बिहार बोर्ड कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 4 जनन स्वास्थ्य दीर्घ उतरात्मक प्रश्न
दीर्घ उतरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. जनन स्वास्थ्य संबंधी कार्यनीतियों पर अपने विचार प्रकट करे?
उत्तर: भारत मई जनन व बाल स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम नाम से कार्ययोजना के अंतर्गत जनन संभनधि भिन्न फ्पहलुओ पर सुविधायें एवं प्रोत्साहन दिये जा रहे हैं। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत लोगों में इस सम्बन्ध में अधिकाधिक जागरूकता उत्पन्न की जा रही है। यह कार्यक्रम एक कार्य योजना के तहत वर्ष 1951 में 'परिवार नियोजन' के नाम से प्रचारित व प्रसारित किया गया। वैश्विक स्तर पर भारतवर्ष विश्व का प्रथम राष्ट्र था जिसने राष्ट्रीय स्तर पर सम्पूर्ण जनन स्वास्थ्य को लक्ष्य के रूप में प्राप्त करने के लिए कार्य योजना बनाकर इसको एक कार्यक्रम के रूप में प्रारम्भ किया था। बाद में इस कार्यक्रम को योजना के अन्तर्गत ही अधिक बृहत् रूप देकर परिवार कल्याण' के नाम से चलाया गया। भारत जैसे विशाल, अनेकानेक विचारधाराओं, भाषाओ, मिथको, संस्कारों वाले देश म सफलताओं/असफलताओं के मध्य आवधिक मूल्यांकन के अन्तर्गत दशकों से चलने वाले इस कार्यक्रम को आज अधिक व्यापक तथा उन्नत स्वरूप प्राप्त हो गया है। आर० सी० एच० के अन्तर्गत जनन तथा बालक/बालिकाओं, माताओं के स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का काम तो किया ही गया है, अनेकानेक प्रकार के प्रोत्साहन, सुविधायें इत्यादि कार्यक्रमों के रूप में सरकारी द्वारा जनता के मध्य प्रचारित-प्रसारित किये जाते रहे है।
प्रश्न 2. जनसंख्या विस्फोट पर निबंध लिखे।
उत्तर: जनसंख्या विस्फोट (POPULATION EXPLOSION) किसी भी देश की जनसंख्या में वृद्धि उस देश के जनसंख्या घनत्व को बढ़ाती है। यह एक चिन्ता का विषय है। क्योंकि इस प्रकार की वृद्धि से अनेक दुष्परिणाम सामने आते हैं।
1980 के आंकड़ों से विदित होता है कि विश्व का केवल 2.4 प्रतिशत क्षेत्र भारत के पास है, जबकि विश्व की जनसंख्या का 15.5 प्रतिशत भारत की इस भूमि पर निवास करता है अर्थात् क्षेत्र तथा जनसंख्या का अनुपात 1: 6.5 का है। इस भूमि पर प्रति वर्ग किमी जनसंख्या 208 है, जबकि विश्व का यह अनुपात 1: 33 है। 1900 ई० में सम्पूर्ण विश्व की जनसंख्या लगभग 2 अरब (2000 मिलियन) थी जो लगभग 100 वर्ष बाद 2000 ई० में बढ़कर 6 अरब (6000 मिलियन) हो गयी। यदि भारत की बात करें तो हमारे देश की जनसंख्या 1981 में लगभग 70 करोड़ थी, वर्ष 2000 ( 11 मई को ) में यह 100 करोड़ हो गयी विश्व में चीन के बाद भारत का जनसंख्या के आधार पर दूसरा स्थान है। वर्ष 2001 में भारत की जनसंख्या एक अरब (100 करोड़ या 1000 मिलियन) को पार कर गयी थी जबकि 2011 की जनसंख्या गणना के अनुसार भारत को यह जनसंख्या 1 अप्रैल, 2011 को 1 अरब 21 करोड़ 1 लाख 90 हजार हो गई अर्थात् विश्व का प्रत्येक छठा व्यक्ति भारतीय है। वर्तमान में भारत की जनसंख्या की वृद्धि दर जो लगभग 2.1 प्रतिशत बनी हुई थी।
जनन एवं बाल स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम के माध्यम से जनसंख्या वृद्धि दर में कमी तो हुई किन्तु यह कमी नाम मात्र की ही थी। वर्ष 2001 ई० की जनगणना के अनुसार यह वृद्धि 21.54 प्रतिशत थी अब 2011 की जनगणना के अनुसार 17.64 प्रतिशत रही है। फिर भी भारत की जनसंख्या वृद्धि की तीव्र गति का अनुमान इस तथ्य से ही लगाया जा सकता है कि स्वतन्त्रता के समय, लगभग 64 वर्ष पूर्व भारत की कुल जनसंख्या लगभग 35 करोड़ थी। 47 वर्षों के अन्तराल के बाद, 1991 की जनगणना के अनुसार यह संख्या दोगुनी से भी अधिक हो गयी (84,40) जबकि 64 वर्षो बाद लगभग 3.64 गुनी।
यदि उपर्युक्त आँकड़ों के अनुसार वर्तमान में जहाँ विश्व की जनसंख्या अनुमानतः 650 करोड़ से अधिक है वहाँ भारत में से 121 करोड़ से भी अधिक जनसंख्या रह रही है। सीमित क्षेत्रफल, इतनी बड़ी जनसंख्या बड़ी-बड़ी समस्याये तो होगी ही और विशेषकर भारत जैसे गरीब, विकासशील देश को भूमि, पेट भरने को भोजन, रहने के लिए स्थान और तन ढकने के लिए कपड़े की आवश्यकता के साथ सबको रोजगार, शिक्षा के लिए विद्यालय, उपचार हेतु अस्पताल आदि चाहिए। जनसंख्या वृद्धि आज देश के आर्थिक विकास में हर ओर अवरोध उत्पन्न कर रही है। यही जनसंख्या विस्फोट है, जिसके कारण देश विकास नहीं कर पा रहा है।
प्रश्न 3. जनसंख्या विस्फोट के दुष्परिणाम लिखिए।
उत्तर: जनसंख्या विस्फोट के दुष्परिणाम :
भारत में जनसंख्या विस्फोट के निम्नलिखित दुष्परिणाम हुए हैं-
1. आर्थिक विकास में बाधा- -जनसंख्या विस्फोट का सबसे बुरा प्रभाव राष्ट्र के आर्थिक विकास पर पड़ा है। भारत में कृषि उत्पादन और औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि होने पर भी आर्थिक विकास पिछड़ा हुआ है। बढ़ी हुई जनसंख्या के पोषण के लिए सरकार को भोजन, वस्त्र, शिक्षा और स्वास्थ्य की अतिरिक्त व्यवस्था करनी पड़ती है। यह पूँजी यदि उत्पादन कार्यों में लगती तो देश का आर्थिक विकास त्वरित गति से होता ।
2. निर्धनता-जनसंख्या विस्फोट के कारण रोजगार के अवसर घट जाते हैं। आजीविका के साधन उपलब्ध न हो पाने के कारण निर्धनता पनपती है तथा प्रति व्यक्ति आय घट जाती है।
3. बेरोजगारी में वृद्धि - बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए राष्ट्र में रोजगार के पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं हो पाते। 4. खाद्य समस्या का उदय - जनसंख्या जितनी तीव्र गति से बढ़ी है, खाद्यान्नों का उत्पादन उतनी तीव्र गति से नहीं बढ़ पा रहा है। अधिक जनसंख्या के कारण देश में खाद्य समस्या बढ़ जाती है। सन्तुलित तथा पौष्टिक भोजन की प्राप्ति तो दूर, पेट भर भोजन मिलना भी दूभर हो जाता है।
5. जन सुविधाओं का अभाव - तीव्र गति से जनसंख्या बढ़ जाने के कारण राष्ट्र में आवास, शिक्षा, स्वस्थ मनोरंजन तथा यातायात जैसी जन सुविधाओं में कमी आ जाती है। सरकार को इन व्यवस्थाओं के लिए अतिरिक्त साधन जुटाने पड़ते हैं।
6. मूल्यों में वृद्धि जनसंख्या जितनी तीव्र गति से बढ़ती है, उत्पादन की मात्रा में उतनी तीव्र गति से नहीं हो पाती। जनसंख्या बढ़ने से उपभोक्ता वस्तुओं की मांग बढ़ जाती है, परन्तु उनकी पूर्ति न बढ़ पान के वस्तुओं के मूल्य आकाश को बढ़ने लगते हैं। बाजार में वस्तुओं का अभाव उत्पन्न हो जाने से कालाबाजारी की प्रोत्साहन मिलता है।
7. नागरिकों के जीवन स्तर में गिरावट - अत्यधिक मूल्य वृद्धि, निर्धनता और बेरोजगारी के कारण नागरिका की क्रय शक्ति घट जाती है। साधनों के अभाव में उनका जीवन-स्तर नीचे गिर जाता है।
8. नैतिक मूल्यों में ह्रास एवं अपराधों में वृद्धि भीड़ को अपराध की नर्सरी कहा जाता है। बेकारी निर्धनता के कारण लोग नैतिक मूल्यों से विहीन हो जाते हैं और हत्या, चोरी, डकैती, अपहरण, बलात्कार, वेश्यावृति आदि अपराधों में लिप्त हो जाते है। अपराधों के कारण समाज का वातावरण विषाक्त हो जाता है।
9. पारिवारिक विघटन को बढ़ावा- जनसंख्या वृद्धि के कारण प्राचीन मूल्यों, नैतिक आदर्शों परम्पराओं में ह्रास होना प्रारम्भ हो जाता है। समाज में परिवर्तन का चक्र चलने लगता है, जिससे परिवार टूटकर बिखरने लगते है।
10. प्रदूषण की समस्या - जनसंख्या विस्फोट के कारण पर्यावरण में असन्तुलन उत्पन्न हो गया है। बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण जल-मल विसर्जन की समस्या विकट हो गयी है। जनसंख्या द्वारा उपभोग के बाद बच वस्तुयें घर के बाहर पहुँचकर प्रदूषक बन जाती हैं। घरों से निकलता हुआ धुआँ, मशीनों का शोर व वाहनों की कर्कश ध्वनि प्रदूषण के स्रोत हैं। बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए भोजन तथा आवास की सुविधाओं को जुटाने के लिए। वनों की अन्धाधुन्ध कटाई प्रदूषण को बढ़ाती है।
प्रश्न 4. जनसांख्यिकी कारकों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर: जनसांख्यिकी कारक (demography factors) जनसंख्या के विभिन्न तत्त्वों आदि का अध्ययन जनसांख्यिकी (demography) कहलाता है। इन पहलुओं के अध्ययन से जनसंख्या वृद्धि की दर से सम्बन्धित अनेक तत्त्व सामने आते हैं, जैसे—मानवीय जनसंख्या की संरचना के सन्दर्भ में जनसांख्यिकी के कुछ प्रमुख पहलू निम्नलिखित हैं-
1. जनसंख्या वृद्धि की दर का ज्ञात होना।
2. जन्मदर तथा मृत्युदर का ज्ञात होना।
3. जनसांख्यिकी संक्रान्ति तथा इसकी प्रावस्थाओं का ज्ञान।
4. जनसंख्या की आयु संरचना का ज्ञान।
प्रश्न 5. परिवार नियोजन हेतु प्राकृतिक उपायों का वर्णन करे।
उत्तर:1. आवधिक आत्म संयम - स्त्री तथा पुरुष केवल सुरक्षित काल में ही मैथुन (सम्भोग) करे, शेष दिनों में आत्म संयम रखें। स्त्रियों में मासिक धर्म ( माहवारी या रजोधर्म) के एक सप्ताह पूर्व तथा एक सप्ताह बाद तक का समय सुरक्षित काल माना जाता है। इस सुरक्षित काल में समागम (सहवास) करने से गर्भधारण की सम्भावनाये बहुत कम हो जाती है।
2. क्रियात्मक उपाय– इस विधि का प्रयोग स्त्रियों के मासिक चक्र में होने वाले परिवर्तनों तथा इनके होने के समय का ज्ञान होने के आधार पर किया जाता है। चूंकि द्वितीयक अण्ड कोशिका केवल 24 घण्टे तक ही निषेचन के योग्य रहती हैं, अतः इस विधि में अण्डोत्सर्ग के सम्भावी दिन से 3 दिन पहले और दिन बाद तक सम्भोग नहीं करना चाहिए। अण्डोत्सर्ग के समय की पहचान यह है कि-
(i) अण्डोत्सर्ग के समय हल्की-सी पीड़ा होती है,
(ii) शरीर का ताप कुछ बढ़ जाता है तथा
(iii) गर्भाशय की ग्रीवा की दीवार से अत्यधिक चिपचिपे श्लेष्म का स्त्रावण होता है।
3. अन्तरित मैथुन या बाह्य स्खलन- ऐसी विधि जब पुरुष सहवासी सम्भोग के समय स्खलन से पूर्व ही स्त्री सहवासी की योनि से लिंग को बाहर निकालकर वीर्यसेचन से बच सकता है।
4. स्तनपान अनार्तव– सामान्यत: प्रसव के बाद 4-6 माह तक स्त्री का आतंक चक्र रुका रहता है। यह तथ्य तब अधिक निश्चित होता है जब माता शिशु को पूरी तरह स्तनपान कराती रहती है। इस अवधि में गर्भधारण की सम्भावना प्रायः नहीं होती और यह एक प्राकृतिक विधि है। यह भी सत्य है कि इस प्रकार की विधि पूर्णतः सुरक्षित नहीं है क्योंकि असफलता की सम्भावना भी काफी हो सकती है।
प्रश्न 6. रोधक उपायों क नाम व क्रियाविधि बताए।
उत्तर: रोधक उपाय जिनके द्वारा शुक्राणुओं को अण्डाणुओं से मिलने से किसी प्रकार रोका जाता है। इस प्रकार की युक्तियाँ पुरुष तथा स्त्री दोनों के लिए ही उपलब्ध हैं।
1. निरोध या कण्डोम — इसका प्रयोग पुरुषों द्वारा स्त्री सम्भोग के समय किया जाता है। निरोध (कण्डोम) रबड़ (लेटेक्स) या ऐसी ही किसी अन्य पदार्थ की बनी छिद्ररहित पतली थैली-सी होती है जो कि एक सिरे पर बन्द तथा दूसरे पर खुली होती है। इसे सम्भोग के समय पुरुष अपने शिश्न पर चढ़ा लेता है, जिससे स्खलन के समय वीर्य कण्डोम में ही रह जाता है और शुक्राणु स्त्री के जनन तन्त्र में प्रवेश नहीं कर पाते हैं। निरोध स्त्रियों के लिए भी उपलब्ध हैं। इन्हें फेमीडोम कहते हैं। इनके प्रयोग से गर्भधारण नहीं हो सकता। यह गर्भनिरोध का सर्वाधिक लोकप्रिय साधन है। इनका प्रयोग स्वयं ही किया जा सकता है। इससे गोपनीयता बनी रहती है। उपयोग के उपरान्त इन्हें फेंक देना चाहिए। वर्तमान में निरोध के उपयोग में तेजी से वृद्धि देखी गई है। निरोध के प्रयोग से यौन संचारित रोगों से भी सुरक्षा मिलती है।
2 . अन्तः गर्भाशयी युक्तियाँ — इस विधि में प्लास्टिक या ताँबे या स्टील की कोई युक्ति गर्भाशय में रोप दी जाती है। जितने समय तक यह युक्ति गर्भाशय में रहती है, भ्रूण कारोपण गर्भाशय में नहीं हो पाता। इस प्रकार की युक्तियाँ वास्तविक बाधा उपाय हैं जो शुक्राणुओं को गर्भाशय में पहुंचने से रोकती हैं। इन विधियों में चिकित्सक द्वारा गर्भाशय में अथवा योनि मार्ग में घोषित की जाने वाली युक्तियाँ; जैसे—लीप्स लूप (Lippes loops), कॉपर टी (Copper T), कॉपर 7 (Copper 7), हॉर्मोन मोचक आई०यू०डी० जैसे प्रोजेस्टासर्ट (progestasert), एल० एन० जी० 20 (LNG-20) आदि को स्त्री के गर्भाशय के अन्दर लगा दिया जाता है, जिससे वह गर्भधारण नहीं कर सकती। सरकारी अस्पतालों में परिवार कल्याण विभाग द्वारा स्त्रियों को लूप इत्यादि लगवाने की निःशुल्क व्यवस्था है। इसके अतिरिक्त जो महिलायें गर्भधारण नहीं करना चाहती बच्चों में अन्तराल चाहती हैं इनके लिए IUD आदर्श गर्भनिरोधक हैं। भारत में इस प्रकार की काफी प्रचलित है।
प्रश्न 7. गर्भ निरोधक गोलीय किस प्रकार से कार्य करती है वर्णित कीजिए।
उत्तर: गर्भ निरोधक गोलियाँ – अब कई प्रकार की गर्भ निरोधक गोलियाँ, जैसे—माला-डी, माला-एन, सहेली आदि बाजार में उपलब्ध हैं तथा सरकारी अस्पतालों में निःशुल्क प्रदान की जाती है। स्त्रियों को प्रतिदिन एक गोली खानी पड़ती है। इससे गर्भधारण की सम्भावनायें समाप्त हो जाती हैं। इन गोलियों में एस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्टिरोन हॉर्मोन्स की निश्चित मात्रा होती है। रुधिर में इन दोनों हॉर्मोन्स का स्तर बना रहने से पिट्यूटरी ग्रन्थि द्वारा स्रावित हॉर्मोन्स - FSH तथा LH का स्रावण बहुत कम हो जाता है, अथवा स्त्रावण होता ही नहीं है। इसके फलस्वरूप ग्राफियन पुटिकायें परिपक्व नहीं होती हैं।
गर्भ निरोधक गोलियाँ काफी प्रभावशाली होती हैं तथा प्रायः इनके कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होते फिर भी कभी-कभी तथा लम्बे समय तक लेते रहने से इनके कुप्रभाव भी देखे जाते हैं; जैसे उल्टी, जी मिचलाना, चक्कर आना माहवारी से अतिरिक्त दिनों में भी कभी-कभी रुधिर स्राव होना, उदर पीड़ा, मोटापा बढ़ना, स्तन कैन्सर आदि। इनमें सहेली नामक गर्भनिरोधक गोली सप्ताह में एक बार ही ली जाती है तथा अधिक सुरक्षित भी है। आजकल कुछ गोलियाँ सम्भोग के बाद 72 घण्टे के भीतर ली जाने वाली भी आती हैं जिनका प्रयोग अवांछित स्थितियों, असुरक्षित यौन सन्सर्ग के बाद आपातकालीन अवस्था में किया जा सकता है जिससे गर्भ सगर्भता से बचा जा सकता है।
प्रश्न 8. परिवार नियोजन कार्यक्रम को प्रभावी बनाने क लिय सुझाव दीजिए।
उत्तर: परिवार नियोजन को प्रभावी बनाने के लिए सुझाव:
1. परिवार कल्याण कार्यक्रमों का उचित प्रचार किया जाये। इसे गाँवों तथा घनी औद्योगिक बस्तियों तक हुंचाया जाये।
2. परिवार नियोजन कार्यक्रमों का विस्तार करने के लिए स्वैच्छिक संगठनों की सहायता ली जाये।
3. कर्मचारियों को उचित प्रशिक्षण दिया जाये।
4. इस कार्यक्रम के अन्तर्गत कार्य करने वाले उन सभी कर्मचारियों को विशेष सुविधायें प्रदान की जायें जो ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य कर रहे हो।
5. नसबन्दी ऑपरेशन के बाद उचित चिकित्सा की व्यवस्था होनी चाहिये।
6. जनसंख्या शिक्षा के माध्यम से धार्मिक मान्यताओं के कारण उत्पन्न बाधाओं को समाप्त किया जाये।
7. गर्भ निरोधक उपकरण अथवा औषधियाँ मुफ्त अथवा न्यूनतम मूल्य पर वितरित की जायें।
8. परिवार कल्याण सेवायें प्रदान करने के लिए स्वैच्छिक संगठनों को समुचित आर्थिक सहायता की जाए।
9. ग्रामीण क्षेत्रों व घनी औद्योगिक बस्तियों में अधिक परिवार कल्याण केन्द्र खोले जायें।
10. माता एवं शिशु को उचित स्वास्थ्य सेवायें प्रदान करने की व्यवस्था की जाये।
11. गहन परिवार जिला कार्यक्रम बनाये जायें।
12. कार्यक्रम विधियों से प्रभावपूर्ण बनाये जायें।
प्रश्न 9. यौन संक्रमित रोग गोनोरिया व सिफ़लिस का वर्णन कीजिए।
उत्तर: सुजाक या गोनोरिया– यह रोग नौसेरिया गोनोरी नामक जीवाणु द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में मैथुन के फलस्वरूप फैलता है। पुरुषों में इस रोग के संक्रमण से मूत्रमार्ग में जलन होती है तथा सूजन आ जाती है। शिश्नमुण्ड पर पीले-हरे रंग का विसर्जन दिखाई देता है। मूत्र की अम्लीयता के कारण मूत्र त्याग करते समय अत्यधिक जलन होती है। बाद में यह संक्रमण प्रॉस्टेट ग्रन्थि एवं मूत्राशय तक फैल जाता है। स्त्रियाँ संक्रमण से प्रभावित नहीं होती हैं किन्तु ये वाहक का कार्य करती है। जीवाणु प्रतिरोधी प्रतिजैविक दवाओं से इस रोग में लाभ पहुँचता है।
2. आतशक या उपदेश अथवा सिफलिस – यह रोग ट्रेपोनेमा पैलिडम नामक जीवाणु द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में मैथुन के फलस्वरूप फैलता है। पुरुषों में इस रोग के संक्रमण के 9-10 दिन बाद शिश्न मुण्ड पर लाल रंग के दाने दिखाई देने लगते हैं। कुछ सप्ताह बाद ये दाने लुप्त हो जाते है। स्त्रियों में भी भगोष्ठ व योनि में इसी प्रकार के लाल रंग के दाने दिखाई देते हैं। संक्रमित स्त्री और पुरुष दोनों में से 6 सप्ताह बाद पूरे शरीर पर चकत्ते पड़ जाते हैं। इसके पश्चात् ये जीवाणु हृदय, यकृत, मस्तिष्क एवं अस्थियों को भी प्रभावित करते हैं। मस्तिष्क के संक्रमित हो जाने पर शरीर को लकवा भी मार सकता है। पेनिसिलीन के उपयोग से इस रोग में लाभ पहुँचता है।
प्रश्न 10. परखनाली शिशु पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
उत्तर: अनेक स्त्रियों में अण्डाशय तथा गर्भाशय तो सामान्य होते हैं, किन्तु उनकी अण्डवाहिनियाँ विकृत होती है। अतः ऐसी स्त्रियों के अण्डाणुओं को बाहर निकालकर प्रयोगशाला में पुरुष के शुओं द्वारा परखनली में गर्भाशयिक वातावरण में निषेचन करा दया जाता है। इसके फलस्वरूप बने युग्मनज या जाइगोट में भ्रूणीय विकास प्रारम्भ हो जाने पर उस प्रारम्भिक भ्रूण को लगभग 8-ब्लास्टोमीयर अवस्था तक माता की कैलोपी नलिका में स्थानान्तरित किया जाता है। इसे अन्तः डिम्ब वाहिनी स्थानान्तरण (ZIFT Zygote Intrafallopian Transfer) कहते हैं।
जो भ्रूण 8 ब्लास्टोमीयर से अधिक का होता है उसे सीधे गर्भाशय स्थानान्तरित किया जाता है। इसे आई०यू०टी० (IUT = intrauterine transfer) कहा जाता है। कुछ स्त्रियों में केवल गर्भधारण की समस्या होती है; ऐसे में जीव निषेचन (in vivo fertilization) अर्थात् स्त्री के भीतर ही युग्मकों का संलयन होने पर तथा उससे बनने वाले भ्रूण को फैलोपी नलिका अथवा गर्भाशय में स्थापित किया जाता है ।
कुछ स्त्रियों में अण्डाणु उत्पन्न नहीं होते अथवा ठीक से उत्पन्न नहीं होते। ऐसी स्त्रियों के लिए जी० आई०एफ०टी० (GIFT = gamete intrafallopian transfer) विधि अपनायी जाती है अर्थात् दाता स्त्री से अण्डाणु प्राप्त करके फैलोपी नलिका में स्थानान्तरित किया जाता है। प्रयोगशाला में भ्रूण बनाने की प्रक्रियाः यह प्रक्रिया अन्तःकोशिकीय शुक्राणु निक्षेपण intracytoplasmic sperm injection) अर्थात् सीधे ही अण्डाणु में शुक्राणु को निक्षेपित करना कहलाती है।
पुरुष बन्ध्यता सम्बन्धी मामलों में उसका वीर्य स्त्री को वीर्यसेचित करने में समर्थ नहीं होता, कारण शुक्राणुओं की कम संख्या अथवा अनुपस्थिति अथवा शुक्राणुओं की विकृति हो सकती है। ऐसे में पति या स्वस्थ दाता से शुक्र प्राप्त करके स्त्री की योनि अथवा गर्भाशय में प्रविष्ट करा दिया जाता है। इस तकनीक को अन्तः गर्भाशय वीर्य सेचन ([UT = intrauterine insemination) कहा जाता है। उपर्युक्त किसी भी प्रक्रिया द्वारा स्थानान्तरित प्राक् भ्रूण शीघ्र ही माता के गर्भाशय की भित्ति में आरोपित होकर विकसित होने लगता है। इस प्रकार, निर्मित शिशु को परखनली शिशु कहते है।
न-कौन से दो कारक प्रभावित करते हैं?
उत्तर- जनसंख्या को प्रभावित करने वाले कारक-
1. जन्म व मृत्यु दर – जन्म दर अधिक व मृत्यु दर कम होने से जनसंख्या बढ़ती है।
2. अशिक्षा व अन्धविश्वास - अशिक्षा के कारण लोग परिवार नियोजन के कार्यक्रमों को नहीं जानते तथा सन्तानोत्पत्ति करते अज्ञानवश बच्चे पैदा करते जाते हैं। लोगों में अन्धविश्वास के कारण भी बच्चों की संख्या बढ़ती है। अन्धविश्वास का एक कारण अशिक्षा होना भी है।
प्रश्न 2. जीव विज्ञान का विद्यार्थी होने के नाते बंध्य दम्पत्तियों को सन्तान प्राप्ति हेत क्या सुझाव देंगे।
उत्तर- बन्ध्यता के अनेक कारण हो सकते हैं जो पुरुष अथवा स्त्री अथवा दोनों पर लागू हो सकते हैं। बन्ध्यता के ये दोष शारीरिक, जन्मजात, रोगजनक अथवा मनोवैज्ञानिक हो सकते हैं। सर्वप्रथम ऐसे दम्पत्तियों को किसी अच्छे चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए और बन्ध्यता का सही कारण जानना चाहिए। यदि स्त्री एवं पुरुष दोनों में क्रमशः अण्डाणु व शुक्राणुओं का सही निर्माण हो रहा है, परन्तु वे किसी कारण निषेचन नहीं कर पा रहे है तो ऐसी स्थिति में परखनली निषेचन कारगर साबित हो सकता है। दोनों में से कोई एक पूर्णतः बन्ध्य है तो शुक्राणु या अण्डाणुओं को किसी दूसरे दम्पत्यिों से लिया जा सकता है। यह तरीका गोपनीय रखा जाता है।
प्रश्न 3 – 'गर्भ निरोधक टीका' क्या है? संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर—–स्त्रों की गर्भ धारण एवं प्रजनन क्षमता को नियन्त्रित करने के लिए किये गये अनेक वैज्ञानिक प्रयासों मैं 'गर्भ निरोधक टीका' बनाने की पहल राष्ट्रीय प्रति रक्षा विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली ने तथा सफलता प्राप्त की। संस्थान ने ह्यूमैन कोरियोनिक गोनैडोट्रॉपिन के आधार पर एक निरोधात्मक टीके का निर्माण करने में सफलता प्राप्त की है। HGC की कमी होने से स्त्री गर्भ धारण करने तथा गर्भावस्था को सफल बनाने में विफल हो जाती है।
प्रश्न 4. जनन नियन्त्रण पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर- मानव एक सामाजिक प्राणी है। मानव समाज में स्त्री-पुरुष साथ-साथ जीवन व्यतीत करते हैं और सन्तानोत्पत्ति करते हैं। आजकल जनसंख्या की वृद्धि की समस्या आम हो गयी है। जनसंख्या वृद्धि को रोकने की एकमात्र विधि है कि जन्मदर को अत्यधिक कम करके मृत्युदर के बराबर करना।
जनन क्षमता को सीमित रखने क उपाय:
1. बंध्यकरण
2. कंडोम का प्रयोग
3. गर्भ निरोधक गोलिआ
4. अंत गर्भाशयी यंत्र
5. बाधा उपाय आदि।
प्रश्न 5. अंत गर्भाशयी युक्ति को समझाए।
उत्तर: अन्तः गर्भाशयी युक्तियाँ — इस विधि में प्लास्टिक या ताँबे की कोई युक्ति गर्भाशय में रोप दी जाती है। जितने समय तक यह युक्ति गर्भाशय में रहती है,रोपण गर्भाशय में नहीं हो पाता। इस प्रकार की युक्तियाँ वास्तविक बाधा उपाय हैं जो शुक्राणुओं को गर्भाशय में पहुँचने से रोकती हैं। इन विधियों में चिकित्सक द्वारा गर्भाशय में अथवा योनि मार्ग में रोपित की जाने वाली युक्तियाँ जैसे—लीप्स लूप, कॉपर टी, कॉपर 7, हॉर्मोन मोचक आई०यू०डी० जैसे प्रोजेस्टासर्ट, एल० एन०जी० 20 आदि को स्त्री के गर्भाशय के अन्दर लगा दिया जाता है, जिससे वह गर्भधारण नहीं कर सकती। सरकारी अस्पतालों में परिवार कल्याण और विभाग द्वारा स्त्रियों को लूप इत्यादि लगवाने की निःशुल्क व्यवस्था है। इसके अतिरिक्त जो महिलायें गर्भधारण नहीं करना चाहतीं बच्चों में अन्तराल चाहती हैं इनके लिए IUD आदर्श गर्भनिरोधक हैं। भारत में इस प्रकार की अत्यधिक युक्तियाँ काफी प्रचलित हैं।
प्रश्न 6. अन्तर्रोपन को परिभाषित करे।
उत्तर: इन्जेक्शन्स एवं अंतर्रोपण -आजकल स्त्रियों को प्रोजेस्टिरोन जैसे एक पदार्थ - डीपो-प्रोवेरा के इन्जेक्शन भी दिए जाते हैं। एक इन्जेक्शन का प्रभाव तीन महीने तक रहता है। इसी प्रकार, प्रोजेस्टिरोन के बारीक नॉरप्लाण्ट कैप्सूल को शल्य क्रिया द्वारा त्वचा के नीचे आरोपित कर दिया जाता है। ये कैप्सूल पाँच वर्ष तक गर्भ निरोधक का कार्य करते रहते हैं।
प्रश्न 7. टेस्ट टूब बेबी किसे कहते है?
उत्तर: पात्र निषेचन या आई०वी०एफ० अर्थात् शरीर से बाहर लगभग शरीर के भीतर जैसी स्थितियों में निषेचन तथा भ्रूण स्थानान्तरण या ई०टी० ऐसा एक उपाय हो जाती सकता है। इस विधि को लोकप्रिय रूप से टेस्ट ट्यूब बेबी कार्यक्रम कहते हैं।
प्रश्न 8. यौन संचारित रोगों से उपाय बताए।
उत्तर:यौन संचारित रोगों से बचने के लिय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए है-
1. संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन सम्पर्क न करें। सामान्यतः भी निरोध (कण्डोम) का प्रयोग उपयुक्त है।
2. दूषित इन्जेक्शन की सुई का दूसरों द्वारा प्रयोग न किया जाये।
3. संक्रमित व्यक्ति का रुधिर किसी अन्य व्यक्ति को संचरित न करें।
4. संक्रमित माँ से शिशु में रोग आता है अतः ऐसी स्त्री को माँ न बनने दें।
प्रश्न 9. सिफलिस रोग पर टिप्पणी कीजिए।
उतर: सिफलिस– यह रोग ट्रेपोनेमा पैलिडम नामक जीवाणु द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में मैथुन के फलस्वरूप फैलता है। पुरुषों में इस रोग के संक्रमण के 9-10 दिन बाद शिश्न मुण्ड पर लाल रंग के दाने दिखाई देने हैं। कुछ सप्ताह बाद ये दाने लुप्त हो जाते हैं।
स्त्रियों में भी भगोष्ठ व योनि में इसी प्रकार के लाल रंग के दाने दिखाई देते हैं। संक्रमित स्त्री और पुरुष दोनों में 1 से 6 सप्ताह बाद पूरे शरीर पर चकत्ते पड़ जाते हैं। इसके पश्चात् ये जीवाणु हृदय, यकृत, मस्तिष्क एवं अस्थियों को भी प्रभावित करते हैं। मस्तिष्क के संक्रमित हो जाने पर शरीर को लकवा भी मार सकता है।
प्रश्न 10. GIFT विधि की व्याख्या करे।
उत्तर: कुछ स्त्रियों में अण्डाणु उत्पन्न नहीं होते अथवा ठीक से उत्पन्न नहीं होते। ऐसी स्त्रियों के लिए जी०आई०एफ०टी० विधि अपनायी जाती है अर्थात् दाता स्त्री से अण्डाणु प्राप्त करके फैलोपी नलिका में स्थानान्तरित किया जाता है। यहाँ स्पष्टतः एक और विशिष्ट प्रक्रिया को बताना आवश्यक है; प्रयोगशाला में भ्रूण बनाने की प्रक्रिया। यह प्रक्रिया अन्तःकोशिकीय शुक्राणु निक्षेपण अर्थात् सीधे ही अण्डाणु में शुक्राणु को निक्षेपित करना कहलाती है।
प्रश्न 11. सगर्भता का चिकित्सीय समापन क्या है?
उत्तर: सगर्भता का चिकित्सीय समापन: कभी कभी स्त्री को कुछ विशेष संरचनात्मक या क्रियात्मक स्थिति के कारण स्वतः गर्भपात हो जाता है किन्तु आजकल परिवार को सीमित रखने के उद्देश्य से प्रेरित गर्भ समापन या गर्भपात या सगर्भता का चिकित्सीय समापन भी किया जाता है। इसके लिए अधिकतम 3 माह की आयु के पहले ही भ्रूण को वैक्यूम पम्प द्वारा गर्भाशय से खींचकर निकाल दिया जाता है, या कुछ रसायनों द्वारा आँवल को नष्ट कर दिया जाता है, या फिर शल्य क्रिया द्वारा भूग को निकाल दिया जाता है। माइफ प्रिस्टोन नामक औषधि गर्भाशय की दीवार में प्रोजेस्टिरोन हॉर्मोन के प्रभाव को समाप्त करके एण्डोमीट्रियम के खण्डन को प्रेरित करती है। गर्भसमापन की सुविधा सभी सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध है, जहाँ पर अनावश्यक गर्भ का समापन कराया जा सकता है। 12 सप्ताह : अधिक गर्भ (भ्रूण) का गर्भपात घातक तथा संकट उत्पन्न करने वाला होता है। माता की जान भी जा सकती है। किसी प्रकार जैसे अल्ट्रा साउण्ड इत्यादि के द्वारा भ्रूण के लिंग का पता लगाने के बाद कन्या भ्रूण का समापन कानून में प्रतिबन्धित है।
प्रश्न 12. यौन संचारित रोगों क विषय में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर: यौन संचारित रोग: ऐसे रोग या रोग के संक्रमण जो सहवास/सम्भोग के माध्यम से संक्रमित होते हैं, यौन संचारित रोग अथवा रतिज रोग अथवा जनन मार्ग संक्रम कहलाते हैं। ऐसे अनेक भयंकर रोग हैं जैसे-सुजाक (gonorrhoea), आतशक (syphilis), जननिक हर्पीज (genital herpes), क्लेमाइडियोसिस (chlamydiosis), ट्राइकोमोनिएसिस (trichomoniasis), लैंगिक मस्से (genital warts), हीपैटाइटिस 'बी' (hepatitis-B) तथा एच० आई० वी० / एड्स (HIV/AIDS) आदि।
यौन संचारित रोगों में से कई संक्रमण जैसे—यकृत शोध-बी, एच०आई०वी० / एड्स आदि संक्रमित व्यक्ति के की सुविधा इन्जेक्शन की सुई के सम्मिलित प्रयोग, शल्य चिकित्सा के उपकरणों के सम्मिलित प्रयोग अथवा संदूषित रुधिर आधान भी होते हैं। संक्रमित माता से गर्भस्थ शिशु में ये संचरित हो जाते हैं। एड्स, हर्पीज, हीपैटाइटिस 'बी' आदि विषाणु रोग हैं जबकि आतशक, सुजाक आदि जीवाणु रोग हैं। ट्राइकोमोनैसिस जैसे रोगाणु प्रोटोजोआ के जन्तु होते हैं। जननिक हर्पीस सिम्प्लेक्स कानून वाइरस से, एड्स (AIDS = Acquired Immunodeficiency Syndrome), एच०आई०वी० (HIV = Human Immunodeficiency Virus) से होता है।
प्रश्न 13. एड़स रोग किस प्रकार से संक्रमित होता है?
उत्तर: इसका पूरा नाम एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिसिएन्सी सिण्ड्रोम (AIDS = Acquired Immunodeficiency Syndrome) है। यह रोग एक एच०आई०वी० (HIV - Human Immunodeficiency Virus) नामक वाइरस से होता है। इसको लिम्फैडेनोपैथी एसोसियेटेड वाइरस भी कहते हैं। रोगी के शरीर से स्वस्थ मनुष्य के शरीर में रुधिर स्थानान्तरण, असुरक्षित यौन सम्बन्ध, इन्जेक्शन की सुई का परस्पर उपयोग, रोगी माता से उसकी गर्भस्थ सन्तानों में यह रोग फैलता है। इससे रोगी को एक लम्बे समय तक बुखार आता है तथा रोगी की रोग प्रतिरोधक क्षमता नष्ट हो जाती हैं। जिससे रोगी अन्य रोगों से ग्रसित हो जाता है। अन्त में रोगी की मृत्यु हो जाती है।
प्रश्न 14. परिवार नियोजन कार्यक्रमों की सफलता के लिए कोई 5 सुझाव दीजिये।
उत्तर- परिवार नियोजन को प्रभावी बनाने के लिए सुझाव:
1. परिवार कल्याण कार्यक्रमों का उचित प्रचार किया जाये। इसे गाँवों तथा घनी औद्योगिक बस्तियों पहुँचाया जाये।
2. परिवार नियोजन कार्यक्रमों का विस्तार करने के लिए स्वैच्छिक संगठनों की सहायता ली जाये।
3. कर्मचारियों को उचित प्रशिक्षण दिया जाये।
4. इस कार्यक्रम के अन्तर्गत कार्य करने वाले उन सभी कर्मचारियों को विशेष सुविधायें प्रदान की जाये जो ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य कर रहे हों।
5. नसबन्दी ऑपरेशन के बाद उचित चिकित्सा की व्यवस्था होनी चाहिये।
प्रश्न 15. स्तनपान अनातर्व की विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर: स्तनपान अनार्तव - सामान्यतः प्रसव के बाद 4-6 माह तक स्त्री का आव चक्र रुका रहता है। यह तथ्य तब अधिक निश्चित होता है जब माता शिशु को पूरी तरह स्तनपान कराती रहती है। इस अवधि में गर्भधारण की सम्भावना प्रायः नहीं होती और यह एक प्राकृतिक विधि है। इस प्रकार की विधि पूर्णतः सुरक्षित नहीं है क्योंकि असफलता की सम्भावना भी काफी होती है।
दीर्घ उतरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. जनन स्वास्थ्य संबंधी कार्यनीतियों पर अपने विचार प्रकट करे?
उत्तर: भारत मई जनन व बाल स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम नाम से कार्ययोजना के अंतर्गत जनन संभनधि भिन्न फ्पहलुओ पर सुविधायें एवं प्रोत्साहन दिये जा रहे हैं। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत लोगों में इस सम्बन्ध में अधिकाधिक जागरूकता उत्पन्न की जा रही है। यह कार्यक्रम एक कार्य योजना के तहत वर्ष 1951 में 'परिवार नियोजन' के नाम से प्रचारित व प्रसारित किया गया। वैश्विक स्तर पर भारतवर्ष विश्व का प्रथम राष्ट्र था जिसने राष्ट्रीय स्तर पर सम्पूर्ण जनन स्वास्थ्य को लक्ष्य के रूप में प्राप्त करने के लिए कार्य योजना बनाकर इसको एक कार्यक्रम के रूप में प्रारम्भ किया था। बाद में इस कार्यक्रम को योजना के अन्तर्गत ही अधिक बृहत् रूप देकर परिवार कल्याण' के नाम से चलाया गया। भारत जैसे विशाल, अनेकानेक विचारधाराओं, भाषाओ, मिथको, संस्कारों वाले देश म सफलताओं/असफलताओं के मध्य आवधिक मूल्यांकन के अन्तर्गत दशकों से चलने वाले इस कार्यक्रम को आज अधिक व्यापक तथा उन्नत स्वरूप प्राप्त हो गया है। आर० सी० एच० के अन्तर्गत जनन तथा बालक/बालिकाओं, माताओं के स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का काम तो किया ही गया है, अनेकानेक प्रकार के प्रोत्साहन, सुविधायें इत्यादि कार्यक्रमों के रूप में सरकारी द्वारा जनता के मध्य प्रचारित-प्रसारित किये जाते रहे है।
प्रश्न 2. जनसंख्या विस्फोट पर निबंध लिखे।
उत्तर: जनसंख्या विस्फोट (POPULATION EXPLOSION) किसी भी देश की जनसंख्या में वृद्धि उस देश के जनसंख्या घनत्व को बढ़ाती है। यह एक चिन्ता का विषय है। क्योंकि इस प्रकार की वृद्धि से अनेक दुष्परिणाम सामने आते हैं।
1980 के आंकड़ों से विदित होता है कि विश्व का केवल 2.4 प्रतिशत क्षेत्र भारत के पास है, जबकि विश्व की जनसंख्या का 15.5 प्रतिशत भारत की इस भूमि पर निवास करता है अर्थात् क्षेत्र तथा जनसंख्या का अनुपात 1: 6.5 का है। इस भूमि पर प्रति वर्ग किमी जनसंख्या 208 है, जबकि विश्व का यह अनुपात 1: 33 है। 1900 ई० में सम्पूर्ण विश्व की जनसंख्या लगभग 2 अरब (2000 मिलियन) थी जो लगभग 100 वर्ष बाद 2000 ई० में बढ़कर 6 अरब (6000 मिलियन) हो गयी। यदि भारत की बात करें तो हमारे देश की जनसंख्या 1981 में लगभग 70 करोड़ थी, वर्ष 2000 ( 11 मई को ) में यह 100 करोड़ हो गयी विश्व में चीन के बाद भारत का जनसंख्या के आधार पर दूसरा स्थान है। वर्ष 2001 में भारत की जनसंख्या एक अरब (100 करोड़ या 1000 मिलियन) को पार कर गयी थी जबकि 2011 की जनसंख्या गणना के अनुसार भारत को यह जनसंख्या 1 अप्रैल, 2011 को 1 अरब 21 करोड़ 1 लाख 90 हजार हो गई अर्थात् विश्व का प्रत्येक छठा व्यक्ति भारतीय है। वर्तमान में भारत की जनसंख्या की वृद्धि दर जो लगभग 2.1 प्रतिशत बनी हुई थी।
जनन एवं बाल स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम के माध्यम से जनसंख्या वृद्धि दर में कमी तो हुई किन्तु यह कमी नाम मात्र की ही थी। वर्ष 2001 ई० की जनगणना के अनुसार यह वृद्धि 21.54 प्रतिशत थी अब 2011 की जनगणना के अनुसार 17.64 प्रतिशत रही है। फिर भी भारत की जनसंख्या वृद्धि की तीव्र गति का अनुमान इस तथ्य से ही लगाया जा सकता है कि स्वतन्त्रता के समय, लगभग 64 वर्ष पूर्व भारत की कुल जनसंख्या लगभग 35 करोड़ थी। 47 वर्षों के अन्तराल के बाद, 1991 की जनगणना के अनुसार यह संख्या दोगुनी से भी अधिक हो गयी (84,40) जबकि 64 वर्षो बाद लगभग 3.64 गुनी।
यदि उपर्युक्त आँकड़ों के अनुसार वर्तमान में जहाँ विश्व की जनसंख्या अनुमानतः 650 करोड़ से अधिक है वहाँ भारत में से 121 करोड़ से भी अधिक जनसंख्या रह रही है। सीमित क्षेत्रफल, इतनी बड़ी जनसंख्या बड़ी-बड़ी समस्याये तो होगी ही और विशेषकर भारत जैसे गरीब, विकासशील देश को भूमि, पेट भरने को भोजन, रहने के लिए स्थान और तन ढकने के लिए कपड़े की आवश्यकता के साथ सबको रोजगार, शिक्षा के लिए विद्यालय, उपचार हेतु अस्पताल आदि चाहिए। जनसंख्या वृद्धि आज देश के आर्थिक विकास में हर ओर अवरोध उत्पन्न कर रही है। यही जनसंख्या विस्फोट है, जिसके कारण देश विकास नहीं कर पा रहा है।
प्रश्न 3. जनसंख्या विस्फोट के दुष्परिणाम लिखिए।
उत्तर: जनसंख्या विस्फोट के दुष्परिणाम :
भारत में जनसंख्या विस्फोट के निम्नलिखित दुष्परिणाम हुए हैं-
1. आर्थिक विकास में बाधा- -जनसंख्या विस्फोट का सबसे बुरा प्रभाव राष्ट्र के आर्थिक विकास पर पड़ा है। भारत में कृषि उत्पादन और औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि होने पर भी आर्थिक विकास पिछड़ा हुआ है। बढ़ी हुई जनसंख्या के पोषण के लिए सरकार को भोजन, वस्त्र, शिक्षा और स्वास्थ्य की अतिरिक्त व्यवस्था करनी पड़ती है। यह पूँजी यदि उत्पादन कार्यों में लगती तो देश का आर्थिक विकास त्वरित गति से होता ।
2. निर्धनता-जनसंख्या विस्फोट के कारण रोजगार के अवसर घट जाते हैं। आजीविका के साधन उपलब्ध न हो पाने के कारण निर्धनता पनपती है तथा प्रति व्यक्ति आय घट जाती है।
3. बेरोजगारी में वृद्धि - बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए राष्ट्र में रोजगार के पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं हो पाते। 4. खाद्य समस्या का उदय - जनसंख्या जितनी तीव्र गति से बढ़ी है, खाद्यान्नों का उत्पादन उतनी तीव्र गति से नहीं बढ़ पा रहा है। अधिक जनसंख्या के कारण देश में खाद्य समस्या बढ़ जाती है। सन्तुलित तथा पौष्टिक भोजन की प्राप्ति तो दूर, पेट भर भोजन मिलना भी दूभर हो जाता है।
5. जन सुविधाओं का अभाव - तीव्र गति से जनसंख्या बढ़ जाने के कारण राष्ट्र में आवास, शिक्षा, स्वस्थ मनोरंजन तथा यातायात जैसी जन सुविधाओं में कमी आ जाती है। सरकार को इन व्यवस्थाओं के लिए अतिरिक्त साधन जुटाने पड़ते हैं।
6. मूल्यों में वृद्धि जनसंख्या जितनी तीव्र गति से बढ़ती है, उत्पादन की मात्रा में उतनी तीव्र गति से नहीं हो पाती। जनसंख्या बढ़ने से उपभोक्ता वस्तुओं की मांग बढ़ जाती है, परन्तु उनकी पूर्ति न बढ़ पान के वस्तुओं के मूल्य आकाश को बढ़ने लगते हैं। बाजार में वस्तुओं का अभाव उत्पन्न हो जाने से कालाबाजारी की प्रोत्साहन मिलता है।
7. नागरिकों के जीवन स्तर में गिरावट - अत्यधिक मूल्य वृद्धि, निर्धनता और बेरोजगारी के कारण नागरिका की क्रय शक्ति घट जाती है। साधनों के अभाव में उनका जीवन-स्तर नीचे गिर जाता है।
8. नैतिक मूल्यों में ह्रास एवं अपराधों में वृद्धि भीड़ को अपराध की नर्सरी कहा जाता है। बेकारी निर्धनता के कारण लोग नैतिक मूल्यों से विहीन हो जाते हैं और हत्या, चोरी, डकैती, अपहरण, बलात्कार, वेश्यावृति आदि अपराधों में लिप्त हो जाते है। अपराधों के कारण समाज का वातावरण विषाक्त हो जाता है।
9. पारिवारिक विघटन को बढ़ावा- जनसंख्या वृद्धि के कारण प्राचीन मूल्यों, नैतिक आदर्शों परम्पराओं में ह्रास होना प्रारम्भ हो जाता है। समाज में परिवर्तन का चक्र चलने लगता है, जिससे परिवार टूटकर बिखरने लगते है।
10. प्रदूषण की समस्या - जनसंख्या विस्फोट के कारण पर्यावरण में असन्तुलन उत्पन्न हो गया है। बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण जल-मल विसर्जन की समस्या विकट हो गयी है। जनसंख्या द्वारा उपभोग के बाद बच वस्तुयें घर के बाहर पहुँचकर प्रदूषक बन जाती हैं। घरों से निकलता हुआ धुआँ, मशीनों का शोर व वाहनों की कर्कश ध्वनि प्रदूषण के स्रोत हैं। बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए भोजन तथा आवास की सुविधाओं को जुटाने के लिए। वनों की अन्धाधुन्ध कटाई प्रदूषण को बढ़ाती है।
प्रश्न 4. जनसांख्यिकी कारकों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर: जनसांख्यिकी कारक (demography factors) जनसंख्या के विभिन्न तत्त्वों आदि का अध्ययन जनसांख्यिकी (demography) कहलाता है। इन पहलुओं के अध्ययन से जनसंख्या वृद्धि की दर से सम्बन्धित अनेक तत्त्व सामने आते हैं, जैसे—मानवीय जनसंख्या की संरचना के सन्दर्भ में जनसांख्यिकी के कुछ प्रमुख पहलू निम्नलिखित हैं-
1. जनसंख्या वृद्धि की दर का ज्ञात होना।
2. जन्मदर तथा मृत्युदर का ज्ञात होना।
3. जनसांख्यिकी संक्रान्ति तथा इसकी प्रावस्थाओं का ज्ञान।
4. जनसंख्या की आयु संरचना का ज्ञान।
प्रश्न 5. परिवार नियोजन हेतु प्राकृतिक उपायों का वर्णन करे।
उत्तर:1. आवधिक आत्म संयम - स्त्री तथा पुरुष केवल सुरक्षित काल में ही मैथुन (सम्भोग) करे, शेष दिनों में आत्म संयम रखें। स्त्रियों में मासिक धर्म ( माहवारी या रजोधर्म) के एक सप्ताह पूर्व तथा एक सप्ताह बाद तक का समय सुरक्षित काल माना जाता है। इस सुरक्षित काल में समागम (सहवास) करने से गर्भधारण की सम्भावनाये बहुत कम हो जाती है।
2. क्रियात्मक उपाय– इस विधि का प्रयोग स्त्रियों के मासिक चक्र में होने वाले परिवर्तनों तथा इनके होने के समय का ज्ञान होने के आधार पर किया जाता है। चूंकि द्वितीयक अण्ड कोशिका केवल 24 घण्टे तक ही निषेचन के योग्य रहती हैं, अतः इस विधि में अण्डोत्सर्ग के सम्भावी दिन से 3 दिन पहले और दिन बाद तक सम्भोग नहीं करना चाहिए। अण्डोत्सर्ग के समय की पहचान यह है कि-
(i) अण्डोत्सर्ग के समय हल्की-सी पीड़ा होती है,
(ii) शरीर का ताप कुछ बढ़ जाता है तथा
(iii) गर्भाशय की ग्रीवा की दीवार से अत्यधिक चिपचिपे श्लेष्म का स्त्रावण होता है।
3. अन्तरित मैथुन या बाह्य स्खलन- ऐसी विधि जब पुरुष सहवासी सम्भोग के समय स्खलन से पूर्व ही स्त्री सहवासी की योनि से लिंग को बाहर निकालकर वीर्यसेचन से बच सकता है।
4. स्तनपान अनार्तव– सामान्यत: प्रसव के बाद 4-6 माह तक स्त्री का आतंक चक्र रुका रहता है। यह तथ्य तब अधिक निश्चित होता है जब माता शिशु को पूरी तरह स्तनपान कराती रहती है। इस अवधि में गर्भधारण की सम्भावना प्रायः नहीं होती और यह एक प्राकृतिक विधि है। यह भी सत्य है कि इस प्रकार की विधि पूर्णतः सुरक्षित नहीं है क्योंकि असफलता की सम्भावना भी काफी हो सकती है।
प्रश्न 6. रोधक उपायों क नाम व क्रियाविधि बताए।
उत्तर: रोधक उपाय जिनके द्वारा शुक्राणुओं को अण्डाणुओं से मिलने से किसी प्रकार रोका जाता है। इस प्रकार की युक्तियाँ पुरुष तथा स्त्री दोनों के लिए ही उपलब्ध हैं।
1. निरोध या कण्डोम — इसका प्रयोग पुरुषों द्वारा स्त्री सम्भोग के समय किया जाता है। निरोध (कण्डोम) रबड़ (लेटेक्स) या ऐसी ही किसी अन्य पदार्थ की बनी छिद्ररहित पतली थैली-सी होती है जो कि एक सिरे पर बन्द तथा दूसरे पर खुली होती है। इसे सम्भोग के समय पुरुष अपने शिश्न पर चढ़ा लेता है, जिससे स्खलन के समय वीर्य कण्डोम में ही रह जाता है और शुक्राणु स्त्री के जनन तन्त्र में प्रवेश नहीं कर पाते हैं। निरोध स्त्रियों के लिए भी उपलब्ध हैं। इन्हें फेमीडोम कहते हैं। इनके प्रयोग से गर्भधारण नहीं हो सकता। यह गर्भनिरोध का सर्वाधिक लोकप्रिय साधन है। इनका प्रयोग स्वयं ही किया जा सकता है। इससे गोपनीयता बनी रहती है। उपयोग के उपरान्त इन्हें फेंक देना चाहिए। वर्तमान में निरोध के उपयोग में तेजी से वृद्धि देखी गई है। निरोध के प्रयोग से यौन संचारित रोगों से भी सुरक्षा मिलती है।
2 . अन्तः गर्भाशयी युक्तियाँ — इस विधि में प्लास्टिक या ताँबे या स्टील की कोई युक्ति गर्भाशय में रोप दी जाती है। जितने समय तक यह युक्ति गर्भाशय में रहती है, भ्रूण कारोपण गर्भाशय में नहीं हो पाता। इस प्रकार की युक्तियाँ वास्तविक बाधा उपाय हैं जो शुक्राणुओं को गर्भाशय में पहुंचने से रोकती हैं। इन विधियों में चिकित्सक द्वारा गर्भाशय में अथवा योनि मार्ग में घोषित की जाने वाली युक्तियाँ; जैसे—लीप्स लूप (Lippes loops), कॉपर टी (Copper T), कॉपर 7 (Copper 7), हॉर्मोन मोचक आई०यू०डी० जैसे प्रोजेस्टासर्ट (progestasert), एल० एन० जी० 20 (LNG-20) आदि को स्त्री के गर्भाशय के अन्दर लगा दिया जाता है, जिससे वह गर्भधारण नहीं कर सकती। सरकारी अस्पतालों में परिवार कल्याण विभाग द्वारा स्त्रियों को लूप इत्यादि लगवाने की निःशुल्क व्यवस्था है। इसके अतिरिक्त जो महिलायें गर्भधारण नहीं करना चाहती बच्चों में अन्तराल चाहती हैं इनके लिए IUD आदर्श गर्भनिरोधक हैं। भारत में इस प्रकार की काफी प्रचलित है।
प्रश्न 7. गर्भ निरोधक गोलीय किस प्रकार से कार्य करती है वर्णित कीजिए।
उत्तर: गर्भ निरोधक गोलियाँ – अब कई प्रकार की गर्भ निरोधक गोलियाँ, जैसे—माला-डी, माला-एन, सहेली आदि बाजार में उपलब्ध हैं तथा सरकारी अस्पतालों में निःशुल्क प्रदान की जाती है। स्त्रियों को प्रतिदिन एक गोली खानी पड़ती है। इससे गर्भधारण की सम्भावनायें समाप्त हो जाती हैं। इन गोलियों में एस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्टिरोन हॉर्मोन्स की निश्चित मात्रा होती है। रुधिर में इन दोनों हॉर्मोन्स का स्तर बना रहने से पिट्यूटरी ग्रन्थि द्वारा स्रावित हॉर्मोन्स - FSH तथा LH का स्रावण बहुत कम हो जाता है, अथवा स्त्रावण होता ही नहीं है। इसके फलस्वरूप ग्राफियन पुटिकायें परिपक्व नहीं होती हैं।
गर्भ निरोधक गोलियाँ काफी प्रभावशाली होती हैं तथा प्रायः इनके कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होते फिर भी कभी-कभी तथा लम्बे समय तक लेते रहने से इनके कुप्रभाव भी देखे जाते हैं; जैसे उल्टी, जी मिचलाना, चक्कर आना माहवारी से अतिरिक्त दिनों में भी कभी-कभी रुधिर स्राव होना, उदर पीड़ा, मोटापा बढ़ना, स्तन कैन्सर आदि। इनमें सहेली नामक गर्भनिरोधक गोली सप्ताह में एक बार ही ली जाती है तथा अधिक सुरक्षित भी है। आजकल कुछ गोलियाँ सम्भोग के बाद 72 घण्टे के भीतर ली जाने वाली भी आती हैं जिनका प्रयोग अवांछित स्थितियों, असुरक्षित यौन सन्सर्ग के बाद आपातकालीन अवस्था में किया जा सकता है जिससे गर्भ सगर्भता से बचा जा सकता है।
प्रश्न 8. परिवार नियोजन कार्यक्रम को प्रभावी बनाने क लिय सुझाव दीजिए।
उत्तर: परिवार नियोजन को प्रभावी बनाने के लिए सुझाव:
1. परिवार कल्याण कार्यक्रमों का उचित प्रचार किया जाये। इसे गाँवों तथा घनी औद्योगिक बस्तियों तक हुंचाया जाये।
2. परिवार नियोजन कार्यक्रमों का विस्तार करने के लिए स्वैच्छिक संगठनों की सहायता ली जाये।
3. कर्मचारियों को उचित प्रशिक्षण दिया जाये।
4. इस कार्यक्रम के अन्तर्गत कार्य करने वाले उन सभी कर्मचारियों को विशेष सुविधायें प्रदान की जायें जो ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य कर रहे हो।
5. नसबन्दी ऑपरेशन के बाद उचित चिकित्सा की व्यवस्था होनी चाहिये।
6. जनसंख्या शिक्षा के माध्यम से धार्मिक मान्यताओं के कारण उत्पन्न बाधाओं को समाप्त किया जाये।
7. गर्भ निरोधक उपकरण अथवा औषधियाँ मुफ्त अथवा न्यूनतम मूल्य पर वितरित की जायें।
8. परिवार कल्याण सेवायें प्रदान करने के लिए स्वैच्छिक संगठनों को समुचित आर्थिक सहायता की जाए।
9. ग्रामीण क्षेत्रों व घनी औद्योगिक बस्तियों में अधिक परिवार कल्याण केन्द्र खोले जायें।
10. माता एवं शिशु को उचित स्वास्थ्य सेवायें प्रदान करने की व्यवस्था की जाये।
11. गहन परिवार जिला कार्यक्रम बनाये जायें।
12. कार्यक्रम विधियों से प्रभावपूर्ण बनाये जायें।
प्रश्न 9. यौन संक्रमित रोग गोनोरिया व सिफ़लिस का वर्णन कीजिए।
उत्तर: सुजाक या गोनोरिया– यह रोग नौसेरिया गोनोरी नामक जीवाणु द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में मैथुन के फलस्वरूप फैलता है। पुरुषों में इस रोग के संक्रमण से मूत्रमार्ग में जलन होती है तथा सूजन आ जाती है। शिश्नमुण्ड पर पीले-हरे रंग का विसर्जन दिखाई देता है। मूत्र की अम्लीयता के कारण मूत्र त्याग करते समय अत्यधिक जलन होती है। बाद में यह संक्रमण प्रॉस्टेट ग्रन्थि एवं मूत्राशय तक फैल जाता है। स्त्रियाँ संक्रमण से प्रभावित नहीं होती हैं किन्तु ये वाहक का कार्य करती है। जीवाणु प्रतिरोधी प्रतिजैविक दवाओं से इस रोग में लाभ पहुँचता है।
2. आतशक या उपदेश अथवा सिफलिस – यह रोग ट्रेपोनेमा पैलिडम नामक जीवाणु द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में मैथुन के फलस्वरूप फैलता है। पुरुषों में इस रोग के संक्रमण के 9-10 दिन बाद शिश्न मुण्ड पर लाल रंग के दाने दिखाई देने लगते हैं। कुछ सप्ताह बाद ये दाने लुप्त हो जाते है। स्त्रियों में भी भगोष्ठ व योनि में इसी प्रकार के लाल रंग के दाने दिखाई देते हैं। संक्रमित स्त्री और पुरुष दोनों में से 6 सप्ताह बाद पूरे शरीर पर चकत्ते पड़ जाते हैं। इसके पश्चात् ये जीवाणु हृदय, यकृत, मस्तिष्क एवं अस्थियों को भी प्रभावित करते हैं। मस्तिष्क के संक्रमित हो जाने पर शरीर को लकवा भी मार सकता है। पेनिसिलीन के उपयोग से इस रोग में लाभ पहुँचता है।
प्रश्न 10. परखनाली शिशु पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
उत्तर: अनेक स्त्रियों में अण्डाशय तथा गर्भाशय तो सामान्य होते हैं, किन्तु उनकी अण्डवाहिनियाँ विकृत होती है। अतः ऐसी स्त्रियों के अण्डाणुओं को बाहर निकालकर प्रयोगशाला में पुरुष के शुओं द्वारा परखनली में गर्भाशयिक वातावरण में निषेचन करा दया जाता है। इसके फलस्वरूप बने युग्मनज या जाइगोट में भ्रूणीय विकास प्रारम्भ हो जाने पर उस प्रारम्भिक भ्रूण को लगभग 8-ब्लास्टोमीयर अवस्था तक माता की कैलोपी नलिका में स्थानान्तरित किया जाता है। इसे अन्तः डिम्ब वाहिनी स्थानान्तरण (ZIFT Zygote Intrafallopian Transfer) कहते हैं।
जो भ्रूण 8 ब्लास्टोमीयर से अधिक का होता है उसे सीधे गर्भाशय स्थानान्तरित किया जाता है। इसे आई०यू०टी० (IUT = intrauterine transfer) कहा जाता है। कुछ स्त्रियों में केवल गर्भधारण की समस्या होती है; ऐसे में जीव निषेचन (in vivo fertilization) अर्थात् स्त्री के भीतर ही युग्मकों का संलयन होने पर तथा उससे बनने वाले भ्रूण को फैलोपी नलिका अथवा गर्भाशय में स्थापित किया जाता है ।
कुछ स्त्रियों में अण्डाणु उत्पन्न नहीं होते अथवा ठीक से उत्पन्न नहीं होते। ऐसी स्त्रियों के लिए जी० आई०एफ०टी० (GIFT = gamete intrafallopian transfer) विधि अपनायी जाती है अर्थात् दाता स्त्री से अण्डाणु प्राप्त करके फैलोपी नलिका में स्थानान्तरित किया जाता है। प्रयोगशाला में भ्रूण बनाने की प्रक्रियाः यह प्रक्रिया अन्तःकोशिकीय शुक्राणु निक्षेपण intracytoplasmic sperm injection) अर्थात् सीधे ही अण्डाणु में शुक्राणु को निक्षेपित करना कहलाती है।
पुरुष बन्ध्यता सम्बन्धी मामलों में उसका वीर्य स्त्री को वीर्यसेचित करने में समर्थ नहीं होता, कारण शुक्राणुओं की कम संख्या अथवा अनुपस्थिति अथवा शुक्राणुओं की विकृति हो सकती है। ऐसे में पति या स्वस्थ दाता से शुक्र प्राप्त करके स्त्री की योनि अथवा गर्भाशय में प्रविष्ट करा दिया जाता है। इस तकनीक को अन्तः गर्भाशय वीर्य सेचन ([UT = intrauterine insemination) कहा जाता है। उपर्युक्त किसी भी प्रक्रिया द्वारा स्थानान्तरित प्राक् भ्रूण शीघ्र ही माता के गर्भाशय की भित्ति में आरोपित होकर विकसित होने लगता है। इस प्रकार, निर्मित शिशु को परखनली शिशु कहते है।