बिहार बोर्ड कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 7 विकास लघु उत्तरीय प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. आदि वातावरण मे सर्वप्रथम किस प्रकार का पोषण प्ररम्भ हुआ?
उत्तर: आदि सागर में उत्पन्न प्रोकैरियोटिक कोशिकायें परपोषी रही होगी। ये समुद्र में उपस्थित कार्बोहाइड्रेट्स, अमीनो अम्ल तथा अन्य कार्बनिक यौगिकों को भोजन के रूप में ग्रहण करती रही होगी। इनमें उर्जा का उत्पादन कार्बनिक यौगिकों के किण्वन अर्थात् अवायवीय श्वसन द्वारा होता रहा होगा। इनके द्वारा छोड़ी गई CO2 वातावरण में एकत्रित होती रही। इन्होने आदि समुद्र के जल में उपस्थित कार्बनिक पदार्थों का ऊर्जा उत्पादन हेतु तीव्रतापूर्वक उपयोग किया। इससे जल में कार्बनिक पदार्थ बहुत कम रह गए। किन्तु जब इस भोजन का अभाव बढ़ता गया तो अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए आदि जीवों में विभिन्न पोषण विधियों का विकास हुआ जैसे—धीरे-धीरे ये कोशिकाये आदि सागर में उपलब्ध सरल अकार्बनिक पदार्थों से जटिल कार्बनिक पदार्थों का सश्लेषण करने लगीं। अर्थात् रासायनिक संश्लेषण या रासायनिक स्वपोषण प्रारम्भ हुआ।
प्रश्न 2. जाती उद्भवन कितने प्रकार का होता है?
उत्तर: जाति उद्भवन (उत्पत्ति) किसी जीव जाति के सदस्यों के बीच अन्तराप्रजनन तथा स्वतन्त्र जीन प्रवाह को बाधित करने वाली दशाओं के कारण होता है। इन दशाओं के आधार पर जाति उद्भवन के दो प्रमुख भेद किये गये हैं-
(i) भिन्नदेशीय
(ii) एकदेशीय
प्रश्न 3. ऑस्ट्रेलोपीठिकक्स मानव के विशिस्ट लक्षण लिखिए।
उत्तर: इनका कद लगभग 120 सेमी तथा भार लगभग 40 किया था। इनका दन्त विन्यास कैनाइन्स के नुकीला होने के अतिरिक्त वर्तमान मानव से काफी मिलता-जुलता था। ये सर्वाहारी थे, परन्तु मुख्यतः मांसाहारी थे। ये जबड़ों को इधर-उधर चलाकर भोजन करते थे। चेहरा छोटा सीधा खड़ा हुआ तथा खोपड़ी का महारन्ध्र नीचे की ओर खिसका हुआ होता था। स्पष्टतः ये सीधे खड़े होने वाले, द्विपदचारी थे। इनके मस्तिष्क छोटे थे, किन्तु नियम में बन्द थे। इनकी श्रोणि मेखला कपियों की अपेक्षा छोटी थी। इनको कपियों से भिन्न आदिमानव कहा जाता है।
प्रश्न 4. मानव के विकास का क्रम लिखिए?
उत्तर: मानव के विकास क्रम में पाये गये जीवाश्म:
होमो सैपियन्स सैपियन्स - आधुनिक मानव
↑ विकास की दिशा
होमो सैपियन्स फॉसिलिस —क्रोमैगनॉन
विकास की दिशा
होमोनिएण्डर थैलेन्सिस —निएण्डरथल मानव
↑ विकास की दिशा
होमो इरेक्टस इरेक्टस - जावा मानव
↑ विकास की दिशा
ऑस्ट्रेलोपिथेकस अफ्रीकैनस आदि मनव
↑ विकास की दिशा
रामापिथेकस
प्रश्न 5. होमो एरेकटुस की विशेषताए बताए।
उत्तर: 1.पेकिंग से प्राप्त इस प्रागैतिहासिक कपि मानव के जीवाश्म लगभग 6 लाख वर्ष प्राचीन हैं।
2. इनका कद लगभग 1.5-1.6 मीटर था। इनका धड़ आगे झुका हुआ था।
3.इनका चेहरा ठोड़ी रहित, माथा नीचा व ढलवाँ, भौंहों के नीचे हड्डी में उभार, निचला जबड़ा भारी व बड़ा | तथा सामने की ओर उभरा हुआ था। नाक चपटी थी।
4. इनकी कपाल गुहा का औसत आयतन 1075 cc था।
5. दाँत बड़े किन्तु मनुष्य के समान, केवल निचले जबड़े के कैनाइन बड़े थे।
6. ये छोटे-छोटे समूहों में गुफाओं में रहते थे। पत्थर के औजार बनाते थे।
7. सम्भवतः अक्षरबद्ध भाषा बोलने का विकास नहीं हुआ था।
प्रश्न 6. क्रोमेगणं मानव आधुनिक मानव क केसे समीप है?
उत्तर: समानतायें—
1. ये वस्त्र के रूप में पशुओं की खाल का प्रयोग करते थे।
2. दोनों ही ऐसे परिवार बनाकर रहते थे एवं श्रम विभाजन के प्रति जागरूक थे।
3. ये धर्म एवं संस्कृति के प्रति सुदृढ़ आस्था रखते थे।
4. दोनों ही अपना शिकार तीर, भालों व चाकुओं से करते थे।
प्रश्न 7. मिलर के प्रयोग का चित्र बनाए।
उत्तर:
प्रश्न 8. ओपेरीन के सिद्धांत के अंतर्गत जीवन की उत्पत्ति के मुख्य चरण बताए।
उत्तर: 1. पढ़ार्थों की परमाणु व्यवस्था।
2. अणु निर्माण
3. कार्बनिक योगिक निर्माण
4. कोरसवेत निर्माण
5. जीन उत्प्रेरक तंत्र निर्माण
6. prokaryotic कोशिका की उत्पत्ति
7. स्वपोषण की उत्पत्ति
8. यूकेरयोटिक कोशिका की उत्पत्ति
प्रश्न 9. आदि वायुमंडल कैसा था?
उत्तर: 1.आदि वायुमण्डल इसमें हाइड्रोजन के परमाणु सम्भवतः 90% तक जिन्होंने ऑक्सीजन के परमाणुओं से संयोग कर जल (H2O) बना लिया। इसलिए यह अपचायक था।
2. अत्यधिक ताप के कारण पृथ्वी का समस्त जल, वाष्प के रूप में आदि वायुमण्डल में उड़ता रहता था।
3. यह वायुमण्डल ऑक्सीजन के अभाव में अनॉक्सी या अवायव श्वसन के लिए ही उपयुक्त था।
4. पृथ्वी के ऊपर ओजोन (03) की परत न होने के कारण सूर्य की पराबैंगनी किरणें सीधे उपलब्ध थीं, जिससे जीवन उत्पन्न तो हुआ, किन्तु उसका चलते रहना असम्भव था।
प्रश्न 10. जीवन की उत्पत्ति में कोएसरवेट्स का महत्त्व बताए।
उत्तर: कोएसरवेट्स में प्रोटीन्स आदि ने किण्वों का कार्य किया, जिससे कि ये किण्वन द्वारा ऊर्जा प्राप्त करने लगे। इस प्रकार इनमें परापोषी पोषण और अनॉक्सी श्वसन की क्रियाओं का उदय हुआ। कोएसरवेट्स में चिपचिपेपन का गुण था, जिसके परिणामस्वरूप ये एक निश्चित आकारिकीय वृद्धि कर सकते थे। इसके पश्चात् ये छोटी-छोटी बूंदों के रूप में टूट जाते थे। इस प्रकार इनमें गुणन की प्रवृत्ति का विकास हुआ। सम्भवतः इन्हीं कोएसरवेट्स से आदि सागर में 'प्रारम्भिक जीव' की उत्पत्ति हुई।
प्रश्न 11. अभिसारी व अपसारी विकास की परिभाषा दे।
उत्तर: कभी-कभी भौगोलिक दृष्टि से भिन्न देशों में एक ही प्रकार के जीव-जन्तु एवं पौधे पाये जाते हैं ऐसा विकास, अभिसारी विकास कहलाता है अथवा समान जलवायु वाले विभिन्न देशों, द्वीपों व महाद्वीपों की वनस्पति तथा प्राणियों में बहुत अन्तर होता है। ऐसा विकास अपसारी विकास कहलाता है।
प्रश्न 12. डायनोसोर्स के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर- डायनोसोर्स– ये विचित्र सरीसृप मध्य महाकल्प के जुरैसिक कल्प में उत्पन्न हुए। ये शाकाहारी एवं मांसाहारी दोनों प्रकार के होते थे। इनकी विशेष निम्नलिखित थी-
(क) शाकाहारी डायनोसोर्स- बँकियोसॉरस नामक डायनोसोर लगभग 20 मीटर तम्बा व 80 टन भारी था। एक अन्य डायनोसोर डिप्लोडोकस की लम्बाई लगभग 30 मीटर थी। स्टीगोसॉरस के शरीर पर सुरक्षात्मक शंकु व प्लेटें पायी जाती थी। ये विशालकाय स्थलीय शाकाहारी डायनोसोर्स सुस्त एवं डरपोक थे तथा इनका मस्तिष्क भी अल्प विकसित होता था।
(ख) मांसाहारी डायनोसोर – टाइरैनोसॉरस नामक यह भयंकर डायनोसोर लगभग 15 मोटर लम्बा व 6 मीटर ऊँचा था। रम्फोरिकस नामक वायु में उड़ने वाला यह मांसाहारी डायनोसोर भी लगभग 15 मीटर लम्बा था।
प्रश्न 13. त्रियसिक कल्प की विशेषताए लिखे।
उत्तर: आयु: 23 करोड़ वर्ष पूर्व प्रारम्भ होकर 5 करोड़ वर्ष तक रहा।
भौमिक दशा: जलवायु अत्यधिक गर्म व नम। मरुस्थलों का विस्तार ।
पादप: ट्राइऐसिक कल्प मे विशालकाय साइकैड्स तथा शंकुधारी वृक्षों का विकास।
प्रश्न 14. अनुकूलन पर टिप्पणी लिखिए।।
उत्तर- अनुकूलन: विभिन्न जीव जातियों की स्वयं को वातावरणीय दशाओं के अनुकूल बना लेने की प्रक्रिया अनुकूलन है। इसके अन्तर्गत जीव जातियों में वातावरणीय दशाओं के अनुरूप रचनात्मक एवं काशिक परिवर्तन होते हैं।
महत्त्व — जीव जातियों में ये परिवर्तन प्रायः प्रकाश, ताप, वायु, जल, भोजन व सुरक्षा आदि आवश् की उपयुक्त पूर्ति के लिए होते हैं। समय-समय पर होने वाले परिवर्तन कालान्तर में नयी-नयी जीव जातियों को जन्म देते हैं। इस प्रकार अनुकूलन का जैव विकास में भारी महत्त्व है।
प्रश्न 15. अवशेषी अंग किसे कहते है?
उत्तर: जन्तुओं में पाये जाने वाले कुछ कार्यविहीन, अविकसित तथा अनावश्यक अंग अथवा उनके भाग अवशेषी अंग कहलाते हैं। ऐसा समझा जाता है कि किसी समय सम्बन्धित जन्तुओं के पूर्वजों में ये अंग शील रहे होगे, परन्तु समय के साथ-साथ बदलते हुए वातावरण में इनकी आवश्यकता पटती रही और ये मिक लोप (gradual extinction) के फलस्वरूप अवशेषी बन गये। मानव शरीर के प्रमुख अवशेष है-
1. प्लाइका सेमीनुलेरिस
2. पुच्छ कशेरुक
3.परिशेषिका
4. अक्ल दाड़
5. शरीर पर बाल
6. नुकीला कैनाइन
प्रश्न 16. समजातता परिभासित करे।
उत्तर: समजातता एवं समजात अंग : जब अंगों की मूल रचना तथा उद्भव समान होते हैं, परन्तु इनके कार्यो समानता होना आवश्यक नहीं होता तो यह समजातता हलाती है अर्थात् समान उद्भव एवं रचना वाले अंग जो भिन्न-भिन्न कार्यों के लिए अनुकूलित होते हैं, समजात अंग कहे हैं जैसे— पक्षियों के पंख, सील के फ्लिपर, चमगादड़ का पैटेजियम, डेट पैग्विन के चप्पू , घोड़े के अग्रपाद, मनुष्य के हाथ इत्यादि।
प्रश्न 17. आर्किऑप्टेरिक्ष पर टिप्पणी करे।
उत्तर: आर्किओप्टेरिक्स: इस पक्षी के जीवाश्म लगभग 15 करोड़ वर्ष पूर्व की जुरैसिक काल की चट्टानों से प्राप्त हुए हैं। आर्किओप्टेरिक्स में पक्षियों के समान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण लक्षण पंख परों तथा चोंच का होना था। यह जन्तु सरीसृपों के किन्हीं जन्तुओं से विकसित हुआ होगा, क्योंकि इस जन्तु में उस संघ के भी लक्षण उपस्थित थे। सरीसृपों के अनेक लक्षण जैसे-लम्बी पूंछ, चोच में दाँत तथा अग्रपादों के पंखों में बदल जाने पर भी उन पर पंजों की उपस्थिति अति महत्त्वपूर्ण है। इससे सिद्ध होता है कि सरीसृपों से पक्षी के विकास में यह जीव एक संयोजक जीव या संयोजक कड़ी के रूप में विकसित हुआ।
प्रश्न 18. पूर्वजता क्या है?
उत्तर: कुछ जीव जातियों में कभी-कभी ऐसे लक्षण उत्पन्न होते हैं जो उनकी स्वयं की जाति में न होकर बहुत समय पूर्व के उनके पूर्वजों से सम्बन्धित होते हैं। इस प्रकार से अंगों या लक्षणों के उत्पन्न होने को पूर्वजता अथवा प्रत्यावर्तन कहते हैं। इस प्रकार की संरचनायें यह प्रमाणित करती हैं कि इन जीव जातियों का विकास उनके सम्बन्धित लक्षणों वाले पूर्वजों से हुआ है।
प्रश्न 19. अपसारी व अभिसारी विकास के उद्धहरण को छटिए ।
ऑक्टोपस एवं स्तनियों की आँख, तितली एवं पक्षियों के पंख, शकरकन्द एवं आलू के कंद, बोगनविलिए के कंटक एवं कद्दू के प्रतान
उत्तर- (1) ऑक्टोपस एवं स्तनियों की आंख - अभिसारी विकास
(ii) तितली एवं पक्षियों के पंख - अपसारी विकास
(iii) शकरकंद एवं आलू के कंद - अभिसारी विकास
(iv) बोगेनविलिया के कटक एवं कद्दू के प्रतान - अपसारी विकास।
प्रश्न 20. जावा मानव क कोई तीन लक्षण लिखे।
उत्तर: 1. जावा मानव में कपाल गुहा काफी बड़ी लगभग 1000 cc हो गयी थी।
2. इनमें सीधा खड़े होकर चलने की क्षमता आ गयी थी।
3. दन्त विन्यास आधुनिक मानव की तरह था।
प्रश्न 21. पृथ्वी पर जीव की उत्पत्ति के समय जिन यौगिकों का उदधिकास हुआ, उनके नाम लिखे।
उत्तर- स्वतन्त्र हाइड्रोजन की उपस्थिति तथा अन्य दशाओं के कारण पहले इसके यौगिक जैसे जलवासप (H2O), अमोनिया (NH3 ), मेथेन (CH4 ) आदि का निर्माण हुआ बाद में इनसे उस समय की विशिस्थ परिसतिथियों एवं ऊर्जाओं की उपस्थिति में शर्कराओं, वसीय अम्लों , अमीनो अम्ल पिरोमिडीन, प्यूरोन्स आदि का भी निर्माण हो सका।
प्रश्न 22. जीन, समष्टि तथा जैव विकास में परस्पर क्या सम्बन्ध है?
उत्तर- प्रत्येक जाति को अनेक समष्टियाँ होती हैं। समष्टि के सदस्य परस्पर अन्तः प्रजनन करते हैं जिनसे जीन्स का आदान-प्रदान होता रहता है। प्रत्येक जाति का एक सम्मिलित जीन समूह होता है अर्थात् जाति की विभिन्न समष्टियों के सदस्यों में परस्पर जीन्स का आदान-प्रदान हो सकता है। जैव विकास द्वारा किसी एक समष्टि से नयी जाति का विकास होता है। जैव विकास की इकाई समष्टि है। पूरी जाति का विकास एकसाथ नहीं होता। अलग-अलग समष्टियों का विकास अलग-अलग दिशाओं में हो सकता है। जोनी परिवर्तन प्राणी विशेष में होता है। यह परिवर्तन जीन में उत्परिवर्तन या नवीन पुनर्संयोजन द्वारा हो सकता है। समष्टि में विभिन्नताये जीन्स के कारण होती है। समष्टि मे उपस्थित विभिन्नताओं के प्राकृतिक चयन द्वारा जैव विकास) होता है। इस प्रकार जीन, समष्टि तथा जैव विकास में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध होता है।
प्रश्न 23. जीवाश्म बनने के लिए किन परिस्थितियों की आवश्यकता होती है?
उत्तर- जीवाश्म बनने के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं-
(i) जीव का जीवित या मृत शरीर, शरीर का भाग अथवा कोई अन्य पदार्थ मृदा की परतो अथवा जवलमुखी से निकले लावा आदि में दबना।
(ii) शरीर के उपर्युक्त दबे हुए भाग में कार्बनिक पदार्थों के नष्ट होने पर अकार्बनिक पदार्थों का
जमना तथा उस भाग का साँचा तैयार करना।
प्रश्न 24. जननिक विभिनताए क्या होती है?
उत्तर: जननिक विभिन्नतायें:
ये जीव के जननद्रव्य में प्रभावित होती है।
2. ये जीन ढाँचे में परिवर्तन के कारण उत्पन्न होती हैं।
3. लैमार्क तथा डार्विन भी इनके विषय में नहीं जानते थे।
4. ये वंशागत होती हैं।
5. उदाहरण - नेत्र की पुतलियों का जन्मजात रंग, बालों का रंग व शारीरिक लम्बाई आदि।
प्रश्न 25. उत्परिवर्तन पर टिप्पणी दीजिए।
उत्तर: उत्परिवर्तन का अर्थ है ऐसा अचानक होने वाला परिवर्तन जो जीन्स में होता है तथा परिवर्तित लक्षणों को अगली सन्तति में ले जाता है, उत्परिवर्तन या जीन उत्परिवर्तन कहलाता है। उत्परिवर्तन छोटी-छोटी विभिन्नतायें) पैदा करते हैं। धीरे या क्रमिक रूप में ऐसे परिवर्तन जीव की इन पीढ़ियों के पिछले लक्षणों को नये लक्षणों में बदल देते हैं; अतः उत्परिवर्तन जैव विकास में सहायक है। अनेक बार उत्परिवर्तन बेकार होते हैं जो छोड़ दिये जाते हैं अथवा हानिकारक होते हैं जो सन्तति को नष्ट भी कर सकते है।