बिहार बोर्ड कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 6 वंशागति का आणविक आधार लघु उत्तरीय प्रश्न
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बिहार बोर्ड कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 6 वंशागति का आणविक आधार लघु उत्तरीय प्रश्न

BSEB > Class 12 > Important Questions > जीव विज्ञान अध्याय 6 वंशागति का आणविक आधार

लघु उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1. निम्नांकित को नाइट्रोजनीकृत क्षार व न्यूक्लियोटाइड के रूप में वर्गीकृत कीजिए- एडीनीन, साइटीडीन, थाइमीन, ग्वानोसीन, यूरेसिल व साइटोसीन 

उत्तर- (i) नाइट्रोजनीकृत क्षार– एडीनीन, थाइमीन, पूरैसिल व साइटोसीन

(ii) न्यूक्लियोटाइड- साइटीडीन एवं ग्वानोसीन 

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प्रश्न 2. संतति में जनक से समानता के साथ कुछ विभिन्नतायें भी होती हैं। इन विभिन्नताओं उत्तरदायी दो कारण बताइए ।

उत्तर- सन्ततियों में इस प्रकार विभिन्नताओं के दो कारण-

(i) एक ही जनक कोशिका के समजात गुणसूत्रों के मध्य जीन विनिमय के फलस्वरूप में हुए भिन्न पुनर्योजन 

(ii) नर व मादा युग्मकों का स्वतन्त्र अपव्यूहन 

प्रश्न 3. सैट गुणसूत्र क्या है? तथा सोलेनॉइड संरचनायें किसे कहते हैं?

उत्तर- जिस गुणसूत्र पर द्वितीयक कन्सट्रक्शन  होता है, इस छोर पर एक सैटेलाइट बॉडी  बन जाती है। इस गुणसूत्र को सैट गुणसूत्र कहते हैं।

DNA पराकुण्डलन के द्वितीय चरण में पूर्ण न्यूक्लिओसोम तन्तु या इसके कुछ खण्ड घूम-घूमका कुण्डलित हो जाते हैं और 30 nm मोटे, खोखले तन्तुओं का रूप ले लेते हैं जिन्हें सोलेनॉइड संरचनायें कहते हैं।

प्रश्न 4. न्यूक्लियोटाइड इकाई की संरचना के तीन घटक बताइए।

उत्तर- प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड संरचना के तीन पटक निम्नलिखित होते है-


(I) पेण्टोज शर्करा - डीऑक्सीराइबोस या राइबोस

(ii) एक फॉस्फेट मूलक 

(iii) एक नाइट्रोजन क्षारक- प्यूरीन  जैसे—एडीनीन या ग्वानीन अथवा पिरीमिडीन जैसे— सीटोसिन थाइमीन या यूरेसिल 

प्रश्न 5. डी०एन०ए० की अर्द्धसंरक्षी प्रतिकृति से आप क्या समझते हैं?

उत्तर—डी०एन०ए० का द्विगुणन या प्रतिकरण एक विशिष्ट क्रिया है जिसमें एक अणु डी०एन०ए० से दो नवीन डी०एन०ए० अणु बनते हैं। क्रिया-विधि के अनुसार प्रत्येक नवनिर्मित अणु के द्विकुण्डल स्वरूप में एक कुण्डल पुराना तथा एक नया होता है। इनमें से प्रत्येक एक-दूसरे का पूरक होता है। प्रतिकरण की यह विधि अर्द्धसंरक्षी कहलाती है।

प्रश्न 6. रेप्लिकॉन क्या हैं और ये कहाँ पाये जाते हैं?

उत्तर- यूकैरियोटिक कोशिकाओं के डी०एन०ए० अणु काफी लम्बे होते हैं। इनका द्विगुणन एक साथ कई द्विगुणन मूलो पर प्रारम्भ होता है। इस प्रकार प्रत्येक मूल पर बनी द्विशाखे विरोधी दिशाओं में तब तक बढ़ती रहती है जब तक ये पड़ोसी द्विशाखों से मिल नहीं जातीं। एक मूल से जितने खण्डों का द्विगुणन होता है उन्हें रेप्लिकॉन कहते हैं।

प्रश्न 7. आनुवंशिक सूचनाओं का वाहक अणु क्या है? 

उत्तर- आनुवंशिक सूचनाओं का वाहक अणु डी०एन०ए० (DNA = deoxyribonucleic acid) है।

ग्रिफिथ (1928). ऑसवाल्ड ऐवरी 1932), हर्षे एवं चेज 1952) आदि के प्रयोगों के द्वारा सिद्ध हुआ कि डी०एन०ए० ही आनुवंशिक पदार्थ है।

प्रश्न 8. आनुवंशिक कोड के अफासित होने का अर्थ होगा?

उत्तर: कोड का अपह्रास - अधिकतर अमीनो अम्लों को एक से अधिक कोडोन द्वारा पेप्टाइड श्रृंखला में विशिष्ट स्थानों की ओर निर्देशित किया जा सकता है। इस विधि को अपहासित विधि कहते हैं। यह जीवों को हानिकारक उत्परिवर्तनों से सुरक्षा प्रदान करती है; जैसे- AGA. AGG, CGA सभी आर्जिनीन के कूट हैं। उत्परिवर्तन द्वारा एक क्षारक में परिवर्तन हो जाने के बाद भी आर्जिनीन की ही श्रृंखला में जाएगा।

प्रश्न 9. आनुवंशिक कोड की विशेषताए बताए। 

उत्तर: आनुवंशिक कोड की विशेषताए-

1. त्रिक कोड 

2. कॉमविहीन 

3. संदिगत 

4. अनतिव्यापन 

5. सार्वत्रिक 

6. अपहास 

7. संरेखता 

प्रश्न 10. हेटरोक्रोमाटीन से आप क्या समझते है?

उत्तर: हेटरोक्रोमाटीन: 30 nm मोटे सूत्रों से बनी सोलेनॉइड संरचना है जो 2604 धागों की बनी होती है। यह इण्टरफेज में गहरा रंग लेता है। इनमें DNA की मात्रा अधिक होती है। आनुवंशिक दृष्टि से निष्क्रिय होता है अर्थात ट्रांसक्रिप्सन नहीं होता है। इस भाग में विनिमय कम होता है।

प्रश्न 11. न्यूक्लियोसाइड्स तथा न्यूक्लियोटाइड्स को परिभाषित कीजिए। 

उतर: एक अणु नाइट्रोजन क्षारक के साथ एक अणु शर्करा (राइबोस या डीऑक्सीराइबोस) जुड़ने से जो संरचना बनती है, एक न्यूक्लियोसाइड कहलाती है। राइबोस शर्करा के लिए यह राइबोस तथा डीऑक्सी राइबोस शर्करा के लिए यह संरचना डीऑक्सीराइबोसाइड कहलाती है। इसी प्रकार, एक अणु न्यूक्लियोसाइड के साथ फॉस्फोरिक अम्ल एक अणु जुड़कर इसे मॉनोफॉस्फेट में बदल देता है। इस संरचना को ही एक यूक्लियोटाइड अणु कहते हैं। विभिन्न प्रकार के न्यूक्लियोटाइड्स का उनमें उपस्थित नाइट्रोजन क्षारक तथा पेण्टोज शर्करा के नामों पर निर्भर करत है।

प्रश्न 12. mRNA पर टिप्पणी करे। 

उत्तर: संदेशवाहक आर० एन०ए० (m-RNA ) - आर०एन०ए० अणु लम्बी श्रृंखला के रूप में होते हैं तथा डी०एन०ए० (DNA) पर उपस्थित कोड्स को नकल करके लाते हैं। प्रत्येक कोडॉन में तीन क्षारक होते हैं। इस प्रकार ये संकेत सूचनाओं को संदेशवाहक के रूप में लेकर कोशिकाद्रव्य में पहुँचाते हैं और राइबोसोम्स के आधार पर प्रोटीन संश्लेषण में सहायता करते हैं। इसी कारण इन्हें संदेशवाहक आर०एन०ए० कहते हैं। ये कोशिका में उपस्थित कुल आर० एन०ए० 3-5% ही होते हैं किन्तु इनका आणविक भार 500,000 से 2,000,000 होता है।

प्रश्न 13. mRNA के संश्लेषण के विभिन्न चरण बताए। 

उत्तर: RNA पॉलिमरेज द्वारा mRNA के संश्लेषण में निम्नलिखित चरण आते हैं-

(i) प्रारम्भिक संकेत RNA पॉलिमरेज एन्जाइम का प्रारम्भिक स्थलों के इल निर्देशन करते हैं, इन स्थलों को प्रोमोटर स्थल या खण्ड कहते हैं। जिस ट्रान्सक्रिप्सन होना होता है. RNA पॉलिमरेज एन्जाइम का एक अणु उसके प्रोमोटर खण्ड से जुड़ा है।

(i) DNA अणु का विकुण्डलित होना जिसके कारण DNA के दोनों सूत्र से अलग हो जाते हैं, परन्तु केवल एक सूत्र ही ट्रान्सक्रिप्सन में भाग लेता है।

(ii) RNA पॉलिमरेस की सहायता से अनुलेखित mRNA की लम्बाई में वृद्धि होती है।
(iv) mRNA का समापन 

इस प्रकार RNA अणुओं का संश्लेषण रूपांतरण  (ट्रान्सक्रिप्सन) के द्वारा होता है।

प्रश्न 14. प्रोटीन संश्लेषण की क्रिया के विभिन्न चरण बताए। 

उत्तर: पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला का संश्लेषण में निम्नलिखित उपक्रियायें होती है-

1. अमीनो अम्ल का सक्रियकरण
2. अमीनो अम्ल का t -RNA पर स्थानान्तरण 

3. पॉलीपेप्टाइड का समारम्भ
4. पॉलीपेप्टाइड की लम्बाई में वृद्धि 

5. पॉलीपेप्टाइड का समापन 

5. मुक्त पॉलीपेप्टाइड का रूपान्तरण

प्रश्न 15. प्रोटीन संश्लेषण की क्रिया मे RNA का क्या क्या योगदान है?

उत्तर: प्रोटीन संश्लेषण में RNA विशिष्ट कार्य होता है- 

1. संदेशवाहक आर० एन० ए० (mRNA) अणु पर कोडोन उपस्थित होते हैं। ये डी० एन० ए० अणु के

टेम्पलेट के अनुसार व्यवस्थित रहते हैं। इनका विशिष्ट क्रम हो प्रोटीन संश्लेषण के लिए उत्तरदायी है।

2. स्थानान्तरण आर० एन० ए० अणु (IRNA) अणु पर एण्टोकोडोन उपस्थित होते हैं जो mRNA में कोडॉन  के रूप में कोडित संदेशों का अनुवाद करता है। यह mRNA पर एक विशिष्ट स्थान पर पहुंचकर जुड़ता है।

3. स्थानान्तरण आर० एन० ए० (tRNA) अणु कोशिकाद्रव्य से सक्रिय अमीनो अम्लों को ग्रहण करके

विशिष्ट कोडोनो पर mRNA से संलग्न करके इनकी वृद्धि करती हुई पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला से जोड़ते है।

4. राइबोसोमल आर० एन० ए० (r RNA) राइबोसोम्स के निर्माण में भाग लेता है, जो प्रोटीन संश्लेषण के स्थल है।

प्रश्न 16. आनुवंशिक पढ़ार्थ की प्रमुख विशेषताए बताए। 

उत्तर: आनुवंशिक पदार्थ में निम्नलिखित प्रमुख विशेषतायें होती है- 

1. आनुवंशिक पदार्थ— DNA में द्विगुणन या प्रतिकृति की क्षमता होती है।
2. इसमें प्रत्येक द्विगुणन या प्रतिकृति के पश्चात् अपनी यथार्थता बनाये रखने अर्थात् अनुलेखन अनुवादकरण की क्षमता होती है।

3. इसमें विभिन्न उपापचयी क्रियाओं के संचालन की क्षमता होती है जिससे आवश्यक प्रोटीन्स संश्लेषण हो सके।

4. इसमें उपार्जित या संचित गुणों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी सन्तानों में संचारित करने की क्षमता

होती है।

5. इसमें समय-समय पर संगठन में परिवर्तन की क्षमता होती है जिससे जीवों में आनुवंशिक भिन्नताओं का प्रकास हो सके और जीवों को बदली हुई दशाओं में जीवित रहने अर्थात् अनुकूलन की क्षमता प्राप्त हो सके।

प्रश्न 17. डीएनए यक आनुवंशिक पदार्थ है इस पक्ष मे हरशे  व चेस के प्रयोग से प्राप्त निष्कर्ष लिखे। 

उत्तर: DNA एक आनुवंशिक पदार्थ है- निम्नलिखित अपरोक्ष प्रमाण भी DNA के आनुवंशिक पदार्थ होने की पुष्टि करते हैं-
1. किसी जीव की समस्त द्विगुणित कोशिकाओं तथा एक ही जाति के समस्त जीवों की कोशिकाओं में DNA डी मात्रा समान होती है।

2. कोशिकीय उपापचय के समय DNA अपनी अखण्डता बनाये रखता है।
3. जीन में उत्परिवर्तन उत्पन्न करने वाले भौतिक एवं रासायनिक कारक DNA के रासायनिक संघटन में भी परिवर्तन उत्पन्न कर सकते हैं।

4. किसी जीव के युग्मको में DNA को मात्रा उसकी शारीरिक कोशिकाओं की अपेक्षा आधी होती है।

5. नर व मादा युग्मकों के समेकन से युग्मनज में DNA की मात्रा दोगुनी हो जाती है।

6. बहुगुणिता के फलस्वरूप कोशिका में DNA की मात्रा उसी अनुपात में बढ़ जाती है।

प्रश्न 18. एक जीन एक एनजीम की परिकल्पना पर टिप्पणी दे। 

उत्तर: बीडल तथा टैटम ने अपने प्रयोगों जो उन्होंने न्यूरोस्पोरा ( नामक कवक पर किये, सिद्ध किया कि प्रत्येक जीन में एक निश्चित एन्जाइम के संश्लेषण कराने का सन्देश  होता है। उन्होंने एक जीन एक एन्जाइम (one gene one enzyme) मत प्रस्तुत करके 1955 ई० में नोबेल पुरस्कार भी प्राप्त किया। बाद के अध्ययनों से पता लगा कि एक जीन में एक ही पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला के संश्लेषण का सन्देश होता है, अब यह परिकल्पना, एक जीन → एक पॉलीपेप्टाइड आनुवंशिकी या आणविक जीवविज्ञान का मूल सिद्धान्त बन गया है।

प्रश्न 19. संरचनात्मक जीन क्या होते है?

उत्तर: संरचनात्मक जीन :  ये जोन DNA के उन खण्डों को निरूपित करते है जिन पर प्रोटीन संश्लेषण हेतु निर्देश कोडित रहते हैं। ये जीन प्रोटीन संश्लेषण के साथ अमीनो अम्लों के अनुक्रम को निमन्त्रित करके पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला की प्राथमिक संरचना का निर्धारण करते हैं। चूंकि यहाँ रज्जुक विपरीत ध्रुवत्य की और होते हैं इसलिए डी० एन०ए० निर्भर आर० एन० ए० पॉलीमरेज बहुकलन केवल एक दिशा 5 से 3 की ओर उत्प्रेरित होते है। यह रज्जुक जिसमे ध्रुवत्व 5-3' तथा अनुक्रम आर० एन० ए० जैसा होता है। अनुलेखन के समय यह स्थानान्तरित हो जाता है इसे कूट लेखन रज्जुक कहते हैं। दूसरा रज्जुक 3-5 टेम्पलेट के रूप में कार्य करता है। इसे टेम्पलेट रज्जुक कहते हैं।

प्रश्न 20. मानव जीनोम परियोजना के भाग बताए?

उत्तर: मानव जीनोम परियोजना  को तीन मुख्य भागों में विभक्त किया गया है-
1. डी० एन०ए० चित्रण या एक्प्रेस्ड अनुक्रम टैग्स (DNA Mapping or EST Expressed sequence

2. डी० एन०ए० अनुक्रम टिप्पण (DNA Sequence annotation)

3. डी० एन०ए० का क्रियात्मक विश्लेषण (functional analysis of DNA) 

इन विधियों में भी प्रथम दो विधियाँ अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। 

प्रश्न 21. डीएनए अंगुलिछापी तकनीक मे कौन कौन सी प्रक्रिया समलित है?

उत्तर: डीएनए अंगुलिछापी तकनीक प्रक्रियाएँ सम्मिलित होती है-

(i) डी०एन०ए० का बिलगन
(ii) प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएज एन्जाइम  द्वारा डी० एन० ए० का पाचन
(ii) इलेक्ट्रोफोरेसिस द्वारा डी० एन०ए० खण्डों का पृथक्करण
(iv) पृथक्कृत डी० एन० ए० खण्डों का संश्लेषित झिल्ली जैसे-नाइट्रोसेल्युलोज या नाइलॉन एक मेनफिल्टर पर स्थानान्तरण 

(v) चिह्नित बी० एन०टी०आर० प्रोब का उपयोग करते हुए संकरण जिससे जौन प्रोब मेम्ब्रेन फिल्टर पर पूरक क्रम में क्षारक जोड़े है। इस क्रिया को संकरण कहते हैं। संकरण करने वाले क्रम को पहचानना इसलिए आसान हो है क्योंकि जीन प्रोव में रेडियोधर्मी तत्त्व होते हैं। 

(vi) स्वविकिरणी चित्रण द्वारा संकरित डी०एन०ए० खण्डों का पता लगाना आदि।

प्रश्न 22. पुनरावृत्ति डी०एन०ए० एवं अनुषंगी डी०एन०ए० में अन्तर बताए। 

उत्तर—डो०एन०ए० अंगुलीछापी में डी०एन०ए० अनुक्रम मे उपस्थित कुछ विशिष्ट स्थानों के मध्य विभिन्नता का पता लगाया जाता है, इसको पुनरावृत्ति DNA जबकि इसको जीनोमिक डी०एन०ए० से अलग करने के लिए विभिन्न शिखर बनते है एक बड़ा शिखर तथा उसके साथ अन्य कई छोटे शिखर होते हैं, इन्हें अनुषंगी डी०एन०ए० (satellite DNA) कहते है। 

प्रश्न 23. m- आर० एन०ए० का अनुवादकरण किस प्रकार समाप्त होता है?

उत्तर- किसी आर०एन०ए० से पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला के संश्लेषण का अन्त  उस समय होता है। जब m. आर०एन०ए० का एक नॉनसेन्स कोडॉन A-स्थल (A-site) पहुँच जाता है। ऐसे नॉनसेन्स कोडॉन तीन होते हैं। UAA UAG तथा UGA, ये कोडॉन किसी भी 1- आर०एन०ए० के द्वारा स्वीकार्य नहीं होते हैं। इस प्रकार कोई भी अमीनो एसिल t - आर०एन०ए० ( aminoacyl tRNA) A-स्थल पर नहीं पहुँच पाता है।

प्रश्न 24. पुनर्भरण संदमन किसे कहते है?

उत्तर- जीन संश्लेषण द्वारा संश्लेषित पदार्थ का उपयोग न होने पर यह कोशिका में संचित हो जाता है तथा उस पदार्थ के और अधिक संश्लेषण को रोक देता है। इसे जीन क्रिया का पुनर्भरण संदमन कहते हैं। संदमन अन्तिम द्वारा एन्जाइम को बन्धित करने के कारण होता है। जब माध्यम में आइसोल्यूसिन मिलाया जाता है ई. कोलाई में थिओनिन से आइसोल्यूसिन का संश्लेषण रुक जाता है। आइसोल्यूसिन एन्जाइम से जुड़कर यह निष्क्रिय हो जाता है। एन्जाइम स्तर पर संदमन की यह क्रिया एलोस्टिरिक पारस्परिक क्रि कहलाती है।

प्रश्न 25. लैक्टोज की उपस्थिति में माध्यम में केसी प्रकिया सम्पन्न होती है?

उत्तर: लैक्टोज-प्रेरक के उपस्थित होने पर प्रेरक कोशिका में प्रवेश करके नियामक जौन से उत्पन्न दमनकारी के साथ जुड़  जाता है। परिणामस्वरूप दमनकारी प्रचालक जोन से नहीं जुड़ने पाता और प्रचालक स्वतन्त्र रहता है। यह RNA पॉलीमरेज को प्रोत्साहक जीन के समारम्भत स्थल से जुड़ने के लिए प्रेरित करता है। परिणामस्वरूप संरचनात्मक जीन (या सिस्ट्रॉन) से पॉलीसिस्टरॉनिक लैक mRNA का अनुलेखन होता है जो लैक्टोज उपयोग के लिए आवश्यक तीनों एन्जाइम्स को कोडित करता है अर्थात् यहाँ लैक्टोज उत्प्रेरक का कार्य करता है; अतः सम्पूर्ण क्रिया एन्जाइम प्रेरण है।