बिहार बोर्ड कक्षा 12 रसायन विज्ञान अध्याय 1 ठोस अवस्था दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
अध्याय 1 ठोस अवस्था दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. अक्रिस्टलीय ठोसों तथा क्रिस्टलीय ठोसों में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर: अक्रिस्टलीय ठोस तथा क्रिस्टलीय ठोस में निम्न अंतर है-
अक्रिस्टलीय ठोस | क्रिस्टलीय ठोस |
1. इनकी आकृति निश्चित नहीं होती है क्योंकि इनके घटक कण नियमित क्रम में व्यवस्थित नहीं रहते हैं। | 1. इनकी आकृति निश्चित होती है, क्योंकि इनके घटक कण नियमित क्रम में व्यवस्थित रहते हैं। |
2. इनकी आकृति अनियमित होती है। | 2. इनकी निश्चित ज्यामितीय आकृति होती है। |
3. इनके गलनांक निश्चित नहीं होते हैं। | 3. इनके गलनांक निश्चित होते हैं। |
4. ये समदैक्षिक होते हैं। | 4. ये विषमदैक्षिक होते हैं। |
5. इनकी संलयन ऊष्मा निश्चित नहीं होती है। | 5. इनकी संलयन ऊष्मा निश्चित होती है। |
6. ये छदम ठोस या अतिशितित द्रव होते हैं। | 6. ये वास्तविक ठोस होते हैं। |
प्रश्न 2. जिस आयनिक ठोसों में धातु आधिक्य दोष के कारण ऋणायनिक रिक्तिका होती हैं, वे रंगीन होते हैं। इसे उपयुक्त उदाहरण की सहायता से समझाइए।
उत्तर :क्षारकीय हैलाइड जैसे NaCl और KCl इस प्रकार के दोष अर्थात ऋणायनिक रिक्तिका के कारण धातु आधिक्य दोष दर्शाते हैं।
जब NaCl के क्रिस्टल को वाष्प के वातावरण में गर्म किया जाता है, तो सोडियम परमाणु क्रिस्टल की सतह पर जम जाते हैं।
इस स्थिति में Na+ बनाने के लिये Na परमाणु एक इलेक्ट्रॉन निकल जाता है। इस तरह निर्मुक्त इलेक्ट्रॉन विसरित होकर क्रिस्टल के ऋणायनिक स्थान को अध्यासित कर लेते हैं। इससे Cl- आयन क्रिस्टल की सतह पर विसरित हो जाते हैं और Na परमाणुओं के साथ जुड़कर NaCl बना देते हैं।
परिमाणस्वरूप क्रिस्टल में सोडियम का आधिक्य हो जाता है, अर्थात धातु का आधिक्य हो जाता है, जिसे धातु आधिक्य दोष कहा जाता है। इस दोष के कारण उत्पन्न अयुग्मित इलेक्ट्रॉन द्वारा भरी ऋणायनिक रिक्तिकाओं को F–केन्द्र कहा जाता है। यहाँ अक्षर "F" जर्मन शब्द फारबेनजेनटर से आया है, जिसका अर्थ रंग केन्द्र होता है।
ये अयुग्मित इलेक्ट्रॉन के NaCl के केन्द्र में होने के कारण क्रिस्टल को पीला रंग प्रदान करता है। यह रंग इलेक्ट्रॉन द्वारा क्रिस्टल पर पड़ने वाले प्रकाश से उर्जा अवशोषित करके उत्तेजित होने के कारण दिखता है।
इसी प्रकार का ऋणायनिक रिक्तिका के कारण धातु आधिक्य दोष होने के कारण लीथियम का आधिक्य LiCl क्रिस्टल को गुलाबी बनाता है। और पोटैशियम का आधिक्य KCl क्रिस्टल को बैंगनी बनाता है।
प्रश्न 3. एक यौगिक षटकोणीय निविड संकुलित संरचना बनाता है। इसके 0.5 मोल में कुल रिक्तियों की संख्या कितनी है? उनमें से कितनी रिक्तियाँ चतुष्फलकीय हैं?
उत्तर :एक मोल यौगिक में उपस्थित अवयवों (कणों) की संख्यां=6.0221023
अत: 0.5 मोल यौगिक में उपस्थित कणों की संख्या =0.56.0221023
=3.0111023
चूँकि जनित अष्टफलकीय रिक्तियों की संख्यां = निविड संकुलित गोलों की संख्यां अर्थात यौगिक में कणों की संख्यां
तथा जनित चतुष्फलकीय रिक्तियों की संख्यां = 2 – निविड संकुलित गोलों की संख्यां अर्थात यौगिक में कणों की संख्यां
अत: दिये गये यौगिक में अष्टफलकीय रिक्तियों की संख्यां =3.0111023
तथा, जनित चतुष्फलकीय रिक्तियों की संख्यां =2(3.0111023)
=6.0221023
अत: कुल रिक्तियों की संख्यां =3.0111023+ 6.0221023
=9.0331023
अत: दिये गये यौगिक के 0.5 मोल में कुल रिक्तियों की संख्यां =9.0331023 तथा, उनमें से चतुष्फलकीय रिक्तियों की संख्यां= 6.0221023 उत्तर
प्रश्न 4. 'किसी क्रिस्टल को स्थिरता उसके गलनांक के परिमाण द्वारा प्रकट होती है'. टिप्पणी कीजिए। किसी आँकड़ा पुस्तक से जल, एथिल अल्कोहल, डाइएथिल ईथर तथा मीथेन के गलनांक एकत्र करें। इन अणुओं के मध्य अंतराआण्विक बला के बारे में आप क्या कह सकते है?
उत्तर:उच्चतर गलनांक, अधिक से अधिक आकर्षण का अंतरआणविक बल है और अधिक से अधिक स्थिरता है। कम गलनांक वाले पदार्थ की तुलना में उच्च गलनांक वाला पदार्थ अधिक स्थिर होता है।
दिए गए पदार्थों के गलनांक निम्न हैं :
जल→273 K
एथिल अल्कोहल→158.8K
दिएथील ईथर→156.85K
मीथेन→89.34K
अब, पिघलने बिंदुओं के मूल्यों का अवलोकन करने पर, यह कहा जा सकता है कि दिए गए पदार्थों में, ठोस पानी में अंतः-आणविक बल सबसे मजबूत है और मीथेन में सबसे कमजोर है।
प्रश्न 5. निम्नलिखित युग्मों के पदों में कैसे विभेद करोगे?
(i) पट्कोणीय निविड संकुलन एवं घनीय निविड संकुलन
उत्तर: षष्ट्कोणीय निविद संकुलन एवं घनीय निविद संकुलन :
षष्ट्कोणीय निविद संकुलन - पहली परत का गठन अधिकतम स्थान का उपयोग करके किया जाता है, इस प्रकार न्यूनतम स्थान बर्बाद होता है। प्रत्येक दूसरी पंक्ति में, कण पंक्ति के कणों के बीच अवसादों पर कब्जा कर लेते हैं। तीसरी पंक्ति में, कण पहली पंक्ति में ABAB... व्यवस्था देने वालों के साथ लंबवत रूप से संरेखित होते हैं। उनकी संरचना में हेक्सागोनल समरूपता है और इसे षष्ट्टकोणीय निविदसंकुलन (hcp) संरचना के रूप में जाना जाता है। यह पैकिंग अधिक कुशल है और छोटी जगह छोड़ती है जो कि गोले से रहित है। दो आयामों में केंद्रीय क्षेत्र छह अन्य क्षेत्रों के संपर्क में है। केवल 26% स्थान खाली है। तीन आयामों में, समन्वय संख्या 12. एक एकल इकाई कोशिका में 4 परमाणु होते हैं।
घनीय निविद संकुलन - अगर हम गोले की हेक्सागोनल परत से शुरू करें और गोले की दूसरी परत को पहली परत के वॉइडस पर गोले को रखकर व्यवस्थित किया जाए, तो इनमें से आधे छेद को इन क्षेत्र द्वारा भरा जा सकता है। मान लें कि तीसरी परत में ऑक्टाहेड्रल छेद के ऊपर क्षेत्र व्यवस्थित हैं। यह व्यवस्था तीसरी परत को पहली या दूसरी परत के समान नहीं छोड़ती है, लेकिन चौथी परत पहली, पाँचवीं परत दूसरी से, छठी से तीसरी के समान है। और इसलिए
ABCABC… पैटर्न देने पर इस व्यवस्था में क्यूबिक समरूपता है और इसे घन क्लोज-पैक (ccp) व्यवस्था के रूप में जाना जाता है। इसे फेस सेंटेड क्यूबिक भी कहा जाता है।
(ii) क्रिस्टल जालक एवं एकक कोष्ठिका
उत्तर: क्रिस्टल जालक - तीन आयामी जगह में एक क्रिस्टल के घटक कणों (यानी, परमाणुओं, आयनों या अणुओं) की एक नियमित व्यवस्था को क्रिस्टल जाली कहा जाता है।
एकक कोष्टिका - एक पूर्ण स्थान की जाली का सबसे छोटा तीन आयामी भाग जिसे अलग-अलग दिशाओं में बार-बार दोहराया जाने पर पूर्ण स्थान जाली का निर्माण होता है जिसे एकक कोष्टिका कहा जाता है।
(iii) चतुष्फलकीय रिक्ति एवं अष्टफलकीय रिक्ति
उत्तर:चतुष्फलकीय रिक्त - ये वॉइडस चार गोले से घिरे होते हैं जो एक नियमित टेट्राहेड्रोन के कोने पर स्थित होते हैं। एक क्रिस्टल में दो चतुष्फलकीय प्रति परमाणु होते हैं और त्रिज्या का अनुपात 0.225 होता है।
अष्टफल्कीय रिक्ति- यह वॉइड छह क्षेत्रों से घिरा हुआ है और पहली और दूसरी परत के दो त्रिकोणीय वॉइडस के संयोजन से बनता है। एक क्रिस्टल में एक अष्टफल्कीय प्रति परमाणु होता है। त्रिज्या अनुपात 0.414है।
प्रश्न 6. समझाइए-
(i) धात्विक एवं आयनिक क्रिस्टलों में समानता एवं विभेद का आधार।
उत्तर: समानताएं: दोनों आयनिक और धातु क्रिस्टल आकर्षण के इलेक्ट्रोस्टैटिक बल हैं। आयनिक क्रिस्टल में, ये विपरीत रूप से आवेशित आयनों के बीच होते हैं। धातुओं में, ये वैलेंस इलेक्ट्रॉनों और गुठली में से हैं। इसीलिए दोनों में गैर-दिशात्मक बंधन रहता हैं।
अंतर:(1) आयनिक क्रिस्टल में, आयनों को स्थानांतरित करने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं। इसलिए, वे ठोस अवस्था में बिजली का संचालन नहीं कर सकते हैं। वे केवल पिघले हुए स्टेट या जलीय घोल में ऐसा कर सकते हैं। धातुओं में, वैलेंस इलेक्ट्रॉनों को स्थानांतरित करने के लिए स्वतंत्र हैं। इसलिए, वे ठोस अवस्था में बिजली का संचालन कर सकते हैं।
(2)आकर्षण के इलेक्ट्रोस्टैटिक बलों के कारण आयनिक बंधन मजबूत होता है। वैलेंस इलेक्ट्रॉनों की संख्या और गुठली के आकार के आधार पर धातु बंधन कमजोर या मजबूत हो सकते हैं।
(ii) आयनिक ठोस कठोर एवं भंगुर होते हैं।
उत्तर: आयनिक क्रिस्टल कठोर होते हैं क्योंकि उनके पास विपरीत चाज्ज किए गए आयनों के बीच आकर्षण के मजबूत इलेक्ट्रोस्टैटिक बल होते हैं। वे भंगुर हैं क्योंकि आयनिक बंधन गैर-दिशात्मक है।
प्रश्न 7. निम्नलिखित के लिए धातु के क्रिस्टल में संकुलन क्षमता की गणना कीजिए।
(i) सरल घनीय,
उत्तर: समानताएं: दोनों आयनिक और धातु क्रिस्टल आकर्षण के इलेक्ट्रोस्टेटिक बल हैं। आयनिक क्रिस्टल में, ये विपरीत रूप से आवेशित आयनों के बीच होते हैं। धातुओं में, ये वैलेंस इलेक्ट्रॉनों और गुठली में से हैं। इसीलिए दोनों में गैर-दिशात्मक बंधन हैं।
(1) आयनिक क्रिस्टल में, आयनों को स्थानांतरित करने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं। इसलिए, वे ठोस अवस्था में बिजली का संचालन नहीं कर सकते हैं। वे केवल पिघले हुए स्टेट या जलीय घोल में ऐसा कर सकते हैं। धातुओं में, वेलेंस इलेक्ट्रॉनों को स्थानांतरित करने के लिए स्वतंत्र हैं। इसलिए, वे ठोस अवस्था में बिजली का संचालन कर सकते हैं
(2) आकर्षण के इलेक्ट्रोस्टैटिक बलों के कारण आयनिक बंधन मजबूत होता है। वैलेंस इलेक्ट्रॉनों की संख्या और गुठली के आकार के आधार पर धातु बंधन कमजोर या मजबूत हो सकते हैं।
आयनिक क्रिस्टल कठोर होते हैं क्योंकि उनके पास विपरीत चार्ज किए गए आयनों के बीच आकर्षण के मजबूत इलेक्ट्रोस्टैटिक बल होते हैं। वे भंगुर हैं क्योंकि आयनिक बंधन गैर-दिशात्मक है।
(i) सरल घनीय - एक सरल घन जाली में, कण केवल घन के कोनों पर स्थित होते हैं और किनारे से एक दूसरे को स्पर्श करते हैं। इसलिए घन के कोर अथवा भुजा की लम्बाई ‘a’ और प्रत्येक कण का अर्द्धव्यास ′r′ निम्लिखित प्रकार से सम्बंधित होता
a=2r घनीय एकक कोष्ठिका का आयतन=a3=(2r)3=8r3
सरल घनिया एकक कोष्ठिका मे केवल 1 परमाणु होता है
अतः आद्यासित दिक्थान का आयतन=4πr33
संकुलन क्षमता= एक परमाणु का आयतन100
घनीय एकक कोष्ठिका का आयतन=4πr33100=π6100=52.38%
प्रकार की संरचना मे परमाणुओं की कुल संख्या 4 होती है तथा उनका आयतन 4 4πr33 है
संकुलन क्षमता = एकक कोष्ठिका मे चारो गोलों द्वारा अध्यासित
आयतन100
एकक कोष्ठिका का कुल आयतन
=4×4πr33 (2√2r)3 =74%
(ii) अंतःकेंद्रित घनीय
उत्तर: अन्तः केंद्रित घनीय - संलग्न चित्र से यह स्पष्ट है की केंद्र पर स्तिथ परमाणु विकर्ण पर व्यवस्तिथ अन्य दो परमाणुओं के संपर्क मे है।
△EFD मे,
b2 =a2+a2=2a2
b=√2a
अब △AFD मे,
c2 =b2+a2= a2+ 2a2= 3a3
c=√3a काय विकर्ण c की लम्बाई 4 r
के बराबर है, जहा r गोले का अर्द्धव्यास है क्योंकि विकर्ण पर उपस्तिथ तीनोँ गोले एक दूसरे के संपर्क मे है
√3a=4r
a=4r√3
a=4r3
अतः यह भी लिख सकते है की, r=√3a4
इस प्रकार की संरचना मे परमाणुओं की कुल संखया 2 है तथा उनका आयतन 2×4πr33 है
घन का आयतन a3, 4πr√33
के बराबर होंगे अथवा a3=4πr√33
संकुलन क्षमता= एकक कोष्ठिका मे दो गोले द्वारा अध्यासित आयतन× 100
एकक कोष्ठिका का कुल आयतन
=2×4πr33[(4f√3)r]3100
=68%
(iii) फलक केंद्रित घनीय।(यह मानते हुए कि परमाणु एक-दूसरे के संपर्क में हैं।)
उत्तर: फलक केंद्रित घनीय - संलग्न चित्र से,
△ABC, मे
b=√2a4
यदि गोले का अर्द्धव्यास r हो तो
b=4r=√2a
a=2√2r
r=a2√2
प्रकार की संरचना मे परमाणुओं की कुल संख्या4 होती है तथा उनका आयतन 4×4πr33 है
संकुलन क्षमता = एकक कोष्ठिका मे चारो गोलों द्वारा अध्यासित आयतन ×100
एकक कोष्ठिका का कुल आयतन
=4×4πr33[(2√2r]3 =74%
प्रश्न 8. चांदी का क्रिस्टिलीकरण fcc जलक में होता है। यदि इसकी कोष्ठिका के कोरों की लम्बाई4.0710-8 cm तथा घनत्व 10.5g/cm3 हो तो चांदी का परमाणविक द्रव्यमान ज्ञात कीजिये।
उत्तर: fcc जलक के लिए Z=4
कोर की लम्बाई;a=4.077×10-8 cm
घनतत्व; ρ=10.5gcm-3
ρ=Z M a3NA
अतः चाँदी का प्रमाणिक द्रव्यमान होगा 107.14gmol-1 ।
प्रश्न 9. एक घनीय ठोस दो तत्वों P एवं Q से बना है। घन के कोनो पर Q परमाणु एवं अंत केंद्र पर P परमाणु स्थित है। इस यौगिक का सूत्र क्या है?
P एवं Q को उपसहसंयोजन संख्या क्या है?
उत्तर: घन मे परमाण Q,8 कोणो पर स्तिथ है।Q परमाणुओं की संख्या=1 8 ×8=1
परमाणु P अन्तः केंद्र पर स्तिथ है
अतः P परमाणुओं की संख्या =1
अतः योगिक का सूत्र =PQ
P तथा Q की उप संयोजन संख्या=8
प्रश्न 10. नायोबियम का क्रिस्टिलीकरण अंत ० केंद्रित घनीय संरचना में होता है। यदि इसका घनत्व 8.55g/cm3 हो तो इसके परमाण्विक द्रव्यमान 93u का प्रयोग करके परमाणु त्रिज्या की गणना कीजिये।
उत्तर: a3= M×ZdN×10-30
=93×28.55×6.02×10-30
=3.61107a
=(3.61107)1/3
=36.1106)1/3
=3.304102 pm
=3.304 pm
प्रश्न 11. यदि अष्टफलकीय रिक्ति की त्रिज्या r हो तथा निविड संकुलन में परमाणुओ की त्रिज्या R हो तो r एवं R में सम्बन्ध स्थापित कीजिये।
उत्तर:
BC2 =AB2+AC2
2R2 =R+r2+R =2Rr2
=2R+r22R22
=R+r2r
=R1.414−1r
=0.141R
प्रश्न 12. विश्लेषण द्वारा ज्ञात हुआ की निकेल ऑक्साइड का सूत्र Ni− 0.98, O - 1.00 है। निकेल आयनो का कितना अंश Ni+2 और Ni+3 के रूप में विद्यमान है?
उत्तर: Ni के 98 परमाणु, O के 100 परमाणु से संबद्ध है। माना Ni+2=x
Ni+3=98−x
Ni+3=98−x
Ni+2 तथा (98−x) Ni+3 का कुल आवेश =100 O2 - का आवेश इसलिए
X × 2 +(98−x) × 3=100×2 or 2 x+ 294−3 x=200 or x =94
Ni का Ni+2 के रूप में अंश = 9498×100=96%
Ni का Ni+3 के रूप में अंश = 498×100=4%
प्रश्न 13. अर्धचालक क्या होते है? दो मुख्य अर्धचालको का वर्णन कीजिये एवं उनकी चालकता क्रियाविधि में विभेद कीजिये।
उत्तर: इसे ठोस जिनकी चालकता 10-6 से 10-4 /ohm/m है, उन्हें अर्धचालक कहते है।
तापमान बढ़ने पर इनकी चालकता बढ़ती है।
(i)n type अर्धचालक : वर्ग के 14 तत्वों को वर्ग 15 के तत्वों के साथ मिलाया जाता है तो वर्ग 15 के परमाणु के 4 इलेक्ट्रान वर्ग 14 के तत्व के साथ बंध बना लेते है, परन्तु 5 वा इलेक्ट्रान बंध नहीं बनाता तथा चालकता प्रदान करता है ।
(ii) p type अर्धचालक : वर्ग 14 के तत्वों का वर्ग 13 के तत्वों से संयोजन करवाने पर वर्ग 13
के 3 इलेक्ट्रान वर्ग 14 के 3 इलेक्ट्रान के साथ बंध बना लेते है, परन्तु वर्ग 14 के चौथे इलेक्ट्रान के साथ बंध बनाने वाले इलेक्ट्रान की जगह रिक्त होती है, जिसे इलेक्ट्रान रिक्ति या इलेक्ट्रान छिद्र कहलाता है। यह छिद्र निकटवर्ती परमाणु के इलेक्ट्रान से भर दिया जाता है, परन्तु अपने मूल स्थान को छोड़ने के कारण वहाँ छिद्र बन जाता है। यह छिद्र सकारात्मक आवेश की दिशा में चलता है तथा क्रिस्टल को विद्युतीय चालकता प्रदान करता है।
प्रश्न 14. बैंड सिद्धांत के आधार पर
(i) चालक एवं रोधी
उत्तर: (i) धातुओं की चालकता उनमे उपस्थित संयोजक एलेक्ट्रॉनों की संख्या और निर्भर करती है। धातु के परमाण्वीय कक्षक आणविक कक्षक बनाते है जिनकी ऊर्जा लगभग समान होती है जिससे वे बैंड बन लेते है। यदि यह बैंड आंशिक रूप से भरा होता है या यह एक उच्च ऊर्जा वाले रिक्त चालकता बैंड के साथ अतिव्यापन करता हो तो विद्युत क्षेत्र में इलेक्ट्रान आसानी से प्रवहित हो सकते हैं जिससे धातु चालकता दर्शाती हैं।
(ii) चालक एवं अर्धचालक में क्या अंतर होता है?
उत्तर: (ii) यदि पूरित संयोजक बैंड तथा आगामी उच्च रिक्त बैंड के मध्य अंतराल कम होता हैं तो इलेक्ट्रान उनमे से लाँघ सकते हैं और यह अर्धचालक कि तरह व्यवहार करते हैं। अर्धचालको कि वाहकता तापमान के साथ बढ़ती हैं।
प्रश्न 15. शॉटकी तथा फ्रेंकेल त्रुटियों में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर: शॉटकी तथा फ्रेंकेल त्रुटियों में निम्नलिखित अंतर है-
शॉटकी त्रुटि | फ्रेंकेल त्रुटि |
1. इस दोष में धनायन तथा ऋणायन संख्या में बराबर होते हैं। | 1. संख्या में बराबर नहीं होते हैं। |
2. इस दोष में धनायन तथा ऋणायन अपने जालक स्थलों से पूर्णतः विस्थापित हो जाते हैं। | 2. इस दोष में कोई भी आयन धनायन या ऋणायन अपने जालक बिन्दु को छोड़कर अन्तराकाशी स्थल में आ जाते हैं। |
3. इस दोष में क्रिस्टल का घनत्व घट जाता हैं। | 3. इस दोष में घनत्व में परिवर्तन नहीं होता हैं। |
4. यह दोष अधिक उप सह-संयोजन संख्या वाले आयनों (ठोसों) में पाया जाता है। | 4. संख्या वाले आयनिक ठोसों में पाया जाता है। |
5. इस दोष में क्रिस्टल में धनायन एवं ऋणायन लगभग समान आकार के | 5. ऋणायन से कम होता है। |
प्रश्न 16. निम्नलिखित को उचित उदाहरणों से समझाइए-
(i) लौह चुंबकत्व
(ii) अनुचुंबकत्व
(iii) फेरीचुंबकत्व
(iv) प्रतिलौह चुंबकत्व
(v) 12-16 और 13-15 वर्गों के यौगिक।
उत्तर: (i) लौहचुम्बकत्व – कुछ पदार्थ; जैसे-लोहा, कोबाल्ट, निकिल, गैडोलिनियम और CrO2 बहुत प्रबलता से चुम्बकीय क्षेत्र की ओर आकर्षित होते हैं। ऐसे पदार्थों को लौहचुम्बकीय पदार्थ कहा जाता है। प्रबल आकर्षणों के अतिरिक्त ये स्थायी रूप से चुम्बकित किए जा सकते हैं। ठोस अवस्था में लौहचुम्बकीय पदार्थों के धातु आयन छोटे खण्डों में एकसाथ समूहित हो जाते हैं, इन्हें डोमेन कहा जाता है। इस प्रकार प्रत्येक डोमेन एक छोटे चुम्बक की भाँति व्यवहार करता है। लौहचुम्बकीय पदार्थ के अचुम्बकीय टुकड़े में डोमेन अनियमित रूप से अभिविन्यसित होते हैं और उनकी चुम्बकीय आघूर्ण निरस्त हो जाता है। पदार्थ को चुम्बकीय क्षेत्र में रखने पर सभी डोमेन चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में अभिविन्यसित हो जाते हैं |और प्रबल चुम्बकीय प्रभाव उत्पन्न होती है। चुम्बकीय क्षेत्र को हटा लेने पर भी डोमेनों का क्रम बना रहता है और लौहचुम्बकीय पदार्थ स्थायी चुम्बक बन जाते हैं। चुम्बकीय पदार्थों की यह प्रवृत्ति लौहचुम्बकत्व कहलाती है।
↑↑↑↑↑↑↑↑ लौह चुंबकीय पदार्थ
(ii) अनुचुम्बकत्व – वे पदार्थ जो चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा आकर्षित होते हैं, अनुचुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं। इन पदार्थों की यह प्रवृत्ति अनुचुम्बकत्व कहलाती है। अनुचुम्बकीय पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र की ओर दुर्बल रूप से आकर्षित होते हैं। ये चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में ही चुम्बकित हो जाते हैं तथा चुम्बकीय क्षेत्र की अनुपस्थिति में अपना चुम्बकत्व खो देते हैं। अनुचुम्बकत्व का कारण एक अथवा अधिक अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति है, जो कि चुम्बकीय क्षेत्र की ओर आकर्षित होते हैं। O2 , Cu2+ , Fe3+, Cr3+ ऐसे पदार्थों के कुछ उदाहरण हैं।
(iii) फेरीचुम्बकत्व – जब पदार्थ में डोमेनों के चुम्बकीय आघूर्णो का संरेखण समान्तर एवं प्रतिसमान्तर दिशाओं में असमान होता है, तब पदार्थ में फेरीचुम्बकत्व देखा जाता है। ये लोहचुम्बकत्व की तुलना में चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा दुर्बल रूप से आकर्षित होते हैं। Fe3O4 (मैग्नेटाइट) और फेराइट जैसे MgFe2O4, ZnFe2O4 ऐसे पदार्थों के उदाहरण हैं। ये पदार्थ गर्म करने पर फेरीचुम्बकत्व खो देते हैं और अनुचुम्बकीय बन जाते हैं।
↑↑↓↑↑↓
(iv) प्रतिलौह चुबकत्व-प्रतिलौहचुंबकत्व प्रदर्शित करनेवाले पदार्थ जैसे MnO में डोमेन संरचना लौहचुंबकीय पदार्थ के सदृश होती है, परंतु उनके डोमेन एक-दूसरे के विपरीत अभिविन्यासित होते हैं तथा एक-दूसरे के चुंबकीय आघूर्ण को निरस्त कर देते हैं।
↑↓↑↓↑↓
(v) 12 – 16 और 13 – 15 वर्गों के यौगिक- दो अवयव रखनेवाले ठोस यौगिक बनाते हैं। वर्ग 13 और 15 तथा 12 और 16 वर्गों से बने यौगिकों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है-
(a) 12 – 16 यौगिक- ZnS, CdS, CdSe, HgTe आयन प्रकृति के होते हैं।
(b) 13 – 15 यौगिक- A/P, AgAs, InSn आदि यौगिक सहसंयोजक यौगिक बनते हैं। ये यौगिक विद्युत और प्रकाशित गुणों को दर्शाते हैं। वे अर्धचालक होते हैं।
प्रश्न 17. (i) उपसहसंयोजन संख्या का क्या अर्थ है ?
(ii) निम्नलिखित परमाणुओं की उपसहसंयोजन संख्या क्या होती है ?
(क) एक घनीय निविड संकुलित संरचना
(ख) एक अंत: केंद्रित घनीय संरचना।
उत्तर: (i) उपसहसंयोजक संख्या किसी क्रिस्टल में उपस्थित परमाणु के चारों ओर उन परमाणुओं की संख्या जो केंद्रित परमाणु को छूते हों। यह संख्या उस परमाणु की उपसहसंयोजक संख्या कहलाती है। आयनिक क्रिस्टल के केंद्रीय आयन के चारों ओर विपरीत आवेश के आयनों की संख्या केंद्रीय आयन की उपसहसंयोजन संख्या कहलाती है।
(ii) (क) ccp में उपस्थित परमाणु के चारों ओर 12 परमाणु उपस्थित होते हैं जो उनकी उपसहसंयोजन संख्या कहलाती है।
(ख) bcc में केंद्रीय परमाणु के चारों ओर उपस्थित परमाणुओं की संख्या आठ होती है जो इस संरचना में परमाणु की उपसहसंयोजन संख्या कहलाती है।
प्रश्न 18.(1) एकक कोष्ठिका और क्रिस्टल जालक को परिभाषित करें। इनके गुणों का वर्णन करें।
(2) ठोस के गुणधर्मों का वर्णन करें। क्रिस्टलीय और अक्रिस्टलीय ठोस क्या है ?
उत्तर:(1) क्रिस्टल जालक-क्रिस्टल में अवयवी कणों की त्रिविमीय व्यवस्था को आरेख के रूप में निरूपित करके जिसमें प्रत्येक कण को बिंदु द्वारा चित्रित किया जाता है तो यह व्यवस्था क्रिस्टल जालक कहलाती है। यह दिक्स्थान जिसमें बिन्दुओं की नियमित त्रिविमीय व्यवस्था हो क्रिस्टल जालक कहलाती है।
क्रिस्टल जालक के अभिलक्षण
(i) जालक में प्रत्येक बिन्दु जालक बिंदु अथवा जालक स्थान कहलाता है।
(ii) क्रिस्टल जालक का प्रत्येक बिंदु एक अवयवी कण को निरूपित करता है जो एक परमाणु, एक अणु अथवा एक आयन हो सकता है।
(iii) जालक बिंदुओं को सीधी रेखाओं से जोड़ा जाता है जिससे जालक की ज्यामिति व्यक्त की जा सके ।
एकक कोष्ठिता- एकक कोष्ठिता क्रिस्टल जालक का लघुतम भाग है, इसे जब विभिन्न दिशाओं में पुनरावृत्त किया जाता है तो पूर्ण जालक की उत्पत्ति होती है।
एकक कोष्ठिका की अभिलाक्षणिक गुण- (i) उसके तीनों किनारों की विमाओं a, b और c के द्वारा जो कि परस्पर लंबवत् हो भी सकते हैं अथवा नहीं भी।
(ii) किनारों के मध्य कोण α, β और γ के द्वारा इस प्रकार एकक कोष्ठिका छ: पैरामीटरों a, b, c, α, β, γ द्वारा अभिलक्षणित होती है।
(ख) ठोस अवस्था के निम्न गुण-धर्म हैं
(i) ठोस पदार्थों का आयन, द्रव्यमान और आकृति निश्चित होती है।
(ii) अन्तर अणु (अवयव) दूरी कम होती है।
(iii) अन्तर अणु (अवयव) बल प्रबल होता है।
(iv) ठोस के अवयव (परमाणु अणु या आयन) निश्चित स्थान पर होते हैं।
(v) ठोस कठोर होते हैं।
क्रिस्टलीय और अक्रिस्टलीय ठोस- सभी ठोस पदार्थ दो वर्गों में विभक्त किए जा सकते हैं-
(i) क्रिस्टलीय ठोस- इस प्रकार के ठोस के अवयव छोटे होते हैं और ये निश्चित अभिलाक्षणिक ज्यामितीय आकार के होते हैं। इनकी प्रकृति वास्तविक ठोस दीर्घ परासी व्यवस्था होती है। जैसे NaCl और क्वार्ट्स।
(ii) अक्रिस्टलीय ठोस-अक्रिस्टलीय ठोस असमाकृति आकार की आकृति होती है। इनका गलनांक ताप के एक परास में धीरे-धीरे नरम पड़ते हैं। इनकी गलन ऊष्मा निश्चित नहीं होती है। इनका गलनांक ताप के एक परास में धीरे-धीरे नरम पड़ते हैं। इनकी गलन ऊष्मा निश्चित नहीं होती। समदैशिक प्रकृति के होते हैं। इस प्रकार के ठोस आभासी ठोस अथवा अतिशीतित द्रव गुण दर्शाते ही अवयव केवल लघु परासी व्यवस्था में होते हैं। उदाहरण क्वार्ट्स काँच।
प्रश्न 19.‘किसी क्रिस्टल की स्थिरता उसके गलनांक के परिमाण द्वारा प्रकट होती है।’ टिप्पणी कीजिए। किसी आँकड़ा पुस्तक से जल, एथिल ऐल्कोहॉल, डाइएथिल ईथर तथा मेथेन के गलनांक एकत्र करें। इन अणुओं के मध्य अन्तराआण्विक बलों के बारे में आप क्या कह सकते हैं?
उत्तर:किसी पदार्थ का गलनांक जितना उच्च होता है उसके अवयवी कणों के मध्य आकर्षण बल उतना ही अधिक होता है और पदार्थ भी उतना ही अधिक स्थायी होता है। जल, एथिल ऐल्कोहॉल, डाइएथिल ईथर और मेथेन के गलनांक क्रमशः 273 K, 155.7 K, 156.8 K और 90.5 K हैं।
जल और एथिल ऐल्कोहॉल में अंतराआण्विक बल हाइड्रोजन आबंधन होते हैं। जल के अणुओं के मध्य हाइड्रोजन आबंधन एथिल ऐल्कोहॉल के अणुओं की तुलना में प्रबल होता है जोकि उनके गलनांकों से भी स्पष्ट होता है। डाइएथिल ईथर के अणुओं के बीच द्विध्रुव-द्विध्रुव आकर्षण होता है तथा मेथेन अणुओं के मध्य यह दुर्बल वाण्डरवाल्स बल होता है जो कि इनके गलनांकों से स्पष्ट है।
प्रश्न 20.उचित उदाहरणों द्वारा निम्नलिखित पदों को परिभाषित कीजिए
शॉट्की दोष
फ्रेंकेल दोष
अन्तराकाशी
F-केन्द्र।
उत्तर:
1. शॉट्की दोष – यह आधारभूत रूप से आयनिक ठोसों का रिक्तिका दोष है। जब एक परमाणु अथवा आयन अपनी सामान्य स्थिति से लुप्त हो जाता है तो एक जालक रिक्तता निर्मित हो जाती है; इसे शॉकी दोष कहते हैं। विद्युत उदासीनता को बनाए रखने के लिए लुप्त होने वाले धनायनों और ऋणायनों की संख्या बराबर होती है। शॉट्की दोष उन आयनिक पदार्थों द्वारा दिखाया जाता है जिनमें धनायन और ऋणायन लगभग समान आकार के होते हैं। उदाहरण के लिए– NaCl, KCl, CsClऔर AgBr शॉट्की दोष दिखाते हैं।
2. फ्रेंकेल दोष – यह दोष आयनिक ठोसों द्वारा दिखाया जाता है। साधारणतया धनायन अपने वास्तविक स्थान से विस्थापित होकर अन्तराकाश में चला जाता है। यह वास्तविक स्थान पर रिक्तिका दोष और नए स्थान पर अन्तराकाशी दोष उत्पन्न करता है। फ्रेंकेल दोष को विस्थापन दोष भी कहते हैं। यह ठोस के घनत्व को परिवर्तित नहीं करता। फ्रेंकेल दोष उन आयनिक पदार्थ द्वारा दिखाया जाता है जिनमें आयनों के आकार में अधिक अन्तर होता है। उदाहरण के लिए– ZnS, AgCl, AgBr और AgL में यह दोष Zn2+और Ag+ आयन के लघु आकार के कारण होता है।
3. अन्तराकाशी दोष – जब कुछ अवयवी कण (परमाणु अथवा अणु) अन्तराकोशी स्थल पर पाए जाते हैं तब उत्पन्न दोष अन्तराकाशी दोष कहलाता है। यह दोष पदार्थ के घनत्व को बढ़ाता है। अन्तराकाशी दोष अनआयनिक ठोसों में पाया जाता है। आयनिक ठोसों में सदैव विद्युत उदासीनता बनी रहनी चाहिए। इससे इनमें यह दोष दिखाई नहीं देता है।
4. F-केन्द्र – जब क्षारकीय हैलाइड; जैसे- NaCl को क्षार धातु (जैसे- सोडियम) की वाष्प के वातावरण में गर्म किया जाता है तो सोडियम परमाणु क्रिस्टल की सतह पर जम जाते हैं। Cl-आयन क्रिस्टल की सतह में विसरित हो जाते हैं और Na+ आयनों के साथ जुड़कर NaCl देते हैं। Na+ आयन बनाने के लिए Na परमाणु से एक इलेक्ट्रॉन निकल जाता है। निर्मुक्त इलेक्ट्रॉन विसरित होकर क्रिस्टल के ऋणायनिक स्थान को अध्यासित करते हैं, परिणामस्वरूप अब क्रिस्टल में सोडियम का आधिक्य होता है। अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों द्वारा भरी जाने वाली इन ऋणायनिक रिक्तिकाओं को F-केन्द्र कहते हैं। ये NaCl क्रिस्टलों को पीला रंग प्रदान करते हैं। यह रंग इन इलेक्ट्रॉनों द्वारा क्रिस्टल पर पड़ने वाले प्रकाश से ऊर्जा अवशोषित करके उत्तेजित होने के परिणामस्वरूप दिखता है।
प्रश्न 21.(1) सिलिकॉन को बोरॉन के साथ मिलाने पर किस प्रकार का अर्धचालक प्राप्त होता है?
(2) चुंबकीय क्षणों के निम्नलिखित संरेखण में किस प्रकार का चुंबकत्व दिखाया गया है?
(3) AgCl को CdCl2से
डोप करने पर किस प्रकार का बिंदु दोष उत्पन्न होता है? (सीबीएसई दिल्ली 2013)उत्तर:(1) जब सिलिकॉन को तीन संयोजी इलेक्ट्रॉनों वाले बोरॉन से अपमिश्रित किया जाता है, तो बनने वाले बंधन इलेक्ट्रॉन की कमी वाले स्थान बनाते हैं जिन्हें छिद्र कहा जाता है। लागू विद्युत क्षेत्र के प्रभाव में, पड़ोसी परमाणु से एक इलेक्ट्रॉन छेद को भरने के लिए चलता है लेकिन अपने स्थान पर एक और छेद बनाता है। इसलिए, विद्युत चालन धनात्मक छिद्रों की गति के कारण होता है। इसलिए इस प्रकार के अर्द्धचालक को p-प्रकार का अर्धचालक कहते हैं|
(2)फेरोमैग्नेटिक।
(3)AgCl में CdCl2 मिलाने पर अशुद्धि दोष उत्पन्न होता है। विद्युत तटस्थता बनाए रखने के लिए एक Cd2+ आयन दो Ag+ आयनों को प्रतिस्थापित करेगा। Ag+ की एक स्थिति पर Cd2+आयन आ जाएगा और दूसरी एक छिद्र के रूप में रह जाएगी। इस प्रकार, Schottky दोष के समान एक छेद बनाया जाता है।
प्रश्न 22. फेरिक ऑक्साइड, ऑक्साइड आयन के षट्कोणीय निविड संकुलन में क्रिस्टिलीकृत होता है जिसकी तीन अष्टफलकीय रिक्तियो में से दो पर फेरिक आयन होते है। फेरिक ऑक्साइड का सूत्र ज्ञात कीजिये।
उत्तर: माना क्रिस्टलीकृत ऑक्साइड आयनों की संख्या=90
अष्टफलकीय रिक्तियों की संख्या=90
अष्टफलकीय रिक्तियों के 2 3 पर Fe+3 आयन कब्जा करता है, इसलिए फेरिक आयन की
संख्या =2 3×90=60
Fe+3: O2- का अनुपात =60:90=2:3
इसलिए फेरिक ऑक्साइड का सूत्र =Fe2O3
प्रश्न 23. निम्नलिखित को p प्रकार या n प्रकार के अर्धचालको में वर्गीकृत कीजिये -
(i)In से डोपित Ge
उत्तर: वर्ग 14(Ge) तथा वर्ग 13 (In) में चालकता इलेक्ट्रान छिद्र द्वारा प्रदान की जाती है इसलिए यह p प्रकार का अर्धचालक है।
(ii) B से डोपित Si
उत्तर: वर्ग 14(Si) तथा वर्ग 13 (B) में चालकता इलेक्ट्रान छिद्र द्वारा प्रदान की जाती है इसलिए यह p प्रकार का अध्धचालक है।
प्रश्न 24. एलुमिनियम घनीय निविड संकुलित संरचना में क्रिस्टिलीकृत होता है। इसका धात्विक अर्धव्यास 125pm है।
(i) एकक कोष्ठिका के कोर की लम्बाई ज्ञात कीजिये।
(ii)1.0 cm3 एलुमिनियम में कितनी एकक कोष्ठिकाये होंगी?
उत्तर: दिया गया है,
r=125pm
(i)fcc(ccp) के लिए,
a = 2 × 1.414 × 125pm
=354pm
(ii) एक यूनिट सेल का आयतन = a3
=(354× 1010cm)3
=4.44× 10-23 cm3
1 cm3 में यूनिट सेल की संख्या =1 cm34.44× 10-23
=2.25× 1022
प्रश्न 25. यदि NaCl को Sr Cl3 के 10-3 मोल से डोपित किया जाये तो धनायनों की
रिक्तयों का सांद्रण क्या होगा?
उत्तर: माना NaCl के मोल की संख्या=100
SrCl3 के डोपित मोल की संख्या= 10-3
प्रत्येक Sr2+, 2Na+ आयनों को विस्थापित करता है। आवेश को संतुलित करने के लिए Sr2+ एक जगह पर कब्जा करता है तथा एक धनायन रिक्ति बनता है ।
NaCl के 100 मोल धनायन रिक्ति= 10-3
1 मोल NaCl में धनायन रिक्ति = 10-3× 10-2= 10-5
धनायन रिक्तियों की संख्या = 10-5 × 6.022 × 1023
=6.022× 1018 /mol