बिहार बोर्ड कक्षा 12 भौतिक विज्ञान अध्याय 3 वैद्धुत धारा दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
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बिहार बोर्ड कक्षा 12 भौतिक विज्ञान अध्याय 3 वैद्धुत धारा दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

BSEB > Class 12 > Important Questions > भौतिक विज्ञान अध्याय 3 वैद्धुत धारा - दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1.नाइक्रोम का एक तापन-अवयव 230 वोल्ट की सप्लाई से संयोजित है और 3.2 ऐम्पियर की प्रारम्भिक धारा लेता है जो कुछ सेकण्ड में 2.8 ऐम्पियर पर स्थायी हो जाती है। यदि कमरे का ताप 27.0° C है तो तापन-अवयव का स्थायी ताप क्या होगा? दिए गए ताप-परिसर में नाइक्रोम का औसत प्रतिरोध का ताप-गुणांक 1.70 x 10-4°C-1 है।

हल :

दिया है : V = 230 वोल्ट

i1 = 3.2 ऐम्पियर तथा 

अन्त में  i2  = 2.8 ऐम्पियर

कमरे का ताप  t1  = 27.0°C 

स्थायी ताप  t2 = ?

 α = 1.70 x10-4°C-1

प्रारम्भ में (कमरे के ताप पर ) R = Vi1 = 230 वोल्ट 3.2 ऐम्पियर = 71.87Ω

तप्त अवस्था में (ताप   t2 पर )R2  = Vi2 = 230 वोल्ट 2.8 ऐम्पियर = 82.14Ω

माना   t2-  t1 =t तब 

t = R2-R1R1 = 82.14-71.871.7010-471.87 = 840°C

∴ तंतु का स्थायी ताप

  t2= t1+t = 27+840=867°C

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2. 8 वोल्ट वैद्युत वाहक बल की एक संचायक बैटरी जिसका आन्तरिक प्रतिरोध 0.5 2 है, को श्रेणीक्रम में 15.5Ω के प्रतिरोधक का उपयोग करके 120 वोल्ट के D.C. स्रोत द्वारा चार्ज किया जाता है। चार्ज होते समय बैटरी की टर्मिनल वोल्टता क्या है? चार्जकारी परिपथ में प्रतिरोधक को श्रेणीक्रम में सम्बद्ध करने का क्या उद्देश्य है?

हल :

दिया है : बैटरी का वै० वा० बल E = 8 वोल्ट,

 आन्तरिक प्रतिरोध r = 0.5Ω

आवेशन स्रोत का वै० वा० बल Eex= 120 वोल्ट,

 बाह्य प्रतिरोध R = 15.5Ω

चार्जिंग के समय बैटरी की वोल्टता V = ?

चार्जिंग के समय बैटरी की टर्मिनल वोल्टता V = E + ir

चार्जिंग धारा i = Eex - ER +r = (120-8) v(15.5+0.5 )Ω = 7 ऐम्पियर

∴ टर्मिनल वोल्टता V = 8+ 7 x 0.5 = 11.5 वोल्ट।

बाह्य प्रतिरोध को जोड़ने का उद्देश्य, चार्जिंग धारा को कम रखना है। उच्च चार्जिंग धारा के कारण बैटरी के क्षतिग्रस्त होने की सम्भावना है।

3.(a) छह लेड एसिड संचायक सेलों, जिनमें प्रत्येक का वैद्युत वाहक बल 2 वोल्ट तथा आन्तरिक प्रतिरोध 0.015Ω है, के संयोजन से एक बैटरी बनाई जाती है। इस बैटरी का उपयोग 8.5Ω प्रतिरोधक जो इसके साथ श्रेणी सम्बद्ध है, में धारा की आपूर्ति के लिए किया जाता है। बैटरी से कितनी धारा ली गई है एवं इसकी टर्मिनल वोल्टता क्या है?

(b) एक लम्बे समय तक उपयोग में लाए गए संचायक सेल का वैद्युत वाहक बल 1.9 वोल्ट और विशाल आन्तरिक प्रतिरोध 380Ω है। सेल से कितनी अधिकतम धारा ली जा सकती है? क्या सेल से प्राप्त यह धारा किसी कार की प्रवर्तक-मोटर को स्टार्ट करने में सक्षम होगी?

उत्तर :

(a) प्रत्येक सेल का. वै० वा० बल = 2 वोल्ट,

 आ० प्रतिरोध = 0.015Ω

सेलों की संख्या = 6,

 बाह्य प्रतिरोध R = 8.5Ω,

 बैटरी से ली गई धारा = ?,

 टर्मिनल वोल्टता = ?

∵ बैटरी में सेल श्रेणीक्रम में जुड़े हैं।

∴ बैटरी का वै० वा० बल E = 6 x 2 = 12 वोल्ट

बैटरी का आ० प्रतिरोध r = 6 x 0.015 = 0.09Ω

∴ बैटरी से ली गई धारा i = ER+r = 12वोल्ट (8.5+0.09)Ω, =1.4  ऐम्पियर

बैटरी की टर्मिनल वोल्टता V = iR = 1.4 ऐम्पियर x 8.5Ω = 11.9 वोल्ट।

(b) सेल का वै० वा० बल E = 1.9 वोल्ट तथा

 आ० प्रतिरोध r = 380Ω

E सेल से अधिकतम धाराimax = Er

                                         =1.9380

                                         = 0.005 ऐम्पियर।

नहीं, यह धारा किसी कार की मोटर स्टार्ट नहीं कर सकती।

4.पृथ्वी के पृष्ठ पर ऋणात्मक पृष्ठ-आवेश घनत्व 10-9 कूलॉम-सेमी-2 है। वायुमण्डल के ऊपरी भाग और पृथ्वी के पृष्ठ के बीच 400 किलोवोल्ट विभवान्तर (नीचे के वायुमण्डल की कम चालकता के कारण) के परिणामतः समूची पृथ्वी पर केवल 1800 ऐम्पियर की धारा है। यदि वायुमण्डलीय वैद्युत क्षेत्र बनाए रखने हेतु कोई प्रक्रिया न हो तो पृथ्वी के पृष्ठ को उदासीन करने हेतु (लगभग) कितना समय लगेगा? (व्यावहारिक रूप में यह कभी नहीं होता है क्योंकि वैद्युत आवेशों की पुनः पूर्ति की एक प्रक्रिया है; यथा-पृथ्वी के विभिन्न भागों में लगातार तड़ित झंझा एवं तड़ित का होना)। (पृथ्वी की त्रिज्या = 6.37 x 106 मीटर)।

उत्तर :

पृथ्वी की त्रिज्या RE = 6.37 x 106 मीटर,

पृष्ठीय-आवेश घनत्व σ = 10-9 कूलॉम-सेमी-2 = 10-5 कूलॉम-मीटर-2

वायुमण्डल से पृथ्वी पर धारा i = 1800 ऐम्पियर 

पृथ्वी के निरावेशन में लगा समय t = ?

 निरावेशन  में लगा समय 

     t=qi=4RE2i= 43.146.37106210-51800

       t = 283सेकण्ड 

 

5.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

(a) किसी असमान अनुप्रस्थ काट वाले धात्विक चालक से एकसमान धारा प्रवाहित होती है। निम्नलिखित में से चालक में कौन-सी अचर रहती है—धारा, धारा घनत्व, वैद्युत क्षेत्र, अपवाह चाल।

(b) क्या सभी परिपथीय अवयवों के लिए ओम का नियम सार्वत्रिक रूप से लागू होता है? यदि नहीं, तो उन अवयवों के उदाहरण दीजिए जो ओम के नियम का पालन नहीं करते।

(c) किसी निम्न वोल्टता संभरण जिससे उच्च धारा देनी होती है, का आन्तरिक प्रतिरोध बहुत कम होना चाहिए, क्यों?

(d) किसी उच्च विभव (H.T.) संभरण, मान लीजिए 6 किलोवाट का आन्तरिक प्रतिरोध अत्यधिक होना चाहिए, क्यों?

हल :

(a) केवल धारा अचर रहती है, जैसा कि दिया गया है।

अन्य राशियाँ अनुप्रस्थ क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती हैं।

(b) नहीं, ओम का नियम सभी परिपथीय अवयवों पर लागू नहीं होता।

निर्वात नलिकाएँ, (डायोड वाल्व, ट्रायोड वाल्व) अर्द्धचालक युक्तियाँ (सन्धि डायोड तथा ट्रांजिस्टर) इसी प्रकार की युक्तियाँ हैं।

(c) किसी संभरण से प्राप्त महत्तम धारा imax=Er

∵ वै० वा० बल कम है, अत: पर्याप्त धारा प्राप्त करने के लिए आन्तरिक प्रतिरोध का कम होना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त आन्तरिक प्रतिरोध के अधिक होने से सेल द्वारा दी गई ऊर्जा का अधिकांश भाग सेल के भीतर ही व्यय हो जाता है।

(d) यदि आन्तरिक प्रतिरोध बहुत कम है तो किसी कारणवश लघुपथित होने की दशा में संभरण से अति उच्च धारा प्रवाहित होगी और संभरण के क्षतिग्रस्त होने की संभावना उत्पन्न हो जाएगी।

6.यदि संयोजन Emf 12 vऔर नगण्य आंतरिक प्रतिरोध की बैटरी से जुड़ा है, तो प्रत्येक प्रतिरोधक पर संभावित गिरावट प्राप्त करें।

उत्तर : परिपथ में बहने वाली धारा = I

बैटरी काEmf, (E) = 12 V

परिपथ का कुल प्रतिरोध, R = 6 Ω

ओम के नियम का उपयोग करते हुए करंट के लिए संबंध है,

                           I=ER

                            = 126=2A

1 Ω प्रतिरोधक के सिरों पर विभव हास =V1

ओम के नियम से, V1का मान इस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है

वी 1 = 2 × 1 = 2 V … (i)

2 Ω प्रतिरोधक के सिरों पर विभव हास =V2

पुनः, ओम के नियम से, V2 का मान इस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है

वी 2 = 2 × 2 = 4 V ... (ii)

3 Ω प्रतिरोधक के सिरों पर विभव हास = V3

पुनः, ओम के नियम से,V3 का मान इस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है

वी 3 = 2 × 3 = 6 V … (iii)

इसलिए, 1 Ω, 2 Ω, और 3 Ω प्रतिरोधों में संभावित गिरावट क्रमशः 2 V, 4 V और 6 V है।

7.एक पोटेंशियोमीटर व्यवस्था में, Emf 1.25 V का एक सेल तार की 35.0 सेमी लंबाई पर एक संतुलन बिंदु देता है। यदि सेल को दूसरी सेल से बदल दिया जाता है और संतुलन बिंदु 63.0 सेमी पर स्थानांतरित हो जाता है, तो दूसरे सेल का Emf क्या है?

उत्तर:-

सेल का Emf (E) = 1.25 वी

पोटेंशियोमीटर का संतुलन बिंदु,(l1) = 35 सेमी

सेल को Emf (E 2)  के दूसरे सेल द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है ।

पोटेंशियोमीटर का नया संतुलन बिंदु, (l2)  = 63 सेमी

          E1E2  = l1l2

           E2 =E1l1l2

                = 1.256335= 2.25V

इसलिए, दूसरे सेल का Emf 2.25V है।

8.किरचॉफ के प्रथम नियम का उल्लेख कीजिए।

उत्तर: विद्युत धारा एवं वोल्टता संबंधी वैज्ञानिक किरचॉफ ने दो नियमों का प्रतिपादन किया। जिन्हें किरचॉफ का नियम कहते हैं। यह नियम विद्युत परिपथों के विश्लेषण में बहुत उपयोगी होते हैं।

1. किरचॉफ का प्रथम

2. किरचॉफ का द्वितीय

 किरचॉफ का प्रथम नियम: 

इसके अनुसार, किसी विद्युत परिपथ में किसी संधि पर मिलने वाली सभी धाराओं का बीजगणितीय योग शून्य होता है। अर्थात्

                                    Σi=0 

किरचॉफ के प्रथम नियम को संधि नियम भी कहते हैं।

चिन्ह परिपाटी के अनुसार, संधि की ओर आने वाली सभी धाराएं धनात्मक ली जाती हैं। जबकि इसके विपरीत संधि से दूर जाने वाली सभी धाराएं ऋणात्मक ली जाती हैं।

                                             

माना किसी विद्युत परिपथ में i1 , i2, i3 व i4 धाराएं बह रही है। जो कि संधि O पर मिल रही है।

तो किरचॉफ के प्रथम नियम के अनुसार

                          i1 + i2+ i3 – i4 = 0

या                               { i1 + i2+ i3 = i4 } 

इस प्रकार संधि की ओर आने वाली सभी धाराओं का योग, संधि से दूर जाने वाली सभी धाराओं के योग के बराबर होता है। अतः किरचॉफ का प्रथम नियम आवेश के संरक्षण पर आधारित होता है। इसलिए इसे किरचॉफ का धारा नियम भी कहते हैं।

9.किरचॉफ का द्वितीय नियम क्या है।

उत्तर: 

किरचॉफ का द्वितीय नियम:  इसके अनुसार, किसी विद्युत परिपथ में प्रत्येक बन्द पाश के विभिन्न भागों में प्रवाहित होने वाली धाराओं तथा संगत प्रतिरोधों के गुणनफलों का बीजगणितीय योग उस पाश पर आरोपित विद्युत वाहक बल के बीजगणितीय योग के बराबर होता है। अर्थात्

                                        ΣiR=ΣE​  

किरचॉफ के द्वितीय नियम को पाश का नियम भी कहते हैं।

चिन्ह परिपाटी के अनुसार, धारा की दिशा में जाने पर विद्युत धारा तथा संगत प्रतिरोध का गुणनफल धनात्मक लिया जाता है। जबकि धारा की विपरीत दिशा में जाने पर विद्युत धारा तथा संगत प्रतिरोध का गुणनफल ऋणात्मक लिया जाता है।

                               

माना किसी विद्युत परिपथ में दो पाश (लूप) हैं। जिन्हें चित्र में पाश-1 व पाश-2 से दर्शाया गया है। इस विद्युत परिपथ में तीन प्रतिरोध R1,R2 व R3 को परस्पर जोड़ा गया है। तथा परिपथ में दो सेलों को जोड़ा गया है जिनके विद्युत वाहक बल E1 व E2 हैं। इन दोनों सेलों में क्रमशः i1 व i2 धाराएं प्रवाहित होती हैं। तो किरचॉफ के द्वितीय नियम से

पहले बन्द पाश के लिए

                             i1R1 –i2 R2 = E1 – E2

तथा दूसरे बन्द पाश के लिए

                             i2R2 + (i1 +i2)R3 =E2

किरचॉफ का द्वितीय नियम ऊर्जा के संरक्षण पर आधारित है। इसे किरचॉफ का वोल्टता नियम भी कहते हैं।

10.व्हीटस्टोन सेतु के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।

उत्तर:  

वैज्ञानिक व्हीटस्टोन ने प्रतिरोधों को विभिन्न क्रमों में व्यवस्थित करके एक विशेष व्यवस्था का आविष्कार किया। प्रतिरोधों की इस व्यवस्था को व्हीटस्टोन सेतु कहते हैं। व्हीटस्टोन सेतु के द्वारा किसी चालक का प्रतिरोध आसानी से ज्ञात किया जा सकता है।

व्हीटस्टोन सेतु का सिद्धांत

                                  

इसमें चार प्रतिरोधों P, Q, R तथा S को श्रेणी क्रम में इस प्रकार जोड़ा जाता है कि इनसे एक चतुर्भुज ABCD का निर्माण हो। चतुर्भुज के विकर्ण AC के बीच एक विद्युत सेल E तथा प्लग कुंजी K1 को जोड़ देते हैं। एवं चतुर्भुज के दूसरे विकर्ण BD के बीच एक धारामापी G तथा कुंजी K2 को जोड़ देते हैं।

अब यदि चतुर्भुज की चारों भुजाओं के प्रतिरोधों को इस प्रकार समायोजित किया जाए, कि परिपथ में सेल द्वारा विद्युत धारा प्रवाहित करने पर धारामापी में कोई विक्षेप न हो, तो इस दशा में व्हीटस्टोन सेतु संतुलित कहा जाता है। संतुलन की अवस्था में चतुर्भुज की किन्ही दो संलग्न भुजाओं के प्रतिरोधों का अनुपात शेष दो संलग्न भुजाओं के प्रतिरोधों के अनुपात के बराबर होता है अर्थात्

​संतुलित अवस्था में

PQ = RS

11. प्रतिरोधों के संयोजन से आप क्या समझते हैं? श्रेणी क्रम संयोजन का वर्णन करे।

उत्तर:-

अनेक प्रकार के कार्यों के लिए कभी-कभी एक से अधिक प्रतिरोधों को जोड़ने की आवश्यकता पड़ जाती है। दो या दो से अधिक प्रतिरोधों को आपस में जोड़ने को ही प्रतिरोध का संयोजन कहते हैं।

प्रतिरोधों का संयोजन दो प्रकार का होता है।

1. श्रेणी क्रम संयोजन

2. समांतर श्रेणी संयोजन

प्रतिरोध का श्रेणी क्रम संयोजन:-

वह संयोजन जिसमें पहले प्रतिरोध का दूसरा सिरा, दूसरे प्रतिरोध के पहले सिरे से जोड़ देते हैं तथा दूसरे प्रतिरोध का दूसरा सिरा तीसरे प्रतिरोध के पहले सिरे से जोड़ देते हैं। और यदि तीन से अधिक प्रतिरोध हैं तो आगे भी इसी क्रम में जोड़ देते हैं। तभ प्रतिरोध के इस संयोजन को श्रेणी क्रम संयोजन कहते हैं।

                                

माना तीन प्रतिरोध R1, R2 तथा R3 श्रेणी क्रम में जुड़े हैं। तब इन प्रतिरोधों में समान विद्युत धारा i प्रवाहित होगी। जबकि इन प्रतिरोध के सिरों पर विभवांतर क्रमशः V1, V2 व V3 है। तो

                                     V1 = iR1

                                     V2 = iR2

                                     V3 = iR3

माना X और Y बिंदुओं के बीच कुल विभवांतर V है तो

                                   V =V1+ V2 + V3

मान रखने पर

                                   V = iR1 +iR2 +  iR3 ………….. (1)

माना X और Y बिंदुओं के बीच तुल्य प्रतिरोध R है। तो

                                   V = iR         ……………………(2)

समीकरण (1) व समीकरण (2) की तुलना करने पर

                               iR = iR1 + iR2 +  iR3

                               iR = i (R1 + R2 +  R3)

                                R =R1 + R2 +  R3

यही प्रतिरोध का श्रेणी क्रम संयोजन का सूत्र है। श्रेणी क्रम में जुड़े सभी प्रतिरोध पर विद्युत धारा का मान समान होता है। अतः स्पष्ट होता है। कि तीन या अधिक प्रतिरोध श्रेणी क्रम में जुड़े हैं तो उनका तुल्य प्रतिरोध तीनों प्रतिरोधों के योग के बराबर होता है।

12. प्रतिरोध का समांतर क्रम संयोजन का वर्णन करे।

 उत्तर:-

प्रतिरोध का समांतर क्रम संयोजन : - वह संयोजन जिसमें सभी प्रतिरोधों के पहले सिरे को बिंदु X से जोड़ देते हैं। तथा सभी प्रतिरोधों के दूसरे सिरे को बिंदु Y से जोड़ देते हैं। और यदि तीन से अधिक प्रतिरोध हैं तो आगे भी इसी क्रम में जोड़ देते हैं। तब प्रतिरोध के इस संयोजन को समांतर क्रम संयोजन कहते हैं।

                               

माना तीन प्रतिरोध R1, R2 तथा R3 समांतर क्रम में जुड़े हैं। तब इन प्रतिरोधों पर विभवांतर समान मात्रा में होगा। जबकि इन पर विद्युत धाराएं क्रमशः i1, i2 व i3 होंगी। तो

i1 = VR1

i2 = VR2

i3 = VR3

माना X और Y बिंदुओं के बीच कुल धारा i है तो

                          i = i1 + i2 + i3

मान रखने पर

            i =VR1 + VR2 +VR3          …… (1)

माना X और Y बिंदुओं के बीच तुल्य प्रतिरोध R है। तो

                    i= VR  ………….. (2)

समीकरण (1) व समीकरण (2) की तुलना करने पर

                      VR =VR1 + VR2 +VR3

                     VR = V ( 1R1 + 1R2 +1R3 )

                    1R = 1R1 + 1R2 +1R3

यही प्रतिरोध का समांतर क्रम संयोजन का सूत्र है। समांतर क्रम संयोजन में जुड़े प्रतिरोधों पर विभव की मात्रा समान होती है। अतः स्पष्ट है कि तीन या अधिक प्रतिरोध समांतर क्रम में जुड़े हैं। तो उनका तुल्य प्रतिरोध का व्युत्क्रम, तीनों प्रतिरोधों के अलग-अलग व्युत्क्रम के योग के बराबर होता है।

 13. ओम का नियम तथा उसकी सीमाओं का उल्लेख कीजिए।

 उत्तर:  

ओम का नियम :  किसी चालक के सिरों पर लगाए गए विभवांतर तथा उस चालक में बहने वाली विद्युत धारा के संबंध में सन् 1828 में वैज्ञानिक जार्ज साइमन ओम ने एक नियम का प्रतिपादन किया। जिसे ओम का नियम कहते हैं।

इस नियम के अनुसार, किसी चालक के सिरों पर लगाए गए विभवांतर तथा चालक में बहने वाली धारा का अनुपात एक नियतांक होता है। इस नियतांक को चालक का विद्युत प्रतिरोध कहते हैं।

माना चालक के सिरों पर लगाया गया विभवांतर V तथा उसमें बहने वाली धारा i है तो ओम के नियम की परिभाषा से

                                                   V ∝ i

                                                  V=Ri

​ यही ओम के नियम का सूत्र है। जहां R चालक का विद्युत प्रतिरोध हैं।  तो 

                                               Vi =R=नियतांक

​ इस सूत्र के अनुसार ओम के नियम को इस प्रकार भी परिभाषित किया जा सकता है कि यदि किसी चालक के सिरों पर 1 वोल्ट का विभवांतर लगाने पर उस चालक में बहने वाली धारा 1 एम्पीयर हो, तो चालक का विद्युत प्रतिरोध 1 ओम होगा।

प्रतिरोध R का मात्रक ओम या वोल्ट/एम्पीयर होता है। एवं इसका विमीय सूत्रML2T-3A-2 होता है। इसे ग्रीक अक्षर Ω (ओमेगा) से दर्शाया जाता है। 

अर्थात्  जब किसी चालक की भौतिक अवस्था (जैसे ताप आदि) में कोई परिवर्तन न किया जाए तो चालक के सिरों पर लगाया गया विभवांतर तथा उसमें प्रवाहित विद्युत धारा का अनुपात नियत रहता है अर्थात चालक का प्रतिरोध नियत रहता है। इस दशा में यदि विद्युत विभवांतर तथा प्रवाहित विद्युत धारा के बीच ग्राफ खींचा जाए तो एक सीधी सरल रेखा प्राप्त होगी।

                                                

ओम के नियम की सीमाएं : -

ओम का नियम प्रत्येक विद्युत परिपथ पर लागू नहीं होता है। अर्थात कुछ ऐसे पदार्थ एवं युक्तियां हैं जहां पर विभवांतर तथा धारा का अनुपात लागू नहीं होता है।

1. ओम का नियम केवल निम्न विद्युत धारा पर लागू होता है उच्च विद्युत धारा पर यह नियम लागू नहीं होता है।

2. विभवांतर तथा धारा के मध्य संबंध एकमात्र संबंध नहीं है। अर्थात् एक ही विद्युत धारा के लिए विभवांतर के एक से अधिक महान हो सकते हैं।

वह विद्युत परिपथ जो ओम के नियम का पालन करते हैं। उन्हें ओमीय परिपथ कहते हैं। साधारणतः विद्युत परिपथों पर ओम का नियम लागू होता है। परंतु यह नियम प्रत्येक विद्युत परिपथ पर लागू नहीं होता है।

14.मीटर सेतु क्या है ? इसकी सीमाओं का उल्लेख करें | 

उत्तर :-मीटर सेतु व्हीटस्टोन सेतु के सिद्धांत पर आधारित एक ऐसा सुग्राही यन्त्र है। जिसकी सहायता से किसी चालक तार का प्रतिरोध ज्ञात किया जा सकता है।

मीटर सेतु का सिद्धांत:

मीटर सेतु को चित्र द्वारा प्रदर्शित किया गया है यह एक मीटर लंबे एकसमान अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल वाले तार से बना होता है। यह तार धातुओं की दो मोटी L आकार की पत्तियों से कसा होता है। इन दोनों पत्तियों के बीच रिक्त स्थान में एक अन्य धातु की पत्ती को प्रतिरोध द्वारा संयोजित किया जाता है। दोनों पत्तियों को एक कुंजी द्वारा सेल से जोड़ दो दिया जाता है। मध्य वाली पत्ती पर एक धारामापी को जोड़ देते हैं एवं धारामापी का दूसरा सिरा जॉकी से जुड़ा रहता है। जिसे विद्युत संयोजन बनाने के लिए तार के ऊपर खिसकाकर कहीं भी स्पर्श कर सकते हैं।

मीटर सेतु के सूत्र की स्थापना:

R एक अज्ञात प्रतिरोध है जिसका मान हमें ज्ञात करना है। इसे दोनों में से किसी भी रिक्त स्थान में लगा सकते हैं। दूसरे रिक्त स्थान में एक मानक ज्ञात प्रतिरोध S को संयोजित करते हैं।

माना तार की AB लंबाई का प्रतिरोध P तथा BC लंबाई का प्रतिरोध Q है। तो व्हीटस्टोन सेतु के सिद्धांत से

 

 

                                    PQ = RS   ………….(1)

चित्र में AB की लंबाई ℓ सेमी है। तो BC की लंबाई (100 – ℓ) सेमी होगी। चूंकि पूरे तार की लंबाई 1 मीटर है। तो

AB का प्रतिरोध P = ρla 

BC का प्रतिरोध Q = ρ 100-la

जहां ρ तार का विशिष्ट प्रतिरोध तथ a अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल है। तो

दोनों सूत्रों की आपस में भाग करने पर

                                  PQ =l100-l   …………………(2)

अब समीकरण (2) का मान समीकरण (1) में रखने पर

                                  PQ =RS

                                l100-l =RS

                       S = R (100-ll)

जहां S = मानक ज्ञात प्रतिरोध

ℓ = धारामापी में शून्य विक्षेप स्थिति की दूरी

R = अज्ञात प्रतिरोध है।

मीटर सेतु की सीमाएं (सावधानियां):

चालक तार में विद्युत धारा को लंबे समय तक प्रवाहित नहीं करना चाहिए। चूंकि विद्युत धारा को अधिक समय तक प्रवाहित करने पर तार गर्म हो जाता है। जिसके कारण चालक तार का प्रतिरोध बदल जाता है।

जोकी को तार पर कसकर (रगड़कर) नहीं चलाना चाहिए। चूंकि इससे चालक तार घिसने लगता है। जिसके कारण तार की मोटाई सभी स्थानों पर समान नहीं रहेगी।

15.धारा घनत्व किसे कहते हैं? धारा घनत्व तथा अनुगमन वेग में संबंध ज्ञात कीजिए।

उत्तर:-

  धारा घनत्व :-  किसी चालक के किसी बिंदु पर प्रति एकांक क्षेत्रफल से उसमें गुजरने वाली विद्युत धारा को उस बिंदु पर धारा घनत्व कहते हैं। 

धारा घनत्व को J से प्रदर्शित करते हैं।

माना किसी A क्षेत्रफल वाले चालक से प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा i है तो

                      J=i/A

धारा घनत्व का SI मात्रक एंपियर/ मी 2 होता है। एवं विमीय सूत्र [AL-2] है। तथा धारा घनत्व एक सदिश राशि है

धारा घनत्व तथा अनुगमन वेग में संबंध:-

अनुगमन वेग तथा विद्युत धारा के संबंध के सूत्र से

                                  i = neAVd ..………..(1)

माना A क्षेत्रफल वाले चालक से प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा i है धारा घनत्व

                                 J = i/A  …………….. (2)

समीकरण (1) से i का मान समीकरण (2) में रखने पर

                                 J =( neAVd ) / A

                                     J= neVd  

यही धारा घनत्व तथा अनुगमन वेग के बीच संबंध का सूत्र है।

16.विद्युत धारा क्या है ? इसके मात्रक ,विमा तथा प्रकार का वर्णन करें |

उत्तर:-

विद्युत धारा  :-   किसी काटक्षेत्र से प्रति एकांक समय में गुजरने वाला नेट आवेश विद्युत धारा कहलाती है।Q आवेश अनुप्रस्थ काट से t समय में गुजरता है तो परिभाषा से                                      

                                      विद्युत धारा = Q /t 

विद्युत धारा का मात्रक :- SI अंतर्राष्ट्रीय पद्धति में विद्युत धारा को मूल राशि माना गया है।

 विद्युत धारा का मात्रक = कूलाम /समय  = Cs-1

 चूँकि अंतर्राष्ट्रीय पद्धति में इसे मूल राशि माना है इसे अंतर्राष्ट्रीय पद्धति में एम्पियर कहते है।अतः विद्युत धारा का मात्रक एंपियर है।

विद्युत धारा की विमा = चूँकि यह मूल राशि है इसलिए इसकी विमा [ A¹ ]होती है।विद्युत धारा एक अदिश राशि है। 

परिपथ में विद्युत धारा की दिशा को व्यक्त किया जाता है। फिर भी यह सदिश राशि नहीं हैं क्योंकि ये सादिश योग नियम का पालन नहीं करती है। क्योंकि दो विद्युत धाराओं का योग उनके बीच में कोण पर निर्भर नहीं करता है।

विद्युत धारा के प्रकार :-   विद्युत धारा दो प्रकार की होती है। 

1.दिष्ट धारा :-  ऐसी धारा जिसकी दिशा समय के साथ अपरिवर्तित रहती है । दिष्ट धारा कहलाती है। सैल या बैटरी से प्राप्त धारा दिष्ट धारा होती है दिष्ट धारा की आवृत्ति शून्य होती है। 

2.प्रत्यावर्ती धारा :- वह धारा जिसका परिमाण तथा दिशा समय के सापेक्ष आवृत्ति रूप से परिवर्तित होती है उसे प्रत्यावर्ती धारा कहते हैं

एक निश्चित संतरा पश्चात एक धारा की दिशा विपरीत हो जाती है। भारत में घरेलू उपयोग के लिए प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति 50 हर्टज तथा अमेरिका में 60 Hz हैं।

विद्युत धारा की दिशा :-  विद्युत धारा की दिशा धन आवेश की ओर से ऋण आवेश की ओर होती  है। अर्थात विद्युत धारा की दिशा धन आवेश की दिशा में होती है तथा ऋण आवेश की विपरीत दिशा में होती है। धन आवेश का प्रवाह उच्च विभव से निम्न विभव की ओर होता है तथा जिन आवेश का प्रवाह निम्न विभव से उच्च विभव की ओर होता है अतः ऋण आवेश का प्रवाह धारा की दिशा के विपरीत होता है।

धारा जो उच्च विभव से निम्न विभव की ओर बहती है परंपरागत धारा कहलाती है।

धात्विक चालकों में धारा मुक्त इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह  के कारण होती है।

विद्युत अपघट्य में धारा धन एवं ऋण आयनो के कारण होती है।

अर्धचालको में इलेक्ट्रॉन तथा हॉल के कारण होती है

नोट :-  यदि किसी चालक में प्रवाहित आवेश की दर समय के साथ नहीं बदलती है जो धारा को स्थायी धारा कहते है। तो स्थायी धारा चाल के सभी परिच्छेदों के लिए समान होगी।

17.विभवमापी तथा वोल्टमीटर में अंतर बताइए  |

उत्तर:-

विभवमापी तथा वोल्टमीटर में अंतर : -

          विभवमापी

      वोल्टमीटर

1. संतुलन की स्थिति या अविक्षेप की स्थिति में इसके तार में स्त्रोत से कोई धारा प्रवाहित नहीं होती है।

इसमें स्त्रोत से सदैव निश्चित धारा प्रभावित होती है।

2. विभवमापी के द्वारा मापा गया विद्युत वाहक बल या विभवान्तर बल शुद्ध होता है।

वोल्टमीटर के द्वारा मापा गया विभवांतर पूर्णतः शुद्ध नहीं होता है।

3. यह शून्य विक्षेप विधि पर आधारित युक्ति है।

यह विक्षेप विधि पर आधारित युक्ति है।

4. विद्युत वाहक बल नापते समय शून्य विक्षेप की स्थिति में इसका प्रतिरोध अनंत होता है।

विभवांतर नापते समय इसका प्रतिरोध उच्च होता है लेकिन अनंत नहीं होता है।

5. इसकी सुग्राहिता बहुत अधिक होती है।

इसकी सुग्रहिता अपेक्षाकृत कम होती है

 

18.विभवमापी का सिद्धांत क्या है ? इसके कार्य विधि का वर्णन कीजिए |   

उत्तर :-

विभवमापी :-  किसी सेल का विद्युत वाहक बल अथवा किसी विद्युत परिपथ के किन्हीं दो बिंदुओं के बीच विभवान्तर के नापन के लिए प्रयुक्त उपकरण को विभवमापी कहते हैं।

विभवमापी का सिद्धान्त:-

विभवमापी का सिद्धान्त

इस में एक लम्बा तथा एकसमान व्यास का प्रतिरोध तार XY होता है। जिसका एक सिरा संचायक बैटरी B के धन ध्रुव से जुड़ा होता है। तथा दूसरा सिरा एक धारा नियंत्रक (Rh) से जुड़ा होता है। बैटरी का ऋण ध्रुव प्लग कुंजी (K) तथा धारा नियंत्रक से जुड़ा होता है। जिस सेल E का विद्युत वाहक बल ज्ञात करना होता है उस सेल के धन ध्रुव को तार के बिंदु X से जोड़ देते है। तथा सेल के ऋण ध्रुव को धारामापी G के द्वारा जोकी J से जोड़ देते हैं। जिसको तार पर खिसकाकर कहीं भी स्पर्श कराया जा सकता है।

 

विभवमापी की कार्यविधि:-

बैटरी B से विद्युत धारा तार XY में सिरे X से Y की ओर प्रवाहित होती है। जिसके कारण तार के सिरे A से B की ओर विद्युत विभव गिरता जाता है।

तार की प्रति एकांक लंबाई में विभव पतन को विभव प्रवणता कहते हैं। विभव प्रवणता को Φ से दर्शाया जाता हैं।

 

माना यदि तार XY के भाग XJ की लंबाई ℓ सेमी है तथा बिंदु X व J के बीच कुल विभवान्तर V है तो

                            V = विभव प्रवणता × लंबाई

                            V = Φ × ℓ

चूंकि शून्य विक्षेप स्थिति में, विभवान्तर V सेल के विद्युत वाहक बल E के बराबर होता है। अतः

                             E = V

या 

                                 E=Φℓ

 

19.विभवमापी की सुग्रहीता से क्या तात्पर्य है?  इसके क्या उपयोग है ? 

उत्तर :-

विभवमापी :-  किसी सेल का विद्युत वाहक बल अथवा किसी विद्युत परिपथ के किन्हीं दो बिंदुओं के बीच विभवान्तर के नापन के लिए प्रयुक्त उपकरण को विभवमापी कहते हैं।

विभवमापी की सुग्रहीता:- विभवमापी की सुग्रहीता विभव प्रवणता के मान पर निर्भर करती है। अतः विभव प्रवणता का मान जितना कम होगा विभवमापी उतना ही अधिक सुग्राही होगा।

विभव प्रवणता के सूत्र से

                                 V = Φℓ

या                              Φ = Vl

अतः सूत्र द्वारा स्पष्ट होता है कि विभवमापी के तार की लंबाई बढ़ाने पर विभव प्रवणता का मान कम हो जाता है अतः विभव प्रवणता के कम होने पर विभवमापी की सुग्राहीता बढ़ जाती है।

 

विभवमापी के उपयोग

दो सेलो के विद्युत वाहक बलो की तुलना करने में।

प्राथमिक सेल का आंतरिक प्रतिरोध ज्ञात करने में।

20.किसी सेल के लिए विद्युत वाहक बल, विभवान्तर एवं आंतरिक प्रतिरोध में संबंध स्थापित कीजिए ।

उत्तर :-

सेल के टर्मिनल विभवान्तर, विद्युत वाहक बल तथा आंतरिक प्रतिरोध में सम्बन्ध:-

  एक सेल जिसका विद्युत वाहक बल E है। आंतरिक प्रतिरोध को एक कुंजी k द्वारा बाह्य प्रतिरोध R तथा अमीटर A की सहायता से जोड़ा गया है।

माना परिपथ में i विद्युत धारा, t  समय के लिए प्रवाहित होती है। तो पूरे परिपथ में सेल द्वारा दी गई विद्युत ऊर्जा (या किया गया कार्य)

W = Eq

W = Eit     …………      समी. (1)   (q= it)

यदि प्रतिरोध R के सिरों का विभवान्तर (टर्मिनल विभव) V है। तो बाह्य परिपथ में किया गया कार्य

       Wबाह्य = Vit        ……………  समी. (2)

यदि सेल के भीतर विभव पतन V है। तो सेल के भीतर किया गया कार्य

       Wआन्तरिक  = Vit

Wआन्तरिक = (ir) / it   (ओम के नियम से V = iR)

Wआन्तरिक = i2rt  ………………………………   समी. (3)

ऊर्जा संरक्षण के नियम से

Wबाह्य+ Wआन्तरिक = W

अब समी. (2) समी. (3) से Wबाह्य तथा  Wआन्तरिक के मान रखने पर

Vit + i2rt = W

समी. (1) से W का मान रखने पर

Vit +i2rt= Eit

V + it = E

V= E- ir

ir = E-V

r =  E-Vi

r = E-VV/R ओम के नियम से , V - iR

r = R E-VV

r= REV-1

21.टर्मिनल विभवांतर, विद्युत वाहक बल  और  आंतरिक प्रतिरोध  क्या है ?

उत्तर :-  टर्मिनल विभवांतर :- किसी परिपथ के किन्हीं दो बिन्दुओं के बीच एकांक आवेश को प्रवाहित करने में परिपथ के उन दो बिन्दुओं के बीच व्यय होने वाली ऊर्जा अथवा सेल द्वारा किए गए कार्य को उन दो बिन्दुओं के बीच ‘टर्मिनल विभवांतर’ कहते हैं। इसे V से प्रदर्शित करते हैं।​

विद्युत वाहक बल :-“किसी एकांक वैधुत आवेश को सेल के साथ पूरे परिपथ में प्रवाहित कराने में सेल द्वारा कृत कार्य अथवा सेल द्वारा दी गई ऊर्जा को सेल का ‘विद्युत वाहक बल’ कहते हैं।” इसे E से प्रदर्शित करते हैं। यदि किसी परिपथ में आवेश q प्रवाहित करने पर सेल द्वारा किया गया कार्य अथवा सेल द्वारा दी गई उर्जा W है तो सेल का विद्युत वाहक बल

                                   E=Wq

​अर्थात्  इसका मात्रक जूल/कूलाॅम अथवा वोल्ट होता है। विद्युत वाहक बल प्रत्येक सेल का लाक्षणिक गुण होता है जिसका मान सेल में प्रयुक्त इलेक्ट्रोडों तथा वैद्युत-अपघट्य की प्रकृति पर निर्भर करता है। वैद्युत-अपघट्य की मात्रा तथा इलेक्ट्रॉडों के आकार अथवा उनके बीच की दूरी का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

आंतरिक प्रतिरोध: - “किसी बन्द सर्किट में सेल द्वारा विद्युत धारा प्रेषित करते समय सेल के अन्दर उसके घोल में धारा ऋणात्मक प्लेट से धनात्मक प्लेट की ओर बहती है। इस धारा के लिए सेल के घोल के प्रतिरोध को सेल का ‘आंतरिक प्रतिरोध’ कहते हैं।” इसे r से प्रदर्शित करते हैं। इसका मात्रक ‘ओम’ होता है।

सेल के आंतरिक प्रतिरोध का मान निम्न बातों पर निर्भर करता है-

यह सेल की धनात्मक और ऋणात्मक दोनों प्लेटों के बीच की दूरी के अनुक्रमानुपाती होता है।

यह साधन में डूबे प्लेटों के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है।

यह वैद्युत-अपघट्य के घोल की सांद्रता के अनुक्रमानुपाती होता है।

यह वैद्युत-अपघट्य एवं प्लेटों के पदार्थ की प्रकृति पर निर्भर करता है।

 

22.. किरचॉफ के नियमों के आधार पर  व्हीटस्टोन सेतु का सिद्धान्त समझाइये।

उत्तर-

  व्हीटस्टोन सेतु का सिद्धान्त- चार प्रतिरोधों P, Q, R और S को चतुर्भुज ABCD की चार भुजाओं में जोड़कर चतुर्भुज के एक विकर्ण AC के बीच एक सेल E तथा दूसरे विकर्ण BD के बीच एक धारामापी G जोड़कर प्रतिरोध के मानों को इस प्रकार व्यवस्थित करते हैं कि धारामापी में कोई विक्षेप न हो, तो सेतु को सन्तुलन में कहा जाता है।

इस स्थिति मेंPQ = RS इसे  व्हीटस्टोन सेतु का सिद्धान्त कहते हैं।

सूत्र की स्थापना- सेल E में से बहने वाली विद्युत् धारा i बिन्दु A पर दो भागों में बँट जाती है। इसका एक भाग i1 प्रतिरोध P और Q में से तथा दूसरा भाग i2 प्रतिरोध R और S में से होकर प्रवाहित होता है। सन्तुलन की स्थिति में B और D का विभव समान होता है। अत: धारामापी से होकर कोई धारा प्रवाहित नहीं होती।

किरचॉफ के नियमानुसार बन्द परिपथ ABDA में

 i1P - i2R = 0 ...(1)

 

या i1P =i2R

इसी तरह बन्द परिपथ BCDB में,

i1Q - i2S = 0 ...(2)

समीकरण (1) में समीकरण (2) का भाग देने पर,

i1P /i2Q =i1R / i2S

या

 P / Q = R / S             यही  व्हीटस्टोन सेतु का सिद्धान्त है।

23.चालक की प्रतिरोधकता क्या है ? इसका si मात्रक लिखें| प्रतिरोध की निर्भरता का वर्णन कीजिए |

उत्तर :- 

चालक की प्रतिरोधकता:-  किसी विलयन में दो इलेक्ट्रोड लगाए जाए फिर विद्युत धारा प्रवाहित की जाए तब प्रवाहित करने पर प्रतिरोध, धात्विक चालकों के लंबाई के समान एवं बीच की दूरी के समानुपाती तथा अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है। इसकी SI ईकाई ओम मीटर [Ω m] है।

यदि चालक के सिरों के बीच का विभवांतर V हो तथा उसमें प्रवाहित धारा I हो, तो ओम के नियमानुसार v ∝ I या V =I R जहाँ R एक नियतांक है, जिसे चालक प्रतिरोध कहा जाता है। किसी चालक का वह गुण जो उसमें प्रवाहित धारा का विरोध करता है उसे प्रतिरोध कहते हैं।

किसी चालक का प्रतिरोध निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है-

(i) चालक पदार्थ की प्रकृति पर: किसी चालक का प्रतिरोध उसके पदार्थ की प्रकृति पर निर्भर करता है।

(ii) चालक के ताप पर: किसी चालक का प्रतिरोध उसके ताप पर निर्भर करता है। ताप बढ़ने पर चालक का प्रतिरोध बढ़ता है, लेकिन ताप बढ़ने पर अर्द्धचालकों का प्रतिरोध घटता है।

(iii) चालक की लम्बाई पर: किसी चालक का प्रतिरोध उसकी लम्बाई का समानुपाती होता है। अर्थात् लम्बाई बढ़ने से चालक का प्रतिरोध बढ़ता है और लम्बाई घटने से चालक का प्रतिरोध घटता है।

(iv) चालक के अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल पर: किसी चालक का प्रतिरोध उसके अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल का व्युत्क्रमानुपाती होता है। अर्थात् मोटाई बढ़ने पर चालक का प्रतिरोध घटता है।

 

24.  चालक की प्रतिरोधकता से क्या आशय है ? सिल्वर के किसी तार का 27.5°C पर प्रतिरोध 2.1Ω और 100°C पर प्रतिरोध 2.7Ω है सिल्वर का प्रतिरोधकता ताप-गुणांक ज्ञात कीजिए।

उत्तर :

चालक की प्रतिरोधकता:-  यदि चालक के सिरों के बीच का विभवांतर V हो तथा उसमें प्रवाहित धारा I हो, तो ओम के नियमानुसार v ∝ I या V =I R जहाँ R एक नियतांक है, जिसे चालक प्रतिरोध कहा जाता है। किसी चालक का वह गुण जो उसमें प्रवाहित धारा का विरोध करता है उसे प्रतिरोध कहते हैं।

 किसी विलयन में दो इलेक्ट्रोड लगाए जाए फिर विद्युत धारा प्रवाहित की जाए तब प्रवाहित करने पर प्रतिरोध, धात्विक चालकों के लंबाई के समान एवं बीच की दूरी के समानुपाती तथा अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है। इसकी SI ईकाई ओम मीटर [Ω m] है।

 प्रश्नानुसार ,

 दिया है  ; t1 = 27.5°C पर प्रतिरोध R1 = 2.1Ω,

t2 –t1= 100 – 27.5 = ∆t = 72.5°C

t2 = 100°C पर प्रतिरोध R2 = 2.7Ω,

  = ?

         ∆t = R2-R1R1   

         = R2-R1R1 ∆t

          = 2.7 -2.12.172.5

         = 0.0039°C-1

        = 3.9410-3°C-1

25.विद्युत वाहक बल से क्या तात्पर्य है ? 8 वोल्ट वैद्युत वाहक बल की एक संचायक बैटरी जिसका आन्तरिक प्रतिरोध 0.5 2 है, को श्रेणीक्रम में 15.5Ω के प्रतिरोधक का उपयोग करके 120 वोल्ट के D.C. स्रोत द्वारा चार्ज किया जाता है। चार्ज होते समय बैटरी की टर्मिनल वोल्टता क्या है? चार्जकारी परिपथ में प्रतिरोधक को श्रेणीक्रम में सम्बद्ध करने का क्या उद्देश्य है?

उत्तर :  विद्युत वाहक बल :-“किसी एकांक वैधुत आवेश को सेल के साथ पूरे परिपथ में प्रवाहित कराने में सेल द्वारा कृत कार्य अथवा सेल द्वारा दी गई ऊर्जा को सेल का ‘विद्युत वाहक बल’ कहते हैं।” इसे E से प्रदर्शित करते हैं। यदि किसी परिपथ में आवेश q प्रवाहित करने पर सेल द्वारा किया गया कार्य अथवा सेल द्वारा दी गई उर्जा W है तो सेल का विद्युत वाहक बल

                                   E=Wq

​अर्थात्  इसका मात्रक जूल/कूलाॅम अथवा वोल्ट होता है। विद्युत वाहक बल प्रत्येक सेल का लाक्षणिक गुण होता है जिसका मान सेल में प्रयुक्त इलेक्ट्रोडों तथा वैद्युत-अपघट्य की प्रकृति पर निर्भर करता है। वैद्युत-अपघट्य की मात्रा तथा इलेक्ट्रॉडों के आकार अथवा उनके बीच की दूरी का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

हल :

दिया है : बैटरी का वै० वा० बल E = 8 वोल्ट,

 आन्तरिक प्रतिरोध r = 0.5Ω

आवेशन स्रोत का वै० वा० बल Eex= 120 वोल्ट,

 बाह्य प्रतिरोध R = 15.5Ω

चार्जिंग के समय बैटरी की वोल्टता V = ?

चार्जिंग के समय बैटरी की टर्मिनल वोल्टता V = E + ir

चार्जिंग धारा i = Eex - ER +r = (120-8) v(15.5+0.5 )Ω = 7 ऐम्पियर

∴ टर्मिनल वोल्टता V = 8+ 7 x 0.5 = 11.5 वोल्ट।

बाह्य प्रतिरोध को जोड़ने का उद्देश्य, चार्जिंग धारा को कम रखना है। उच्च चार्जिंग धारा के कारण बैटरी के क्षतिग्रस्त होने की सम्भावना है।