बिहार बोर्ड कक्षा 12 भौतिक विज्ञान अध्याय 4 गतिमान आवेश तथा चुम्बकत्व दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
Launch Your Course Log in Sign up
Menu
Classes
Competitive Exam
Class Notes
Graduate Courses
Job Preparation
IIT-JEE/NEET
vidyakul X
Menu

बिहार बोर्ड कक्षा 12 भौतिक विज्ञान अध्याय 4 गतिमान आवेश तथा चुम्बकत्व दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

BSEB > Class 12 > Important Questions > भौतिक विज्ञान अध्याय 4 गतिमान आवेश तथा चुम्बकत्व - दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1.  एक वृत्ताकार कुंडली जिसमें 20 फेरे हैं और जिसकी त्रिज्या 10 cm है, एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में रखी है जिसका परिमाण 0.10 है और जो कुंडली के तल के लम्बवत है। यदि कुंडली में 5.0 A विद्युत धारा प्रवाहित हो रही हो तो,

(a) कुंडली पर लगने वाला कुल बल-युग्म आघूर्ण क्या है?

(b) कुंडली पर लगने वाला कुल परिणामी बल क्या है?

(c) चुम्बकीय क्षेत्र के कारण कुंडली के प्रत्येक इलेक्ट्रॉन पर लगने वाला कुलै’औसत बल क्या है?

(कुंडली 10-5 m2 अनुप्रस्थ क्षेत्र वाले ताँबे के तार से बनी है, और ताँबे में मुक्त इलेक्ट्रॉन घनत्व 1029 m-3 दिया गया है।)

हल-    दिया है , फेरे N = 20,

                            i = 5.0 A,

                            r = 0.10 m,               

                            B = 0.10 T

       इलेक्ट्रॉन घनत्व n = 1029 m-3,

 तार का अनुप्रस्थ क्षेत्रफल A = 10-5m2

(a) कुंडली का तल चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् है; अत: कुंडली के तल पर अभिलम्ब व चुम्बकीय क्षेत्र के बीच का कोण शून्य है (θ = 0°)

                    बल-आघूर्ण = NiLAB sin 0° = 0

(b) कुंडली पर नेट बल भी शून्य है।

(c) यदि इलेक्ट्रॉनों का अपवाह वेगVd है तो

                              i = neAVd

                            Vd = ineA

                             F = eVdB sin 90°

                             F = e ineAB =  iBnA

                             F = 5.00.10102910-5

                             F = 5.010-25N

Download this PDF

2. चुंबकीय क्षेत्र क्या है ?विद्युत क्षेत्र तथा चुंबकीय क्षेत्र में संबंध ज्ञात कीजिये | 

उत्तर-चुंबकीय क्षेत्र: - जब किसी चुंबक के समीप किसी छोटी चुंबकीय सुई को लटकाते हैं तो वह चुंबकीय सुई सदैव एक निश्चित दिशा में रुक जाती है। अब यदि हम चुंबक को आगे पीछे करते हैं तो वह चुंबकीय सुई भी चुंबक के साथ साथ ही आगे पीछे होकर स्थिर दिशा में आकर रूक जाती है। तब इससे यह पता चलता है कि चुंबक के समीप चुंबकीय सुई पर एक बल आघूर्ण कार्य करता है जो चुंबकीय सुई को घूमाकर एक निश्चित दिशा में ले आता है। अर्थात्

किसी चुंबक के चारों का वह क्षेत्र, जिसमें किसी चुंबकीय सुई पर एक बल-आघूर्ण कार्य करता है। जिस कारण चुंबकीय सुई घूमकर एक निश्चित दिशा में आकर रूक जाती है। चुंबक के चारों ओर के इस क्षेत्र को चुंबकीय क्षेत्र कहते हैं।

चुंबकीय क्षेत्र का मात्रक:-

सूत्र F = q B V से

जहां F = चुंबकीय बल

q = चुंबकीय क्षेत्र में कण पर आवेश

V = कण का वेग

B = चुंबकीय क्षेत्र है तो

B = FqV

अतः चुंबकीय क्षेत्र का SI मात्रक न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर होता है। इसे टेस्ला भी कहते हैं।

1 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर = 1 टेस्ला

चुंबकीय क्षेत्र का विमीय सूत्र:-

सूत्र F = q B V से

चुंबकीय क्षेत्र B = FqV

चुंबकीय क्षेत्र का विमीय सूत्र = F का विमीय सूत्र(qका विमीय सूत्र)×(Vका विमीय सूत्र)

B का विमीय सूत्र = MLT-2TALT-1

B का विमीय सूत्र = ML-2A-1

अतः चुंबकीय क्षेत्र का विमीय सूत्र ML-2A-1 होता है।

यह विधि विमीय सूत्र ज्ञात करने की सबसे आसान विधि है इस विधि द्वारा राशि के सूत्र से ही विमीय सूत्र ज्ञात हो जाता है।

विद्युत क्षेत्र तथा चुंबकीय क्षेत्र में संबंध:-

जब E विद्युत क्षेत्र में +q आवेश का कण गतिमान होता है। तो कण पर आरोपित बल

                             F = qE…………….. (1)

जब चुंबकीय क्षेत्र B में +q आवेश के कण को V वेग से क्षेत्र के लंबवत प्रवेश कराया जाता है। तो कण पर आरोपित बल

                           F = q B V ………………… (2)

समीकरण (1) व समीकरण (2) की तुलना करने पर

                           qE = q B V

                            E = BV

                                      B = EV

यही विद्युत क्षेत्र तथा चुंबकीय क्षेत्र के बीच संबंध का सूत्र है।

3. चुंबकीय बल तथा लॉरेंज बल को परिभाषित कीजिए | लॉरेंज बल के कारक बताइए |

उत्तर- चुंबकीय बल :-  जब कोई आवेशित कण किसी चुंबकीय क्षेत्र में गति करता है। तो कण पर एक बल कार्य करता है। कण पर आरोपित इस बल को चुंबकीय बल कहते हैं।

माना +q आवेश का कण चुंबकीय क्षेत्र B की दिशा के लंबवत V वेग से गतिमान है। तो कण पर आरोपित बल

                                     F=qVB

माना यदि +q आवेश का कण की दिशा चुंबकीय क्षेत्र B के लंबवत् न होकर उससे θ कोण बना रही है। तो

                                    F=qVBsinθ

लॉरेंज बल :-

यदि आवेशित कण किसी ऐसे क्षेत्र में है जहां पर विद्युत चुंबकीय क्षेत्र दोनों विद्यमान हैं। तब कण पर आरोपित परिणामी बल को लॉरेंज बल कहते हैं।

माना विद्युत क्षेत्र E तथा चुंबकीय क्षेत्र B दोनों की उपस्थिति में कोई +q आवेश, V वेग से गतिमान है तो आवेश पर इन दोनों क्षेत्रों द्वारा आरोपित बल F है तो

 

                                   F = Fविद्युत+ Fचुंबकीय 

 

                                                    F= qE + qVB

​यह लॉरेंज बल का सूत्र है।

लॉरेंज बल के कारक: -

1. जब चुंबकीय क्षेत्र तथा वेग की दिशा एक दूसरे के समांतर या प्रतिसमांतर होती है। तब लॉरेंज बल की दिशा फ्लेमिंग के बाएं हाथ के नियम द्वारा ज्ञात की जा सकती है।

2.  यदि आवेश गतिमान नहीं है तो चुंबकीय बल शून्य होगा। चूंकि चुंबकीय क्षेत्र केवल गतिमान आवेश पर ही उत्पन्न होता है।

लॉरेंज बल का मान कण के आवेश q, वेग V तथा चुंबकीय क्षेत्र B पर निर्भर करता है। अर्थात् ऋण आवेश पर लगने वाला बल, धन आवेश पर लगने वाले बल के विपरीत होता है।

4. बायो सेवर्ट का नियम तथा निर्वात की चुंबकशीलता  लिखिए |

उत्तर- बायो सेवर्ट का नियम :- जब किसी धारावाही चालक तार में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है। तो तार के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। वैज्ञानिक बायो तथा सेवर्ट बताया, कि किसी धारावाही चालक XY के अतिअल्प अवयव ∆ℓ के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र ∆B का मान निम्न कारकों पर निर्भर करता है।

 

                         बायो सेवर्ट का नियम

 

1. यह चालक में प्रवाहित विद्युत धारा i के अनुक्रमानुपाती होता है। अर्थात्

                                  ∆B ∝ i

2. यह अतिअल्प अवयव ∆ℓ की लंबाई के अनुक्रमानुपाती होता है। अर्थात्

                                  ∆B ∝ ∆ℓ

3. यह अतिअल्प अवयव से बिंदु P तक की रेखा तथा अतिअल्प अवयव की लंबाई के बीच बने कोण की ज्या (sine) के अनुक्रमानुपाती होता है। अर्थात्

                                 ∆B ∝ sinθ

4. यह अतिअल्प अवयव से बिंदु P तक की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है। अर्थात्

                                  ∆B ∝ 1r2

अब इन समीकरणों को मिलाने पर

                              ∆B ∝ i×∆ℓ×sinθr2

 

इस संबंध को बायो सेवर्ट का नियम कहते हैं।

यदि धारावाही चालक वायु अथवा निर्वात में स्थित है तब बायो सेवर्ट नियम कुछ इस प्रकार लिखा जाएगा।

                                     ∆B= 04 i∆ℓsinθr2

निर्वात की चुंबकशीलता: -

बायो सेवर्ट नियम से धारावाही चालक तार के अतिअल्प अवयव के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र निम्न कारकों पर निर्भर करता है।

                                   ∆B ∝ i×∆ℓ×sinθr2

         या                                 

                                ∆B= 04 i∆ℓsinθr2

जहां 0/4π अनुक्रमानुपाती नियतांक है। 0 को निर्वात की चुंबकशीलता कहते हैं।

चुंबकशीलता का मान 4π × 10-7 न्यूटन/ऐम्पियर2 होता है।

 

5. एकसमान चुंबकीय क्षेत्र में धारावाही लूप पर लगने वाला बल आघूर्ण  ज्ञात कीजिये |  

उत्तर-

 एकसमान चुंबकीय क्षेत्र में धारावाही लूप पर लगने वाला बल आघूर्ण :-

माना एकसमान चुंबकीय क्षेत्र B में एक धारावाही आयताकार लूप ABCD को लटकाया गया है।

चूंकि आयताकार वस्तु की आमने-सामने की भुजाएं बराबर होती है। तब इस लूप की भी आमने-सामने की भुजाएं बराबर होंगे अतः

AB = ℓ है तब CD की लंबाई भी ℓ होगी। ठीक इसी प्रकार BC = b है तब AD की लंबाई भी b होगी।

तो इस पाश (लूप) की भुजा AB पर लगने वाला बल F1 भुजा CD पर लगने वाले बल F2 के बराबर होता है। अतः

                                  F1 =F2 = iBℓ

             एकसमान चुंबकीय क्षेत्र में धारावाही लूप पर लगने वाला बल आघूर्ण

भुजा AB पर लगने वाला बल, भुजा CD पर लगने वाले बल के बराबर तथा विपरीत है। अतः यह बल आयताकार लूप को चुंबकीय क्षेत्र B में घुमाने का प्रयास करते हैं। तब इस प्रत्यानयन बल का आघूर्ण

                              = बल × लम्वबत् दूरी

                              = iBℓ × bsinθ

चूंकि लूप का क्षेत्रफल A = ℓ × b है तो

                            = iBAsinθ

लूप की शेष दो भुजाओं BC व AD पर लगने वाला बल परस्पर एक दूसरे के बराबर में विपरीत हैं परंतु इनकी क्रिया रेखा एक ही है इसलिए यह दोनों बल एक दूसरे को निरस्त कर देते हैं। जिसके परिणाम स्वरूप लूप पर कोई नेट बल अथवा बल आघूर्ण नहीं है

माना आयताकार लूप के स्थान पर N फेरों वाली कुंडली का प्रयोग किया जाता है तब बल का आघूर्ण

                                   = iBAsinθ

यहां NiA को चुंबकीय द्विध्रुव आघूर्ण कहते हैं। जिसे M से प्रदर्शित करते हैं। तो

 

                                          =MBsinθ

तथा 

                                                            M = NiA

चुंबकीय द्विध्रुव का मात्रक ऐम्पियर-मीटर 2 होता है। तथा इस का विमीय सूत्र [L2A] है।

नोट: – यदि लूप की अक्ष, चुंबकीय क्षेत्र के समांतर है। तब इस स्थिति में

                                        θ = 0°

या                                   τ = MBsin0°

                                         τ = 0

अर्थात् लूप की अक्ष चुंबकीय क्षेत्र के समांतर होती है तब इस स्थिति में लूप पर बल युग्म का आघूर्ण शून्य होता है।

 

6. चुंबकीय क्षेत्र में आवेश की गति ज्ञात कीजिये |  

उत्तर- माना कोई धन-आवेशित कण +q एकसमान चुंबकीय क्षेत्र B में V वेग से क्षेत्र की दिशा के लंबवत प्रवेश करता है। यदि इस कण पर लगने वाला चुंबकीय बल F है तो

F = qVBsinθ

                       चुंबकीय क्षेत्र में आवेश की गति

 

जहां θ चुंबकीय क्षेत्र तथा वेग के बीच का कोण है। चूंकि आवेशित कण का वेग, चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के लंबवत है। तो

                                          θ = 90° 

तब चुंबकीय बल

                                         F = qVB

इस बल की दिशा चुंबकीय क्षेत्र B तथा आवेशित कण के वेग V के लंबवत् होगी। लंबवत बल (qVB) अभिकेंद्र बल की भांति कार्य करता है। अर्थात् आवेशित कण एक वृत्तीय पथ पर गति करने लगेगा।

वृत्ताकार गति में कल पर लगने वाला अभिकेंद्र बल

                                  F = mV2 r​ ………………………   

 

जहां m आवेशित कण का द्रव्यमान तथा r वृत्तीय पथ की त्रिज्या है।

अब दोनों समीकरणों की तुलना करने पर

                                 F = F

मान रखने पर

                             qVB = mV2 r

 

                                    r = mVqB  ……………. (1)

 

माना आवेशित कण का संवेग P है। तो

P = द्रव्यमान × वेग

P = mV

तब                                    r = PqB

माना यदि कण की गतिज ऊर्जा K है तो

                                     K = 12mV2 

                                  V=2Km 

अब V का मान समीकरण (1) में रखने पर

                                   r =m2KmqB 

                            r= 2mKqB

 

इस समीकरण द्वारा कण के वृत्तीय पथ की त्रिज्या को कण की गतिज ऊर्जा के पदों में ज्ञात कर सकते          हैं।

 

 

चूंकि कण एक चक्कर में 2πr दूरी तय करता है। माना कण का आवर्तकाल T है तो

                                T =2πrV 

समीकरण (1) से r का मान रखने पर आवर्तकाल

                              T = 2π×mVqB×V

                                        T = 2πmqB

आवर्तकाल के व्युक्रम को आवृत्ति n कहते हैं तब

                            n =1T 

                                  n = qB​2πm

 

 

7.चुंबकीय क्षेत्र में धारावाही चालक पर बल ज्ञात कीजिये |  3 मीटर लंबाई के किसी सीधे तार से 4 ऐम्पियर की विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है। तार का द्रव्यमान 400 ग्राम है। यह धारा किसी एकसमान क्षैतिज चुंबकीय क्षेत्र द्वारा वायु के बीच में निलंबित है तो तार का चुंबकीय क्षेत्र ज्ञात कीजिए।

उत्तर- चुंबकीय क्षेत्र में धारावाही चालक पर बल :-  जब कोई धारावाही चालक एकसमान चुंबकीय क्षेत्र B में क्षेत्र के लंबवत रखा जाता है। तो धारावाही चालक पर एक बल कार्य करता है। इस बल का मान चुंबकीय क्षेत्र B तथा धारा i दोनों के लंबवत होता है। अर्थात्

 

                               F = i × B × ℓ

 

यदि धारावाही चालक चुंबकीय क्षेत्र B के लंबवत न होकर उससे θ कोण बनाते हुए रखा गया है तो चालक पर लगने वाला बल

                                               F=iBℓsinθ

इस बल की दिशा फ्लेमिंग के बायें हाथ नियम के अनुसार होगी। या दायें हाथ की हथेली के नियम नंबर-2 के अनुसार होगी।

 

हल – ज्ञात है।

m = 400 ग्राम = 0.4 किग्रा

ℓ = 3 मीटर

i = 4ऐम्पियर

वायु में निलंबित होने के लिए तार पर उसके भार के बराबर ऊपर की ओर चुंबकीय बल आरोपित होना चाहिए। अर्थात्

                                        F = iBℓ

या                                   mg = iBℓ

मान रखने पर

                                   0.4 × 9.8 = 4 × B × 3

चुंबकीय क्षेत्र                        B = 0.323 टेस्ला

 

8. चुंबकीय बल से क्या आशय है ? 10 सेमी लंबे तार में 5 ऐम्पियर की विद्युत धारा बह रही है। तार को एक परिनालिका के भीतर इसकी अक्ष के लंबवत रखा गया है। यदि परिनालिका के भीतर चुंबकीय क्षेत्र 5 × 10-2 टेस्ला है तो तार पर आरोपित चुंबकीय बल ज्ञात कीजिए?

उत्तर- चुंबकीय बल :-  जब कोई आवेशित कण किसी चुंबकीय क्षेत्र में गति करता है। तो कण पर एक बल कार्य करता है। कण पर आरोपित इस बल को चुंबकीय बल कहते हैं।

माना +q आवेश का कण चुंबकीय क्षेत्र B की दिशा के लंबवत V वेग से गतिमान है। तो कण पर आरोपित बल

                                     F=qVB

माना यदि +q आवेश का कण की दिशा चुंबकीय क्षेत्र B के लंबवत् न होकर उससे θ कोण बना रही है। तो

                                    F=qVBsinθ

 

हल – दिया है

तार की लंबाई ℓ = 10 सेमी = 0.10 मीटर

विद्युत धारा i = 5ऐम्पियर

चुंबकीय क्षेत्र = 5 × 10-2 टेस्ला

θ = 90°

यदि तार पर आरोपित चुंबकीय बल F है तो

                                   F = iBℓsinθ

मान रखने पर

                            F = 5 × 5 ×  10-2 × 0.10 × sin 90°

चुंबकीय बल

                              F = 2.5 × 10-2 न्यूटन

9. एम्पीयर का परिपथ नियम किसे कहते हैं इसकी उत्पत्ति या सिद्ध कीजिए |

उत्तर-

 एम्पीयर का परिपथ नियम :-  एम्पीयर के परिपथ नियम के अनुसार, किसी बंद परिपथ के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र B का रेखीय समाकल B⋅dℓ परिपथ द्वारा घिरी कुल धारा i का 0 गुना होता है। अर्थात्

                                           ∮B⋅dℓ =0i

 

इस समीकरण को एम्पीयर का परिपथ नियम कहते हैं। जहां 0निर्वात् की चुंबकीयशीलता हैं। जिसका

मान 4π × 10-7 न्यूटन/ऐम्पियर2 होता है।

एम्पीयर के परिपथ नियम की उत्पत्ति :-

माना XY लंबाई का एक तार है जिसमें i धारा प्रवाहित हो रही है। तार से r त्रिज्या की दूरी पर एक बिंदु P है। जिस पर चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करनी है।

                      एम्पीयर का परिपथ नियम

तब इसके लिए तार के केंद्र से चारों ओर r त्रिज्या का एक वृत्त खींचते हैं। यह वृत्त बिंदु P से होकर जात है। तो बिंदु P पर चुंबकीय क्षेत्र

                                           B = 0i2πr……………..①

वृत्त के प्रत्येक बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता B का परिणाम समान होगा। तथा सदिश B व dℓ एक ही दिशा में होंगे।

अतः B का पथ के अनुदिश रेखीय समाकलन

                                                  ∮B⋅dℓ = ∮Bdℓcos0

 

                                                  ∮B⋅dℓ = B∮dℓ

 

चूंकि ∮dℓ पथ की लंबाई है। क्योंकि पथ वृत्ताकार आकृति का है इसलिए इसकी लंबाई 2πr होगी।

अर्थात् 

                                                 ∮B⋅dℓ = B × 2πr

 

समी.① से B का मान रखने पर

                                           ∮B⋅dℓ =  0i2πr × 2πr

 

                                                   ∮B⋅dℓ = 0i

 

यही एम्पीयर के परिपथ नियम का समीकरण है। अर्थात् इस प्रकार एम्पीयर के परिपथ नियम को सिद्ध किया जाता है।

 

10.एम्पीयर का परिपथ नियम तथा इसके अनुप्रयोग लिखिए | 

उत्तर-

 एम्पीयर का परिपथ नियम :-  एम्पीयर के परिपथ नियम के अनुसार, किसी बंद परिपथ के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र B का रेखीय समाकल B⋅dℓ परिपथ द्वारा घिरी कुल धारा i का 0 गुना होता है। अर्थात्

                                           ∮B⋅dℓ =0i

 

इस समीकरण को एम्पीयर का परिपथ नियम कहते हैं। जहां 0निर्वात् की चुंबकीयशीलता हैं। जिसका

मान 4π × 10-7 न्यूटन/ऐम्पियर2 होता है।

 

एम्पीयर के परिपथ नियम के अनुप्रयोग :-

एम्पीयर के परिपथ नियम के कई अनुप्रयोग हैं।

1. अनंत लंबाई के धारावाहिक तार के कारण चुंबकीय क्षेत्र ज्ञात करना

2. धारावाही टोराइड के कारण चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करना।

3. धारावाही परिनालिका के भीतर चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करना।

 अनंत लंबाई के धारावाहिक तार के कारण चुंबकीय क्षेत्र ज्ञात करना :-

माना एक अनंत लंबाई का धारावाही चालक तार है जिसमें i धारा प्रवाहित हो रही है तार से r दूरी पर एक बिंदु P है जिस पर चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करनी है।

                                 

तो इसके लिए r त्रिज्या का एक वृत्त खींचते हैं जो बिंदु P से होकर गुजरता है। बिंदु P पर चुंबकीय क्षेत्र B तथा dℓ एक ही दिशा में है। अर्थात् θ = 0°

तो एंपियर के नियम से

                                                 ∮B⋅dℓ = 0i

 

                                                     ∮Bdℓcos0  = 0i

 

                                                       B∮dℓ = 0i

 

                                         B × 2πr  = 0i

 

                                         B =  0i2πr

 

11 . टोराइड किसे कहते है ? टोराइड के कारण चुंबकीय क्षेत्र ज्ञात कीजिए | 

उत्तर-

टोराइड : -  यह एक ऐसा वृत्ताकार खोखला छल्ला होता है जिस पर किसी तार के अत्यधिक फेरे पास-पास सटाकर लपेटे जाते हैं। इस प्रकार के धारावाही वृत्ताकार खोखले छल्ले को टोराइड कहते हैं।

टोराइड को मुख्यतः एक ऋजुरेखीय परिनालिका को वृत्ताकार रूप में मोड़कर निर्मित किया जाता है। अर्थात् यह बिना सिर वाली एक परिनालिका होती है।

 

टोराइड के कारण चुंबकीय क्षेत्र :-

माना टोराइड के भीतर किसी बिंदु P पर चुंबकीय क्षेत्र ज्ञात करना है। बिंदु P से केंद्र O तक की दूरी r है। तब बिंदु P से होकर गुजरने वाला एक वृत्त खींचते हैं। जिसकी त्रिज्या r है। यदि वृत्त द्वारा प्रवाहित कुलधारा i 

 है तब इस पर एम्पीयर का नियम लगाने से

 

 

 

 

टोराइड के कारण चुंबकीय क्षेत्र

 

 

                                                 ∮B⋅dℓ = 0i

 

चुंबकीय क्षेत्र B तथा ℓ.dℓका परिमाण प्रत्येक बिंदु पर समान होगा। तब इसे इस प्रकार लिखा जा सकता 

है।

 

 

                                            ∮B⋅dℓ = ∫Bdℓcos0°

 

                                             ∮B⋅dℓ = B∫dℓ

 

परंतु  ∫dℓ वृत्ताकार पत्र की परिधि है जिसका मान (2πr) होता है तब

                                            ∮B⋅dℓ= B(2πr) ........ (1)

वृत्ताकार पथ में फेरों की कुल संख्या n है। तथा टोराइट के प्रत्येक फेरे में प्रवाहित विद्युत धारा i है। तब वृत्तीय पथ द्वारा परिबद्ध कुलधारा ni होगी। अतः एंपीयर के परिपथ नियम से

                                                ∮B⋅dℓ=  0i

समी. (1) से तुलना करने पर

                                                            B(2πr) =0ni

                                          B = 0ni2πr

 

12.दो समांतर धारावाही चालक तारों के बीच बल ज्ञात कीजिए |  किसी वाहन की बैटरी से इसकी चालन मोटर को जोड़ने वाले तारों में 300 एंपियर की विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है। तो तारों के बीच एकांक लंबाई पर बल ज्ञात कीजिए। जबकि इनकी लंबाई 60 सेमी एवं बीच की दूरी 2 सेमी है?

उत्तर :-  

जब किसी चालक तार में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है। तो चालक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र स्थापित हो जाता है। जब इस चालक के पास कोई दूसरा चालक रख देते हैं। तब पहले चालक तार पर स्थापित चुंबकीय क्षेत्र के कारण, दूसरा चालक तार एक बल बल का अनुभव करता है।

                    दो समांतर धारावाही चालक तारों के बीच बल

चित्र में दो लंबे समांतर धारावाही चालक तार a तथा b दर्शाए गए हैं जिनके बीच की दूरी r है। माना इन दोनों धारावाही चालक तारों में क्रमशः i1 व i2 विद्युत धाराएं प्रवाहित हो रही हैं। चालक a, चालक b के अनुदिश प्रत्येक बिंदु पर B1 समान चुंबकीय क्षेत्र आरोपित करता है। तो i1 धारा के कारण तार a के किसी बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र

                              B1 = 02 i1r ………...(1)

तब दाएं हाथ के नियम के अनुसार इस चुंबकीय क्षेत्र की दिशा माध्यम तल के लम्वबत् अंदर की ओर होगी।

चुंबकीय क्षेत्र B1 के कारण चालक b, जिसमें i2 धारा प्रवाहित हो रही है। एक बल का अनुभव करता है इस बल की दिशा फ्लेमिंग के बाएं हाथ के नियम के अनुसार चालक a की ओर होती है। माना यदि यह बल F है तो

                                 F = i2  B1ℓ

समी.(1) से B1 का मान में रखने पर बल

                               F = i2  × 02 i1r × ℓ

 

                            Fl = 02  i1i2r न्यूटन/मीटर

जहां 0 को चुंबकशीलता कहते हैं जिसका मान 4π ×10-7 N/Amp2 होता है। तब

                          Fl = 2×10-7 i1i2r न्यूटन/मीटर

हल – दिया है

यहां दोनों तारों में एंपियर की विद्युत धारा ही प्रभावित होती है।

                   i1 = 300 एंपियर

                   i2= 300 एंपियर

बीच की दूरी r = 2 सेमी = 0.02 मीटर

                 Fl = 2×10-7 i1i2r 

मान रखने पर

            Fl =2×10-73003000.02

 

          Fl = 0.9 न्यूटन/मीटर

13.साइक्लोट्रॉन की कार्यविधि समझाइए |  

 उत्तर :-  

साइक्लोट्रॉन :-  यह वैज्ञानिक ई.ओ. लॉरेंस द्वारा आविष्कृत एक ऐसी युक्ति होती है। जिसका उपयोग आवेशित कणों (जैसे प्रोटॉन, ड्यूटॉन या एल्फा कण) को त्वरित करने में किया जाता है। इस प्रकार की युक्ति को साइक्लोट्रॉन कहते हैं।

संरचना : -

इसमें धातु की दो अर्धवृत्ताकार खोखली डिस्क होती है। जिनका आकार अंग्रेजी वर्णमाला के D अक्षर की तरह होता है। जिस कारण इन्हें डीज कहते हैं। इन दोनों डीज D1 व D2 को इस प्रकार व्यवस्थित किया जाता है की इन दोनों के व्यास परस्पर समांतर हो तथा इनके बीच कुछ रिक्त स्थान हो, जिससे यह एक दूसरे से पृथक्कृत रहें।

डीज के बीच लगभग 105 वोल्ट की कोटी का प्रत्यावर्ती विभवांतर स्थापित किया जाता है। तथा डीज के तल के लंबवत् दिशा में एक विद्युत चुंबक द्वारा चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न किया जाता है।

                      

साइक्लोट्रॉन की कार्यविधि :-

दोनों डीज के बीच के रिक्त स्थान में +q आवेश व m द्रव्यमान का एक कण है। विद्युत क्षेत्र के कारण यह कण किसी एक डीज की ओर त्वरित होता है। डीज के भीतर यह कण अर्धवृत्ताकार आकार पथ में दक्षिणावर्ती दिशा में एक स्थिर चाल से गति करने लगता है।

चुंबकीय क्षेत्र B के कारण कण v वेग से r त्रिज्या के एक वृत्तीय पथ पर चलने लगता है। तब इस वृत्ताकार पथ पर आरोपित अभिकेंद्र बल F हो तो

                          F = mV2r

चूंकि यह अभिकेंद्र बल, चुंबकीय बल के द्वारा ही आरोपित होता है इसीलिए यह दोनों आपस में बराबर होंगे। तो

                   अभिकेंद्र बल = चुंबकीय बल

मान रखने पर

                    mV2r = qvB

                       r = mvqB……...(1)

कोणीय वेग ω = vr  …………..(2)

कण द्वारा डीज के भीतर एक अर्ध वृत्त पूरा करने लगा समय t हो तो

                               t =

ω का मान समी.(2) से रखने पर

                             t = rv

अब समी.(1) से r का मान रखने पर

                         t = π×mv/qBr

                           t =π×mqB 

चूंकि यह समय एक अर्धवृत्त को पूरा करने में लगा है।

अतः यह तो हम जानते ही हैं कि एक पूर्ण चक्कर करने में लगे समय को आवर्तकाल कहते हैं। तो

कण का आवर्तकाल

                              T = 2t

                           T = 2mqB

आवर्तकाल के व्युत्क्रम को आवृत्ति कहते हैं तो

                              v =1T

 

                          v = qB2πm 

इसे साइक्लोट्रॉन आवृत्ति कहा जाता है। जहां B चुंबकीय क्षेत्र है।

 

14.अमीटर किसे कहते हैं | धारामापी का अमीटर में रूपांतरण कीजिए  |

उत्तर :-  अमीटर :-  अमीटर वह यंत्र है जिसके द्वारा परिपथ में विद्युत धारा को मापा जाता है। अमीटर के द्वारा विद्युत धारा को एंपियर में मापी जाती है। मिली एंपियर की कोटी की विद्युत धारा को मापने वाले यंत्र को मिली अमीटर कहते हैं।

अमीटर मूल्यतः धारामापी ही होता है। जिसे विद्युत परिपथ में श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है। जब अमीटर जुड़े परिपथ में विद्युत धारा का प्रवाह किया जाता है तो संपूर्ण धारा इस अमीटर में से होकर जाती है। जिससे अमीटर विद्युत धारा का मापन कर देता है। अतः इस प्रकार अमीटर द्वारा विद्युत धारा का मापन किया जाता है।

एक आदर्श अमीटर वही होता है। जिस अमीटर का प्रतिरोध लगभग शून्य हो।

 

धारामापी का अमीटर में रूपांतरण :-

धारामापी को अमीटर में बदलने के लिए इसकी कुंडली के समांतर क्रम में लघु प्रतिरोध का तार लगा देते हैं। इस तार को शन्ट कहते हैं। शन्ट को चित्र में S से प्रदर्शित किया गया है।

 

नोट –  अमीटर को विद्युत परिपथ में श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है। जबकि धारामापी को अमीटर में बदलने के लिए इसकी कुंडली के समांतर क्रम में प्रतिरोध तार को जोड़ा जाता है।

 

                 धारामापी का अमीटर में रूपांतरण

 

माना धारामापी का प्रतिरोध G तथा प्रतिरोध तार (शन्ट) का प्रतिरोध S है। जब परिपथ में i धारा प्रवाहित की जाती है। तब परिपथ में श्रेणीक्रम में अमीटर लगाने पर धारामापी में igतथा शन्ट में (i – ig) धारा होकर गुजरती है। चूंकि धारामापी एवं शन्ट परस्पर समांतर क्रम में लगे हैं। इसलिए इनके सिरों पर विभवांतर समान होगा। अर्थात्

विभवांतर = धारा × प्रतिरोध

                           ig × G = (i – ig) × S

                                         S  = igi-igG​

यह शंट के प्रतिरोध का सूत्र है।

 जहां

G = धारामापी का प्रतिरोध

i = अमीटर में प्रवाहित धारा

ig = धारामापी में प्रवाहित धारा है

 

15. गैल्वेनोमीटर को अमीटर में बदलने के लिए क्या जोड़ते हैं?  20Ω प्रतिरोध वाला धारामापी 0.005 एंपियर धारा से पूरे स्केल पर विक्षेप देता है। इसे 1 एंपियर तक विद्युत धारा मापने वाले अमीटर में किस प्रकार परिवर्तित करेंगे?

उत्तर :- गैल्वेनोमीटर को अमीटर में बदलने के लिए इसकी कुंडली के समांतर क्रम में लघु प्रतिरोध का तार 

जोड़ देते हैं।

हल – दिया है-

धारामापी का प्रतिरोध G = 20 Ω

तथा धारामापी में प्रवाहित धारा ig = 0.005 एंपियर

एवं अमीटर में प्रवाहित धारा i = 1 एंपियर

तब सूत्र शन्ट का प्रतिरोध

                             S   = igi-igG​

मान रखने पर प्रतिरोध

                          S = 0.0051−0.005× 20

 

                           S = 100995  ओम

या S = 0.1 ओम

अतः 0.1 ओम का प्रतिरोध तार (शन्ट) प्रयोग करने पर धारामापी को अमीटर में परिवर्तित किया जा सकता है।

 

16.चल कुंडली धारामापी क्या है ?चल कुंडली धारामापी की संरचना बताइए | 

उत्तर :-  चल कुंडली धारामापी  :-   वह उपकरण जिससे किसी भी परिपथ में विद्युत धारा का संसूचन किया जा सकता है। इस प्रकार के उपकरण को चल कुंडली धारामापी कहते हैं। चल कुंडली धारामापी के क्रिया चुंबकीय क्षेत्र में धारावाही कुंडली पर आरोपित बल आघूर्ण पर आधारित होती है।

चल कुंडली धारामापी की संरचना :-

चल कुंडली धारामापी में दो शक्तिशाली चुंबकों N व S के ध्रुव खण्डों बीच में एल्यूमीनियम के फ्रेम के ऊपर तांबे के पतले तारों से लिपटी एक कुंडली रखी होती है। इस कुंडली से एक संकेतक लगा होता है। कुंडली के दोनों सिरों पर दो स्प्रिंग लगे होते हैं। जो कुंडली के घूमने पर ऐंठन बल युग्म उत्पन्न करते हैं। कुंडली के विक्षेप को पढ़ने के लिए इसमें एक संकेतक लगाया जाता है चित्र से स्पष्ट है।

 

             चल कुंडली धारामापी

जब कुंडली में i धारा प्रवाहित की जाती है। तो कुंडली के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र स्थापित हो जाता है। यह क्रोड अनेकों फेरों वाली एक कुंडली होती है। यदि कुंडली पर लगने वाला बल आघूर्ण τ है तो

τ = NiABsinθ

जहां θ कुंडली के तल पर लंब की दिशा तथा चुंबकीय क्षेत्र B की दिशा के बीच का कोण है।

तथा N कुंडली में फेरों की संख्या, i कुंडली में प्रवाहित विद्युत धारा, B चुंबकीय क्षेत्र तथा A कुंडली का क्षेत्रफल है।

चूंकि θ = 90° तो sin 90° = 1 तब बल आघूर्ण

= NiAB

यह बल आघूर्ण कुंडली में घूर्णन की प्रवृत्ति उत्पन्न करता है जिसके फलस्वरूप कुंडली अपने अक्ष पर घूर्णन करने लगती है। कुंडली से जुड़ी क्रोड में कुंडली के विरुद्ध बल आघूर्ण kΦ उत्पन्न हो जाता है। जो कुंडली के बल आघूर्ण NiAB को संतुलित करता है।

साम्यावस्था में

                              kΦ = NiAB

जहां k कुंडली का ऐंठन नियतांक है। तथा Φ गैल्वेनोमीटर में उत्पन्न विक्षेपण है। तो

                               Φ = NABki

जहां  NABk गैल्वेनोमीटर के लिए एक नियतांक है। तो

                                                   i  ∝ Φ

​अर्थात् इस प्रकार कुंडली में प्रवाहित धारा उसमें उत्पन्न विक्षेपण के अनुक्रमानुपाती होती है।

 

17.निलंबित कुण्डली धारामापी के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए | 

उत्तर :- निलंबित कुण्डली धारामापी : -  निलम्बित कुण्डली धारामापी की संरचना चित्र में दिखाई गयी है , इसमें एक अनुचुम्बकीय धातु (एल्युमिनियम) पर विद्युत रोधी तथा ताँबे के तार को लपेटकर कुण्डली बनाई जाती है।

इस कुण्डली को फॉस्फर ब्रॉन्ज के तार की सहायता से दो प्रबल चुम्बकों के मध्य लटकाया जाता है।

कुण्डली के भीतर एक नरम लोहे की क्रोड़ रखी रहती है।

 

कुंडली का एक सिरा मरोड़ कुंजी से होता हुआ संयोजक पेच T1 से जुड़ा रहता है , यहाँ मरोड़ कुंजी कुण्डली को आवश्यकता पड़ने पर घूमने के लिए स्वतंत्र रखता है।

मरोड़ कुंजी तथा कुण्डली के मध्य फॉस्फर ब्रॉन्ज तार पर एक समतल दर्पण लगा रहता है जो तार के साथ आसानी से घूम सकता है।

यह दर्पण लैम्प व स्केल व्यवस्था द्वारा विक्षेप अध्ययन करने अर्थात देखने के काम आता है।

कुण्डली का नीचे वाला सिरा एक प्रत्यास्थ स्प्रिंग से जुड़ा रहता है तथा यह स्प्रिंग T2से जुडी रहती है।

निलंबित कुण्डली धारामापी के सिद्धान्त:-

यह युक्ति इस सिद्धांत पर कार्य करती है कि ” जब किसी धारावाही कुण्डली को किसी समान या समरूप चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाए और इसमें धारा प्रवाहित की जाये तो कुंडली पर एक एक बल आघूर्ण कार्य करता है जो कुण्डली को घुमाता है तथा यह घूर्णन विक्षेप (बल आघूर्ण) कुण्डली में प्रवाहित धारा के मान पर निर्भर करता है “

माना कुंडली में n फेरे लिपटे हुए है , क्षेत्रफल A , चुम्बकीय क्षेत्र B , तथा कोण θ है तो

बल आघूर्ण

                                  = nIAB sinθ

यदि चुम्बकीय क्षेत्र त्रिज्य है तो θ = 90′

अतः

                                        = nIAB

इस बल आघूर्ण के कारण कुण्डली घूमने लगेगी फलस्वरूप फॉस्फर ब्रॉन्ज़ तार में ऐंठन आने लगेगी

माना फॉस्फर ब्रॉन्ज़ तार में ऐंठन कोण ϴ है तो

ऐंठन बल युग्म

                                                     Tr = Cϴ

यह ऐंठन बल युग्म , बल आघूर्ण के विपरीत लगता है

यदि दोनों बल बराबर होंगे तो इसे संतुलन की स्थिति कहते है अतः सन्तुलन की स्थिति में

ऐंठन बल युग्म =  बल आघूर्ण

                                      Cϴ = nIAB

अतः

                                        I = Cϴ / nAB

यहाँ C/ nAB को परिवर्तन गुणांक k कहते है

अतः                                    I = kϴ

 

18.धारामापी किस सिद्धान्त पर कार्य करती है? धारामापी की सुग्राहिता को समझाइए |

उत्तर :-   यह युक्ति इस सिद्धांत पर कार्य करती है की ” यदि किसी समान या नियत चुम्बकीय क्षेत्र में एक कुण्डली रखी जाए और इसमें धारा प्रवाहित की जाए तो कुंडली पर एक बल आघूर्ण कार्य करता है तथा इस बलाघूर्ण का मान कुण्डली में प्रवाहित धारा के परिमाण पर निर्भर करता है अर्थात जितनी ज्यादा धारा प्रवाहित होती है उतना ही अधिक कुंडली पर बलाघूर्ण का मान होता है “

धारामापी की सुग्राहिता :- 

चल कुंडली धारामापी में धारा तथा वोल्टेज दोनों प्रकार की सुग्रहिता होती है।

1. चल कुंडली धारामापी की धारा सुग्राहिता

कुंडली में उत्पन्न विक्षेप Φ तथा कुंडली में प्रवाहित विद्युत धारा i के अनुपात को धारा सुग्राहिता कहते हैं।

धारा सुग्राहिता = i

या धारा सुग्राहिता = NABk

अतः N, A तथा B के मान बढ़ाकर धारामापी की सुग्राहिता बढ़ाई जा सकती है। गैल्वेनोमीटर की सुग्राहिता में वृद्धि करने का सबसे सरल उपाय यह है कि कुंडली में फेरों की संख्या N में वृद्धि कर दें।

2. चल कुंडली धारामापी की वोल्टेज सुग्राहिता

कुंडली के सिरों के बीच वोल्टेज V तथा विक्षेप Φ के अनुपात को वोल्टेज सुग्राहिता कहते हैं।

वोल्टेज सुग्राहिता = V

या वोल्टेज सुग्राहिता = NABk 1R

​अतः N, A तथा B के मान बढ़ाकर धारामापी की सुग्राहिता बढ़ाई जा सकती है। तथा R के मान को 

कम करके भी धारामापी की सुग्राहिता बढ़ाई जा सकती है।

19.चुंबकीय क्षेत्र क्या है ? तार की एक वृत्ताकार कुंडली में 100 फेरे हैं, प्रत्येक की त्रिज्या 8.0 cm है और इनमें 0.40A विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है। कुंडली के केन्द्र पर चुम्बकीय क्षेत्र का परिमाण क्या है ?

उत्तर :-  

 चुंबकीय क्षेत्र: - जब किसी चुंबक के समीप किसी छोटी चुंबकीय सुई को लटकाते हैं तो वह चुंबकीय सुई सदैव एक निश्चित दिशा में रुक जाती है। अब यदि हम चुंबक को आगे पीछे करते हैं तो वह चुंबकीय सुई भी चुंबक के साथ साथ ही आगे पीछे होकर स्थिर दिशा में आकर रूक जाती है। तब इससे यह पता चलता है कि चुंबक के समीप चुंबकीय सुई पर एक बल आघूर्ण कार्य करता है जो चुंबकीय सुई को घूमाकर एक निश्चित दिशा में ले आता है। अर्थात्

किसी चुंबक के चारों का वह क्षेत्र, जिसमें किसी चुंबकीय सुई पर एक बल-आघूर्ण कार्य करता है। जिस कारण चुंबकीय सुई घूमकर एक निश्चित दिशा में आकर रूक जाती है। चुंबक के चारों ओर के इस क्षेत्र को चुंबकीय क्षेत्र कहते हैं।

हल-

दिया है,

कुण्डली में तार के फेरों की संख्या n = 100

प्रत्येक फेरे की त्रिज्या r = 8.0 सेमी = 8.0 x 10-2 मीटर

कुण्डली में प्रवाहित धारा I = 0.40 ऐम्पियर

कुण्डली के केन्द्र पर चुम्बकीय क्षेत्र का परिमाण B = ?

                         B = 04 2nir

                     B = 10-723.141000.40 8.0 x 10-2

                     B =  3.1410-4 टेस्ला

 

20.धारामापी किस सिद्धान्त पर कार्य करती है? धारामापी का वोल्टमीटर में रूपांतरण को समझाइए |

उत्तर :- धारामापी  का सिद्धान्त : -    यह युक्ति इस सिद्धांत पर कार्य करती है की ” यदि किसी समान या नियत चुम्बकीय क्षेत्र में एक कुण्डली रखी जाए और इसमें धारा प्रवाहित की जाए तो कुंडली पर एक बल आघूर्ण कार्य करता है तथा इस बलाघूर्ण का मान कुण्डली में प्रवाहित धारा के परिमाण पर निर्भर करता है अर्थात जितनी  ज्यादा धारा प्रवाहित होती है उतना ही अधिक कुंडली पर बलाघूर्ण का मान होता है “

धारामापी का वोल्टमीटर में रूपांतरण: -

धारामापी वोल्टमीटर में परिवर्तित के लिए इसकी कुंडली के श्रेणीक्रम में उच्च प्रतिरोध का तार लगा देते हैं। इस प्रतिरोध तार को प्रदर्शित चित्र में R द्वारा दर्शाया गया है।

वोल्टमीटर को विद्युत परिपथ में समांतर क्रम में जोड़ दिया जाता है। जबकि धारामापी को वोल्टमीटर में बदलने के लिए इसकी कुंडली के श्रेणीक्रम में उच्च प्रतिरोध के तार को जोड़ा जाता है।

           धारामापी का वोल्टमीटर में रूपांतरण

माना धारामापी का प्रतिरोध G तथा श्रेणीक्रम में जोड़ा गया उच्च प्रतिरोध तार का प्रतिरोध R है। एवं धारामापी में प्रवाहित विद्युत धारा ig है।

यदि AB के मध्य विभवांतर वोल्ट है तो वोल्टमीटर का कुल प्रतिरोध (G + R) होगा। तब ओम के नियम के अनुसार

V =ig × (R + G)

या     R = Vig G

जहां R = उच्च प्रतिरोध तार का प्रतिरोध

G = धारामापी का प्रतिरोध

V = वोल्टमीटर का विभवांतर

ig = धारामापी में प्रवाहित विद्युत धारा है।

अतः इसका अर्थ यह है कि यदि धारामापी की कुंडली के साथ R प्रतिरोध को श्रेणीक्रम में संयोजित कर दिया जाए तो यह वोल्टमीटर की भांति कार्य करेगा। जिसका परास 0 – V वोल्ट होगा।

21.(a) व्योमस्थ खिंचे क्षैतिज बिजली के तार में 90 A विद्युत धारा पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित हो रही है। तार के 1.5 m नीचे विद्युत धारा के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र का परिमाण और दिशा क्या है? 

(b) एक लम्बे, सीधे तार में 35 A विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है। तार से 20 cm दूरी पर स्थित किसी बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र का परिमाण क्या है?

हल-

(a)   तार में धारा i = 90 A (पूर्व से पश्चिम), तार से दूरी = 1.5 m

तार के कारण चुम्बकीय क्षेत्र

                                 B = 02 ir 

                                 B = 410-72 901.5

                                    B = 1.210-5 T

चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा क्षैतिजत: उत्तर से दक्षिण की ओर होगी।

 

(b)      दिया है,      तार में धारा i  =35 A  

 तार से दूरी  r = 20 cm = 0.20 m

   चुम्बकीय क्षेत्र  B = ?    

एक लम्बी धारावाही सीधी तार के कारण r दूरी पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र,

                              UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism Q2

                                     B = 0i2r

                               B = 410-73520.20

                               B = 3.510-5 T

22. चुंबकीय बल किसे कहते है ? एक 3.0 cm लम्बा तार जिसमें 10 A विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है, एक परिनालिका के भीतर उसके अक्ष के लम्बवत् रखा है। परिनालिका के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र का मानं 0.27 T है। तार पर लगने वाला चुम्बकीय बल क्या है?

उत्तर- चुंबकीय बल :-  जब कोई आवेशित कण किसी चुंबकीय क्षेत्र में गति करता है। तो कण पर एक बल कार्य करता है। कण पर आरोपित इस बल को चुंबकीय बल कहते हैं।

माना +q आवेश का कण चुंबकीय क्षेत्र B की दिशा के लंबवत V वेग से गतिमान है। तो कण पर आरोपित बल

                                     F=qVB

माना यदि +q आवेश का कण की दिशा चुंबकीय क्षेत्र B के लंबवत् न होकर उससे θ कोण बना रही है। तो

                                    F=qVBsinθ

हल-

परिनालिका के अन्दर उसकी अक्ष पर चुम्बकीय क्षेत्र B = 0.27 T (जिसकी दिशा अक्ष के अनुदिश ही होती है)। धारावाही तार अक्ष के लम्बवत् है,

अतः θ = 90°; तार की लम्बाई L = 3.0 सेमी = 3.0 x 10-2 मी; तार में धारा I = 10 A; अतः तार पर लगने वाला चुम्बकीय बल

                                    F = ILB sin θ न्यूटन

                                       = 10 x (3.0 x 10-2 ) (0.27) x sin 90° न्यूटन

                                       = 81 x 10-2 x 1 न्यूटन

                                   F = 8.1 x 10-2 न्यूटन

23.चल कुंडली धारामापी की चार विशेषताएँ लिखिए । 99 ओम प्रतिरोध के चल कुण्डली धारामापी में मुख्य धारा का 10% भेजने के लिए आवश्यक शन्ट के प्रतिरोध का मान ज्ञात कीजिए।

उत्तर : -

चल कुंडली धारामापी की विशेषताएँ :-

 (i) इसमें विधुत धारा का मान विक्षेप के अनुक्रमानुपाती होता है ।

 (ii) इस धारामापी को किसी भी दिशा में रखकर प्रयोग किया जा सकता है ।

 (iii) इसमें अत्यल्प 10 − 9 10 - 9 ऐम्पियर तक की धारा का मापन किया जा सकता है ।

 (iv)इसमें बाह्य चुंबकीय क्षेत्र का कोई प्रभाव नहीं पड़ता ।

हल-     दिया है , 

 धारामापी का प्रतिरोध G = 99

मुख्य धारा I = 100 ऐम्पियर

विक्षेप के लिए आवश्यक धारा Ig = 10ऐम्पियर

 आवश्यक शांत का प्रतिरोध

                                        S = GIgI-Ig

                                  S  = 99100100-10

                                   S = 11

 

24.  चुंबकीय क्षेत्र से क्या तात्पर्य है ?  अनंत लंबाई के धारावाहिक तार के कारण चुंबकीय क्षेत्र ज्ञात कीजिए | 

उत्तर : - चुंबकीय क्षेत्र: - जब किसी चुंबक के समीप किसी छोटी चुंबकीय सुई को लटकाते हैं तो वह चुंबकीय सुई सदैव एक निश्चित दिशा में रुक जाती है। अब यदि हम चुंबक को आगे पीछे करते हैं तो वह चुंबकीय सुई भी चुंबक के साथ साथ ही आगे पीछे होकर स्थिर दिशा में आकर रूक जाती है। तब इससे यह पता चलता है कि चुंबक के समीप चुंबकीय सुई पर एक बल आघूर्ण कार्य करता है जो चुंबकीय सुई को घूमाकर एक निश्चित दिशा में ले आता है। अर्थात्

किसी चुंबक के चारों का वह क्षेत्र, जिसमें किसी चुंबकीय सुई पर एक बल-आघूर्ण कार्य करता है। जिस कारण चुंबकीय सुई घूमकर एक निश्चित दिशा में आकर रूक जाती है। चुंबक के चारों ओर के इस क्षेत्र को चुंबकीय क्षेत्र कहते हैं।

 अनंत लंबाई के धारावाहिक तार के कारण चुंबकीय क्षेत्र :-

माना एक अनंत लंबाई का धारावाही चालक तार है जिसमें i धारा प्रवाहित हो रही है तार से r दूरी पर एक बिंदु P है जिस पर चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करनी है।

                                 

तो इसके लिए r त्रिज्या का एक वृत्त खींचते हैं जो बिंदु P से होकर गुजरता है। बिंदु P पर चुंबकीय क्षेत्र B तथा dℓ एक ही दिशा में है। अर्थात् θ = 0°

तो एंपियर के नियम से

                                                 ∮B⋅dℓ = 0i

 

                                                     ∮Bdℓcos0  = 0i

 

                                                       B∮dℓ = 0i

 

                                         B × 2πr  = 0i

 

                                         B =  0i2πr

 

25. लॉरेंज बल क्या है ? इसके कारक बताइए |  एक इलेक्ट्रॉन 0.1 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर के एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में लम्बवत् 105मीटर/सेकण्ड की चाल से प्रवेश करता है। इलेक्ट्रॉन पर लॉरेन्ज बल का मान ज्ञात कीजिए।

उत्तर : - लॉरेंज बल :-  यदि आवेशित कण किसी ऐसे क्षेत्र में है जहां पर विद्युत चुंबकीय क्षेत्र दोनों विद्यमान हैं। तब कण पर आरोपित परिणामी बल को लॉरेंज बल कहते हैं।

माना विद्युत क्षेत्र E तथा चुंबकीय क्षेत्र B दोनों की उपस्थिति में कोई +q आवेश, V वेग से गतिमान है तो आवेश पर इन दोनों क्षेत्रों द्वारा आरोपित बल F है तो

 

                                 F = Fविद्युत+ Fचुंबकीय  

 

                                                    F= qE + qVB

​यह लॉरेंज बल का सूत्र है।

लॉरेंज बल के कारक: -

1. जब चुंबकीय क्षेत्र तथा वेग की दिशा एक दूसरे के समांतर या प्रतिसमांतर होती है। तब लॉरेंज बल की दिशा फ्लेमिंग के बाएं हाथ के नियम द्वारा ज्ञात की जा सकती है।

2. यदि आवेश गतिमान नहीं है तो चुंबकीय बल शून्य होगा। चूंकि चुंबकीय क्षेत्र केवल गतिमान आवेश पर ही उत्पन्न होता है।

3. लॉरेंज बल का मान कण के आवेश q, वेग V तथा चुंबकीय क्षेत्र B पर निर्भर करता है। अर्थात् ऋण आवेश पर लगने वाला बल, धन आवेश पर लगने वाले बल के विपरीत होता है।

हल-

दिया है, B = 0.1 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर

 v = 105 मी/सेकण्ड

लॉरेन्ज बल                 F = qvB

                               F  = 1.6 x 10-19 x 105 x 0.1

                               F  = 1.6 x 10-15 न्यूटन