बिहार बोर्ड कक्षा 12 भौतिक विज्ञान अध्याय 12 परमाणु दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल की व्याख्या कीजिए।
उत्तर: परमाणु की सही संरचना जानने के लिये रदरफोर्ड ने सन् स्वर्ण-पत्र 1911 में एक महत्त्वपूर्ण प्रयोग किया जिसे चित्र में दिखाया गया है। इसमें रेडियोऐक्टिव तत्त्व पोलोनियम से गणित्र उच्च गतिज ऊर्जा से निकलने वाली α-कणों के एक बारीक किरण-पुंज को एक बहुत पतले स्वर्ण-पत्र पर गिराया गया। पूरे प्रबन्ध को निर्वात् में रखा गया जिससे α -कणों की वायु के कणों से कोई टक्कर न हो। रदरफोर्ड ने यह देखा कि स्वर्ण-पत्र में से गुजरते हुए ये कण विभिन्न दिशाओं में विक्षेपित हो जाते हैं।
ऐल्फा α-कणों के अपने मार्ग से विक्षेपित होने की इस घटना को , ‘प्रकीर्णन’ कहते हैं। स्वर्ण-पत्र से विभिन्न दिशाओं में निकलने वाले कणों को एक प्रस्फुर गणित्र द्वारा गिन सकते हैं। रदरफोर्ड ने इस प्रयोग से निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण तथ्य प्राप्त किये
1. अधिकांश α-कण स्वर्ण-फ्त्र के आर-पार बिना प्रभावित हुए सीधे ही निकल जाते हैं। इससे रदरफोर्ड ने यह निष्कर्ष निकाला कि परमाणु का अधिकांश भाग भीतर से खोखला होता है।
2. कुछ α-कण छोटे-छोटे कोण बनाते हुए विक्षेपित हो जाते हैं, तथा इनका कोणीय वितरण सुनिश्चित होता है। अब, , चूँकि α-कण धनावेशित हैं, अतः इन्हें विक्षेपित करने वाला परमाणु भी धनावेशित होना चाहिए। इस आधार पर रदरफोर्ड ने यह माना कि परमाणु का सम्पूर्ण धन-आवेश एक सूक्ष्म स्थान में केन्द्रित रहता है (यह परमाणु में समान रूप से वितरित नहीं हो सकता जैसा कि टॉमसन ने माना था)।
3. कुछ α-कण ऐसे भी हैं जो अपने प्रारम्भिक मार्ग से 90° से भी अधिक कोण पर प्रकीर्णित होकर वापस लौट आते हैं । इससे यह पता चलता है कि जब धनावेशित α-कण स्वर्ण-पत्र के परमाणुओं में से गुजरते हैं, तो किसी-किसी कण पर इतना अधिक प्रतिकर्षण-बल लगता है। कि वह तीव्रगामी α-कण को वापस लौटा देता है। इस आधार पर रदरफोर्ड ने यह माना कि धन-ऑवेश परमाणु के भीतर एक अत्यन्त सूक्ष्म स्थान में संकेन्द्रित रहता है। इस स्थान को ‘नाभिक’ कहते हैं। गणना करने पर नाभिक की त्रिज्या 10-15 मीटर की कोटि की पायी जाती है, जबकि परमाणु की त्रिज्या 10-10 मीटर की कोटि की है। अत: नाभिक की त्रिज्या परमाणु की त्रिज्या के दस हजारवें भाग के बराबर होती है। परमाणु के शेष खाली भाग में केवल इलेक्ट्रॉन होते हैं। α-कण नाभिक के जितना पास आयेगा, उस पर उतना ही अधिक प्रतिकर्षण-बल लगेगा और वह उतना ही अधिक विक्षेपित होगी। यदि परमाणु के आकार की तुलना में नाभिक अत्यन्त छोटा है, तो किसी ४-कण की नाभिक के समीप पहुँचने की सम्भावना भी बहुत कम होगी। अतः अधिक कोणों पर प्रकीर्णित होने वाले α-कणों की संख्या कम होगी। प्रयोग से इस तथ्य की पुष्टि होती है। गणना द्वारा देखा गया है कि लगभग 20,000 में से केवल 1 ही α-कण ऐसा है जो कि 90° से अधिक कोण पर प्रकीर्णित होता है। इस प्रकार, इस प्रयोग द्वारा परमाणु के धन-आवेश के विस्तार के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई।
4. α-कणों के प्रकीर्णन के प्रयोग द्वारा कूलॉम नियमे की सत्यता के सम्बन्ध में भी जानकारी प्राप्त हुई। रदरफोर्ड ने यह माना था कि जब कोई α-कण स्वर्ण-पत्र के परमाणुओं में से गुजरता है, तो उस पर नाभिक द्वारा लगाया गया प्रतिकर्षण-बल कूलॉम के नियमानुसार (कण की नाभिक से दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती) होता है। जो कण परमाणु से गुजरते समय नाभिक से दूर रहता है। उस पर लगने वाला प्रतिकर्षण-बल इतना कम होता है कि वह बिना किसी विशेष विक्षेप के अपने मार्ग पर चला जाता है। परन्तु जो कण नाभिक के जितना समीप से गुजरता है उस पर उतना ही अधिक प्रतिकर्षण-बल लगता है तथा वह उतने ही बड़े कोण से प्रकीर्णित होता है। रदरफोर्ड ने, कूलॉम के नियम के आधार पर विभिन्न कोण पर प्रकीर्णित होने वाले कणों का परिकलन किया। और यह पाया कि नाभिकं द्वारा α-कणों का प्रकीर्णन कूलॉम नियम के अनुसार होता है। दूसरे शब्दों में, कूलॉम का नियम परमाणवीय दूरियों के लिये भी लागू रहता है।
5. रदरफोर्ड ने अपने प्रयोग द्वारा विभिन्न धातुओं के नाभिकों के धन-आवेशों के सम्बन्ध में भी जानकारी प्राप्त की। उसने -कणों को विभिन्न धातुओं (जैसे–सोना, चाँदी, प्लैटिनम इत्यादि) के पतले पत्रों पर गिराकर एक निश्चित दिशा में प्रकीर्णित होने वाले कणों को गिना और देखा कि यह संख्या विभिन्न धातुओं के पत्रों के लिए भिन्न-भिन्न आती है। इससे यह पता चला कि विभिन्न धातुओं के नाभिकों में धन-आवेश का परिमाण भिन्न-भिन्न होता है। नाभिक में धन-आवेश जितना अधिक होगा, वह α-कण को उतने ही अधिक बल से प्रतिकर्षित करेगा तथा α-कण अपने मार्ग से उतना ही अधिक प्रकीणित होगा।
रदरफोर्ड ने गणना द्वारा यह दिखाया कि एक दिये हुए धातु-पत्र द्वारा एक निश्चित कोण-परिसर के भीतर प्रकीर्णित होने वाले -कणों की संख्या उस धातु के नाभिक के धन-आवेश की मात्रा के अनुक्रमानुपाती है। इस आधार पर सन् 1920 में चैडविक ने अनेक धातुओं के नाभिकों के धन-आवेशों को ज्ञात किया तथा यह पाया कि किसी धातु के नाभिक के धन-आवेश का परिमाण Ze होता है, जहाँ है इलेक्ट्रॉन के (ऋण) आवेश का मान है तथा Z उस धातु के लिये नियतांक है। Z को ‘परमाणु-क्रमांक’ कहते हैं।
2. रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल की क्या सीमाएँ हैं ? रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल में कमियाँ लिखिए |
उत्तर:- रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल की निम्नलिखित सीमाएँ हैं –
(a) नाभिक के चारों तरफ परिभ्रमण करते हुए इलेक्ट्रॉन नाभिक के केन्द्र की तरफ लगातार त्वरित होता है। लॉरेन्ज के अनुसार त्वरित आवेशित कण को लगातार ऊर्जा विकीर्णित करना चाहिए। इसलिए, परमाणु में भी, परिभ्रमण करते हुए इलेक्ट्रॉन को लगातार ऊर्जा उत्सर्जित करनी चाहिए और इस तरह उसके पथ की त्रिज्या घटते जाना चाहिए तथा अन्त में चित्रानुसार उसे नाभिक पर गिर जाना चाहिए। इसलिए रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल परमाणु के स्थायित्व की व्याख्या नहीं करता है।
(b) यदि रदरफोर्ड के मॉडल सत्य हैं तो इलेक्ट्रॉन सभी संभव त्रिज्याओं के कक्षाओं में परिभ्रमण कर सकते हैं तथा इसलिए उसे लगातार ऊर्जा स्पेक्ट्रम उत्सर्जित करना चहिए। यद्यपि परमाणु हाइड्रोजन की तरह रेखीय स्पेक्ट्रम होते हैं।
रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल में कमियाँ: रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल में निम्न दो कमियाँ पायी गयीं
(i) परमाणु के स्थायित्व के सम्बन्ध में:
नाभिक के चारों ओर घूमते इलेक्ट्रॉन में अभिकेन्द्र त्वरण होता है। विद्युत गतिविज्ञान के अनुसार, त्वरित आवेशित कण ऊर्जा (विद्युत-चुम्बकीय तरंगें) उत्सर्जित करता है। अतः नाभिक के चारों ओर विभिन्न कक्षाओं में घूमते इलेक्ट्रॉनों से विद्युतचुम्बकीय तरंगें लगातार उत्सर्जित होनी चाहिए। इस प्रकार, इलेक्ट्रॉनों की ऊर्जा का ह्रास होने के कारण उनके वृत्तीय पथ की त्रिज्या लगातार कम होती जानी चाहिए और अन्त में वे नाभिक में गिर जाने चाहिए। इस प्रकार परमाणु स्थायी ही नहीं रह सकता।
(ii) रेखीय स्पेक्ट्रम की व्याख्या के सम्बन्ध में:
मॉडल में इलेक्ट्रॉनों के वृत्तीय पथ की त्रिज्या के लगातार बदलते रहने से उनके घूमने की आवृत्ति भी बदलती रहेगी। इसके फलस्वरूप इलेक्ट्रॉन सभी आवृत्तियों की विद्युत-चुम्बकीय तरंगें उत्सर्जित करेंगे, अर्थात् इन तरंगों का स्पेक्ट्रम संतत होगा। परन्तु वास्तव में परमाणुओं के स्पेक्ट्रम संतत न होकर, रेखीय होते हैं अर्थात् उनमें बहुत-सी बारीक रेखाएँ होती हैं तथा प्रत्येक स्पेक्ट्रमी रेखा की एक निश्चित आवृत्ति होती है। अत: परमाणु से केवल कुछ निश्चित आवृत्ति की ही तरंगें उत्सर्जित होनी चाहिए, सभी आवृत्तियों की नहीं। इस प्रकार, रदरफोर्ड मॉडल रेखीय स्पेक्ट्रम की व्याख्या करने में असक्षम रहा। इन कमियों को नील बोर ने क्वाण्टम सिद्धान्त के आधार पर दूर किया।
3.एक ऊर्जा स्तर आरेख खींचकर परमाणु के उत्सर्जन स्पेक्ट्रम की लाइमन तथा बॉमर श्रेणियाँ प्रदर्शित कीजिए।
या
एक स्पष्ट ऊर्जा-स्तर आरेख खींचकर हाइड्रोजन परमाणु की लाइमन तथा बॉमर स्पेक्ट्रम श्रेणियाँ प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर: बोर ने अपने परमाणु मॉडल द्वारा हाइड्रोजन के विभिन्न ऊर्जा-स्तरों की ऊर्जाओं के लिए निम्नलिखित सूत्र प्राप्त किया |
En = - Rhcn2 = - 13.6n2 eV
( n = 1,2,3,..........∞ )
इसमें पूर्णांक n क्वाण्टम संख्या है, R रिडबर्ग नियतांक, h प्लांक नियतांक तथा c प्रकाश की चाल है।
माना हाइड्रोजंग परमाणु के दो ऊर्जा-स्तर n1 व n2 हैं जिनकी संगत ऊर्जाएँ क्रमशः E1व E2 हैं। यदि ऊर्जा-स्तर E2 से E1 पर संक्रमण द्वारा उत्सर्जित विकिरण की आवृत्ति ν हो, तो
hv = E2- E1
v = E2- E1h
= Rc 1n12-1n22
v = c ,
1 = R1n12-1n22
उपर्युक्त समीकरण द्वारा हाइड्रोजन के स्पेक्ट्रम में प्राप्त होने वाली सभी श्रेणियों की व्याख्या की जा सकती है |
1. लाइमन श्रेणी
इन रेखाओं को सबसे पहले लाइमन ने सन् 1916 में प्राप्त किया। जब किसी परमाणु में इलेक्ट्रॉन किसी ऊर्जा-स्तर से प्रथम (निम्नतम) ऊर्जा-स्तर में संक्रमण करता है (अर्थात् n1 = 1 तथा n2= 2, 3, 4,…,∞) तब उत्सर्जित स्पेक्ट्रम की रेखाएँ पराबैंगनी भाग में प्राप्त होती हैं। इनकी तरंगदैर्घ्य निम्नलिखित सूत्र से व्यक्त की जा सकती है |
1 = R112-1n2 ( n = 2,3,4..........∞ )
इसकी सबसे बड़ी तरंगदैर्ध्य अथवा प्रथम रेखा की तरंगदैर्ध्य n = 2 के लिए प्राप्त होती है जिसका मान 1216Å तथा सबसे छोटी, तरंगदैर्घ्य n = 2 के लिए 912Å (श्रेणी-सीमा) प्राप्त होती है।
2. बॉमर श्रेणी :-
इन रेखाओं को सबसे पहले बॉमर ने सन् 1885 में प्राप्त किया। जब परमाणु किसी ऊँचे ऊर्जा-स्तर से दूसरे ऊर्जा-स्तर में संक्रमण करता है (अर्थात् n1 = 2 तथा n2 = 3, 4, 5, …) तो उत्सर्जित स्पेक्ट्रम की रेखाएँ दृश्य भाग में मिलती हैं। इनकी तरंगदैर्ध्य को निम्नलिखित सूत्र से व्यक्त किया जा सकता है।
1 = R122-1n2 ( n = 3,4,5 ..........∞ )
n = 3 के लिए सबसे बड़ी तरंगदैर्घ्य 6563Å तथा n = ० के लिए इस श्रेणी की सबसे छोटी तरंगदैर्घ्य 3646 Å प्राप्त होती है। n = 3, 4, 5, 6, … के संगत प्राप्त रेखाओं को क्रमशः Hα, Hβ, Hγ, Hδ,…. रेखाएँ भी कहते हैं।
3. पाश्चन श्रेणी:
जब किसी परमाणु में इलेक्ट्रॉन किसी उच्च ऊर्जा-स्तर से तीसरे ऊर्जा-स्तर में संक्रमण करता है, अर्थात् (n1= 3 तथा n2 = 4, 5, 6,…) तो उत्सर्जित रेखाएँ स्पेक्ट्रम के अवरक्त भाग में प्राप्त होती हैं। इनकी तरंगदै निम्नलिखित सूत्र से व्यक्त की जाती है।
1 = R132-1n2 ( n = 4,5,6..........∞ )
4. ब्रैकेट श्रेणी :
जब किसी परमाणु में इलेक्ट्रॉन किसी ऊँचे ऊर्जा-स्तर से चौथे ऊर्जा-स्तर में आता है (n1 = 4 तथा n2= 5, 6, 7, …..) तो ये रेखाएँ भी स्पेक्ट्रम के अवरक्त भाग में प्राप्त होती हैं। इसकी तरंगदैर्घ्य निम्नलिखित सूत्र से व्यक्त की जाती है।
1 = R142-1n2 ( n = 5,6,7..........∞ )
5. फुण्ड श्रेणी :
जब किसी परमाणु में इलेक्ट्रॉन किसी ऊँचे ऊर्जा-स्तर से पाँचवें ऊर्जा-स्तर में आता है (n1 = 5 तथा n2 = 6, 7, 8, …..) तो ये रेखाएँ भी स्पेक्ट्रम के अवरक्त भाग में प्राप्त होती हैं। इसकी तरंगदैर्घ्य निम्नलिखित सूत्र से व्यक्त की जाती है।
1 = R152-1n2 ( n = 6,7,8, ..........∞ )
4.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए जो आपको टॉमसन मॉडल और रदरफोर्ड मॉडल में अन्तर समझने हेतु अच्छी तरह से सहायक हैं।
(a) क्या टॉमसन मॉडल में पतले स्वर्ण पन्नी से प्रकीर्णित α-कणों का पूर्वानुमानित औसत विक्षेपण कोण, रदरफोर्ड मॉडल द्वारा पूर्वानुमानित मान से अत्यन्त कम, लगभग समान अथवा अत्यधिक बड़ा है?
(b) टॉमसन मॉडल द्वारा पूर्वानुमानित पश्च प्रकीर्णन की प्रायिकता (अर्थात α-कणों का 90° से बड़े कोणों पर प्रकीर्णन) रदरफोर्ड मॉडल द्वारा पूर्वानुमानित मान से अत्यन्त कम, लगभग समान अथवा अत्यधिक है?
(c) अन्य कारकों को नियत रखते हुए, प्रयोग द्वारा यह पाया गया है कि कम मोटाई t के लिए, मध्यम कोणों पर प्रकीर्णित α-कणों की संख्या t के अनुक्रमानुपातिक है। t पर यह रैखिक निर्भरता क्या संकेत देती है?
(d) किस मॉडल में α -कणों के पतली पन्नी से प्रकीर्णन के पश्चात औसत प्रकीर्णन कोण के परिकलन हेतु बहुप्रकीर्णन की उपेक्षा करना पूर्णतया गलत है?
उत्तर:
(a) औसत विक्षेपण कोण दोनों मॉडलों के लिए लगभग समान है।
(b) टॉमसन मॉडल द्वारा पूर्वानुमानित पश्च प्रकीर्णन की प्रायिकता, रदरफोर्ड मॉडल द्वारा पूर्वानुमानित मान की तुलना में अत्यन्त कम है।
(c) t पर रैखिक निर्भरता यह प्रदर्शित करती है कि प्रकीर्णन मुख्यतः एकल संघट्ट के कारण होता है। मोटाई t के बढ़ने के साथ लक्ष्य स्वर्ण नाभिकों की संख्या रैखिक रूप से बढ़ती है; अत: α-कणों के, स्वर्ण नाभिक से एकल संघट्ट की सम्भावना रैखिक रूप से बढ़ती है।
(d) टॉमसन मॉडल में परमाणु का सम्पूर्ण धनावेश परमाणु में समान रूप से वितरित है; अत: एकल संघट्ट α-कण को अल्प कोण से विक्षेपित कर पाता है। अतः इस मॉडल में औसत प्रकीर्णन कोण का परिकलन, बहुप्रकीर्णन के आधार पर ही किया जा सकता है।
5. हाइड्रोजन परमाणु में केवल एक इलेक्ट्रॉन है, परन्तु उसके उत्सर्जन स्पेक्ट्रम में कई रेखाएं होती हैं। ऐसा कैसे होता है, संक्षेप में समझाइए।
उत्तर: प्रत्येक परमाणु के कुछ निश्चित ऊर्जा स्तर होते हैं। सामान्यतया हाइड्रोजन परमाणु का इलेक्ट्रॉन निम्नतम कर्जा स्तर में रहता है। जब परमाणु को बाहरी स्रोत से ऊर्जा प्राप्त होती है, तो यह इलेक्ट्रॉन निम्न कर्जा स्तर से उच्च ऊर्जा स्तर में संक्रमण कर जाता है अर्थात परमाणु उजित हो जाता है। लगभग 10-8 सेकण्ड रुककर इलेक्ट्रॉन ऊर्जा स्तर छोड़ देता है तथा यहाँ दो संभावनाएँ होती हैं-
इलेक्ट्रॉन सीधे उच्च ऊर्जा स्तर से निम्न ऊर्जा स्तर में संक्रमण कर जाय।
इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा स्तर से अन्य निम्न ऊर्जा स्तरों से होते हुए निम्नतम ऊर्जा स्तर में लौट सकता है।
चूँकि प्रकाश स्रोत जैसे - हाइड्रोजन लैम्प में असंख्य परमाणु होते हैं, अत: स्रोत में सभी सम्भव संक्रमण होने लगते हैं तथा स्पेक्ट्रम में अनेक रेखाएँ दिखाई देती हैं।
6.हाइड्रोजन परमाणु की सबसे आंतरिक इलेक्ट्रॉन कक्षा की त्रिज्या 5.3 x 10-11 m है। इसकी द्वितीय उत्तेजित अवस्था में कक्षा की त्रिज्या क्या होगी?
हल: दिया है r1 = 5 .3 x 10-11 मी.
हम जानते हैं rn = n2r1
द्वितीय उत्तेजित अवस्था के लिए n = 3
∴ r3= (3)2 r1
r3 = 9 x 5.3 x 10-11
r3 = 47.7 x 10-11 m
r3 = 4.77 x 10-10 m
7. एक दी गई बोर कक्षा में इलेक्ट्रॉन की कुल ऊर्जा - 1.5 eV हैं। गणना कीजिए-
(i) गतिज ऊर्जा (ii) स्थितिज ऊर्जा।
हलः (i) कुल कर्जा के ऋणात्मक मान के तुल्य किसी कक्षा में इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा होती है।
अत:
EK = -(-1.5 eV)
EK = 1.5 eV
(ii) कुल ऊर्जा का दोगुनी इलेक्ट्रॉन की स्थितिज ऊर्जा होती है।
EP = 2 EK
EP = -1.5 x 2
= -3 eV
8. बोर के क्वाण्टमीकरण के द्वितीय अभिगृहीत का डी - ब्रॉग्ली द्वारा स्पष्टीकरण कीजिए।
उत्तर: बोर के क्वाण्टमीकरण के द्वितीय अभिगृहीत का डी - ब्रॉग्ली द्वारा स्पष्टीकरण :-
बोर के परमाण मॉडल में तीन अभिगृहीत हैं जिनमें दूसरे अभिगृहीत के अनुसार, "नाभिक के परितः इलेक्ट्रॉन केवल उन्हीं कक्षाओं में नाभिक की परिक्रमा कर सकते हैं जिनके लिए कोणीय संवेग का मान h2 का पूर्ण गुणज होता है।" अर्थात्
कोणीय संवेग = n x h2
जहाँ n = 1, 2, 3, 4 ...........
इस अभिगृहीत में समस्या यह है कि कोणीय संवेग का मान h2 का ही पूर्ण गुणज क्यों होता है? सन् 1923 में फ्रांसीसी भौतिकविद् लुईस डी - ब्रॉग्ली ने इस समस्या का समाधान प्रस्तुत किया। डी - ब्रॉग्ली ने तर्क दिया कि इलेक्ट्रॉन को बोर द्वारा प्रस्तावित कक्षा में कण तरंग के रूप में देखा जाना चाहिए। जिस प्रकार डोरियों में उत्पन्न तरंगें अनुनादी अवस्था में अप्रगामी तरंगें उत्पन्न करती हैं उसी प्रकार कण तरंगें भी अनुनादी अवस्थाओं में अप्रगामी तरंगें उत्पन्न कर सकती हैं। किसी डोरी में अप्रगामी तरंगें तभी बनेंगी जब तरंग द्वारा डोरी में एक ओर जाने में तथा वापस आने में तय की गई कुल दूरी,
एक तरंगदैर्ध्य, दो तरंगदैर्ध्य अथवा कोई भी पूर्णाक संख्या की तरंगदैर्ध्य के बराबर हो। अन्य स्थितियों में (तरंगदैर्ध्य के अन्य गुणांकों) परावर्तन के पश्चात् अध्यारोपण होता है और उनके आयाम शून्य हो जाते हैं। यदि कक्षा की त्रिज्या rn है तो n वीं कक्षा में इलेक्ट्रॉन द्वारा कक्षा की परिधि में तय की गई कुल दूरी 2π rn होगी। अतः
2π rn= nλ
जहाँ n = 1,2,3,.... .............(1)
चित्र किसी वृत्ताकार कक्षा पर, जिसके लिए n = 4 है, एक अप्रगामी कण - तरंग प्रदर्शित की गई है। इस प्रकार
2πrn = 4λ
जहाँ λ, n वीं कक्षा में इलेक्ट्रॉन की डी - ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य है।
परन्तु λ = hp = hmvn
, जहाँ vn, n वीं कक्षा में इलेक्ट्रॉन की चाल है।
अत: समी. (1) से,
2πrn = n x hmvn
या mVnrn = n x h2
या nवीं कक्षा में कोणीय संवेग = n x h2
यही बोर के परमाणु मॉडल का द्वितीय अभिगृहीत है। इस प्रकार डी - ब्रॉग्ली की परिकल्पना परिक्रमी इलेक्ट्रॉन के कोणीय संवेग के क्वाण्टमीकरण की बोहर द्वारा प्रस्तावित द्वितीय अभिगृहीत के लिए व्याख्या प्रस्तुत करती है। इलेक्ट्रॉन की क्याण्टित कक्षाएँ तथा ऊर्जा स्थितियाँ, इलेक्ट्रॉन की तरंग प्रकृति के कारण हैं और केवल अनुनादी अप्रगामी तरंगें ही अवस्थित रह सकती हैं।
9. समीपस्थ पहुँच दूरी (क्लोजेस्ट एप्रोच दूरी) क्या है ? समझाएँ।
उत्तर:- α-कण प्रकीर्णन प्रयोग में α-कण नाभिक के केन्द्र की तरफ गतिशील होता है तथा उससे जितनी दूरी से
वापस होता है, वही दूरी उसकी समीपस्थ पहुँच दूरी (क्लोजेस्ट एप्रोच दूरी) कहलाती है। इसे r0 से दिखाया जाता है। यहाँ इसकी – O+ नाभिक गतिज ऊर्जा, स्थिर विद्युत स्थितिज ऊर्जा के समान होते हैं।
अत: EP= 140 . (2e)(Ze)r0
जहाँ EP = स्थिर विधुत स्थितीज उर्जा।
EK= 12mv2,
जहाँ EK= गतिज उर्जा
10. हाइड्रोजन परमाणु मॉडल के लिए बोर की क्या मान्यताएँ या परिकल्पनाएँ हैं ?
उत्तर:- बोर के हाइड्रोजन परमाणु मॉडल की निम्नलिखित मान्यताएँ या परिकल्पनाएँ हैं :
(a) परमाणु जिसमें धनावेशित नाभिक होता है परमाणु के पूरे द्रव्यमान के लिए उत्तरदायी होता है।
(b) इलेक्ट्रॉन निश्चित त्रिज्याओं के किसी निश्चित वृत्ताकार कक्षाओं में नाभिक के चारों तरफ परिभ्रमण करता है।
(c) निश्चित कक्षाएँ वैसे होते हैं जिसमें इलेक्ट्रॉन के कोणीय संवेग h/2π के पूर्ण गुणज होते हैं, जहाँ h प्लांक का स्थिरांक है। इसका मान 6.62 x 10-34 जूल-सेकेण्ड है।
माना कि m तथा v, त्रिज्या r के निश्चित कक्षाओं में इलेक्ट्रॉन के द्रव्यमान, रैखिक वेग तथा उसके घूर्णन त्रिज्या है, तो mvr = n h2, जहाँ n प्रधान क्वांटम संख्या कहलाती है, जिसका पूर्ण मान क्रमशः 1, 2, 3,…………है।
यह बोर का क्वांटाइजेशन अवस्था कहलाती है।
(d) जब इलेक्ट्रॉन, निश्चित कक्षाओं में परिक्रमा करते हैं तो वे ऊर्जा विकीर्णन नहीं करते हैं तथा वैसे कक्षाओं को स्थायी कक्षाएँ कहते हैं।
(e) ऊर्जा विकीर्णित होती है, जब इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा कक्षा से निम्न ऊर्जा कक्षा पर कूदती है तथा ऊर्जा अवशोषित होती है जब वह निम्न ऊर्जा कक्षा से उच्च ऊर्जा कक्षा पर कूदती है।
माना कि ni तथा nf प्रधान क्वांटम संख्या के कक्षाओं के साथ क्रमशः Ei तथा Ef ऊर्जाओं से सम्बन्धित है। इसमें ni< nfतो उत्सर्जित विकिरण की आवृत्ति v = Ei -Ef h है। यह बोर की आवृत्ति अवस्था कहलाती है, जहाँ h प्लांक नियतांक है।
11. α-किरणों के प्रकीर्णन के प्रयोग में अधिकांश α-कण धातु-पत्र से होकर सीधे गुजर जाते हैं। इससे आप क्या निष्कर्ष निकालेंगे ?
अथवा, रदरफोर्ड के α-कणों के प्रकीर्णन से क्या निष्कर्ष निकाला गया ?
उत्तर:- धातु-पत्र (धातु की पत्ती) पर से α-कणों के प्रकीर्णन में यह देखा गया कि ये कण विभिन्न दिशाओं में विक्षेपित हो जाते हैं। प्रयोग में यह भी देखा गया कि अधिकांश α-कणों में कोई भी विक्षेप नहीं होता। कुछ कण तो छोटे-छोटे कोणों से विक्षेपित होते हैं, परंतु कुछ ही कण अपने प्रारंभिक पथ से 90° से भी अधिक कोण से विक्षेपित हो जाते हैं। जब धन आवेश से आविष्ट α-कण धातु-पत्र के परमाणु से गुजरते हैं तो उनमें से अधिकांश कणों पर कोई बल नहीं लगता या बहुत कम बल लगता है। परंतु किसी-किसी कण पर बहुत अधिक विकर्षण-बल लगता है। रदरफोर्ड ने अनुमान लगाया कि ऐसा तभी संभव है जब परमाणु के अंदर एक धन आवेश अत्यधिक संकेंद्रित हो। गणना के आधार पर उन्होंने बताया कि परमाणु में उसका द्रव्यमान तथा धन आवेश अत्यंत छोटे आकार (10-15 m त्रिज्या) के नाभिक (न्यूक्लियस) में संकेंद्रित रहते हैं तथा इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर वृत्तीय कक्षाओं में घूमते रहते हैं। इस प्रकार परमाणु के अंदर नाभिक तथा इलेक्ट्रॉनों के बीच स्थान खाली रहता है। यदि α-कण परमाणु के खोखले भाग से गुजरते हैं तो वे सीधे अथवा थोड़ा विक्षेपित होकर निकल जाते हैं। यदि -कण नाभिक के बहुत निकट से गुजरता है तो वह तीव्र विकर्षण बल का अनुभव करता है और अपने पथ से अधकि विक्षेपित हो जाता है।
12. रिडवर्ग नियतांक क्या है, इसका मात्रक लिखें।
उत्तर:- हाइड्रोजन परमाणु के बोर-सिद्धांत से हम जानते हैं कि जब इलेक्ट्रॉन उच्चतर कक्षा n2 (ऊर्जा En2) से निम्नतर कक्षा n1(ऊर्जा En1) में आता है तब विद्युत-चंबकीय तरंगों के रूप में उत्सर्जित फोटॉन की ऊर्जा
hv= En2 -En1 = me4802h2 1n12-1n22
v = me4802h3 1n12-1n22
यदि प्रकाश का वेग c हो और उत्सर्जित विकिरण ऊर्जा का तरंगदैर्ध्य λ हो, तो
= cv
1 = vc = me4802h3 1n12-1n22
1 = R122-1n2
v = R1n12-1n22
जहाँ 1 = v; v को उत्सर्जित विकिरण-ऊर्जा की तरंग संख्या कहा जाता है , तथा R = me4802h3‘ एक नियतांक है जिसे रिडबर्ग नियतांक कहा जाता है।
उपर्युक्त व्यंजक में m इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान, e इलेक्ट्रॉन पर आवेश, 0 मुक्त आकाश की परावैद्युतता c प्रकाश का वेग तथा h प्लांक का स्थिरांक है।
रिडबर्ग नियतांक का SI मात्रक m-1 है तथा इसका सैद्धांतिक मानक 1.097000 x 107 m-1 प्राप्त होता है।
रिडबर्ग नियतांक का यह सैद्धांतिक मान, प्रयोगात्मक मान से बहुत ही थोड़ा भिन्न है।
13. उत्तेजित ऊर्जा तथा आयनीकरण ऊर्जा से क्या तात्पर्य हैं ?
उत्तर:- उत्तेजित ऊर्जा – उत्तेजित ऊर्जा, ऊर्जा का वह परिमाण है जो एक इलेक्ट्रॉन को ग्राउंड अवस्था से परमाणु के किसी एक उत्तेजित अवस्था में कूदने में लगता है।
हम जानते हैं कि हाइड्रोजन परमाणु के ग्राउंड अवस्था (n = 1) में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा, E1 = 13.6 3V, प्रथम उत्तेजित अवस्था में (n = 2) में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा E2 = -3.4 eV है।
इसलिए, हाइड्रोजन परमाणु के प्रथम उत्तेजित ऊर्जा,
E2 – E1= – 3.4 – (- 13.6) = 10.2 eV.
अतः 10.2 वोल्ट को प्रथम उत्तेजित विभव कहते हैं। उसी प्रकार, हाइड्रोजन परमाणु के दूसरे उत्तेजित ऊर्जा, E3 – E1 = -1.51 – (-13.6) = 12.09 eV तथा दूसरे उत्तेजित विभव 12.09 वोल्ट है।
आयनीकरण ऊर्जा – आयनीकरण ऊर्जा वैसी आवश्यक ऊर्जा है, जिसके परमाणु से एक इलेक्ट्रॉन को बाहर निकाला जाता है। जब इलेक्ट्रॉन को बढ़ाकर कक्षा n = ∞ में ले जाया जाता है तो वह परमाणु से पूर्णतः बाहर हो जाता है। इसलिए, हाइड्रोजन परमाणु के आयनीकरण ऊर्जा n = 1 कक्षा से n = ∞ कक्षा में छोड़ने में आवश्यक ऊर्जा के बराबर होता है। अर्थात् आयनीकरण ऊर्जा = E∞ – E1 = 0 – (- 13.6) = 13.6 ev । अतः हाइड्रोजन परमाणु के आयनीकरण विभव 13.6 वोल्ट है।
14. नाभिक का संघटन क्या है ? समझाएँ।
उत्तर:- परमाणु के नाभिक में प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन होते हैं। प्रोटॉन और न्यूट्रॉनों की कुल संख्या मिलकर परमाणु की द्रव्यमान संख्या या उसके परमाणु भार A के बराबर होती है तथा प्रोटॉनों की संख्या, परमाणु क्रमांक Z के बराबर होती है। नाभिक का कुल आवेश उसमें उपस्थित समस्त प्रोटॉनों के आवेश के बराबर होता है तथा नाभिक का कुल द्रव्यमान, उसमें उपस्थित समस्त प्रोटॉनों एवं न्यूट्रॉनों के द्रव्यमान के योग के बराबर होता है। उदाहरण के लिए, हाइड्रोजन (परमाणु क्रमांक = 1, परमाणु भार = 1) के नाभिक में केवल एक प्रोटॉन होता है। हीलियम का परमाणु क्रमांक 2 तथा परमाणु भार 4 है, अतः इसके नाभिक में दो प्रोटॉन तथा दो न्यूट्रॉन होते हैं।
किसी भी नाभिक में प्रोटॉनों की संख्या ठीक उतनी ही होती है जितना उस तत्त्व का परमाणु क्रमांक होता है तथा न्यूट्रॉनों की संख्या = परमाणु भार – परमाणु क्रमांक।
नाभिक के संघटन की यह प्रोटॉन- न्यूट्रॉन परिकल्पना अनेक प्रयोगों द्वारा प्रमाणित की जा चुकी है तथा इसी परिकल्पना को अभी तक सत्य माना जाता है।
15. प्रकाश का फोटो सेल क्या है ?प्रकाश फोटो सेल का उपयोग बताइए |
उत्तर: फोटो सेल एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें प्रकाश ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदला जा सकता है। यह प्रकाश विद्युत प्रभाव के सिद्धांत पर बनी रहती है।
यह मुख्यतः दो प्रकार का होता है -
(i) प्रकाश उत्सर्जक सेल (ii) प्रकाश वोल्टीय सेल ।
प्रकाश फोटो सेल का उपयोग –
(i) सिनेमाओं में ध्वनि के पुनः उत्पादन में ।
(ii) टेलीविजन तथा फोटोग्राफी में।
(iii) अंतरिक्ष Solar battery द्वारा विद्युत उत्पन्न में।
(iv) सड़कों पर बत्तियों के अपने-आप जलने या बुझने में तथा Crossing पर signal देने के काम में।
(v) दरवाजों को अपने आप खोलने तथा बंद करने में।
(vi) बैंक, खजानों इत्यादि में चोरों की सूचना देने के काम में।
(vii) मौसम विज्ञान विभाग में दिन के प्रकाश की तीव्रता मापने के काम में।
(viii) तारों के ताप मापने के काम में।
16. (a). परमाणु में इलेक्ट्रॉन की स्थायी कक्षा किसे कहते हैं तथा उसकी शर्त क्या होती है?
(b).परमाणु में इलेक्ट्रॉन की स्थायी कक्षा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर: (a) कुछ निश्चित त्रिज्याओं की कक्षाएँ जिनमें घूमता इलेक्ट्रॉन ऊर्जा का उत्सर्जन नहीं करता है, स्थायी कक्षाएँ कहलाती हैं। इन कक्षाओं में घूमते इलेक्ट्रॉन का कोणीय संवेग h/2π का पूर्ण गुणक होता है।
अर्थात्
mνr= nh/2π
(जहाँ, n = 1, 2, 3, …)
(b) इलेक्ट्रॉन की स्थायी कक्षा वह होती है जिसमें घूमते हुए इलेक्ट्रॉन ऊर्जा उत्सर्जित नहीं करता। इन कक्षाओं में घूमते इलेक्ट्रॉन का कोणीय संवेग, h/2π को पूर्ण गुणज होता है, जहाँ h प्लांक नियतांक है। इसे क्वाण्टम प्रतिबन्ध कहते हैं।
17.(a). हाइड्रोजन परमाणु की निम्नतम अवस्था में ऊर्जा -13.6 eV है। इस अवस्था में इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा और स्थितिज ऊर्जाएँ क्या होंगी?
(b). एक दी गई बोर कक्षा में इलेक्ट्रॉन की कुल ऊर्जा - 1.5 eV हैं। गणना कीजिए-
(i) गतिज ऊर्जा (ii) स्थितिज ऊर्जा।
हल:
(a) H2 परमाणु की मूल ऊर्जा
E = -13.6 ev
गतिज ऊर्जा EK = -E = 13.6 ev
स्थितिज ऊर्जा EP = 2 EK = 2x 13.6 ev
EP = - 27.2ev
(b) (i) कुल कर्जा के ऋणात्मक मान के तुल्य किसी कक्षा में इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा होती है।
अत:
EK = -(-1.5 eV)
EK = 1.5 eV
(ii) कुल ऊर्जा का दोगुनी इलेक्ट्रॉन की स्थितिज ऊर्जा होती है।
EP = 2 EK
EP = -1.5 x 2
= -3 eV
18.संतत (अविरत) स्पेक्ट्रम व रेखीय स्पेक्ट्रम में अन्तर बताइए।
उत्तर: रेखीय स्पेक्ट्रम:
इस प्रकार के स्पेक्ट्रम में काली पृष्ठभूमि पर केवल कुछ चमकीली रंगीन रेखाएँ प्राप्त होती हैं। इन्हें स्पेक्ट्रमी रेखाएँ कहते हैं, जिनकी संख्या तथा तरंगदैर्घ्य केवल लिये गए तत्त्व पर निर्भर करती है, किसी अन्य राशि पर नहीं।
अविरत या संतत स्पेक्ट्रम:
इस स्पेक्ट्रम में लाल रंग से लेकर बैंगनी तक सभी रंगों की सभी तरंगदैर्ध्य विद्यमान रहती हैं। इसमें सभी रंग एक सिरे से दूसरे सिरे तक एक बिना टूटी हुई पट्टी के रूप में उपस्थित रहते हैं, अर्थात् इन स्पेक्ट्रमों में यह बताना कठिन है कि एक रंग कहाँ समाप्त हो रहा है। और दूसरा रंग कहाँ से आरम्भ हो रहा है। पास-पास के रंग एक-दूसरे में इस प्रकार विलीन रहते हैं कि दो रंगों के बीच कोई निश्चित पृथक्कारी रेखा नहीं होती।
19. रदरफोर्ड के-कण प्रकीर्णन के प्रायोगिक निरीक्षण का क्या निष्कर्ष प्राप्त हुआ ?रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल में कमियाँ लिखिए |
उत्तर:- निष्कर्ष –
(i) परमाणु के सभी धनात्मक आवेश अत्यल्प भाग में संकेन्द्रित होते है।
(ii) पूरे द्रव्यमान थोड़े भाग में ही संकेन्द्रित होते हैं, जिनका आकार का भाग 1/10000 वाँ भाग होता है उसे नाभिक कहा जाता है।
(iii) नाभिक के चारों ओर का स्थान व्यावहारिक रूप से रिक्त होता है। सोने के नाभिक प्रकीर्णित प्रक्रिया में स्थिर होते हैं।
α- कण का परिणाम F = 140 . 2Zer2
(iv) α-कणों के प्रकीर्णन की कुल संख्या तथा प्रकीर्णन कोण के बीच का ग्राफ परमाणु के नाभिक मॉडल के आधार पर होता है।
रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल में कमियाँ: रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल में निम्न दो कमियाँ पायी गयीं
(i) परमाणु के स्थायित्व के सम्बन्ध में:
नाभिक के चारों ओर घूमते इलेक्ट्रॉन में अभिकेन्द्र त्वरण होता है। विद्युत गतिविज्ञान के अनुसार, त्वरित आवेशित कण ऊर्जा (विद्युत-चुम्बकीय तरंगें) उत्सर्जित करता है। अतः नाभिक के चारों ओर विभिन्न कक्षाओं में घूमते इलेक्ट्रॉनों से विद्युतचुम्बकीय तरंगें लगातार उत्सर्जित होनी चाहिए। इस प्रकार, इलेक्ट्रॉनों की ऊर्जा का ह्रास होने के कारण उनके वृत्तीय पथ की त्रिज्या लगातार कम होती जानी चाहिए और अन्त में वे नाभिक में गिर जाने चाहिए। इस प्रकार परमाणु स्थायी ही नहीं रह सकता।
(ii) रेखीय स्पेक्ट्रम की व्याख्या के सम्बन्ध में:
मॉडल में इलेक्ट्रॉनों के वृत्तीय पथ की त्रिज्या के लगातार बदलते रहने से उनके घूमने की आवृत्ति भी बदलती रहेगी। इसके फलस्वरूप इलेक्ट्रॉन सभी आवृत्तियों की विद्युत-चुम्बकीय तरंगें उत्सर्जित करेंगे, अर्थात् इन तरंगों का स्पेक्ट्रम संतत होगा। परन्तु वास्तव में परमाणुओं के स्पेक्ट्रम संतत न होकर, रेखीय होते हैं अर्थात् उनमें बहुत-सी बारीक रेखाएँ होती हैं तथा प्रत्येक स्पेक्ट्रमी रेखा की एक निश्चित आवृत्ति होती है। अत: परमाणु से केवल कुछ निश्चित आवृत्ति की ही तरंगें उत्सर्जित होनी चाहिए, सभी आवृत्तियों की नहीं। इस प्रकार, रदरफोर्ड मॉडल रेखीय स्पेक्ट्रम की व्याख्या करने में असक्षम रहा। इन कमियों को नील बोर ने क्वाण्टम सिद्धान्त के आधार पर दूर किया।
20. आयनीकरण ऊर्जा क्या है ? हाइड्रोजन परमाणु की आयनन ऊर्जा ज्ञात कीजिए।
उत्तर: आयनीकरण ऊर्जा – आयनीकरण ऊर्जा वैसी आवश्यक ऊर्जा है, जिसके परमाणु से एक इलेक्ट्रॉन को बाहर निकाला जाता है। जब इलेक्ट्रॉन को बढ़ाकर कक्षा n = ∞ में ले जाया जाता है, तो वह परमाणु से पूर्णतः बाहर हो जाता है। इसलिए हाइड्रोजन परमाणु के आयनीकरण ऊर्जा n = 1 कक्षा से n = ∞ कक्षा में छोड़ने में आवश्यक ऊर्जा के बराबर होता है। अर्थात्
आयनीकरण ऊर्जा = E∞ – E1 = 0 – (-13.6) = 13.6 eV
हाइड्रोजन परमाणु की nवीं कक्षा में ऊर्जा En= -13.6n2
अतः आयनित अवस्था (n = ∞] में ऊर्जा E∞= 0
परमाणु की निम्नतम अवस्था (n= 1) में ऊर्जा E1 = – 13.6 eV
अत: यदि परमाणु को निम्नतम अथवा मूल अवस्था में 13.6 eV ऊर्जा बाहर से दी जाये, तो परमाणु की कुल ऊर्जा =- 13.6 eV+ 13.6 eV = 0 हो जायेगी अर्थात् परमाणु आयनित अवस्था में पहुँच जायेगा।।
21.(a) हाइड्रोजन परमाणु के लिए नील्स बोर के कोई दो अभिगृहीत लिखिए।
(b)बोर मॉडल की दो सीमाएं लिखिए।
उत्तर: बोर की अभिगृहीत:
(i) परमाणु में इलेक्ट्रॉन निश्चित त्रिज्याओं की कक्षाओं में नाभिक के चारों ओर परिक्रमण करते हैं, इन कक्षाओं में परिक्रमण करते समय इलेक्ट्रॉन विद्युत चुम्बकीय विकिरण उत्सर्जित नहीं करते हैं। ये विशिष्ट कक्षाएँ 'स्थायी कक्षाएँ' कहलाती हैं।
(ii) इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर केवल उन्हीं कक्षाओं में रह सकता है जिनके लिए कोणीय संवेग का मान h2 का पूर्ण गुणज होता हैं।
(b) बोर मॉडल की दो सीमाएँ-
इस सिद्धांत द्वारा केवल एक इलेक्ट्रॉन वाले परमाणु जैसे - हाइड्रोजन, आयनित हीलियम आदि की ही व्याख्या की जा सकती हैं।
यह सिद्धांत परमाणु में इलेक्ट्रॉन वितरण संबंधी कोई सूचना नहीं देता है।
22 .बोर का परमाणु मॉडल क्या है इसकी सीमाएं, अभिगृहीत तथा दोष लिखिए |
उत्तर: बोर का परमाणु मॉडल :-
डैनिश भौतिकी वैज्ञानिक नील बोर ने रदरफोर्ड परमाणु मॉडल में प्लांक के क्वांटम सिद्धांत को लगाकर उसकी कमियों को दूर किया, तथा एक नया मॉडल प्रस्तुत किया। जिसे बोर का परमाणु मॉडल कहते हैं।
बोर के परमाणु मॉडल की अभिगृहीत (परिकल्पनाएं) :-
1. इलेक्ट्रॉन केवल उन्हीं कक्षाओं में घूर्णन करते हैं जिनका कोणीय संवेग h2π का पूर्ण गुणज होता है।
यदि इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान m हो तथा यह इलेक्ट्रॉन r त्रिज्या की कक्षा में, v वेग से घूम रहा हो तब इस इलेक्ट्रॉन का कोणीय संवेग mvr होगा। तब बोर की प्रथम परिकल्पना के अनुसार
mvr = nh2
जहां h प्लांक नियतांक है जिसका मान 6.6 × 10-34 जूल-सेकंड होता है। तथा n एक पूर्णांक है जिसे मुख्य क्वांटम संख्या कहते हैं।
2. नाभिक के चारों ओर अनेक वृत्तीय कक्षाएं होती हैं लेकिन इलेक्ट्रॉन केवल निश्चित त्रिज्याओं वाली कक्षाओं में ही घूम सकते हैं। इन कक्षाओं को स्थायी कक्षा कहते हैं।
किसी भी स्थायी कक्षा में घूर्णन करते हुए इलेक्ट्रॉन ऊर्जा का उत्सर्जन नहीं करते, क्योंकि उनमें अभिकेंद्र त्वरण होता है। जिसके फलस्वरूप परमाणु का स्थायित्व बना रहता है।
3. जब किसी परमाणु को किसी कारण बाहर से कोई ऊर्जा मिलती है। तो उस परमाणु का कोई इलेक्ट्रॉन अपनी निश्चित कक्षा छोड़कर किसी ऊंची कक्षा में चला जाता है। परमाणु की इस अवस्था को उत्तेजित अवस्था कहते हैं। चित्र द्वारा स्पष्ट किया गया है। लेकिन इलेक्ट्रॉन यहां केवल 10-8 सेकंड ही ठहरता है एवं तुरंत ही अपनी निचली कक्षा में वापस लौटता है। तथा लौटते समय ऊर्जा को विद्युत चुंबकीय तरंगों के रूप में उत्सर्जित करता है।
माना निचली कक्षा में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा E1 तथा ऊंची कक्षा में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा E2 है यदि उत्सर्जित तरंगों की आवृत्ति v है। तो
hv = E2 – E1
या v = E2- E1h
इस समीकरण को बोर का आवृत्ति प्रतिबंध कहते हैं।
r1 =h20me2
इसे बोर त्रिज्या कहते हैं। इसका मान 0.53 Å होता है।
यह हाइड्रोजन परमाणु की प्रथम कक्षा की त्रिज्या है।
बोर के परमाणु मॉडल के दोष:-
बोर के परमाणु मॉडल में कुछ कमियां पायी गई। जिनको निम्न प्रकार से दर्शाया गया है।
1. बोर का परमाणु मॉडल स्पेक्ट्रम रेखाओं की व्याख्या नहीं कर सका।
2. बोर का परमाणु मॉडल जेमान प्रभाव की व्याख्या करने में असफल रहा।
23.रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल क्या है दोष, तथ्य का सचित्र वर्णन लिखिए|
उत्तर: रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल :-
सन् 1911 में वैज्ञानिक रदरफोर्ड ने परमाणु की संरचना जानने के लिए प्रयोग किया। इसमें प्रयोग में रेडियोएक्टिव तत्व पोलिनियम से उच्च गतिज ऊर्जा से निकलने वाली α-किरणों की किसी एक किरण-पुंज को बहुत महीन स्वर्ण-पत्र पर गिराया। एवं रदरफोर्ड ने यह देखा कि स्वर्ण-पत्र में से α-कणों की किरण-पुंज गुजरते हुए विभिन्न दिशाओं में विक्षेपित हो जाते हैं।
α-कणों का अपने मार्ग से विक्षेपित होने की घटना को प्रकीर्णन कहते हैं। रदरफोर्ड ने इस प्रयोग द्वारा निम्नलिखित तथ्य प्राप्त किए।
रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल के तथ्य :-
1. रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल के अनुसार, परमाणु का द्रव्यमान तथा समस्त धन आवेश परमाणु के केंद्र पर 10-15 मीटर की कोटि की त्रिज्या के एक सूक्ष्म गोलाकार स्थान पर संकेन्द्रित रहता है। जिसे नाभिक कहते हैं।
2. नाभिक के चारो ओर 10-10 मीटर की कोटि की त्रिज्या के खोखले गोले इलेक्ट्रॉन भरे रहते हैं। इन इलेक्ट्रॉनों का कुल ऋण आवेश नाभिक में उपस्थित धन आवेश के बराबर होता है।
3. रदरफोर्ड ने परिकल्पना की, कि यह इलेक्ट्रॉन स्थिर नहीं है बल्कि नाभिक के चारों ओर अनेक कक्षाओं में घूर्णन करते रहते हैं। इन इलेक्ट्रॉनों के लिए आवश्यक अभिकेंद्र बल इलेक्ट्रॉन तथा नाभिक के बीच स्थिर वैद्युत आकर्षक प्राप्त होता है।
रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल के दोष :-
रदरफोर्ड द्वारा प्रस्तुत परमाणु मॉडल में निम्नलिखित दो दोष पाए गए।
1. रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल, परमाणु के स्थायित्व के संबंध की व्याख्या करने में असमर्थ रहा।
2. रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल, रेखीय स्पेक्ट्रम की व्याख्या करने में असमर्थ रहा।
24.हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम क्या है व्याख्या कीजिए।
उत्तर: हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम :-
हाइड्रोजन के स्पेक्ट्रम की अध्ययन बामर ने किया था। तथा यह बताया कि इस स्पेक्ट्रम में काली पृष्ठभूमि पर बहुत सी अलग-अलग चमकीली रेखाएं होती है। इस स्पेक्ट्रम के एक सिरे से दूसरे सिरे की ओर चलने पर इन रेखाओं की चमक तथा उनके बीच की दूरी लगाकर घटती जाती है। अतः इस प्रकार यह रेखाएं एक श्रेणी का भाग हैं। जिसे बामर श्रेणी कहते हैं।
हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम की श्रेणी :-
हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम की निम्न श्रेणियां, विभिन्न भागों में होती हैं। जैसे लाइमन श्रेणी पराबैगनी भाग में, बामर श्रेणी दृश्य भाग में, पाश्चन, ब्रैकेट और फुण्ड श्रेणी अवरक्त भाग में प्राप्त होती है।
25. 2.3eV ऊर्जा अन्तर किसी परमाणु में दो ऊर्जा स्तरों को पृथक कर देता है। उत्सर्जित विकिरण की आवृत्ति क्या होगी यदि परमाणु में इलेक्ट्रॉन उच्च स्तर से निम्न स्तर में संक्रमण करता है?
हल: दिया है, ∆E = 2.3 eV= 2.3 x 1.6 x 10-19 जूल;
h = 6.62 x 10-34जूल-सेकण्ड
विकिरण की आवृत्ति ν = ?
∆E= hv
v = ∆Eh = 2.3 x 1.6 x 10-196.62 x 10-34 = 5.57x 1014 Hz