बिहार बोर्ड कक्षा 12 भौतिक विज्ञान अध्याय 5 चुम्बकत्व तथा द्रव्य दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
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बिहार बोर्ड कक्षा 12 भौतिक विज्ञान अध्याय 5 चुम्बकत्व तथा द्रव्य दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

BSEB > Class 12 > Important Questions > भौतिक विज्ञान अध्याय 5 चुम्बकत्व तथा द्रव्य - दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 

1.चुंबकीय क्षेत्र तथा  चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं किसे कहते है ?चुंबकीय बल रेखाएं एवं विद्युत बल रेखाओं में अंतर बताइए | 

उत्तर : -  चुंबकीय क्षेत्र : - किसी चुंबक के चारों ओर का वह क्षेत्र, जिसमें किसी चुंबकीय बल का अनुभव किया जा सकता है इस क्षेत्र को चुंबक का चुंबकीय क्षेत्र कहा जाता है।

चुंबकीय बल रेखाएं: -

जब किसी चुंबक के पास कोई चुंबकीय सुई (कम्पास सुई) लायी जाती है। तो चुंबकीय सुई घूमकर एक निश्चित दिशा में रूक जाती है। अब यदि चुंबक की दिशा की परिवर्तन कर दें, तो चुंबकीय सुई की दिशा भी परिवर्तित हो जाती है। चुंबकीय सुई एक वक्र पथ पर विचलित होती रहती है।

अतः इस प्रकार स्पष्ट होता है कि चुंबकीय क्षेत्र की रेखाएं वक्र रेखाओं के रूप में होती हैं। इन वक्र रेखाओं को चुंबकीय बल रेखाएं अथवा चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं कहते हैं।

चुंबकीय बल रेखाएं चुंबक के उत्तरी ध्रुव से प्रारंभ होकर दक्षिणी ध्रुव पर समाप्त हो जाती हैं। यह रेखाएं बंद वक्र बनाती हैं।

           चुंबकीय बल रेखाएं

चुंबकीय बल रेखाओं के गुण : -

चुंबकीय बल रेखाएं सदैव चुंबक के उत्तरी ध्रुव से प्रारंभ होकर दक्षिणी ध्रुव में प्रवेश करती हैं। तथा दक्षिणी ध्रुव से चुंबक के अंदर होते हुए उत्तरी ध्रुव पर पुनः वापस लौट आती है। अर्थात् यह रेखाएं बंद वक्र बनाती हैं।

चुंबकीय बल रेखाएं एक दूसरे को नहीं काटती हैं। ऐसा इसलिए होता है चूंकि अगर चुंबकीय बल रेखाएं एक दूसरे को काटती है तो कटान बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र की दिशाएं एक से अधिक होंगी। जो लगभग असंभव है।

चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के किसी बिंदु पर खींची गईं स्पर्श रेखाएं उस बिंदु पर परिणामी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा बताती हैं।

चुंबक के ध्रुव के समीप चुंबकीय बल रेखाएं पास-पास होती हैं। जिस कारण यहां चुंबकीय क्षेत्र प्रबल होता है। तथा चुंबक के ध्रुव के दूर चुंबकीय बल रेखाएं दूर-दूर होती है। जिस कारण वहां चुंबकीय क्षेत्र दुर्बल होता है।

वह स्थान जहां चुंबकीय बल रेखाएं परस्पर समांतर तथा समान दूरी पर स्थित होती हैं। तो ऐसे क्षेत्र को एकसमान चुंबकीय क्षेत्र कहते हैं।

चुंबकीय बल रेखाएं एवं विद्युत बल रेखाओं में अंतर :-

चुंबकीय बल रेखाएं बंद वक्र बनाती है जबकि विद्युत बल रेखाएं बंद वक्र नहीं बनाती हैं।

चुंबकीय बल रेखाएं चुंबक के उत्तरी ध्रुव से निकलकर दक्षिणी ध्रुव पर समाप्त हो जाती हैं। जबकि विद्युत बल रेखाएं धनावेश से प्रारंभ होकर ऋणावेश पर समाप्त हो जाती हैं।

चुंबकीय बल रेखाएं एक दूसरे को नहीं काटती हैं। तथा विद्युत बल रेखाएं भी एक दूसरे को नहीं काटती हैं।

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2. पृथ्वी के चुंबकत्व के अवयवों का वर्णन कीजिए | 

उत्तर : -

पृथ्वी के चुंबकत्व के तीन अवयव हैं।

1. दिक्पात का कोण

2. नमन या नति कोण

3. पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का क्षैतिज घटक

दिक्पात का कोण : -

किसी स्थान पर चुंबकीय याम्योत्तर तथा भौगोलिक याम्योत्तर के बीच बने कोण को दिक्पात का कोण कहते हैं।

Note – किसी स्थान पर अपने गुरुत्व केंद्र से स्वतंत्र पूर्वक लटकी चुंबकीय सुई की अक्ष से गुजरने वाले ऊर्ध्वाधर तल को चुंबकीय याम्योत्तर कहा जाता है। चित्रानुसार OPQR चुंबकीय याम्योत्तर को दर्शाता है।

तथा किसी स्थान पर पृथ्वी के भौगोलिक उत्तर तथा दक्षिण ध्रुवों को मिलाने वाली रेखाओं में से गुजरने वाले ऊर्ध्वाधर तल को भौगोलिक याम्योत्तर कहते हैं। चित्रानुसार OLMR भौगोलिक याम्योत्तर को दर्शाता है।

नमन या नति कोण :-

पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की दिशा तथा क्षैतिज दिशा के बीच बने कोण को नमन कोण या नति कोण कहते हैं।

पृथ्वी के चुंबकीय ध्रुवों पर नति कोण का मान 90° होता है। तथा निरक्ष पर इसका मान शून्य होता है।

पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का क्षैतिज घटक : -

किसी स्थान पर चुंबकीय याम्योत्तर में कार्य करने वाले पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का जो घटक जो क्षैतिज दिशा में कार्य करता है। उस घटक को पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का क्षैतिज घटक कहते हैं।

माना चुंबकीय याम्योत्तर (OPQR) तथा भौगोलिक याम्योत्तर (OLMR) तलों के बीच बना दिक्पात का कोण α है। तथा चुंबकीय सुई की अक्ष OQ तथा क्षैतिज दिशा OP के बीच बना का नमन या नति कोण θ है। एवं BE पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र है। किसी स्थान पर चुंबकीय याम्योत्तर में कार्य करने वाले पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र को क्षैतिज (H) व ऊर्ध्वाधर घटकों (V) में विभाजित किया जा सकता है।

 

                      पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का क्षैतिज घटक

 

 

पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का क्षैतिज घटक

                           H =  BEcosθ  ……………….(1)

पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का ऊर्ध्वाधर घटक

                           V =  BEsinθ……………………..(2)

समी.(1) व समी.(2) को वर्ग करके जोड़ने पर

                      H2 + V2= BE2 × cos2 + BE2 × sin2

                       H2 + V2 = BE2 × (cos2 + sin2)

समाकलन सूत्र cos2 + sin2= 1 से

                              H2 + V2 = BE2 × 1

या                            BE2 = H2 + V2

​अब समी.(1) को समी.(2) से भाग करने पर

                          VH =BE sinBE cos

समाकलन सूत्र

                         tanθ = sincos  से

 

                            tanθ = VH

या                      = tan-1 VH

            चुंबकीय ध्रुव पर पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के क्षेत्र घटक का मान शुन्य होता है।

3. पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र किसे कहते हैं ? एकसमान चुंबकीय क्षेत्र को बताइए | 

उत्तर : - पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता इसकी सतह पर, विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न होती है। इसका मान लगभग 10-5 टेस्ला की कोटि का होता है।

पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र इसके अंदर रखे एक विशाल चुंबक के कारण होता है। जो लगभग पृथ्वी के घूर्णन अक्ष के अनुदिश होता है। अर्थात् पृथ्वी इस प्रकार व्यवहार करती है। जैसे इसके अंदर बहुत गहराई पर एक विशाल शक्तिशाली चुंबक रखी है। जिसका उत्तरी ध्रुव, पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के दक्षिण ध्रुव की ओर तथा चुंबक का दक्षिणी ध्रुव हमारी पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के उत्तरी ध्रुव की ओर है।

इसकी पुष्टि हम निम्न बिंदुओं के आधार पर कर सकते हैं।

1. यदि किसी चुंबकीय सुई को इस प्रकार लटका दिया जाए, कि वह चुंबकीय सुई क्षैतिज तल पर घूमने के लिए स्वतंत्र रहे। तब इस चुंबकीय सुई का उत्तरी ध्रुव, पृथ्वी के भौगोलिक उत्तरी ध्रुव की ओर तथा चुंबकीय सुई का दक्षिणी ध्रुव पृथ्वी के भौगोलिक दक्षिणी ध्रुव (दक्षिण दिशा) की ओर आकर चुंबकीय सुई रूक जाती है। अर्थात् स्वतंत्रतापूर्वक लटकी चुंबकीय सुई हमेशा उत्तर-दक्षिण दिशा में ही आकर ठहर जाती है। इसका कारण पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र है।

 

                      पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र

 

 

2. वह ध्रुव जो पृथ्वी के भौगोलिक उत्तरी ध्रुव के निकट होता है। उसे उत्तरी चुंबकीय ध्रुव कहते हैं। तथा इसी प्रकार वह ध्रुव जो पृथ्वी के भौगोलिक दक्षिण ध्रुव के निकट स्थित होता है उसे दक्षिणी चुंबकीय ध्रुव कहते हैं।

एकसमान चुंबकीय क्षेत्र

किसी चुंबक के चारों ओर का वह क्षेत्र जिसमें वह चुंबक किसी बल का अनुभव करती है। चुंबक का चुंबकीय क्षेत्र कहलाता है। चुंबकीय क्षेत्र का वह स्थान जहां पर चुंबकीय बल रेखाएं एक-दूसरे के समांतर तथा समदूरस्थ होती हैं। इस स्थान को एकसमान चुंबकीय क्षेत्र कहते हैं। इसे सीधी लाइनों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।

4.  भू चुंबकत्व क्या है ? चुंबकीय अक्ष तथा निरक्ष का सचित्र वर्णन करे |

उत्तर : -  भू चुंबकत्व :- भौतिक विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत पृथ्वी के चुंबकत्व का अध्ययन किया जाता है उसे भू चुंबकत्व कहते हैं।

चुंबकीय अक्ष :- पृथ्वी के चुंबकीय उत्तरी ध्रुव एवं चुंबकीय दक्षिणी ध्रुवों को मिलाने वाली रेखा को पृथ्वी की चुंबकीय अक्ष कहते हैं।

पृथ्वी की चुंबकीय अक्ष अपनी भौगोलिक अक्ष से 11.3° का कोण पर झूकी हुई है।

चुंबकीय निरक्ष :-

वह स्थान जिन पर चुंबकीय सुई पृथ्वी के तल के समांतर हो जाती है। तब उन स्थानों से गुजरने वाली तथा पृथ्वी के ध्रुवों को मिलाने वाली रेखा के लंबवत तल पृथ्वी की गोलीय सतह को एक वृत्त के रूप में विभाजित करता है इस वृत्त को पृथ्वी की चुंबकीय निरक्ष कहते हैं। चित्र द्वारा प्रदर्शित किया गया है।

         पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र

 

 

 

5. चुंबकीय पदार्थ क्या होते है? इन्हें कितने वर्गो में वर्गीकृत किया गया है।

वैज्ञानिक माइकल फैराडे ने पदार्थों को चुंबकीय क्षेत्र में रखकर उन पर चुंबकीय व्यवहारों का अध्ययन किया। तथा यह पाया कि सभी पदार्थों में चुंबकत्व के गुण पाये जाते हैं।

इस आधार पर पदार्थों को तीन वर्गों में वर्गीकृत किया गया है।

1. प्रतिचुंबकीय पदार्थ

2. अनुचुंबकीय पदार्थ

3. लौह चुंबकीय पदार्थ

1. प्रतिचुंबकीय पदार्थ : -

वह पदार्थ जिनको किसी चुंबक के सिरों के समीप लाने पर बहुत कम प्रतिकर्षित होते हैं। इस प्रकार के पदार्थों को प्रतिचुंबकीय पदार्थ कहते हैं। प्रतिचुंबकीय पदार्थों को जब चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है तब यह क्षेत्र की विपरीत दिशा में बहुत कम चुंबकित होते हैं। पदार्थों के इस गुण को प्रतिचुंबकत्व कहते हैं।

प्रतिचुंबकीय पदार्थों के गुण

1. प्रतिचुंबकीय पदार्थों की चुंबकीय प्रवृत्ति का मान ऋणात्मक तथा अल्प होता है।

2. इनकी चुंबकीय प्रवृत्ति ताप पर निर्भर नहीं करती है।

3. इन पदार्थों की अपेक्षिक चुंबकशीलता का मान 0-1 के बीच होता है।

प्रतिचुंबकीय पदार्थों के उदाहरण

बिस्मिथ (Bi), जस्ता (Zn), चांदी(Ag), सोना(Au), हाइड्रोजन (H2), जल (H2O), नाइट्रोजन (N2), हाइड्रोजन (H2), नमक (NaCl), तथा तांबा (Cu) आदि प्रतिचुंबकीय पदार्थों के उदाहरण हैं।

2. अनुचुंबकीय पदार्थ : -

वह पदार्थ जिनको किसी चुंबक के सिरों के समीप लाने पर बहुत कम आकर्षित होते हैं। इस प्रकार के पदार्थों को अनुचुंबकीय पदार्थ कहते हैं। अनुचुंबकीय पदार्थों को जब चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है। तब यह क्षेत्र की दिशा में बहुत कम चुंबकित होते हैं। पदार्थों की इस गुण को अनुचुंबकत्व कहते हैं।

अनुचुंबकीय पदार्थों के गुण

1. अनुचुंबकीय पदार्थों की चुंबकीय प्रवृत्ति का मान धनात्मक तथा अल्प होता है।

2. इनकी चुंबकीय प्रवृत्ति इनके कैल्विन ताप पर व्युत्क्रमानुपाती होती है।

3. इन पदार्थों की अपेक्षिक चुंबकशीलता का मान 1-2 के बीच होता है।

अनुचुंबकीय पदार्थों के उदाहरण

एल्युमीनियम (Al), प्लैटिनम (Pt), सोडियम (Na), मैंगनीज (Mn), लिथियम (Li) ऑक्सीजन (O2), कैल्शियम (Ca) आदि अनुचुंबकीय पदार्थ के उदाहरण हैं।

अनुचुंबकीय पदार्थों की चुंबकीय प्रवृत्ति केल्विन ताप के व्युत्क्रमानुपाती होती है। अर्थात्

                                             = IT

3. लौह चुंबकीय पदार्थ : -

वह पदार्थ जिनको किसी चुंबक के समीप लाने पर बहुत तेजी से आकर्षित होते हैं। इस प्रकार के पदार्थों को लौहचुंबकीय पदार्थ (Ferromagnetic substances in Hindi) कहते हैं। लौह चुंबकीय पदार्थों को जब चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है। तब यह क्षेत्र की दिशा में बहुत तेजी से चुंबकित होते हैं। पदार्थों के इस गुण को लौहचुंबकत्व कहते हैं।

लौह चुंबकीय पदार्थों के गुण

1. लौह चुंबकीय पदार्थों की चुंबकीय प्रवृत्ति का मान धनात्मक तथा बहुत अधिक होती है।

2. इनकी चुंबकीय प्रवृत्ति परमताप के व्युत्क्रमानुपाती होती है।

3. इन पदार्थों की अपेक्षिक चुंबकशीलता का मान 1 से बहुत अधिक होता है।

लौह चुंबकीय पदार्थों के उदाहरण

निकिल (Ni), कोबाल्ट (Co), तथा आयरन (Fe) लौहचुंबकीय पदार्थों के उदाहरण हैं।

Note – अनुचुंबकीय पदार्थों के परमाणुओं में स्थायी चुंबकीय आघूर्ण होता है। जबकि प्रतिचुंबकीय पदार्थों के परमाणुओं का कुल चुंबकीय आघूर्ण शून्य होता है।

6. क्यूरी ताप क्या है ? क्यूरी का नियम बताइए |

उत्तर :-  क्यूरी का नियम : -  वैज्ञानिक क्यूरी ने अनेक प्रायोगिक रूप द्वारा यह पता लगाया, कि अनुचुंबकीय पदार्थ की चुंबकन तीव्रता (I), चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता (H) के अनुक्रमानुपाती होती है। एवं परमताप (T) के व्युत्क्रमानुपाती होती है। अर्थात्

                                     I ∝ HT

 

या                                  I = C HT

जहां C एक अनुक्रमानुपाती नियतांक है। जिसे क्यूरी नियतांक कहते हैं। तथा यह समीकरण क्यूरी का नियम कहलाती है। अर्थात्

                                                           C= TIH​

Note –

अनुचुंबकीय पदार्थों की चुंबकीय प्रवृत्ति χ इन पदार्थों के केल्विन ताप के व्युत्क्रमानुपाती होती है।

                                                                = IT

​इसे क्यूरी का नियम कहते हैं।

क्यूरी ताप :-  वह उचित ताप जिस पर लौह चुंबकीय पदार्थ अनुचुंबकीय पदार्थ में बदल जाता है क्यूरी ताप कहलाता है।

अर्थात् 

यदि हम किसी लौह चुंबकीय पदार्थ को गर्म करते हैं तो लौह चुंबकीय पदार्थ के गुण एक निश्चित ताप पर नष्ट हो जाते हैं। तथा लौह चुंबकीय पदार्थ, अनुचुंबकीय पदार्थों में बदलने लगता है। तथा पदार्थ को ठंडा करने पर यह पुनः लौह चुंबकीय हो जाता है।

क्यूरी ताप के उदाहरण –

निकिल (Ni) का क्यूरी ताप = 358°C

आयरन (Fe) का क्यूरी ताप = 770 °C

कोबाल्ट (Co) का क्यूरी ताप = 1121 °C होता है।

7. चुम्बकत्व में गाउस का नियम क्या है ?

उत्तर :- हम जानते है की चुम्बक में दो ध्रुव पाए जाते है तथा इन दोनों ध्रुवों को अलग नहीं किया जा सकता अर्थात किसी एक ध्रुव का अस्तित्व संभव नहीं है तथा धारावाही लूप या चुम्बकीय द्विध्रुव को चुम्बकत्व का सबसे छोटा रूप माना जाता है यही कारण है की चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं सतत तथा बंद वक्र के रूप में होती है।

 

 

 

चित्रानुसार माना एक बंद लूप है जिसका क्षेत्रफल S है , हम स्पष्ट रूप से देख सकते है की बंद पृष्ठ (S) से बाहर निकलने वाली चुम्बकीय बल रेखाओं की संख्या ,  बंद पृष्ठ(S) में प्रवेश करने वाली चुम्बकीय बल रेखाओं की संख्या के बराबर होगी।

अर्थात पृष्ठ में जितनी बल रेखाएं प्रवेश करती है उतनी बल रेखाएं बाहर निकलती है।

यदि प्रवेश करने वाली बल रेखाओ को धनात्मक चिह्न के साथ लिखे तथा बाहर निकलने वाली बल रेखाओ को ऋणात्मक चिह्न के साथ लिखे तो

प्रवेश करने वाली बल रेखायें = बाहर निकलने वाली बल रेखायें

अर्थात

प्रवेश करने वाली बल रेखायें – बाहर निकलने वाली बल रेखायें = 0

अतः हम कह सकते है की नेट क्षेत्र रेखाओं की संख्या शून्य होगी इसे चुम्बकत्व के सम्बन्ध में गाउस का नियम कहते है।

अर्थात

                                                   B.ds = 0

 

अतः चुम्बकत्व के सन्दर्भ में गाउस के नियमानुसार ” किसी भी बन्द पृष्ठ से गुजरने वाला नेट चुम्बकीय फ्लक्स शून्य होता है।

8. चुंबकीय बल रेखाएं क्या होती है ? चुंबकीय बल रेखाएं एक दूसरे को क्यों नहीं काटती हैं?कारण बताइए |

उत्तर:- 

जब किसी चुंबक के पास कोई चुंबकीय सुई (कम्पास सुई) लायी जाती है। तो चुंबकीय सुई घूमकर एक निश्चित दिशा में रूक जाती है। अब यदि चुंबक की दिशा की परिवर्तन कर दें, तो चुंबकीय सुई की दिशा भी परिवर्तित हो जाती है। चुंबकीय सुई एक वक्र पथ पर विचलित होती रहती है।

अतः इस प्रकार स्पष्ट होता है कि चुंबकीय क्षेत्र की रेखाएं वक्र रेखाओं के रूप में होती हैं। इन वक्र रेखाओं को चुंबकीय बल रेखाएं अथवा चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं कहते हैं।

चुंबकीय बल रेखाएं चुंबक के उत्तरी ध्रुव से प्रारंभ होकर दक्षिणी ध्रुव पर समाप्त हो जाती हैं। यह रेखाएं बंद वक्र बनाती हैं।

           

चुंबकीय बल रेखाओं के गुण : -

चुंबकीय बल रेखाएं सदैव चुंबक के उत्तरी ध्रुव से प्रारंभ होकर दक्षिणी ध्रुव में प्रवेश करती हैं। तथा दक्षिणी ध्रुव से चुंबक के अंदर होते हुए उत्तरी ध्रुव पर पुनः वापस लौट आती है। अर्थात् यह रेखाएं बंद वक्र बनाती हैं।

चुंबकीय बल रेखाएं एक दूसरे को नहीं काटती हैं। ऐसा इसलिए होता है चूंकि अगर चुंबकीय बल रेखाएं एक दूसरे को काटती है तो कटान बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र की दिशाएं एक से अधिक होंगी। जो लगभग असंभव है।

चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के किसी बिंदु पर खींची गईं स्पर्श रेखाएं उस बिंदु पर परिणामी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा बताती हैं।

चुंबक के ध्रुव के समीप चुंबकीय बल रेखाएं पास-पास होती हैं। जिस कारण यहां चुंबकीय क्षेत्र प्रबल होता है। तथा चुंबक के ध्रुव के दूर चुंबकीय बल रेखाएं दूर-दूर होती है। जिस कारण वहां चुंबकीय क्षेत्र दुर्बल होता है।

वह स्थान जहां चुंबकीय बल रेखाएं परस्पर समांतर तथा समान दूरी पर स्थित होती हैं। तो ऐसे क्षेत्र को एकसमान चुंबकीय क्षेत्र कहते हैं।

कारण :-

चुंबकीय बल रेखाएं एक-दूसरी रेखाओं को इसलिए नहीं काटती हैं। चूंकि इस स्थिति में कटान बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र की दिशाएं एक से अधिक हो जाती हैं। जो लगभग असंभव ही है।

      चुंबक के बाहर चुंबकीय बल रेखाएं उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की ओर गमन करती हैं। तथा चुंबक के अंदर यह रेखाएं दक्षिणी ध्रुव से उत्तरी ध्रुव की और गमन करती हैं 

9. चुम्बकीय आघूर्ण किसे कहते है ? कक्षीय इलेक्ट्रॉन का चुम्बकीय आघूर्ण ज्ञात करने के लिए व्यंजक प्राप्त कीजिए।

उत्तर:-  चुम्बकीय आघूर्ण :-  किसी चुम्बक का चुम्बकीय आघूर्ण वह राशि है जो बताती है कि उस चुम्बक को किसी वाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में रखने पर वह कितना बलाघूर्ण अनुभव करेगा। छद़ चुम्बक, एक लूप जिसमें विद्युत धारा बह रही हो, परमाणु का चक्कर काटता इलेक्ट्रॉन, अणु, ग्रह आदि सभी का चुम्बकीय आघूर्ण होता है।

धारावाही लूप का चुम्बकीय आघूर्ण : -

यदि किसी समतल धारावाही लूप में नियत धारा बह रही हो तो उससे एक चुम्बकीय क्षेत्र पैदा होता है। इस क्षेत्र की विशेषता उसका चुम्बकीय द्विध्रुव आघूर्ण होता है, जिसका व्यंजक निम्नलिखित है-

=I.S

जहाँ

       – चुम्बकीय द्विध्रुव आघूर्ण है

S – लूप का क्षेत्र सदिश (इसका परिमाण लूप के क्षेत्रफल के बराबर होता है)

 I – लूप धारा

द्विध्रुव आघूर्ण एक सदिश राशि है जो लूप के क्षेत्र के लम्बवत होती है

 

हल : - यदि कक्षीय इलेक्ट्रॉन की वृत्तीय कक्षा को एक धारावाही लूप माने तो चम्बकीय आघूर्ण

                                 M = NIA से 

                                 M = IA                   (∵ N = 1)

यदि इलेक्ट्रॉन कक्षीय वेग v हो तो प्रवाहित धारा

                                                 I = qt  = et

जहाँ परिक्रमण काल t = 2rv

जहाँ r परिक्रमण त्रिज्या है तब

                                              I = e2r

                                                                A = r2

                                                            M = e2r r2

                                            M = 12 evr

10.  स्थायी चुंबक तथा विद्युत चुंबक क्या होता है?  इसमें क्या अंतर है ?

 उत्तर :- स्थायी चुंबक :- चुंबक एक ऐसी सामग्री या वस्तु है जो चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है। यह चुंबकीय क्षेत्र अदृश्य है लेकिन चुंबक की सबसे उल्लेखनीय संपत्ति के लिए जिम्मेदार है: एक बल जो लोहे, स्टील, निकल, कोबाल्ट इत्यादि जैसे अन्य लौह चुंबकीय सामग्री को खींचता है और अन्य चुंबकों को आकर्षित या पीछे हटा देता है

दो मुख्य विभिन्न प्रकार के चुंबक, स्थायी चुंबक और विद्युत चुंबक हैं। एक स्थायी चुंबक को स्थायी चुंबक इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसका चुंबकत्व हमेशा चालू रहता है, यह एक इलेक्ट्रोमैग्नेट के विपरीत अपना स्वयं का लगातार चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है जो कि फेरस कोर के चारों ओर लिपटे तार के तार से बना होता है और चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने के लिए विद्युत प्रवाह की आवश्यकता होती है।

विद्युत चुंबक :-  विद्युत चुम्बक तार की एक कोइल (श्रृंखला में घुमावदार तार) से बने होते हैं। यह सीधे चलने वाले तार की तुलना में चुंबकीय क्षेत्र बनाने में अधिक प्रभावी है। लोहे जैसे चुंबकीय सामग्री से बने एक शक्तिशाली कोर के चारों ओर एक तार को कसकर घुमाकर इस प्रभाव को मजबूत किया जा सकता है।

एक विद्युत चुंबक एक अस्थायी चुंबक है। एक विद्युत चुंबक में विद्युत प्रवाह द्वारा निर्मित एक चुंबकीय क्षेत्र होता है। विद्युत और चुम्बकत्व एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से संबंधित हैं। जहां बिजली है, वहां चुंबकीय क्षेत्र है, और जहां चुंबकत्व है, वहां विद्युत क्षेत्र की संभावना है।

विद्युत उपकरण जैसे मोटर, जनरेटर, स्पीकर, कंप्यूटर और एमआरआई मशीन के निर्माण के लिए इलेक्ट्रोमैग्नेट आवश्यक हैं। उन्हें स्क्रैप आयरन जैसी भारी चुंबकीय वस्तुओं को उठाने और स्थानांतरित करने में उनकी भूमिका के लिए लोकप्रिय रूप से पहचाना जाता है।

स्थायी चुंबक तथा विद्युत चुंबक में अंतर : -

 

स्थायी चुम्बक 

विद्युत चुम्बक

वे स्थायी रूप से चुम्बकित होते हैं।

ये अस्थायी रूप से चुम्बकित होते हैं।

ये आमतौर पर कठोर सामग्री से बने होते हैं।

वे आमतौर पर नरम सामग्री से बने होते हैं।

चुंबकीय क्षेत्र रेखा की शक्ति स्थिर होती है अर्थात इसे परिवर्तित नहीं किया जा सकता है।

चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की शक्ति हमारी आवश्यकता के अनुसार भिन्न-भिन्न हो सकती है।

स्थायी चुंबक के ध्रुवों को बदला नहीं जा सकता है।

विद्युत चुम्बक के ध्रुवों को बदला जा सकता है।

स्थायी चुंबक का उदाहरण एक बार चुंबक है

एक अस्थायी चुंबक का उदाहरण एक कील के आर-पार एक बैटरी से जुड़ा परिनालिका है।

11.चुंबकीय सुग्राहिता अथवा प्रवृत्ति से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर:- चुम्बकीय प्रवृत्ति :-   यह किसी पदार्थ का वह गुण प्रदार्शित करती है कि कोई पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र में रखे जाने पर कितनी सरलतापूर्वक चुम्बकित हो जाता है। इसे जाई () से प्रदर्शित करते हैं।

गणितीय रूप, चुम्बकीय प्रवृत्ति, चुम्बकन तीव्रता (I) तथा चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता (H) के अनुपात के बराबर होती है।

                                   = IH

 

अनुचुंबकीय तथा प्रतिचुंबकीय पदार्थों के लिए, पदार्थ की चुंबकन तीव्रता I, चुंबकन क्षेत्र की चुंबकीय तीव्रता H के अनुक्रमानुपाती होती है।

अर्थात् 

                                        I ∝ H 

 

                                         I = H

जहां एक नियतांक है जिसे पदार्थ की चुंबकीय सुग्रहिता अथवा चुंबकीय प्रवृत्ति कहते हैं। तो

                                          = IH

अतः किसी पदार्थ में उत्पन्न चुंबकन तीव्रता (I) एवं इसे उत्पन्न करने वाले चुंबकन क्षेत्र की चुंबकीय तीव्रता (H) के अनुपात को चुंबकीय सुग्रहिता अथवा चुंबकीय प्रवृत्ति कहते हैं। जिसे से प्रदर्शित किया जाता है।

12. भू-चुम्बकत्व क्या है ? भू-चुम्बकत्व के कारण बताइए |

उत्तर:- भू-चुम्बकत्व: - हमारी पृथ्वी इस प्रकार व्यवहार करती है, जैसे इसके गर्भ में एक बहुत बड़ा चुम्बक रखा हो, यदि किसी छोटे स्थान में पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र की बल रेखाएं खींचे, तो वे समान्तर तथा समदूरस्थ होती हैं तथा सदैव उत्तर की ओर दिष्ट होती हैं। इसका अर्थ है की उस स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का मान तथा दिशा एक ही है। ऐसे क्षेत्र को एक समान चुम्बकीय क्षेत्र कहते हैं। पृथ्वी के चुम्बकीय ध्रुवों पर पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र उर्ध्वाधर दिशा में (पृथ्वी तल के लम्बवत) तथा चुम्बकीय निरक्ष पर क्षैतिज दिशा में (पृथ्वी तल के समान्तर) होता है।

भू-चुम्बकत्व के कारण

यह विचार कि पृथ्वी के गर्भ में एक बहुत बड़ा चुम्बक है, सर्वप्रथम सन 1600 ईं में सर विलियम गिल्बर्ट ने दिया था, परन्तु वास्तव में पृथ्वी के भीतर इस प्रकार के किसी चुम्बक का होना संभव नहीं है। सन 1849 में ग्रोवर ने यह मत रखा की पृथ्वी का चुम्बकत्व पृथ्वी के बहरी पृष्ट के निकट पृथ्वी के चारो ओर बहने वाली विद्युत् धाराओं के कारण है। ये धाराएँ सूर्य के कारण उत्पन्न होती हैं। निरक्ष के समीप के क्षेत्रों में गर्म वायु ऊपर उठकर उत्तरी व दक्षिणी गोलार्ध की ओर जाती हुई विद्युन्मय हो जाति हैं। ये धाराएँ पृथ्वी के बाहरी तल के सन्निकट उपस्थित कुछ चुम्बकीय पदार्थों को चुम्बकित कर देती हैं।

पृथ्वी के चुम्बकत्व के सम्बन्ध में मत है कि पृथ्वी के भीतर उसके केन्द्रीय कोर में अनेक चालक पदार्थ पिघली हुई अवस्था में उपस्थित हैं। इनमे पिघला हुआ लोहा तथा निकिल भी पर्याप्त मात्रा में है। पृथ्वी के अपने अक्ष के परितः घूमने से उसकी अर्द्ध-द्रव कोर में धीमी संवहन धाराएँ उत्पन्न हो जाती हैं। इससे पृथ्वी के भीतर एक स्व-उत्तेजित डायनमो की क्रिया होने लगती है। अतः पृथ्वी के भीतर विद्युत् धारा तथा इस कारण चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। भू-चुम्बकीय का मुख्य अंश इसी कारण से उत्पन्न माना जाता है।

पृथ्वी के चुम्बकत्व के सम्बन्ध में एक अन्य मत यह है कि वायुमंडल में गैसे आयनित अवस्था में रहती हैं। सूर्य से आने वाली उच्च उर्जा की किरणें वायुमंडल की उपरी सतहों में परमाणुओं से टकराकर उन्हें आयनित कर देती हैं। वायुमंडल की रेडियो-एक्टिवता तथा कास्मिक किरणें भी गैसों का आयनीकरण करती रहती हैं। अतः पृथ्वी के अपने अक्ष के परितः घूमने के कारण प्रबल विद्युत् धरायें चलती हैं। इन्हीं धाराओं के प्रभाव से पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है।

13.प्रतिचुम्बकीय पदार्थों की व्याख्या करते हुए इनके गुणों की विवेचना करो |

उत्तर: प्रतिचुम्बकीय पदार्थ: -   ऐसे पदार्थ जो असमान चुम्बकीय क्षेत्र में रखे जाने पर अधिक तीव्रता से कम तीव्रता वाले भाग की ओर विस्थापित होते हैं अर्थात् चुम्बकीय क्षेत्र में प्रतिकर्षित होते हैं। अथवा जो चुम्बकीय क्षेत्र में रखने पर चुम्बकीय क्षेत्र की विपरीत दिशा में कुछ चुम्बकित हो जाते हैं, प्रतिचुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं। पदार्थों के इस गुण को प्रतिचुम्बकत्व कहते हैं।

उदाहरण के लिए सोना (Au), चाँदी (Ag), ताँबा (Cu), पारा (Hg), बिस्मिथ (Bi), नाइट्रोजन (N2), हाइड्रोजन (H2), पानी (H2O), नमक (NaCl), हीरा (C), वायु, एन्टीमनी (Sb), जस्ता (Zn) आदि प्रतिचुम्बकीय पदार्थ हैं।

प्रतिचुम्बकत्व की व्याख्या:- हम जानते हैं कि किसी परमाणु का चुम्बकीय आघूर्ण उसके सभी इलेक्ट्रॉनों के चुम्बकीय आघूर्णो के सदिश योग के बराबर होता है।

प्रतिचुम्बकीय पदार्थों के परमाणुओं का परिणामी चुम्बकीय आघूर्ण शून्य होता है। इनके परमाणुओं में इलेक्ट्रॉनों की संख्या सम होती है और विपरीत दिशा में चक्रण करने वाले इलेक्ट्रॉनों के पूरे-पूरे जोड़े बन जाते हैं। प्रत्येक युग्म के दोनों इलेक्ट्रॉन एक-दूसरे के चुम्बकीय आघूर्ण को निरस्त कर देते हैं, फलस्वरूप, पूरे परमाणु का परिणामी चुम्बकीय आघूर्ण शून्य मिलता है। इसीलिए इन पदार्थों के परमाणु चुम्बक की भाँति व्यवहार नहीं करते हैं।

जब इन पदार्थों को बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो प्रत्येक युग्म के इलेक्ट्रॉनों पर लारेंन्ज बल लगने लगता है जिसकी दिशा युग्म के दोनों इलेक्ट्रॉनों के लिए एक-दूसरे के विपरीत होती है क्योंकि जोड़े के दोनों इलेक्ट्रॉन परस्पर विपरीत दिशा में चक्रण करते हैं, अतः प्रत्येक युग्म एक इलेक्ट्रॉन का कोणीय वेग कम हो जाता है और दूसरे इलेक्ट्रॉन का बढ़ जाता है अर्थात् एक इलेक्ट्रॉन अवमंदित एवं दूसरा इलेक्ट्रॉन त्वरित हो जाता है।

अवमंदित होने वाले इलेक्ट्रॉन के लिए तुल्य धारा (i) का मान कम हो जाता है, फलस्वरूप इसका चुम्बकीय आघूर्ण (m = iA) कम हो जाता है। इस प्रकार त्वरित होने वाले इलेक्ट्रॉन के लिए तुल्य धारा (i) का मान बढ़ जाता है फलस्वरूप, चुम्बकीय आघूर्ण का मान बढ़ जाता है। इस प्रकार युग्म के दोनों इलेक्ट्रॉन एक-दूसरे के चुम्बकत्व को निरस्त नहीं कर पाते हैं, फलस्वरूप प्रत्येक युग्म में बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में एक | परिणामी आघूर्ण  प्रेरित हो जाता है तथा इस प्रकार पूरे परमाणु में एक परिणामी चुम्बकीय आघूर्ण प्रेरित हो जाता है जिसकी दिशा बाह्य क्षेत्र की दिशा के विपरीत होती है। इसीलिए “प्रतिचुम्बकीय पदार्थों की उपस्थिति से बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र का मान घट जाता है। ऐसे पदार्थों के चुम्बकत्व पर ताप का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।”

प्रतिचुम्बकीय पदार्थों के गुण : -   इन पदार्थों में निम्नलिखित गुण पाये जाते हैं

(i) चित्र 8.30, बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में रखी प्रतिचुम्बकीय पदार्थ की एक छड़ दर्शाता है। क्षेत्र रेखाएँ विकर्णित होती हैं या दूर हटती हैं इसलिए पदार्थ के अन्दर क्षेत्र कम हो जाता है।

                    RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 8 चुम्बकत्व एवं चुम्बकीय पदार्थों के गुण 18

(ii) जब किसी प्रतिचुम्बकीय पदार्थ की छड़ को चुम्बकीय ध्रुवों के मध्य स्वतन्त्रतापूर्वक लटकाया जाता है तो छड़ की अक्ष घूमकर चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् हो जाती है। छड़ के सिरों पर उत्पन्न ध्रुव चुम्बकीय ध्रुवों के समान होते हैं RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 8 चुम्बकत्व एवं चुम्बकीय पदार्थों के गुण 19

(iii) यदि किसी प्रति चुम्बकित घोल को U-नली (U- tube) में भरकर नली की एक भुजा को प्रबल चुम्बकीय ध्रुवों के बीच रख दिया जाये तो उस भुजा में घोल का तल गिर जाता है

                                       RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 8 चुम्बकत्व एवं चुम्बकीय पदार्थों के गुण 20

(iv) जब प्रतिचुम्बकीय पदार्थ को असमान चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो वह अधिक तीव्रता वाले भाग से कम तीव्रता वाले भाग ओर  आकर्षित होता है। यदि काँच की प्याली में प्रति चुम्बकीय द्रव लेकर उसे दो पास-पास रखे चुम्बकीय ध्रुवों पर रख दें तो द्रव बीच में अवसाद हो जाता है क्योंकि ध्रुवों के मध्य चुम्बकीय क्षेत्र सबसे प्रबल है। यदि ध्रुवों के बीच की दूरी बढ़ा दी जाये तो द्रव बीच में ऊपर उठ जाता है क्योंकि अब बीच की अपेक्षा ध्रुवों के समीप चुम्बकीय क्षेत्र अधिक प्रबल हैं|

RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 8 चुम्बकत्व एवं चुम्बकीय पदार्थों के गुण 21

(v) इन पदार्थों की चुम्बकित होने की प्रवृत्ति अर्थात् चुम्बकीय प्रवृत्ति ऋणात्मक होती है। चुम्बकीय प्रवृत्ति ताप पर निर्भर नहीं करती है। बिस्मथ के लिए Xm का मान – 0.00015 होता है।

                                        RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 8 चुम्बकत्व एवं चुम्बकीय पदार्थों के गुण 22

(vi) इन पदार्थों की आपेक्षिक चुम्बकशीलता μr निर्वात की अपेक्षा कम होती है अर्थात् इन पदार्थों से चुम्बकीय बल रेखाएँ निर्वात की अपेक्षा कम गुजरती हैं। निर्वात के लिए μr = 1 तथा इन पदार्थों के लिए μr < 1 होती है।

इससे यह पता चलता है कि पदार्थ के अन्दर चुम्बकीय क्षेत्र B, निर्वात के अन्दर चुम्बकीय क्षेत्र B0 से कम होगा अर्थात् प्रतिचुम्बकित पदार्थ किसी चुम्बकीय क्षेत्र में रखे जाने पर बल रेखाओं को बाहर की ओर  मोड़ देते हैं 

                               RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 8 चुम्बकत्व एवं चुम्बकीय पदार्थों के गुण 23

14.अनुचुम्बकीय पदार्थों की व्याख्या करते हुए इनके गुणों की विवेचना करो |

उत्तर- अनुचुम्बकीय पदार्थ : -  इन पदार्थों को जब चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो ये कम चुंबकीय क्षेत्र से अधिक चुंबकीय क्षेत्र की ओर कम गति से गति करते है अर्थात ये पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र से कम आकर्षित रहते है।

इन पदार्थो की उपस्थिति से चुंबकीय क्षेत्र का मान कुछ बढ़ जाता है।

परिभाषा : वे पदार्थ जो कम से ज्यादा चुम्बकीय क्षेत्र की ओर गति करते तथा जिनकी उपस्थिति से चुंबकीय क्षेत्र का मान कम हो जाता है , उन पदार्थों को अनुचुम्बकीय पदार्थ कहते है।

उदाहरण : एलुमिनियम , सोडियम , ऑक्सीजन आदि।

अनु चुंबकीय पदार्थ की व्याख्या:

अनुचुम्बकीय प्रभाव वे पदार्थ दर्शाते है जिनके परमाणु या अणु में उपस्थित इलेक्ट्रान सम संख्या में नहीं होते है , अत: युग्म बनाने के बाद भी कुछ इलेक्ट्रान शेष रह जाते है , ये शेष इलेक्ट्रॉन एक दिशा में चक्रण करते है , जिससे एक परिणामी चुम्बकीय आघूर्ण उत्पन्न हो जाता है। साधारणतया: बाह्य चुंबकीय क्षेत्र की अनुपस्थिति में सभी परमाणु अनियमित रूप से अभिविन्यासित रहते है जिससे परिणामी चुम्बकीय आघूर्ण शून्य रहता है जिससे पदार्थ चुम्बकत्व का गुण नहीं दर्शाते है।

लेकिन बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र की उपस्थिति में ये सभी परमाणु एक निश्चित दिशा में अभिविन्यासित हो जाते है जिससे परिणामी चुम्बकीय आघूर्ण उत्पन्न हो जाता है जिससे पदार्थ चुम्बकित हो जाता है।

                            

नोट : पदार्थ का चुम्बकीय क्षेत्र तथा बाह्य चुंबकीय क्षेत्र आपस में मिलकर कुछ चुंबकीय क्षेत्र के मान को बढ़ा देते है |

अनुचुम्बकीय पदार्थों के गुण:

1. जब दो चुम्बक के बीच अनुचुम्बकीय पदार्थ की छड को रखा जाता है तो यह पदार्थ चुंबकीय क्षेत्र के समान्तर हो जाता है जैसा चित्र में दिखाया गया है।

                                

2. जब एक U आकार की नली में अनुचुंबकीय पदार्थ का तरल भरकर इसके एक सिरे पर चुम्बक रखी जाती है तो जिस सिरे पर चुम्बक रखी जाती है उसका तल ऊपर उठ जाता है जैसा चित्र में दर्शाया गया है।

                           

3. चित्रानुसार जब अनु चुंबकीय पदार्थ को कटोरी में लेकर दो चुम्बको के मध्य रखा जाता है तो यह बीच में से कुछ ऊपर की ओर उठ जाता है ऐसा इसलिए होता है क्यूंकि अनु चुंबकीय पदार्थ कम चुम्बकीय क्षेत्र से अधिक चुम्बकीय क्षेत्र की ओर जाते है और क्यूंकि चुम्बक के ध्रुवों के मध्य में चुंबकीय क्षेत्र का मान अधिक होता है।

                       

4. अनु चुंबकीय पदार्थ की चुंबकीय प्रवृति धनात्मक होती है लेकिन इसका मान अत्यधिक कम होता है।

15. अनुचुम्बकीय, प्रतिचुम्बकीय एवं लौह-चुम्बकीय पदार्थों के चुम्बकीय गुणों की तुलना कीजिए। 

उत्तर- अनुचुम्बकीय, प्रतिचुम्बकीय एवं लौह-चुम्बकीय पदार्थों के गुणों की तुलना-

क्र.

अनुचुम्बकीय पदार्थ

प्रतिचुम्बकीय पदार्थ  

लौह-चुम्बकीय पदार्थ

1. 

ये पदार्थ शक्तिशाली चुम्बक द्वारा हल्का-सा आकर्षित  होते हैं।

ये पदार्थ शक्तिशाली चुम्बक द्वारा हल्का-सा प्रतिकर्षित होते हैं।

ये पदार्थ कम शक्तिशाली  चुम्बक द्वारा भी आकर्षित होते  

2.

इन पदार्थों को शक्तिशाली चुम्बक के ध्रुवों के मध्य लटकाने पर इनकी लम्बाई क्षेत्र के समान्तर हो जाती है।  

इन पदार्थों को शक्तिशाली चुम्बक के ध्रुवों के मध्य लटकाने पर इनकी लम्बाई  क्षेत्र के लम्बवत् हो जाती है।

इन पदार्थों को किसी भी चुम्बक के ध्रुवों के मध्य लटकाने पर इनकी लम्बाई क्षेत्र के समान्तर हो जाती है।

3.

ये पदार्थ कम तीव्रता वाले  क्षेत्र से अधिक तीव्रता वाले क्षेत्र की ओर जाते हैं।

ये पदार्थ अधिक तीव्रता वाले क्षेत्र  से कम तीव्रता वाले क्षेत्र की ओर जाते हैं।

इसका व्यवहार अनुचुम्बकीय पदार्थ के समान होता है।

4.

इन पदार्थों की आपेक्षिक चुम्बकशीलता का मान 1 से अधिक होता है।

इन पदार्थों की आपेक्षिक  चुम्बकशीलता का मान 1 से कम होता है।

इन पदार्थों की आपेक्षिक चुम्बक शीलता का मान बहुत अधिक होता है।  

5.

इन पदार्थों के स्थायी चुम्बक  नहीं बनाये जा सकते।

इन पदार्थों के भी स्थायी चुम्बक नहीं बनाये जा सकते।   

इन पदार्थों के स्थायी चुम्बक बनाये जाते हैं।

6.

इन पदार्थों की चुम्बकीय प्रवृत्ति  धनात्मक, किन्तु कम होती है।

इन पदार्थों की चुम्बकीय प्रवृत्ति ऋणात्मक होती है।  

इन पदार्थों की चुम्बकीय प्रवृत्ति धनात्मक एवं अधिकतम होती है।

7.

उदाहरण-मैंगनीज, प्लेटिनम, सोडियम, ऐल्युमिनियम आदि।

उदाहरण–बिस्मथ, फॉस्फोरस, ऐण्टिमनी, पारा, वायु आदि।  

उदाहरण-लोहा-इस्पात, निकिल, कोबाल्ट आदि।

 

16 . चुम्बकीय आघूर्ण किसे कहते है ? एक दण्ड चुम्बक का चुम्बकीय आघूर्ण 200 A-m2 है, इसे 0.86 T वाले एक समान चुम्बकीय क्षेत्र में लटकाया गया है, इसे क्षेत्र में 60° कोण से विक्षेपित करने के लिए आवश्यक बल आघूर्ण ज्ञात करो।

उत्तर:-  चुम्बकीय आघूर्ण :-  किसी चुम्बक का चुम्बकीय आघूर्ण वह राशि है जो बताती है कि उस चुम्बक को किसी वाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में रखने पर वह कितना बलाघूर्ण अनुभव करेगा। छद़ चुम्बक, एक लूप जिसमें विद्युत धारा बह रही हो, परमाणु का चक्कर काटता इलेक्ट्रॉन, अणु, ग्रह आदि सभी का चुम्बकीय आघूर्ण होता है।

हल:

दिया है : चुम्बकीय आघूर्ण M =200A-m2

चुम्बकाय क्षेत्र B = 0.86T

तथा कोण θ = 60°

अतः आवश्यक बल आघूर्ण

                                         τ = MB sinθ

                                  τ = 200 × 0.86 × sin 60°

                                  τ = 200 × 0.86 × 32

 

 

                                         τ = 863  N-m

 17.नमनकोण को परिभाषित कीजिए। किसी स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकत्व का क्षैतिज घटक B = 0.5 × 10-4Wb/m2 है तथा नति कोण 45० है तो ऊर्ध्व घटक का मान क्या होगा ?

उत्तर:-  नमन या नति कोण :-

पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की दिशा तथा क्षैतिज दिशा के बीच बने कोण को नमन कोण या नति कोण कहते हैं।

पृथ्वी के चुंबकीय ध्रुवों पर नति कोण का मान 90° होता है। तथा निरक्ष पर इसका मान शून्य होता है।

हल:

दिया है : पृथ्वी के चुम्बकत्व का क्षैतिज घटक

           BH = 0.5 ×10-4Wb/m2

तथा नति कोण     θ = 45°

                                     tan θ = BVBH

 

 

                                      BV= BH tan θ

ऊर्ध्व घटक              BV = BH tan 45°

                                BV = BH(∵ tan 45° = 1)

                                 BV = 0.5 ×10-4Wb/m

16 .लौहचुम्बकीय पदार्थों की व्याख्या करते हुए इनके गुणों की विवेचना करो |

उत्तर- लौह चुम्बकीय पदार्थ: -  ऐसे पदार्थ जो चुम्बकीय क्षेत्र से आकर्षित होते है तथा जिनकी उपस्थिति से चुंबकीय क्षेत्र का मान बहुत अधिक बढ़ जाता है उनको लौह चुम्बकीय पदार्थ कहते है।

इन पदार्थों को जब असमान चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो ये कम चुंबकीय क्षेत्र से अधिक चुंबकीय क्षेत्र की तरफ शीघ्रता से गति करते है।

जब इन पदार्थों को चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो ये पदार्थ प्रबल रूप से चुम्बकित हो जाते है।

उदाहरण : लोहा , निकल , मैग्नेटाइड आदि।

लौह चुम्बकीय पदार्थों की व्याख्या:

 इस प्रकार के पदार्थों के परमाणुओं या अणुओ में इलेक्ट्रॉन युग्म के अन्दर कम तथा एकल इलेक्ट्रॉन बहुत अधिक पाए जाते है , इन एकल इलेक्ट्रॉनों का चक्रण एक ही दिशा में होता है जिससे पदार्थ में चुम्बकीय आधूर्ण काफी अधिक उत्पन्न हो जाता है।

अतः पदार्थ का हर परमाणु एक चुम्बक बन जाता है , इस पदार्थ के परमाणु आपस में अन्योन्य क्रिया करते है जिससे परमाणु प्रभावी क्षेत्र उत्पन्न करते है और इनको डोमेन कहा जाता है।

इन डोमेनो की व्यवस्था इस प्रकार होती है की बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र की अनुपस्थिति में सभी डोमेन अनियमित रूप से अभिविन्यासित रहते है जिससे ये एक दूसरे के चुंबकीय आघूर्ण को नष्ट कर देते है जिससे सम्पूर्ण पदार्थ का चुम्बकीय आघूर्ण शून्य प्राप्त होता है। लेकिन बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र की उपस्थिति में सभी डोमेन एक निश्चित दिशा में अर्थात चुंबकीय क्षेत्र की दिशा में व्यवस्थित हो जाते है जिससे पदार्थ का चुम्बकीय आघूर्ण काफी अधिक प्राप्त होता है।

                

बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र हटाने पर डोमेन पुन: अपनी अवस्था में आ जाते है अत: हम कह सकते है की यह उत्क्रमणीय होती है।

लौह चुम्बकीय पदार्थों के गुण:

1. लौह चुंबकीय पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र से आकर्षित होते है।

 2. अनु चुम्बकीय पदार्थ के सभी गुण लोह चुम्बकीय पदार्थ में पाए जाते है और ये अधिक प्रबलता के साथ पाए जाते है अर्थात जैसे अनु चुम्बकीय पदार्थ चुंबकीय क्षेत्र से आकर्षित होते है उसी प्रकार लोह चुम्बकीय पदार्थ भी चुम्बकीय क्षेत्र से आकर्षित होते है लेकिन लोह चुम्बकीय पदार्थ अधिक प्रबलता के साथ आकर्षित होते  है।

17. चुम्बकीय पदार्थ क्या है?इनके प्रकार, गुण और उपयोग बताइए |

उत्तर-   चुम्बकीय पदार्थ -: ऐसे पदार्थ जो अपने अंदर चुंबकीय गुण रखते हैं उन्हें चुंबकीय पदार्थ  कहते हैं। चुंबकीय पदार्थों का व्यवहार उनकी सूक्ष्म संरचना पर निर्भर करता है। पदार्थ की फेज बनावट और उनकी संरचना भी पदार्थ के चुंबकीय व्यवहार को प्रभावित करती हैं। इन पदार्थ के द्वारा चुंबकीय बल रेखाओं को आकर्षित और प्रतिकर्षित भी किया जा सकता है। किसी भी चुंबकीय पदार्थ की अपूर्णता या दोष भी चुंबकीय पदार्थों के व्यवहार को प्रभावित कर देती हैं। लगभग सभी पदार्थों में किसी न किसी प्रकार से चुम्बकीय गुण होता है। चुम्बकत्व पदार्थ का वह गुण है जो किसी पदार्थ में अधिक पाया जाता है तो किसी में कम पाया है और किसी में बिल्कुल विपरीत पाया जाता है।

चुंबकीय पदार्थ के प्रकार -:

सामान्यतः चुंबकीय पदार्थ को तीन प्रकार से बांटा गया है -

1. लौहचुम्बकीय पदार्थ (Ferromagnetic Materials)

2. अनुचुम्बकीय पदार्थ (Paramagnetic Materials)

3. प्रतिचुम्बकीय पदार्थ (Diamagnetic Materials)

1. लौहचुम्बकीय पदार्थ -:

ऐसे पदार्थ जो चुंबकीय क्षेत्र में रखे जाने पर चुंबकीय क्षेत्र की ओर अधिक तेजी से आकर्षित होते हैं उन्हें लौह चुंबकीय पदार्थ या फरोमैग्नेटिक मटेरियल कहते हैं। सामान्य भाषा में यह पदार्थ चुंबक की ओर बहुत ही तेजी के साथ आकर्षित होते हैं। जब लौह चुंबकीय पदार्थों को चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो चुंबकीय क्षेत्र का मान अधिक हो जाता है। यह गुण ठोस पदार्थो में पाया जाता है। निकिल, कोबाल्ट और लोहा को सबसे प्रबल लौह चुंबकीय पदार्थ माना जाता है। इन पदार्थों में चुंबकीय प्रवृत्ति बहुत अधिक होती है तथा इनमें चुंबकशीलता का मान 1 से बहुत अधिक होता है। इसमें चुम्बकीय प्रवृत्ति धनात्मक होता है।

2. अनुचुम्बकीय पदार्थ -:

ऐसे पदार्थ जो चुंबकीय क्षेत्र में रखे जाने पर चुंबकीय क्षेत्र की ओर थोड़े से आकर्षित होते हैं उन्हें अनुचुम्बकीय पदार्थ या पैरामग्नेटिक मटेरियल कहते हैं। सामान्य भाषा में यह पदार्थ चुंबक की ओर बहुत ही कम आकर्षित होते हैं। जब अनुचुम्बकीय पदार्थों को चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो चुंबकीय क्षेत्र का मान थोड़ा सा बढ़ जाता है।  कैल्शियम, सोडियम, ऑक्सीजन, प्लेटिनम और एल्युमीनियम इत्यादि को अनुचुम्बकीय चुंबकीय पदार्थ माना जाता है। इन पदार्थों में चुंबकीय प्रवृत्ति कम होती है तथा इनमें चुंबकशीलता का मान 1 से कम अधिक होता है। इसमें चुम्बकीय प्रवृत्ति धनात्मक होता है।

3. प्रतिचुम्बकीय पदार्थ -:

ऐसे पदार्थ जो चुंबकीय क्षेत्र में रखे जाने पर चुंबकीय क्षेत्र की ओर आकर्षित न होकर प्रतिकर्षित होते हैं उन्हें प्रतिचुम्बकीय पदार्थ (डायमग्नेटिक मटेरियल) कहते हैं। सामान्य भाषा में यह पदार्थ चुंबक की ओर आकर्षित नही होते हैं बल्कि उनके विपरीत दिशा में थोड़ा हटते हैं। जब प्रतिचुम्बकीय पदार्थों को चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो चुंबकीय क्षेत्र का मान घट जाता है। तांबा, नमक, सोना, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन और चांदी इत्यादि को प्रतिचुम्बकीय चुंबकीय पदार्थ माना जाता है। इन पदार्थों में चुंबकीय प्रवृत्ति बहुत अधिक होती है तथा इनमें चुंबकशीलता का मान 1 से बहुत अधिक होता है। इसमें चुम्बकीय प्रवृत्ति ऋणनात्मक होता है।

चुम्बकीय पदर्थों के गुण -:

1. चुंबकीय क्षेत्र में रखने पर सभी पदार्थ चुंबकीय गुण प्रदर्शित करते हैं।

2. सभी पदार्थों में चुंबकीय गुण अलग-अलग होता है।

3. कुछ पदार्थ चुंबकीय गुण के चुंबकशीलता को धनात्मक प्रदर्शित करते हैं और कुछ पदार्थ इसको ऋणात्मक  प्रदर्शित करते हैं।

चुम्बकीय पदार्थों के उपयोग -:

1. इसका उपयोग विद्युत क्षेत्र में किया जाता है।

2. मोटर्स और इंडक्टर में भी चुम्बकीय पदार्थों का प्रयोग किया जाता है।

3. चुम्बकीय पदार्थों का प्रयोग जनरेटर और ट्रांसफार्मर के कोर बनाने में किया जाता है।

4. चुम्बक बनाने के लिए भी चुम्बकीय पदार्थ का प्रयोग किया जाता है।

18. (a) ठंडा  करने पर किसी अनुचुंबकीय पदार्थ का नमूना अधिक चुंबकन क्यों प्रदर्शित करता है ?

(b) अनुचुम्बकत्व के विपरीत प्रति चुम्बकत्व पर ताप का प्रभाव लगभग नहीं होता है क्यों ?

(c) यदि एक टोरॉइड में विस्मथ का क्रोड लगाया जाय तो इसके अंदर चुम्बकीय क्षेत्र उस स्थिति की तुलना में (तनिक कम होगा या (तनिक) ज्यादा होगा, जबकि क्रोड खाली हो?

(d)क्या किसी लौह-चुंबकीय पदार्थ की चुंबकशीलता चुम्बकीय क्षेत्र पर निर्भर करती है ? यदि हाँ तो उच्च चुम्बकीय क्षेत्रों के लिए मान कम होगा या अधिक ?

(e) किसी लौह चुंबक की सतह के प्रत्येक बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ सदैव लंबवत होती है, (यह तथ्य उन स्थिर वैद्युत क्षेत्र रेखाओं के सदश है जो कि चालक की सतह के प्रत्येक बिन्दु पर लंबवत होती हैं।) क्यों ?

(f) क्या किसी अनुचुम्बकीय नमूने का अधिकतम संभव चुंबकन, लौह चुंबक के चुम्बकन के परिमाण की कोटि का होगा ?

उत्तर-  

 (a) संरेखित द्वि-ध्रुव को तितर-बितर करने की प्रवृत्ति निम्न ताप पर घटता है क्योंकि अनियमित ऊष्मीय गति घटता है। फलतः अनुचुम्बकीय पदार्थ अधिक चुंबकन प्रदर्शित करता है।

(b) प्रति चुंबकीय पदार्थ में प्रेरित द्वि-ध्रुव आघूर्ण चुम्बकीत करने वाला क्षेत्र के विपरीत दिशा में होता है। इसलिए इसके अणुओं की अनियमित ऊष्मीय गति इसके चुम्बकत्व को प्रभावित नहीं करता है। यही कारण है कि प्रति चुम्बकीय पदार्थ के चुम्बकत्व पर ताप का प्रभाव नहीं पड़ता है।

(c) बिस्मथ प्रति चुम्बकीय पदार्थ है, इसलिए क्रोड में क्षेत्र क्रोड के खाली होने की तुलना में कम होता है।

(d) नहीं। लौह चुम्बकीय पदार्थ की चुम्बकशीलता (μ) आरोपित चुम्बकीय क्षेत्र (H) पर निर्भर करता है और H के बीच वक्र से स्पष्ट है कि H के निम्न मान के लिए μ अधिक होता है।

                                              μ = B/ H

(e) लौह चुम्बकीय पदार्थ के लिए μr > 1 अतः क्षेत्र रेखाएँ इस माध्यम से सतह पर लम्बवत् होती है।

(f) हाँ। अनुचुम्बकीय पदार्थ में अधिकतम संभव चुम्बकन लौह चुंबक के चुम्बकन समान कोटि का हाता है। किन्तु अनुचुम्बकीय पदार्थ के लिए उच्च चुम्बकीय क्षेत्र की आवश्यकता होती है जो व्यवहार में संभव नहीं है।

 

19. क्यूरी का नियम बताइए | 300 K पर चुम्बकीय प्रवृत्ति 1.2 x 10-5 है। किस ताप पर इसका मान 1.44 x 10-5 होगा?

उत्तर :- क्यूरी का नियम : -  वैज्ञानिक क्यूरी ने अनेक प्रायोगिक रूप द्वारा यह पता लगाया, कि अनुचुंबकीय पदार्थ की चुंबकन तीव्रता (I), चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता (H) के अनुक्रमानुपाती होती है। एवं परमताप (T) के व्युत्क्रमानुपाती होती है। अर्थात्

                                     I ∝ HT

 

या                                  I = C HT

जहां C एक अनुक्रमानुपाती नियतांक है। जिसे क्यूरी नियतांक कहते हैं। तथा यह समीकरण क्यूरी का नियम कहलाती है। अर्थात्

                                                           C= TIH​

Note –

अनुचुंबकीय पदार्थों की चुंबकीय प्रवृत्ति χ इन पदार्थों के केल्विन ताप के व्युत्क्रमानुपाती होती है।

                                                                = IT

​इसे क्यूरी का नियम कहते हैं।

हल:

क्यूरी के नियम से,

                                          m = CT

                                          mm1 = T1T

                                            T1 = Tmm1

                                   T1 = 3001.210-51.4410-5

                                         T1 = 250K

 

20.चुंबकीय क्षेत्र किसे कहते है ? पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के ऊर्ध्वं एवं क्षैतिज घटक क्रमश: 0.2 G एवं 0.3466 G हैं। उस स्थान पर नति कोण एवं पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र ज्ञात कीजिए।

उत्तर: चुंबकीय क्षेत्र : - किसी चुंबक के चारों ओर का वह क्षेत्र, जिसमें किसी चुंबकीय बल का अनुभव किया जा सकता है इस क्षेत्र को चुंबक का चुंबकीय क्षेत्र कहा जाता है।

हल:

दिया है-

BV = 0.2 G, BH = 0.3466 G

∵                    BV= BH  tanθ

                             tan θ = BVBH = 0.20.3464

                               tan θ = 0.5773

                                       = tan-1(0.5773)

                                      =  30°

पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र

                          B =BHsin = 0.2sin30° = 0.20.5

                                  B = 0.4 G

21.  नति कोण किसे कहते है ? 2 m लम्बी कोई चालक छड़ किसी क्षैतिज मेज पर उतर - दक्षिण दिशा में रखी है। इसमें दक्षिण से उत्तर की ओर 5 A प्रवाहित हो रही है। इस छड़ पर कार्यरत चुम्बकीय बल की दिशा और परिमाण ज्ञात कीजिए। यह दिया गया है कि इस स्थन पर पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र 0.6 x 10-4 T तथा नतिकोण π/6 है।

उत्तर:- 

नमन या नति कोण :-

पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की दिशा तथा क्षैतिज दिशा के बीच बने कोण को नमन कोण या नति कोण कहते हैं।

पृथ्वी के चुंबकीय ध्रुवों पर नति कोण का मान 90° होता है। तथा निरक्ष पर इसका मान शून्य होता है।

हल:

दिया है-

चालक छड़ की लम्बाई l = 2 m

प्रवाहित धारा i = 5 A 

पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र B = 0.6 x 10-4 T

नति कोण θ = 6

अत: चुम्बकीय बल                     F = ilB sinθ

                   F = 5 x 2 x 0.6 x 10-4 x sin π/6

                   F = 0.6 x 10 x sin 30°

                       F = 0.3 x 10-3 N 

 

22.  6J/T चुम्बकीय आघूर्णका कोई छड़ चुम्ब 0.44 T के किसी एकसमान बाध्य चुम्बकीय क्षेत्र से 60° पर संरेखित है। परिकलित कीजिए चुम्बक का चुम्बकीय आघूर्ण को

(i) चुम्बकीय क्षेत्र के अभिलम्बवत

(ii) चुम्बकीय क्षेत्र के विपरीत सरखित करने पर।

हल:-

दिया है-

छड़ चुम्बक का चुम्बकीय आघूर्ण M = 6 JT

चुम्बकीय क्षेत्र B = 0.44 T

(i) चुम्बकीय क्षेत्र के अभिलम्बवत बल आघूर्ण

                                   = MB sinθ

                                     = 6 x 0.44 x sin 90°

                                    = 2.64 N - m

 

(ii) चुम्बकीय क्षेत्र के विपरीत सरेखित करने पर बल आपूर्ण

                                    = MB sin 180°

                                    = MB

                                   = -2.64 N - m

23. 5 cm त्रिज्या एवं 100 फेरों वाली कुण्डली में 0.1 A बार। बह रही है। इसे 1.5 Wb m-2 तीव्रता के एक बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में 180° घुमाने में कृत कार्य ज्ञात कीजिए। घूर्णन अक्ष चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत है। प्रारंभ में कुण्डली का तल चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत है।

हल:-

दिया है: N = 100;

 r = 5 cm = 5 x 10-2 m

I = 0.1 A; 

B = 1.5 Wb m-2

कुण्डली का चुम्बकीय द्विघुव आघूर्ण

                                       M = NIA = NIπr2

कुण्डली प्रारंभ में साम्यावस्था में है, अत: 180° घुमाने में कृत कार्य

                                           W = 2MB

                                              = 2 x NIπr2 B

                                  = 2 x 100 x 0.1 x 3.14 x (5 x 10-2)2 x 1.5

                                        W   = 0.235J

24.  चुंबकीय द्विध्रुव आघूर्ण क्या होता है? एक परमाणु में एक इलेक्ट्रांन नाभिक के परित 0.5 Å त्रिज्या वाली कक्षा में परिक्रमा कर रहा है। यदि इलेक्ट्रॉन की परिक्रमण आवृत्ति MHz हो, तो तुल्य चुम्बकीय आघूर्ण की गणना कीजिए।

उत्तर: - चुंबकीय द्विध्रुव आघूर्ण :    चुम्बक की ध्रुव प्रबलता तथा उसी चुंबक की प्रभावी लम्बाई के गुणनफल को चुंबक का चुम्बकीय आघूर्ण कहते है।

माना किसी चुम्बक के ध्रुव की प्रबलता m है तथा प्रभावी लम्बाई 2L है तो परिभाषा से चुम्बकीय आघूर्ण (M)

                                     M = m x 2L

 माना एक A क्षेत्रफल धारावाही कुंडली है जिसमे N फेरे लिपटे हुए है तथा I धारा प्रवाहित हो रही है और B तथा इसकी दिशा में θ कोण बन रहा है तो बल आघूर्ण (T)

                                          = NIABsinθ

यहाँ

             NIA को चुम्बकीय द्विध्रुव आघूर्ण कहते है।

यह एक सदिश राशि है तथा इसका मात्रक Am2 होता है।

हल:-

दिया है;

 r = 0.5 Å = 0.5 x 10-10 m

इलेक्ट्रॉन की परिक्रमण आवृत्ति n = 1010 MHz = 1016 Hz

लूप में धारा I = eT

क्षेत्रफल A = πr2

तुल्य चुम्बकीय आपूर्ण

                             M  = I A = πr2 = enπr2

                     M = 1.6 x 10-12x 1016 x 3.14 x (0.5 x 10-10)2

                               M = 1.256 x 10-23 Am2

25.(a)  किसी स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के क्षैतिज तथा ऊर्ध्वाधर घटक प्रत्येक 0.5 गौस के बराबर हैं। पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र की सम्पूर्ण तीव्रता का मान ज्ञात कीजिए।

   (b)  5 cm प्रभावी लम्बाई के चुम्बक के ध्रुवों की धुव प्रबलता 40 Am है। तो चुम्बक के चुम्बकीय आघूर्ण का मान ज्ञात करो।

हल : -

  (a)                      tan = VH = 1

                              ∴  = 45°                                           V = H =0.5 गौस

अतः  चुम्बकीय क्षेत्र की सम्पूर्ण तीव्रता B = Hcos

                                                  =  0.510-4cos 45°  

                                                = 7.0710-5 Wb/m2    

  हल : - 

(b)  चुम्बकीय आधूर्ण                           M = m x l

                                                   M = 40 A - m,

                                                   l = 5 cm = 0.05 

 

                                                   M = 0.05 x 40

                                                   M  = 2A - m2