बिहार बोर्ड कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 5 वंशागति व विविधता के सिद्धांत लघु उत्तरीय प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. किसी भी लक्षण के प्रभावी होने का क्या अर्थ है?
उत्तर: वह लक्षण जब युग्मविकल्पी कारकों (जीन्स) में से एक कारक जो अपने लक्षण के लिये दूसरे कारक के प्रभाव को प्रदर्शित होने से रोक देता है। वह लक्षण (जैसे मटर के पौधे का लम्बापन) के विपरीत प्रभावों वाले दो पौधों का संकरण करने पर प्रथम संकर पीढ़ी (F) में प्रदर्शित होता है; जैसे-मटर के पौधे का लम्बा होना।
प्रश्न 2. फिनाइलकीटोन्यूरिया किस प्रकार का रोग है?
उत्तर: - मनुष्य में यह रोग फिनाइलऐलेनीन नामक अमीनो अम्ल को टाइरोसीन अमीनो अम्ल में परिवर्तित करने वाले एन्जाइम फिनाइलऐलेनीन हाइड्रॉक्सीलेज की अनुपस्थिति के कारण उत्पन्न होता है। ऐसे में रुधिर के फिनाइलऐलेनीन की मात्रा अत्यधिक बढ़ जाती है और यह मूत्र के साथ शरीर से बाहर निकलने लगता है। इस अवस्था को फिनाइलकीटोन्यूरिया कहते हैं। मस्तिष्क के तन्त्रिका ऊतक में फिनाइलऐनेलीन के एकत्रित हो जाने से बच्चों में अल्पबुद्धिता हो जाती है और उनका 1.Q. स्तर सामान्यतः 20 से कम रहता है। यह रोग एन्जाइम बनाने वाले दोनों अप्रभावी जीन्स के कारण होता है। ये जीन्स ऑटोसोमिक अर्थात् अलिंगी गुणसूत्र पर होती हैं।
प्रश्न 3. विषमयुग्मजी व संयुग्मजी की परिभाषा लिखे।
उत्तर: विषमयुग्मजी : किसी युग्मनज में जब एक लक्षण के दोनों कारकों में से एक प्रभावी तथा दूसरा अप्रभावी हो, तो इस लक्षण के लिए पौधा या कोशिका विषमयुग्मजी होती है। यह लक्षण संकर होता है।
संयुग्मजी : किसी युग्मनज में जब एक लक्षण के दोनों कारक (जीन) एक जैसे अर्थात् दोनों प्रभावी | अथवा दोनों अप्रभावी हों, तो इस लक्षण के लिए पौधा या कोशिका समयुग्मजी होती है। यह लक्षण शुद्ध होता है।
प्रश्न 4. प्रभावित के नियम की व्याख्या करे।
उत्तर: एकल लक्षण एवं प्रभाविता का नियम - प्रत्येक एकल लक्ष किसी विशेष कारक के जोड़े या युग्म से नियन्त्रित होता है। एक ही लक्षण के ये दो कारक परस्पर विपरीत प्रभाव के भी हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में, सामान्यतः एक कारक अपना प्रभाव प्रदर्शित करता है तथा प्रभावी कारक कहलाता है तथा दूसरा अप्रभावी कारक होता है। संकरण के समय प्रभावी कारक का प्रभाव ही लक्षण के रूप में प्रदर्शित होता है।
प्रश्न 5. परीक्षारथ संकरण को परिभाषित करो।
उत्तर: परीक्षण संकरण : प्रतीप संकरण के विपरीत F] संकर जीवों का अप्रभावी लक्षण वाले जनक से संकरण कराने पर F2 पीढ़ी दोनों प्रकार के समलक्षणी जीव समान अनुपात में उत्पन्न होते हैं, अर्थात् इनमें 50% शुद्ध समयुग्मजी तथा 50% संकर विषमयुग्मजी होते हैं। F, संकर जीवों का प्रभावी लक्षण वाले जनक से संकरण परीक्षण संकरण कहलाता है।
प्रश्न 6. लिंग गुणसूत्र से क्या तात्पर्य है?
उत्तर: ऐसे गुणसूत्र जो किसी जीव में उसके लिंग को निर्धारित करते हैं, लिंग गुणसूत्र कहलाते हैं। अनेक जीवों में ये गुणसूत्र अन्य गुणसूत्रों की अपेक्षा भिन्न प्रकार के होते हैं। मनुष्य में लिंग गुणसूत्र पुरुष में XY तथा स्त्री में XX होते हैं अर्थात् लिंग गुणसूत्र स्त्री में एक जैसे, किन्तु पुरुष में भिन्न-भिन्न आकार-प्रकार के होते हैं। इस प्रकार मनुष्य में कुल 46 गुणसूत्रों में से 22 जोड़े सामान्य अर्थात् ऑटोसोम्स, किन्तु दो गुणसूत्र अपनी भिन्नता के लिए लिंग गुणसूत्र कहलाते हैं, ये हेट्रोसोम हैं।
प्रश्न 7. जीन प्ररूप व लक्षण प्ररूप मे अंतर सपस्त करे।
उत्तर: जीनोटाइप या जीन प्ररूपी-आकारिक लक्षण में जीव चाहे जैसा हो उसमें पायी जाने वाली जीनी संरचना को जीन प्रारूपी या जीनोटाइप कहते हैं। फीनोटाइप या समलक्षणी-जीन किसी भी प्रकार की हों यदि बाह्य रूप से समान लक्षण या उसका प्रभाव दिखाई दे रहा है तो उसे समलक्षणी या फीनोटाइप कहते हैं।
प्रश्न 8. टर्नर सिंड्रोम क्या है?
उत्तर: – यह संलक्षण अधोगुणिता के कारण होता है। अर्थात् लिंग गुणसूत्र मॉनोसोमिक होते हैं और इसमें XO अवस्था होती है। इनमें गुणसूत्रों की कुल संख्या 45 (22 जोड़ा +XO) होगी। इस प्रकार का शरीर अल्पविकसित मादा (लड़की) के समान होता है। यह लड़की बोझ होती है। जननांग अविकसित होते हैं; कद छोटा होता है तथा वक्ष चपटा होता है। बाल्यकाल में यह सामान्य लड़की के समान दिखाई देती है किन्तु किशोरावस्था आने तक नपुंसक हो जाती है। इसमें अण्डाशय विकसित नहीं होते हैं।
प्रश्न 9. मनुष्य मे लिंग निर्धारण को संक्षेप मे समझाए।
उत्तर: लैंगिक जनन के लिए युग्मकजनन में अर्द्धसूत्री कोशिका विभाजन के द्वारा जनन कोशिकाओं से युग्मक कोशिकाओं अर्थात् गैमीट्स का निर्माण होता है। अर्द्धसूत्री विभाजन से युग्मकों में गुणसूत्रों की संख्या अगुणित हो जाती है। इस प्रकार, प्रत्येक युग्मक में प्रत्येक समजातीय गुणसूत्रों के जोड़े में से एक-एक गुणसूत्र ही होता है। उपर्युक्त के अनुसार स्त्री से प्राप्त होने वाले समस्त अण्डाणु एक ही प्रकार के अर्थात् समयुग्मकी होते हैं अर्थात् इनमें n = 22 + X, पुरुषों में शुक्राणु विषमयुग्मकी दो प्रकार के होते हैं- 50% शुक्राणु (n) = 22 + X अन्य 50% शुक्राणु (n) = 22 + Y
यदि अण्डाणु का निषेचन X-युक्त शुक्राणु से होता है तो युग्मनज | लिंग गुणसूत्र XX होते हैं और इससे बने भ्रूण से बनने वाली सन्तान पुत्री होती है। इसके विपरीत, यदि अण्डाणु का निषेचन y - युक्त शुक्राणु द्वारा होता है तो युग्मनज में लिंग गुणसूत्र XY होते हैं और इस बनने वाला भ्रूण तथा सन्तान पुत्र होती है। इससे यह भी स्पष्ट है कि पुत्री या पुत्र होने की सम्भावन सामान्यतः सदैव ही 50-50% होती हैं।
प्रश्न 10. लिंग सहहलग्नता को परिभाषित कीजिए।
उत्तर: लिंग गुणसूत्रों पर जो लक्षणों के जीन्स होते हैं उनका सम्बन्ध लैंगिक लक्षणों से होता है। में जॉन्स ही जन्तु में लैंगिक द्विरूपता के लिए जिम्मेदार होते हैं, फिर भी जन्तुओं का यह गुण अत्यन्त जटिल तथा व्यापक होता है और इसे निर्मित करने के लिए अनेक ऑटोसोमल जीन्स भी प्रभावी होते हैं। दूसरी ओर लिंग गुणसूत्रों पर कुछ जीन्स लैंगिक लक्षणों के अतिरिक्त अन्य लक्षणों वाले अर्थात् कायिक या दैहिक लक्षणों वाले भी होते हैं। ये लिंग सहलग्न जीन्स कहलाते हैं, जो लिंग सहलग्न लक्षण उत्पन्न करते है। इनकी वंशागति लिंग सहलग्न वंशागति व लिंग शलग्नता कहलाती है।
प्रश्न 11. प्रथक्करण के नियम का वर्णन कीजिए।
उत्तर: समजातीय जोड़े के प्रत्येक क्रोमोसोम पर जीन युग्म की एक-एक जौन उपस्थित होती है। अर्द्धसूत्री विभाजन के समय जब प्रत्येक समजातीय जोड़े का एक-एक क्रोमोसोम अलग-अलग युग्मक में जाता है तो जीन-युग्म का एक-एक जीन भी अलग-अलग युग्मकों में पहुँच जाता है। अब, युग्मनज के निर्माण के लिए दो युग्मक– एक नर (पिता से) तथा दूसरा मादा (माता से) – मिलते हैं । इस प्रकार, समजातीय क्रोमोसोम्स तथा साथ-साथ समजातीय जीन का फिर जोड़ा बन जाता है। इसका यह भी तात्पर्य है कि एक लक्षण के लिए युग्मक पूर्णतः शुद्ध होता है क्योंकि उसमें जीन युग्म का एक ही जीन होता है। इसीलिए इस नियम को युग्मकों की शुद्धता का नियम भी कहते है।
प्रश्न 12. क्लानेफेल्टर्स संलक्षण को परिभाषित करे।
उत्तर: क्लानेफेल्टर्स संलक्षण : यह आनुवंशिक विकार लिंग गुणसूत्रों की अधिगुणिता के कारण होता है अर्थात् इनमें लिंग गुणसूत्रों में ट्राइसोमी पायी जाती है तथा कुल गुणसूत्रों की संख्या 47 होती है। इस प्रकार के विकार में वृषण अल्पविकसित रह जाते हैं तथा स्त्रियों के समान स्तन विकसित हो जाते हैं इनके शरीर पर बालों की कमी होती है। यद्यपि Y गुणसूत्र की उपस्थिति के कारण ये पुरुष होते हैं किन्तु XXX गुणसूत्रों को उपस्थिति इनमें स्त्री जैसे लक्षण भी उत्पन्न कर देती है। ये नपुंसक होते हैं तथा इन्हें गाइनेकोमैस्टिया कहते हैं।
प्रश्न 13. अपूर्ण प्रभावित पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर: किसी संकर अर्थात् विषमयुग्मनजी लक्षण में जब कोई प्रभावी कारक) अपना पूर्ण प्रभाव प्रदर्शित नहीं कर पाता तो अप्रभावी लक्षण भी किसी सीमा तक प्रदर्शित हो जाता है। इस प्रकार, दोनों ही प्रभाव (प्रभावी तथा अप्रभावी) प्रदर्शित होते हैं। इस आधार पर मेण्डेल का प्रभाविता का नियम कुछ सीमा तक पूर्णतया स्पष्ट नहीं किया जा सकता। अपूर्ण प्रभाविता मिरबिलिस जलापा पादप मे पाई जाती है।
प्रश्न 14. डाउन सिंड्रोम का कारण बताए।
उतर: डाउन संलक्षण- यह रोग गुणसूत्रों में संख्या की अनियमितता के कारण वाले परिवर्तनों से होता है। मनुष्य में कभी-कभी गुणसूत्रों की संख्या 46 के स्थान पर 47 गुणसूत्र हो जाती है। इसे डाउन संलक्षण भी कहते हैं। यह अतिरिक्त गुणसूत्र बच्चे की बुद्धि सामान्य विकास को रोक देता है। संख्या में अधिक गुणसूत्र का कारण प्राय: अण्ड कोशिका के निर्माण में होने वाली गड़बड़ी के कारण हो सकता है। 47 गुणसूत्रों वाली ऐसी सन्तान का मस्तिष्क अविकसित होता है गोल, होंठ नीचे की ओर को लटका रहता है, माथा अनावश्यक रूप से चौड़ा होता है; त्वचा खुरदरी होती है; तिरछी तथा पलके वलित होती है और मुँह हर समय खुला रहता है। ये मन्द बुद्धि होते हैं। इनके जननाए से सामान्य होते हैं किन्तु पुरुष नपुंसक होते हैं। इस आनुवंशिक रोग को मंगोलिक बेवकूफी या मंगोलियन जड़ता भी कहते हैं
प्रश्न 15. लिंग प्रभावित लक्षण क्या होते है?
उत्तर: मनुष्य में कुछ ऐसे लक्षण भी होते हैं जिनके जोन्स तो ऑटोसोम्स पर होते हैं, परन्तु इनका विकास व्यक्ति है लिंग से प्रभावित होता है अर्थात् पुरुष और स्त्री में जीनप्रारूप समान होते हुए भी लक्षण प्रा भिन्न होता है। दाहरण के लिए मनुष्य में गंजापन काफी पाया जाता है। यह विकिरण, थाइरॉइड ग्रन्थि सं अनियमितताओं आदि के कारण हो सकता है अथवा आनुवंशिक भी होता है। आनुवंशिक गंजापन एक ऑटोसोमल एलीलोमॉर्फिक जीन जोड़ा (B b) पर निर्भर करता है। समयुग्मकी प्रभावी जीनप्रारूप (BB) हो तो गंजापन पुरुष और स्त्रियों दोनों में विकसित होता है, लेकिन विषमयुग्मकी जीनप्रारूप (Bb) होने पर यह स्त्रियों में नहीं, केवल पुरुषों में ही प्रदर्शित होता है क्योंकि इस जीनप्रारूप के प्रदर्शित होने के लिए नर हॉर्मोन्स का होना आवश्यक होता है। समयकी अप्रभावी जीनप्रारूप (b) में गंजापन नहीं होता है।
प्रश्न 16. लिंग सीमित लक्षणों को परिभाषित करे।
उत्तर: कुछ ऑटोसोम्स पर कुछ ऐसे आनुवंशिक लक्षणों के जीन्स भी होते हैं जिनकी वंशागति सामान्य मेण्डेलियन नियमों के अनुसार ही होती है, किन्तु इनका विकास पीढ़ी-दर-पीढ़ी केवल एक ही लिंग के सदस्यों में होता है। गाय, भैंस आदि में दुग्ध का स्रावण, भेड़ों को कुछ जातियों में केवल नर में सोगों का विकास, पुरुष में दाड़ी आदि के लक्षण ऐसे ही होते हैं। इनको हम लिंग सीमित लक्षण कहते हैं।
प्रश्न 17. विपुंसन की क्रिया क्यों आवश्यक है?
उत्तर: स्वपरागण की सम्भावना को पूर्णतः रोकने के लिए विपुंसन की आवश्यकता ह पुष्पों में होती है जिनमें स्वपरागण सम्भव है; जैसे- द्विलिंगी पुष्प, जिनके परागकोण तथा वर्तिका साथ-साथ परिपक्व होते हैं तथा जिनमें स्वबंध्यता भी नहीं पायी जाती है। इसके विपरीत जिनसे द्विलिंगी पुष्पों में स्वबंध्यता होती है अथवा इस प्रकार की व्यवस्था होती है कि परागकण किसी भी प्रकार से वर्तिकाय तक पहुंच ही नहीं सकते विपुंसन की आवश्यकता नहीं होती है।
प्रश्न 18. संकरण की विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर: संकरण विधि:
(i) स्वपरागण को रोकने के लिए मादा के रूप में प्रयुक्त बौने पौधों के पुष्पों को खोलकर उनका
विपुंसन किया।
(ii) लम्बे पौधों के पुष्पों को खोलकर पुंकेसरों के परागकणों को बुश की सहायता में विपुंसित बौने पौधों के स्त्रीकेसर के वर्तिकाग्रों पर पहुँचाया। इस प्रकार बौने पौधों के पुष्पों में कृत्रिम परपरागण किया।
(iii) कृत्रिम परपरागण करने के बाद बौने पौधो के पुष्पों को कपड़े को थैलियों में इस प्रकार बाँध दि जिससे कि किसी अन्य स्रोत से परागकण इनके वर्तिकाग्रो तक न पहुँच सकें।
प्रश्न 19. व्युत्क्रम संकरण की परिभाषा दे व यह किस प्रकार सम्पन्न होता है?
उत्तर: अन्योन्यता या व्युत्क्रम संकरण:मेंडल ने यक बार बोने पोदहे को मादा या स्त्रीकेसरी के रूप में तथा लम्बे पौधों को नर पुकेसरी पौधों के रूप में प्रयोग किया अर्थात् बौने पौधों के पुष्पों के वर्तिकाग्र पर लम पौधों के पुष्पों के परागकणों द्वारा परपरागण कराया। इसके पश्चात् दूसरों बार के संकरण में बौने पौधे को नर के समान तथा लम्बे पौधों को मादा पौधों के रूप में प्रयोग किया, अर्थात् लम्बे तने वाले पौधों के पुष्पों के वर्तिकाग्र पर बौने पौधों के पुष्पों के परागकणों से पर परागण कराया। इसी को अन्योन्यता या व्युत्क्रम संकरण कहते हैं। मेण्डेल ने देखा कि ऐसे संकरण से भी F1, F2 तथा F3 पीढ़ियों में तने की लम्बाई की विभिन्नता की वंशागति यथावत् रही; इसमें किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं हुआ।
प्रश्न 20. स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम के निष्कर्ष बताए।
उत्तर: स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम: कारकों का चयन स्वतन्त्र होता है। द्विसंकर क्रॉस में जब मटर के पौधे के लिए मेण्डेल ने दो लक्षणों का एक साथ अध्ययन किया जैसे- का आकार (गोल प्रभावी तथा झरीदार- अप्रभावी) तथा बीजावरण का रंग (पोला प्रभाव तथा हरा अप्रभावी) तो F पीढ़ी में सभी बीज दोनों लक्षणों के लिए प्रभावी थे, किन्तु F. पोढ़ी के लिए जब के पौधों स्वपरागण किया गया तो 9:3:3:1 का अनुपात प्राप्त हुआ। F पीढ़ी के लिए जो युग्मक मिले उनका अपहर स्वतन्त्र रूप से हुआ अर्थात्-
1. हरा रंग सदैव गोल बीज के साथ ही नहीं, बल्कि झुरीदार बीज के साथ भी मिला।
2. पीला रंग सदैव झुरीदार बीज के साथ ही नहीं, बल्कि गोल बीज के साथ भी मिला अर्थात् लक्षणों में
स्वतन्त्र प्रदर्शन किया।
प्रश्न 21. जीन विनिमय की प्रक्रिया क्या होती है?
उत्तर: अर्द्धसूत्री विभाजन की प्रोफेज प्रथम की पैकिटीन के अन्तिम में जब गुणसूत्र अधिक संघनित हो जाते हैं तथा युग्मित अर्द्धगुणसूत्र एक-दूसरे से अलग लगते हैं तो कुछ स्थानों पर अर्थात् पुनर्संयोजक पिण्डकों पर ये एक-दूसरे से उ जाते हैं। इन स्थानों को क्याजमैटा कहते हैं। इन्हीं पिण्डको पर होने वाली जीन विनिमय की इस में दो समजातीय गुणसूत्रों की किन्हीं दो क्रोमैटिड्स के मध्य पारस्परिक क्रोम पदार्थ का आदान-प्रदान होता है; इसी क्रिया को जीन विनिमय कहा जाता है।
प्रश्न 22. रंजखीनता किस प्रकार का रोग है?
उत्तर: रंजकहीनता- मानव की त्वचा, बालों तथा आँखों का गहरा रंग मिलैनिन नामक वर्णक के कमी के कारण होता है। मिलैनिन की अनुपस्थिति में त्वचा बहुत हल्के रंग की, बाल सफेद तथा पुतलियों का रंग रुधिर केशिकाओं की उपस्थिति के कारण गुलाबी या लाल होता है। इस अवस्था रंजकहीनता कहा जाता है। एक रंजकहीन पुरुष (aa) तथा सामान्य नारी (Aa या AA) के मध्य क्रॉस से उत्पन्न संतति मे एस प्रकार की अवस्था का निर्माण हो सकता है।
प्रश्न 23. रुधिर वर्ग के वर्गीकरण का आधार क्या है?
उत्तर: रुधिर वर्ग चार प्रकार के होते हैं—A, AB, B तथा O, यह वर्गीकरण कार्ल लैण्डस्टीनर (1902) के अनुसार, लाल रुधिर कणिकाओं की कोशिका कला पर तथा प्लाजमा में उपस्थित विशेष प्रोटीन्स क्रमशः एण्टीजन तथा एण्टीबॉडीज की उपसतिथि के आधार पर किया गया है।
प्रश्न 24. y सहलग्न लक्षण कौन कौन से है ?
उत्तर: Y-सहलग्न लक्षण इसके जीन्स Y गुणसूत्रों पर होते है। इस प्रकार सहयोगी X गुणसूत्रों पर इनके एलील्स नहीं पाये जाते ह पिता से केवल पुत्रों तक ही जाते हैं। इन्हें होलैण्डिक लिंग सहलग्न गुण कहते हैं तथा इनकी वंशागति को होलैण्डिक वंशागति कहा जाता है जेसे कर्णपल्लवों पर बालों की उपसतिथि को हायपरत्रिकोसिस कहा जाता है।
प्रश्न 25. मेन्डेलिय विकारों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर: ये विकार प्राय: एकल जीन के रूपान्तरण या उत्परिवर्तन के द्वारा निर्धारित होते हैं मेण्डेलियन सिद्धान्त के अनुसार हो सन्तति में पहुँचते हैं तथा वंशागत होते हैं।मेण्डेलीय विकारों की वंशागति के उदाहरण को किसी परिवार में वंशावली विश्लेषण द्वारा खोजा जा सकता है इनके उदाहरण हीमोफीलिया , सिस्टिक फाइब्रोसिस, दात्र कोशिका अरक्तता, वर्णांधता, फिनाइल कीटोन्यूरिया, इत्यादि हैं। ये विकार प्रभावी अथवा अप्रभावी हो सकते हैं; साथ ही यह लक्षण लिंग आधारित भी हो सकता है।