकास
7. प्रसव
प्रश्न 20.गैस्टुलाभवन के मुख्य लक्षण बताए।
उत्तर: गैस्टुलाभवन के चार प्रमुख लक्षण होते हैं-
1. संरचना विकास गतियों के फलस्वरूप तीन प्राथमिक जनन स्तरों – बाह्यजननस्तर (ectoderm), मध्यजननस्तर (mesoderm) तथा अन्तर्जननस्तर (endoderm) का निर्माण होता है।
2. विभिन्न क्रियाओं के फलस्वरूप कोरकगुहाधीरे-धीरे लुप्त होती जाती है तथा एक नयी गुहा आद्यान्त्र का निर्माण हो जाता है।
3. कोशिकाओं की ऑक्सीकारी क्रियायें बढ़ जाती है, किन्तु कोशिका विभाजन की दूर कम हो जाती है। नये प्रोटीन्स का संश्लेषण प्रारम्भ हो जाता है। भ्रूण के परिमाप में विशेष वृद्धि नहीं होती है।
4. भ्रूण अग्रपश्च अक्ष पर दीर्घित होना प्रारम्भ कर देता है।
प्रश्न 21. निषेचन किसे कहते है? व निषेचन स्तल कौनसा होता है?
उत्तर: निषेचन : स्त्री में निषेचन की प्रक्रिया नर युग्मक शुक्राणु तथा मादा युग्मक या अण्डाणु के संलयन से युग्मनज बनने की प्रक्रिया को निषेचन कहते हैं।
निषेचन स्थल : स्त्री में अण्डाणु का निषेचन अण्डवाहिनी के मध्यवर्ती भाग गर्भाशयी नलिका के तुम्बिका या एम्पुला भाग में या फिर एम्पुला एसथमस क जोड़ वाले स्थान पर होता है।
प्रश्न 22. आतर्व चक्र की सभी घटनाओ को समयावधि के अनुसार व्यक्त करे।
उत्तर: आर्तव चक्र की प्रमुख घटनायें समयावधि के अनुसार: सामान्य रूप से आतर्व चक्र 28 दिन का होता है।
(i) 1-5 दिन तक रुधिर स्राव- रजोधर्म या रजोस्राव
(ii) 5-13 दिन पुटिका परिपक्वन-नयी एण्डोमीट्रियम का निर्माण
(iii) 14वें दिन - अण्डोत्सर्ग
(iv) 15वें दिन - कॉर्पस ल्यूटियम का निर्माण
(v) 14-17वें दिन तक — निषेचन
(vi) 20-25 वें दिन तक — निषेचित अण्ड का रोपण
(vii) निषेचन न होने पर— नये आवर्त चक्र का प्रारम्भ
प्रश्न 23. मानव अंडे की संरचना को समझाए।
उत्तर: अण्डे की संरचना- अण्डाणु का निर्माण अण्डजनन प्रक्रिया द्वारा स्त्री के अण्डाशयों में होता है। मनुष्य का अण्डा छोटा, गोलाकार तथा अचल होता है। यह अल्पपीतकी या अपीतकी तथा समपीतकी होता है क्योंकि इसमें पीतक की मात्रा बहुत ही कम होती है और यह अण्डे के कोशिकाद्रव्य में समान रूप से वितरित रहती है। इसके कोशिकाद्रव्य में एक अगुणित केन्द्रक होता है। पूरा अण्डाणु पारदर्शी अकोशिकीय झिल्ली जोना पैल्युसिडा से घिरा रहता है। इस झिल्ली के चारों ओर पुटिका कोशिकाओं के अवशेष अनियमित रूप से एक स्तर कोरोना रेडियेटा के रूप में स्थित होते हैं। ये धीरे-धीरे निषेचन के समय तक विलुप्त हो जाती हैं।
प्रश्न 24. नर में यौवनरम्भ के दौरान आने वाले परिवर्तन कौन कौन से है?
उत्तर: नर (लड़कों) में यौवनारम्भ 13 से 16 वर्ष की आयु में प्रारम्भ होता है। वृषण की लेडिंग कोशिकाओं द्वारा नर लैंगिक हॉर्मोन टेस्टोस्टेरोन के स्राव से नर में यौवनारम्भ प्रेरित होता है। इस समय लड़कों में निम्नांकित परिवर्तन प्रकट होते हैं-
1. शुक्रजनन नलिकायें शुक्राणुओं का निर्माण प्रारम्भ कर देती हैं।
2. वृषणकोषों एवं शिश्न के आकार में वृद्धि होती हैं।
3. चेहरे पर दाढ़ी, मूँछ व बाह्य जननांग के पास बाल उग आते हैं।
4. स्वर भारी हो जाता है और शरीर की लम्बाई में वृद्धि होती है।
5. कंधे फैलकर चौड़े होने लगते हैं व अस्थियों के आकार तथा पेशी-विन्यास में वृद्धि होती हैं।
प्रश्न 25. शुक्राशय पर टिप्पणी दे।
उत्तर: शुक्राशय- मूत्राशय के पीछे स्थित लगभग 5 सेमी लम्बी, वलित थैली के समान संरचनायें होती हैं। शुक्राशयों की भित्तियाँ ग्रन्थिल होती हैं। इनमें एक हल्का पीला, क्षारीय तथा चिपचिपा तरल स्रावित होता है। यही तरल वीर्य का अधिकांश (लगभग 60%) भाग बनाता है। इसी तरल की उपस्थिति के कारण शुक्राणु गति कर सकते हैं। शुक्राशय से निकलने वाली छोटी-सी नलिका से ही शुक्रवाहिनी आकर मिलती है। इस प्रकार बनी सहनलिका को स्खलन नलिका कहते हैं। यह मूत्रमार्ग में खुलती है।