बिहार बोर्ड कक्षा 12 रसायन विज्ञान अध्याय 10 हैलोएल्केन्स तथा हैलोएरीन्स दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. आप निम्नलिखित को कैसे संश्लेषित करेंगे ? दर्शाए।
(i) एक उपयुक्त ऐल्कीन से 1-फेनिलएथेनॉल।
(i) SN2 अभिक्रिया द्वारा ऐल्किल हैलाइड के उपयोग से साइक्लो हेक्लिसमेथेनॉल।
(iii) एक उपयुक्त ऐल्किल हैलाइड के उपयोग से पेन्टेन-1-ऑल।
उत्तर⇒
(iii) CH3-(CH2)3-CH2Br + aq.KOH CH3-(CH2)3- पेन्टेन-1-ऑल CH2OH + KBr
प्रश्न 2. समझाइए क्यों-
(i) क्लोरोबेन्जीन का द्विध्रुव आघूर्ण साइक्लेहेक्सिन क्लोराइड की तुलना में कम होता है ?
(ii) ऐल्किल हैलाइड धुवीय होते हुए भी जल में अमिश्रणीय हैं ?
(iii) ग्रिगनार्ड अभिकर्मक का विरचन निर्जलीय अवस्थाओं में करना चाहिए ?
उत्तर⇒ (i) क्लोरोबेन्जीन का द्विध्रुव आघूर्ण मान साइक्लोहेक्सिल क्लोराइड की तुलना में कम है क्योंकि कार्बन, क्लोरीन से जुड़ा होता है। कार्बन क्लोरोबेन्जीन में sp2 संकरण दर्शाता है। अतः यह अधिक विद्युत ऋणात्मक है साइक्लोहेक्सिल क्लोराइड में कार्बन से तो sp3 संकरित है। इसलिए Cl - Cl आबंध से क्लोरीन आसानी से इलेक्ट्रॉन दान करता है।
(ii) ऐल्किल हैलाइड ध्रुवीय ( 2.05 - 2.15 D) है लेकिन जल से घुलनशील है क्योंकि ऐल्किल हैलाइड जल के साथ न तो हाइड्रोजन आबंध बनाते हैं और न ही हाइड्रोजन आबंध को तोड़ते हैं।
(ii) ग्रिगनार्ड अभिकर्मक अति अभिक्रियाशील होते हैं, ग्रिगनार्ड अभिकर्मक ऐसे हाइड्रोकार्बन के साथ क्रिया करते हैं जो प्रोटोन दान करते हैं। केवल जल से काफी होता जो ग्रिगनार्ड अभिकर्मक को हाइड्रोकार्बन में बदल देते हैं।
R - Mg - X + H2O R-H + Mg(OH)X
अतः यह आवश्यक ही ग्रिगनार्ड अभिकर्मक की शुष्क वातावरण में ही तैयार करें।
R - X + Mg R - Mg - X
प्रश्न 3. क्लोरोफॉर्म का संरचना सूत्र दें तथा इसके बनाने की विधि का उल्लेख करें।
उत्तर⇒ क्लोरोफॉर्म
इथाइल ऐल्कोहॉल का प्रयोग करने पर निम्नांकित प्रतिक्रिया होती है-
विरंजक चूर्ण पहले जल अपघटित होकर Ca(OH)2 एवं Cl2 में बदल जाता है। क्लोरीन इथाइल ऐल्कोहॉल को ऐसीटल्डिहाइड में ऑक्सीकृत कर देता है। ऐसीटल्डिहाइड क्लोरीन से प्रतिक्रिया कर (OH)2द्वारा क्लोरोफार्म एवं कैल्शियम फॉर्मेट में जल अपघटित हो जाता है।
Ca(OCl) + H2O Ca(OH)2+Cl2
ऐसीटोन का व्यवहार करने पर अग्रांकित प्रतिक्रिया होती है-
विरंजक चूर्ण के जल अपघटन से प्राप्त क्लोरीन ऐसीटोन को ट्राइक्लोरो ऐसीटोन को ट्राइक्लोरो ऐसीटोन में बदल देता है। ट्राइक्लोरो ऐसीटोन Ca(OH)2 द्वारा क्लोरोफॉर्म एवं कैल्शियम ऐसीटेट से जल अपघटित हो जाता है।
Ca(OCl)Cl + H2O Ca(OH)2+ Cl2
प्रश्न 4. आयोडोफार्म का संरचना सूत्र दें तथा इसके बनाने की विधि का उल्लेख करें।
उत्तर⇒ संरचना सूत्र-
आयोडोफॉर्म बनाने की विधि-
(i) प्रयोगशाला विधि :
सिद्धांत-ऐल्कोहॉल या ऐसीटोन, आयोडीन एवं कॉस्टिक क्षार या कार्बोनेट के मिश्रण को थोड़ा गर्म करने पर आयोडोफॉर्म प्राप्त होता है।
प्रतिक्रिया- (a) इथाइल ऐल्कोहॉल का प्रयोग करने पर प्रतिक्रिया निम्नलिखित रूप में होती है-
(b) ऐसीटोन का प्रयोग करने पर प्रतिक्रिया निम्नलिखित रूप में होती है-
प्रश्न 5. क्लोरीन यद्यपि इलेक्ट्रॉन अपनयक समूह है फिर भी यह एरोमैटिक इलेक्ट्रॉनरागी प्रतिस्थापन अभिक्रियाओं में ऑर्थो तथा पैरा-निर्देशक है, क्यों ?
उत्तर⇒ प्रेरण प्रभाव के कारण क्लोरीन इलेक्ट्रॉन आकर्षित करती है तथा अनुनाद के कारण इलेक्ट्रॉन निर्गमित करती है। प्रेरण प्रभाव के कारण क्लोरीन इलेक्ट्रॉनरागी प्रतिस्थापन अभिक्रियाओं में बने मध्यवर्ती कार्बोकैटायन को अस्थायित्व प्रदान करती है।
प्रेरण प्रभाव मध्यवर्ती कार्बोकैटायन के अस्थायित्व प्रदान करता है।
अनुनाद प्रभाव मध्यवर्ती कार्बोकैटायन को स्थायित्व प्रदान करता है।
अनुनाद के द्वारा हैलोजन कार्बोकैटायन का स्थायित्व प्रदान करने का प्रयास करती है तथा यह प्रभाव आर्थो एवं पैरा स्थितियों पर अधिक प्रबल होता है की तुलना में प्रेरण प्रभाव अधिक प्रबल होता है, अत: नेट प्रभाव इलेक्ट्रॉन अपनयन करने का होता है जिससे निष्क्रियण उत्पन्न होता है। आर्थो एवं पैरा स्थिति पर आक्रमण में अनुनाद प्रभाव, प्रेरण प्रभाव के विपरीत कार्य करता है, अतः ऑर्थो एवं पैरा स्थिति के निष्क्रियण को कम करता है। इस प्रकार अभिक्रियाशीलता, प्रबल प्रेरण प्रभाव के द्वारा तथा अभिविन्यास, अनुनाद प्रभाव के द्वारा नियंत्रित होता है।
प्रश्न 6. ट्राइआयोडोमेथेन (आयोडोफॉर्म) पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर⇒ यह मेथेन का ट्राइआयोडो व्युत्पन्न है तथा औषधियों एवं रासायनिक उद्योगों में कई प्रकार से उपयोग किया जाता है। सामान्यत: इसे आयोडोफॉर्म कहते हैं।
यह विशिष्ट गन्ध वाला पीला क्रिस्टलीय ठोस है। इसका उपयोग प्रारम्भ में पूतिरोधी (ऐंटिसेप्टिक) के रूप में किया जाता था। आयोडोफॉर्म का यह पूतिरोधी गुण स्वयं आयोडोफॉर्म के कारण नहीं बल्कि मुक्त हुई आयोडीन के कारण होता है। इसकी अरुचिकर गंध के कारण अब इसके स्थान पर आयोडीनयुक्त अन्य दवाओं का उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 7. फ्रेऑन क्या है? इसका पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है? या किसी फ्रेऑन का रासायनिक सूत्र लिखिए। याफ्रेऑन क्या है? इसका एक उपयोग लिखिए।
उत्तर⇒ ऐल्केनों के पॉलिक्लोरोफ्लुओरो व्युत्पन्नों को फ्रेऑन कहते हैं। पॉलिक्लोरोफ्लुओरोमेथेन तथा पॉलिक्लोरोफ्लुओरोएथेन महत्त्वपूर्ण फ्रेऑन हैं, जैसे –
CFCl3 ट्राइक्लोरोफ्लुओरोमेथेन (फ्रेऑन-11)
CF2Cl2 डाइक्लोरोडाइफ्लुओरोमेथेन (फ्रेऑन-12)
C2F2Cl4 ट्रेट्रीक्लोरोडाइफ्लुओरोएथेन (फ्रेऑन-112)
CFCl3 में कार्बन तथा फ्लुओरीन का अनुपात 1 : 1 है, अत: इस कारण इसका नाम फ्रेऑन-11 है। CF2Cl2 में कार्बन तथा फ्लुओरीन का अनुपात 1 : 2 है, अतः इस कारण इसका नाम फ्रेऑन-12 है।
फ्रेऑन के गुण – फ्रेऑन रंगहीन, गन्धहीन, विषहीन, अत्यन्त अक्रिय तथा कम क्वथनांक वाले द्रव हैं। ये बहुत कम दाब पर ही गैस अवस्था में परिवर्तित हो जाते हैं, इस कारण इनका उपयोग रेफ्रीजेरेटर तथा वातानुकूलन में प्रशीतक के रूप में होता है। इन यौगिकों को संक्षिप्त रूप में CFCs भी कहते हैं। इनका पर्यावरण पर विनाशकारी प्रभाव पड़ता है। इनको ओजोन परत को नष्ट करने के लिए उत्तरदायी माना जा रहा है।
प्रश्न 8. डी डी टी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। या डी डी टी का उपयोग लिखिए तथा पर्यावरण पर इसका क्या प्रभाव पडता है?
उत्तर⇒ DDT का उपयोग एक सम्पर्क कीटनाशक की भाँति किया जाता है। सस्ता तथा शक्तिशाली होने के कारण मक्खी, मच्छर, कीड़े-मकोड़े, शलभ तथा कृषि पीड़कों को मारने के लिए इसका व्यापक स्तर पर उपयोग किया जाता है।
यह मुख्यत: मलेरिया फैलाने वाले ऐनोफीलीज मच्छर तथा टाइफस वाहक जुओं को समाप्त करने में प्रभावकारी है।
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् कीटनाशक के रूप में DDT का उपयोग विश्व स्तर पर तेजी से बढ़ा। 1940 ई० के अन्त में DDT के अत्यधिक उपयोग के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याएँ सामने आने लगीं। कीटों की अनेक प्रजातियों ने DDT के प्रति प्रतिरोधात्मकता विकसित कर ली तथा यह मछलियों के लिए अति विषैली सिद्ध हुई। DDT के अत्यधिक रासायनिक स्थायित्व तथा इसकी वसा में विलेयता ने समस्या को और जटिल बना दिया। जन्तुओं द्वारा DDT का शीघ्रता से उपापचय नहीं होता है बल्कि यह वसीय ऊतकों में एकत्र तथा संग्रहित हो जाती है। यदि जन्तु इसका निरन्तर अन्तर्ग्रहण करता रहता है तो समय के साथ इसकी मात्रा निरन्तर बढ़ती जाती है। यह बढ़ी हुई मात्रा जन्तुओं के जनन तन्त्र पर विपरीत प्रभाव डालती है। इसके दुष्प्रभावों को देखते हुए, यू० एस० ए० ने 1973 ई० में DDT पर प्रतिबन्ध लगा दिया था यद्यपि विश्व में अनेक स्थानों पर इसका उपयोग आज भी हो रहा है।
प्रश्न 9. क्लोरोबेन्जीन बनाने की विधियों का वर्णन कीजिए। इसके भौतिक तथा रासायनिक गुण लिखिए। इसके उपयोग बताइए।
या
टिप्पणी लिखिए-सैण्डमायर अभिक्रिया।
या
क्लोरोबेन्जीन का हैलोजन वाहक की उपस्थिति में हैलोजनीकरण किस प्रकार होता है? सम्बन्धित समीकरण लिखिए।
उत्तर⇒
सूत्र
प्रयोगशाला विधि – प्रयोगशाला में क्लोरोबेन्जीन को विरचन बेन्जीन डाइऐजोनियम क्लोराइड को सान्द्र हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के साथ क्यूप्रस क्लोराइड (Cu2Cl2 ) की उपस्थिति में लगभग 60°C ताप पर गर्म करके किया जाता है। इस अभिक्रिया को सैण्डमायर अभिक्रिया कहते हैं। अभिक्रिया में प्रयुक्त डाइऐजोनियम लवण ऐनिलीन की 0°C से 5°C पर सोडियम नाइट्राइट तथा तनु HCl की डाइऐजोटीकरण अभिक्रिया द्वारा प्राप्त किया जाता है।
C6H5NH2 + NaNO2 + 2HCl C6H5N2Cl + NaCl + 2H2O
ऐनिलीन बेंजीन डाइऐजोनियम
क्लोराइड
C6H5N2Cl + HCl C6H5Cl + HCl + N2
बेंजीन डाइऐजोनियम क्लोरोबेन्जीन
क्लोराइड
बेन्जीन से – हैलोजेनवाहक की उपस्थिति में गर्म बेन्जीन में शुष्क क्लोरीन गैस प्रवाहित करने से क्लोरोबेन्जीन बनती है।
C6H6 + Cl2 C6H5Cl + HCl
गर्म क्लोरोबेन्जीन
फीनॉल से – फीनॉल पर फॉस्फोरस पेन्टाक्लोराइड की अभिक्रिया से C6H5Cl बनता है। इस अभिक्रिया में मुख्य उत्पाद (C6H5)2PO4 होता है।
C6H5OH + PCl3 POCl3 + HCl +C6H5Cl
फीनॉल क्लोरोबेन्जीन
3C6H5OH + POCl3 (C6H5) 3PO4 + 3HCl
फीनॉल मुख्य उत्पाद
गाटरमान अभिक्रिया द्वारा – इस अभिक्रिया में बेन्जीन डाइऐजोनियम क्लोराइड को कॉपर चूर्ण व HCl के साथ गर्म करने पर क्लोरोबेन्जीन बनती है।
C6H5N2Cl C6H5Cl + N2
बेंजीन डाइऐजोनियम क्लोराइड क्लोरोबेन्जीन
भौतिक गुण – क्लोरोबेन्जीन रंगहीन, सुगन्धित भारी द्रव होता है। इसका क्वथनांक 132°C होता है। यह जल में अविलेय, परन्तु ऐल्कोहॉल तथा ईथर में पूर्ण विलेय है।
रासायनिक गुण
1. सोडियम हाइड्रॉक्साइड के साथ अभिक्रिया – क्लोरोबेन्जीन को उच्च दाब (200 वायुमण्डल) तथा उच्च ताप (300°C) पर जलीय NaOH के साथ अभिकृत करने पर फीनॉल बनता है।
C6H5 Cl +Na OH C6H5OH + NaCl
क्लोरोबेन्जीन फीनॉल
2. अमोनिया की अभिक्रिया – क्लोरोबेन्जीन को अमोनिया के जलीय विलयन के साथ क्यूप्रस ऑक्साइड की उपस्थिति में उच्च दाब पर 200°C ताप तक गर्म करने पर इसका Clपरमाण- NH , समूह द्वारा प्रतिस्थापित होकर ऐनिलीन बनाता है।
2C6H5Cl + 2NH3 +2Cu2O 2C6H5NH2 +Cu2Cl2 + H2O
3. वुज-फिटिग अभिक्रिया – जब एक अणु ऐरिल हैलाइड तथा दूसरा अणु ऐल्किल हैलाइड सोडियम के साथ शुष्क ईथर की उपस्थिति में अभिक्रिया करके ऐल्किल ऐरीन देता है, तो यह अभिक्रिया वुज-फिटिग अभिक्रिया कहलाती है। जैसे- क्लोरोबेन्जीन शुष्क ईथर की उपस्थिति में सोडियम और मेथिल क्लोराइड के साथ गर्म करने पर टॉलुईन देती है।
C6H5 Cl + 2Na +Cl CH3 C6H5CH3 +2NaCl
क्लोरोबेन्जीन
4. फ्रीडेल-क्राफ्ट्स अभिक्रिया – इस अभिक्रिया में क्लोरोबेन्जीन मेथिल क्लोराइड के साथ निर्जल AlCl3 की उपस्थिति में अभिक्रिया द्वारा O-मेथिल तथा p- मेथिल क्लोरोबेन्जीन का मिश्रण देता है।
5. हैलोजनीकरण – जब क्लोरोबेन्जीन का किसी हैलोजनवाहक की उपस्थिति में हैलोजनीकरण कराया जाता है, तो o- वे p- डाईक्लोरोबेंजीन की प्राप्ति होती है।
क्लोरोबेन्जीन के उपयोग
विभिन्न ऐरोमैटिक यौगिकों के निर्माण में।
कीटनाशक पदार्थ डी०डी०टी० के निर्माण में।
फफूदनाशी, डाइऐजोरंजकों आदि के निर्माण में।
प्रश्न 10. प्रयोगशाला में क्लॉरोफॉर्म बनाने की विधि का सचित्र वर्णन कीजिए। प्राप्त क्लॉरोफॉर्म से शुद्ध क्लोरोफॉर्म कैसे प्राप्त करोगे? इसके प्रमुख गुणधर्म व उपयोग भी दीजिए। या रासायनिक समीकरण देते हुए समझाइए कि एथिल ऐल्कोहॉल से क्लोरोफॉर्म कैसे बनाया जाता है? क्लोरोफॉर्म को गहरे रंग की बोतलों में क्यों रखा जाता है?
उत्तर⇒
सूत्र– CHCl3 I.U.P.A.C. नाम – ट्राइक्लोरोमेथेन
प्रयोगशाला में शुद्ध क्लॉरोफॉर्म का विरचन – प्रयोगशाला में शुद्ध क्लोरोफॉर्म का विरचन निम्न दो प्रकार से किया जाता है –
(i) एथिल ऐल्कोहॉल से क्लोरोफॉर्म – एथिल ऐल्कोहॉल को नम विरंजक चूर्ण के साथ मिलाकर आसवन करने पर क्लोरोफॉर्म प्राप्त होता है। यह अभिक्रिया निम्नलिखित पदों में होती है –
(ii) ऐसीटोन से क्लोरोफॉर्म – ऐसीटोन के नम विरंजक चूर्ण के साथ आसवन से भी क्लोरोफॉर्म बनता है। यह अभिक्रिया निम्नलिखित पदों में होती है –
एक गोल पेंदी के फ्लास्क में 200 ग्राम विरंजक चूर्ण की 400 मिली जल से बनी लेई और 50मिली ऐसीटोन या ऐल्कोहॉल लेकर जल ऊष्मक के ऊपर गर्म करते हैं। जिससे जल तथा क्लोरोफॉर्म का मिश्रण आसवित होकर जल से भरे ग्राही पात्र में इकट्ठा हो जाता है। पृथक्कारी कीप द्वारा आसुत द्रव का नीचे वाला अंश एकत्रित करते हैं। अम्लीय अशुद्धियों को दूर करने के लिए इसे NaOH विलयन द्वारा धोकर, फिर जल से धोकर और इसमें निर्जल CaCl2 मिलाकर पुन: आसवित करते हैं जिससे लगभग 61°C पर शुद्ध क्लोरोफॉर्म प्राप्त होता है।
भौतिक गुण – यह एक रंगहीन, मीठी गन्ध वाला, ज्वलनशील द्रव है। इसका क्वथनांक 61°C तथा आपेक्षिक घनत्व 1.485 है। यह जल में अविलेय, किन्तु ईथर व ऐल्कोहॉल में विलेय है। इसकी वाष्प को सँघने से कुछ समय के लिए मूच्र्छा आ जाती है। इसी गुण के कारण इसका उपयोग निश्चेतक के रूप में किया जाता है।
रासायनिक गुण
1. ऑक्सीकरण – सूर्य के प्रकाश तथा वायु में खुला रखने से फॉस्जीन (विषैली) या कार्बोनिल क्लोराइड गैस बनती है।
क्लोरोफॉर्म को गहरे भूरे रंग की बोतल में ऊपर तक भरकर इसलिए रखते हैं, जिससे प्रकाश और वायु अन्दर न पहुँच सके अन्यथा क्लोरोफॉर्म धीरे-धीरे ऑक्सीकृत होकर फॉस्जीन गैस बनाता है जो कि अत्यन्त घातक विष है। क्लोरोफॉर्म में 1% एथिल ऐल्कोहॉल संदमक के रूप में डालते हैं और लाल-भूरे रंग की बोतल में रखते हैं जो प्रकाश को रोकती है। एथेनॉल इस अभिक्रिया में ऋणात्मक उत्प्रेरक का कार्य करता है। एथिल ऐल्कोहॉल की उपस्थिति में वायु द्वारा क्लोरोफॉर्म के ऑक्सीकरण की गति अत्यन्त धीमी पड़ जाती है अर्थात् क्लोरोफॉर्म को स्थायित्व बढ़ जाता है। यदि कुछ फॉस्जीन बनता भी है तो वह एथिल ऐल्कोहॉल से अभिक्रिया करके डाइएथिल कार्बोनेट बनाता है जो विषैला नहीं होता है।
2. अपचयन – यह जिंक और जल के साथ उबालने पर अपचयित होकर मेथेन देता है, Zn और तनु HCl के साथ अपचयित होकर मेथिलीन क्लोराइड देता है, जबकि Zn तथा ऐल्कोहॉलिक HCl द्वारा अपचयन पर मेथिल क्लोराइड बनता है।
3. क्लोरीन से अभिक्रिया – कार्बन टेट्रोक्लोराइड प्राप्त होता है।
4. ऐसीटोन से अभिक्रिया – क्षार की उपस्थिति में ऐसीटोन से संघनन अभिक्रिया द्वारा क्लोरीटोन प्राप्त होता है जिसका उपयोग निद्राकारी औषधि के निर्माण में होता है।
5. नाइट्रिक अम्ल से क्रिया – नाइट्रोक्लोरोफॉर्म (या क्लोरोपिक्रिन) प्राप्त होता है, जिसका उपयोग कीटनाशक व अश्रु गैस के रूप में होता है।
उपयोग – क्लोरोफॉर्म के निम्नलिखित उपयोग हैं –
(1) 30 %ईथर में इसका विलयन शल्य चिकित्सा में निश्चेतक के रूप में।
(2) लाख, रबड़, चर्बी आदि के लिए विलायक के रूप में।
(3)दवाईयों के रूप में।
(4) जीवाणुनाशक के रूप में।
(5) सुगन्धित पदार्थ के रूप में।
(6) टेफ्लॉन के निर्माण में।
प्रश्न 11. क्लोरोबेन्जीन की बेन्जीन रिंग की एक प्रतिस्थापन अभिक्रिया को समीकरण लिखिए।
उत्तर⇒
क्लोरोबेन्जीन का नाइट्रीकरण
प्रश्न 12. ऐल्किल क्लोराइड की जलीय KOH से अभिक्रिया द्वारा ऐल्कोहॉल बनता है, लेकिन ऐल्कोहॉलिक KOH की उपस्थिति में ऐल्कीन मुख्य उत्पाद के रूप में प्राप्त होती है। समझाइए।
उत्तर⇒
जलीय विलयन में KOH लगभग पूर्ण आयनित होकर OH- आयन देता है जो प्रबल नाभिकरागी होने के कारण ऐल्किल हैलाइडों पर प्रतिस्थापन अभिक्रिया करके ऐल्कोहॉल बनाते हैं। जलीय विलयन में OH- आयन उच्च जलयोजित होते हैं। इससे OH- आयनों का क्षारीय गुण घट जाता है जिससे ये ऐल्किल हैलाइड के - कार्बन से हाइड्रोजन परमाणु पृथक्कृत करने में असफल हो जाते हैं तथा ऐल्कीन नहीं बना पाते।
दूसरी ओर KOH के ऐल्कोहॉली विलयन में ऐल्कॉक्साइड (RO-) आयन होते हैं जो OH- से प्रबल क्षार होने के कारण सरलतापूर्वक ऐल्किल क्लोराइड से HCl अणु का विलोपन करके ऐल्कीन बना लेते हैं।
प्रश्न 13. o - तथा m - समावयवियों की तुलना में p -डाइक्लोरोबेन्जीन का गलनांक उच्च एवं विलेयता निम्न होती है, विवेचना कीजिए।
उत्तर⇒
p -समावयव अधिक सममिताकार होने के कारण क्रिस्टल जालक में भली-भाँति स्थित हो जाता है, इसलिए इसमें o - तथा m -समावयवों की तुलना में प्रबल अन्तराअणुक आकर्षण बल उपस्थित होते हैं।
चूँकि संगलन अथवा विलायकीकरण के दौरान क्रिस्टल जालक टूटता है, इसलिए p - समावयव के संगलन अथवा इसे विलेय करने के लिए सम्बन्धित o - तथा m -समावयवों की तुलना में अधिक ऊष्मा की आवश्यकता होती है। दूसरे शब्दों में, p - समावयव का गलनांक सम्बन्धित o - तथा m -समावयव की तुलना में उच्च होता है, जबकि इसकी विलेयता निम्न होती है।
प्रश्न 14. SN 2 प्रतिस्थापन के प्रति अभिक्रियाशीलता के आधार पर इन यौगिकों के समूहों को क्रमबद्ध कीजिए –
(1) 2-ब्रोमो-2-मेथिलब्यूटेन, 1-ब्रोमोपेन्टेन, 2-ब्रोमोपेन्टेन
(2) 1-ब्रोमो-3-मेथिलब्यूटेन, 2-ब्रोमो-2-मेथिलब्यूटेन, 2-ब्रोमो-3-मेथिलब्यूटेन
(3) 1-ब्रोमोब्यूटेन, 1-ब्रोमो-2, 2-डाइमेथिलप्रोपेन, 1-ब्रोमो-2-मेथिलब्यूटेन, 1-ब्रोमो-3-मेथिलब्यूटेन।
उत्तर⇒
(1) 1-ब्रोमोपेन्टेन > 2-ब्रोमोपेन्टेन > 2-ब्रोमो-2-मेथिलब्यूटेन
(2) 1-ब्रोमो-3-मेथिलब्यूटेन > 2-ब्रोमो-3-मेथिलब्यूटेन > 2-ब्रोमो-2-मेथिलब्यूटेन
(3) 1-ब्रोमोब्यूटेन > 1-ब्रोमो-3-मेथिलब्यूटेन > 1-ब्रोमो-2- मेथिलब्यूटेन, 1-ब्रोमो-2, 2-डाइमेथिलप्रोपेन
प्रश्न 15. समझाइए, क्यों –
(1) क्लोरोबेन्जीन का द्विध्रुव आघूर्ण साइक्लोहेक्सिले क्लोराइड की तुलना में कम होता है?
(2) ऐल्किल हैलाइड ध्रुवीय होते हुए भी जल में अमिश्रणीय हैं?
(3) ग्रीन्यार अभिकर्मक का विरचन निर्जलीय अवस्थाओं में करना चाहिए?
उत्तर⇒
1. उच्च s- लक्षण के कारण sp2- संकरित कार्बन sp3- संकरित कार्बन से अधिक ऋणविद्युती होता है। अत: क्लोरोबेंजीन में C-Cl आबन्ध के sp2- संकरित कार्बन में साइक्लोहेक्सिल क्लोराइड के sp3- ‘संकरित कार्बन की तुलना में Cl की इलेक्ट्रॉन मुक्त करने की प्रवृत्ति कम होती है, जिसके परिणामस्वरूप क्लोरोबेंजीन में C-Cl आबन्ध साइक्लोहेक्सिल क्लोराइड में C-Cl l आबन्ध से कम ध्रुवीय होता है। बेंजीन वलय पर Cl परमाणु के एकाकी युग्म इलेक्ट्रॉनों के विस्थानीकरण के कारण क्लोरोबेंजीन के C-Cl आबन्ध में आंशिक द्विआबन्ध लक्षण आ जाते हैं। दूसरे शब्दों में क्लोरोबेंजीन में C-Cl आबन्ध साइक्लोहेक्सिल क्लोराइड में C-Cl आबन्ध से छोटा होता है।
चूँकि द्विध्रुव आघूर्ण आवेश तथा दूरी को गुणनफल होता है, अत: क्लोरोबेंजीन को द्विध्रुव आघूर्ण साइक्लोहेक्सिल क्लोराइड से कम होता है।
2. ऐल्किल हैलाइड ध्रुवीय होते हैं अत: इनके अणु द्विध्रुव आकर्षण द्वारा परस्पर बँधे रहते हैं। H2O के अणु परस्पर हाइड्रोजन आबन्ध द्वारा जुड़े रहते हैं। चूँकि जल तथा ऐल्किल हैलाइड में नये बने आबन्ध बल पूर्व से उपस्थित बलों से दुर्बल होते हैं। अतः ऐल्किल हैलाइड जल में अमिश्रणीय होते हैं।
3. ग्रिगनार्ड (ग्रीन्यार) अभिकर्मक अत्यधिक क्रियाशील होते हैं। ये उपकरण के अन्दर उपस्थित नमी से अभिक्रिया करते हैं। अतः ग्रिगनार्ड अभिकर्मकों को निर्जल परिस्थितियों में बनाते हैं।
R MgX + H -OH RH +Mg (OH)X
प्रश्न 16. एक हाइड्रोकार्बन C5H10 अँधेरे में क्लोरीन के साथ अभिक्रिया नहीं करता, परन्तु सूर्य के तीव्र प्रकाश में केवल एक मोनोक्लोरो यौगिक C5H9Cl देता है। हाइड्रोकार्बन की संरचना क्या है?
उत्तर⇒
हाइड्रोकार्बन C5H10 या तो एक ऐल्कीन है अथवा साइक्लोऐल्केन। चूँकि यह क्लोरीन से अन्धेरे में क्रिया नहीं करता है, अतएव यह ऐल्कीन नहीं हो सकता। इस प्रकार इसे एक साइक्लोऐल्केन होना चाहिए।
साइक्लोऐल्केन सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में Cl2 से अभिक्रिया करके मोनोक्लोरो यौगिक, C5H9Cl देता है। इसलिए साइक्लोऐल्केन के सभी 10 H- परमाणु तुल्य होंगे। अत: साइक्लोऐल्केन साइक्लोपेन्टेन है। सूर्य के प्रकाश में साइक्लोपेन्टेन निम्न प्रकार से क्लोरीन से क्रिया कर एक मोनोक्लोरो यौगिक C5H9Cl देता है –
इस प्रकार C5H10 साइक्लोपेन्टेन है।
प्रश्न 17. हैलोजेन यौगिकों के निम्नलिखित युग्मों में से कौन-सा यौगिक तीव्रता से SN 1 अभिक्रिया करेगा?
उत्तर⇒
SN 1 अभिक्रिया में हैलोजेन यौगिकों की क्रियाशीलता आयनन के परिणामस्वरूप निर्मित कार्बोधनायन के स्थायित्व पर निर्भर करती है। स्थायित्व का क्रम तृतीयक > द्वितीयक > प्राथमिक है। अत:
(i) (a) 3° ऐल्किल क्लोराइड है जबकि (b) 2° ऐल्किल क्लोराइड है। अतएव (a) SN 1 अभिक्रिया में अधिक क्रियाशील है।
(ii) (a) 2° ऐल्किल क्लोराइड है जबकि (b) 1° ऐल्किल क्लोराइड है। अतएव 2° ऐल्किल क्लोराइड SN 1 अभिक्रिया में अधिक क्रियाशील है।
प्रश्न 18. प्रोपेन के विभिन्न डाइहैलोजेन व्युत्पन्नों की संरचनाएँ लिखिए।
उत्तर⇒
प्रोपेन (CH3CH2CH3) के चार समावयवी डाइहैलोजन व्युत्पन्न सम्भव हैं।
प्रश्न 19. ऐल्कोहॉल तथा KI की अभिक्रिया में सल्फ्यूरिक अम्ल का उपयोग क्यों नहीं करते हैं?
उत्तर⇒
2KI +H2SO4 2KHSO4 +2HI
2HI +H2SO4 2H2O +I2+SO2
इन अभिक्रियाओं में H2SO4 एक ऑक्सीकारक है। यह अभिक्रिया के दौरान निर्मित HI को I2में ऑक्सीकृत कर देता है एवं HI तथा ऐल्कोहॉल की क्रिया से ऐल्किल हैलाइड के निर्माण को रोकता है। इस समस्या के निदान के लिए H2SO4 के स्थान पर फॉस्फोरिक अम्ल (H3PO4) का प्रयोग किया जाता है, जो कि अभिक्रिया के लिए HI उपलब्ध कराता है तथा H2SO4 के समान I2 नहीं देता है।
प्रश्न 20. निम्नलिखित यौगिकों को क्वथनांकों के बढ़ते क्रम में व्यवस्थित कीजिए –
ब्रोमोमेथेन, ब्रोमोफॉर्म, क्लोरोमेथेन, डाइब्रोमोमेथेन
1-क्लोरोप्रोपेन, आइसोप्रोपिल क्लोराइड, 1-क्लोरोब्यूटेन
उत्तर⇒
क्वथनांकों का बढ़ता क्रम है- क्लोरोमेथेन < ब्रोमोमेथेन < डाइब्रोमोमेथेन < ब्रोमोफॉर्म
कारण – आण्विक द्रव्यमान बढ़ने के साथ क्वथनांक बढ़ता है।
क्वथनांकों का बढ़ता क्रम है –
आइसोप्रोपिल क्लोराइड < 1-क्लोरोप्रोपेन < 1-क्लोरोब्यूटेन
कारण – आण्विक द्रव्यमान बढ़ने पर क्वथनांक बढ़ता है। समावयवी ऐल्किल हैलाइडों में शाखित समावयवी का क्वथनांक निम्न होता है।
प्रश्न 21. निम्नलिखित युग्मों में से आप कौन-से ऐल्किल हैलाइड द्वारा SK2 क्रियाविधि से अधिक तीव्रता से अभिक्रिया करने की अपेक्षा करते हैं? अपने उत्तर को समझाइए।
उत्तर⇒
यदि विशेष सूत्र के समावयवियों में छोड़ने वाला समूह समान हो तब SN2 क्रियाविधि के सापेक्ष समावयवियों की क्रियाशीलता त्रिविम बाधा बढ़ने के साथ घटती है, अतः
(i) CH3 CH2 CH2 CH2 Br (1° ऐल्किल हैलाइड) CH3CH2 -CHBr -CH3 (2° ऐल्किल हैलाइड) से अधिक क्रियाशील होता है।
(ii)
(2° ऐल्किल हैलाइड), (CH3)3 CBr (3° ऐल्किल हैलाइड) से अधिक क्रियाशील होता है।
(iii) दोनों 2° ऐल्किल हैलाइड हैं, लेकिन (II) ऐल्किल हैलाइड में C2 पर स्थित- CH3समूह Br परमाणु के निकट स्थित है जबकि (I) ऐल्किल हैलाइड में C3 पर स्थित -CH3 समूह Br परमाणु से कुछ दूर स्थित है। इसके परिणामस्वरूप ऐल्किल हैलाइड (II) अधिक त्रिविम बाधा अनुभव करता है, अतएव SN2 अभिक्रिया में (I), (II) की तुलना में अधिक तीव्रता से क्रिया करेगा।
प्रश्न 22. फ्रेऑन-12, DDT, कार्बन टेट्राक्लोराइड तथा आयोडोफॉर्म के उपयोग दीजिए।
उत्तर⇒
फ्रेऑन-12 के उपयोग – यह ऐरोसॉल प्रणोदक, प्रशीतक तथा वायु शीतलन में उपयोग करने के लिए उत्पादित किए जाते हैं।
DDT के उपयोग – DDT का उपयोग कीटनाशी के रूप में किया जाता है, परन्तु जीवों में इसके सतत अन्तर्ग्रहण से उत्पन्न विषैले प्रभावों के कारण इसे प्रतिबन्धित कर दिया गया है।
कार्बन टेट्राक्लोराइड के उपयोग
यह शुष्क धुलाई में विलायक के रूप में प्रयुक्त होता है।
यह औषधियों में हुकवर्म तथा कीटनाशक के रूप में प्रयुक्त होता है।
यह वसा, तेल, मोम तथा रेजिन के लिए भी उचित विलायक है।
आयोडाइड तथा ब्रोमाइड के क्लोरीन जल परीक्षण में भी यह विलायक के रूप में प्रयुक्त किया जाता
इससे फ्रेऑन-12 भी प्राप्त होता है।
यह पाइरीन नाम से अग्निशामक के रूप में प्रयुक्त होता है। इसके घने वाष्प जलते पदार्थ के ऊपर सुरक्षात्मक परत बनाते हैं और ऑक्सीजन या वायु को जलते पदार्थ के सम्पर्क में आने से रोकते हैं। इसके उपयोग के बाद कक्ष का संवातन करते हैं जिससे बनी हुई फॉस्जीन पूर्णतया दूर हो जाए।
आयोडोफॉर्म के उपयोग – इसका उपयोग प्रारम्भ में पूतिरोधी (ऐण्टीसेप्टिक) के रूप में किया जाता था, परन्तु आयोडोफॉर्म का यह पूतिरोधी गुण आयोडोफॉर्म के कारण स्वयं नहीं, बल्कि मुक्त हुई आयोडीन के कारण होता है। इसकी अरुचिकर गन्ध के कारण अब इसके स्थान पर आयोडीनयुक्त अन्य दवाओं का उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 23. वाइनिल क्लोराइड एथिल क्लोराइड की तुलना में धीमे जल-अपघटित होता है, क्यों?
उत्तर⇒ वाइनिल क्लोराइड को निम्नलिखित संरचनाओं के अनुनादी संकर के रूप में प्रदर्शित किया जा सकता है –
अनुनाद के कारण C - Cl आबन्ध में कुछ द्विआबन्ध लक्षण आ जाते हैं। दूसरी ओर एथिल क्लोराइड में कार्बन-क्लोरीन आबन्ध शुद्ध एकल आबन्ध होता है। अतः वाइनिल क्लोराइड एथिल क्लोराइड की तुलना में धीमे जल-अपघटित होता है।